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मां!” मैं अपने ख्वाबों से समझौता नहीं कर सकतीं हूं। आपने कितनी मुश्किलों का सामना करके मुझे इस काबिल बनाया कि आज मैं इस मुकाम पर हूं, सिर्फ इसलिए नौकरी छोड़ दूं कि मैं रवि से ज्यादा ऊंचे पद पर हूं और समाज में मेरा मान – सम्मान ज्यादा है। मां मैंने अपनी मेहनत से ये सब हासिल किया है
और ये मैं कतई नहीं छोड़ने वाली… अगर उसे मुझसे शादी करनी है तो उसे ये सब स्वीकार करना होगा।”आकांक्षा गुस्से में तमतमाई थी क्योंकि बुआ जी उसकी शादी के लिए एक रिश्ता लाई थीं और उनकी शर्त थी कि लड़का तभी शादी करेगा जब वो अपनी नौकरी छोड़ दें।
“पति – पत्नी में कोई भी एक दूसरे से ऊंचे पद पर हो सकता है इसमें क्या गलत है।हम दोनों मिलकर अपनी गृहस्थी ही तो चलाएंगे। पति ज्यादा कमाता है तो पत्नी को कभी भी एतराज नहीं होता तो पत्नी का उससे ज्यादा कमाना उसे क्यों नहीं बर्दाश्त है।”
रत्ना जी को बेटी की बात समझ में आ गई थी और उन्होंने बुआ जी को इस रिश्ते के लिए साफ – साफ मना कर दिया था कि” मेरी बेटी इस तरह के समझौते नहीं करेगी। उसके जैसे काबिल लड़के से ही मैं उसका विवाह करूंगी।”
बुआ जी बड़बड़ाती हुई चली गई थी कि,” हम भी देखते हैं किससे शादी करोगी तुम।”
कुछ ही समय के बाद आकांक्षा को उसके मनमुताबिक वर मिल गया था जो उसकी काबिलियत की इज्जत करता था। समझौता करना बुरी बात नहीं है पर वो किस तरह का समझौता है ये जरुरी है।
प्रतिमा श्रीवास्तव
नोएडा यूपी