‘”नफरत की दीवार” – पूजा शर्मा : Moral Stories in Hindi

कुछ ज्यादा ही चिपकू टाइप नहीं है यह अजय हर समय रिश्तेदारी निकालने को तैयार रहता है जाने क्यों इतना बोलता है किराए पर कमरा दे दिया तो जाने क्या समझ लिया? तुम भी ना इसे ज्यादा सिर मत चढ़ाओ। इतना भी क्या गले पडना के सामने वाले को अनकंफरटेबल लगने लगे?

मैंने तो किराए पर भी इसीलिए दे दिया कि चलो कुछ पैसे आएंगे। और फिर शर्मा जी के बेटे के ऑफिस में ही काम करता है। लखनऊ से दिल्ली में किसी प्रोजेक्ट के सिलसिले में आया हुआ है। केवल 3 महीने के लिए,उनके बेटे ने ही बताया था अच्छा लड़का है 3 महीने की बात है। नहीं तो घर मे जवान बेटी के होते हुए मैं उसे कभी किराए पर नहीं रखता। मुकेश ने अपनी पत्नी सारिका से कहा। यह तो बिना मतलब हमारे घर में ही घुसा जा रहा है। चलो अब तो इसके जाने के 15 20 दिन ही रह गए हैं शांति मिलेगी।

 अरे कुछ हो भी गया आप तो जरा सी बात का बतंगड बना लेते हो क्या कह रहा है वो किसी को। मुझे तो बहुत अच्छा लगता है। मेरे लिए तो राघव के जैसा ही है वह भी तो देहरादून पढ़ाई की वजह से किसी के घर पेइंग गेस्ट बनकर रहता है। इसे देखकर मुझे तो अपने बेटे की याद आती है। सोचो जरा उस दिन क्या होता मैं और आंचल अकेले कैसे करते जब आपकी तबीयत खराब हो गई थी और अचानक हॉस्पिटल में एडमिट करना पड़ा था। पत्नी सारिका ने कहा। अरे मैं सचमुच उसका एहसानमंद हूं लेकिन मुझे नहीं पसंद इतना घूलना मिलना यार मुझसे नहीं हो पाता।

 किराएदार है तो किराएदार की तरह रहे, मेरा कहने का सिर्फ ये मतलब है अरे पापा ,मम्मी सही तो कह रही है मुझे तो बहुत अच्छे लगते हैं अजय भैया। तभी उनकी 12th में पढ़ने वाली बेटी आंचल ने कहा। तभी डोर बेल बजाने से सबका ध्यान भंग हो गया।

 सारिका ने दरवाजा खोला तो सामने अजय ही खड़ा था। अरे आओ। हम लोग तुम्हारी ही बातें कर रहे थे।

 जी आंटी मैं पूछने आया था कि आज अभी मेड नहीं आई है 8:00 बज चुके हैं आपके यहां भी वही आती है ना अरे हां आओ अजय तुम ऑफिस में थे तब उसका फोन मेरे पास आया था तुम्हें बोलने के लिए कह रही थी आज किसी काम से अचानक उसे बाहर जाना पड़ रहा है इसलिए आने के लिए मना कर रही थी आज तुम डिनर हमारे साथ करो मैंने कढ़ी चावल बनाए हैं।

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 अरे वह आंटी कहता हुआ अजय अंदर मुकेश के पास आकर बैठ जाता है। दरअसल पिछले ढाई महीने से अजय मुकेश जी के ऊपर के पोर्शन में किराए पर रहता है। काफी मिलनसार स्वभाव का लड़का है बीपी और शुगर होने की वजह से मुकेश की तबीयत भी ठीक नहीं रहती जल्दी थकान हो जाती है।

सारिका के घुटनों में भी दर्द रहता है। न जाने क्यों सारिका को उससे बहुत लगाव हो गया है? अभी कुछ दिन पहले ही मुकेश की शुगर अप डाउन होने की वजह से रात में उनकी तबीयत बहुत खराब हो गई थी।उन्हें अस्पताल में एडमिट करना पड़ा था। सारी दौड़ भाग अजय ने ही की थी। आंचल को भी अपनी बहन के जैसा ही मानता है अभी रक्षाबंधन का त्योहार पड़ा था तो यह कह कर राखी बंधवाई थी कि मेरी बहन भी तुम्हारे जैसी ही है उसकी राखी तुम ही बांध दो आज

 यूं ही धीरे-धीरे उनके बीच एक आत्मीय संबंध बन गया था। डिनर करने के बाद यूं ही बातें होती रही । आपके परिवार में और कौन-कौन है यह तो मुझे पता है कि आप कानपुर से हैं? अजय के अचानक इस तरह पूछ लेने पर मुकेश और सारिका एक दूसरे का मुंह देखने लगे? चेहरे पर एक टीस सी ऊभर आई ना चाहते

हुए भी मन की गिरहे आज अजय के सामने उन्होंने खोल ही दी। कानपुर छोड़े हुए मुझे 16 साल हो गए। बस बीच में एक बार मां के देहांत पर गया था अंतिम क्रिया के पश्चात उनके काफी रोकने पर भी चला आया। दो बच्चे हैं उनके शायद अब तक तो शादी भी हो गई होगी पूरे 10 साल बड़े हैं भाई साहब मुझसे, कानपुर में कपड़े की दुकान है उनकी , एक जमाना था बहुत प्यार था हमारे बीच, लेकिन ऐसा क्या हो गया अंकल जो आपने वहां आना जाना ही छोड़ दिया? उनकी बात काटते हुए अजय ने पूछा।

 मां को लगता था कि मैंने दिल्ली जैसे शहर में अपना घर ले लिया है। अच्छी नौकरी है। यहां आकर तो रहेगा नहीं इसलिए मां ने कहा बेटा तेरा अच्छा खासा काम चल रहा है शहर में मकान भी ले लिया है तेरे भाई की एक ही दुकान है दो बच्चे हैं। अगर तू कहे तो।

 मैं यह मकान मेरे भाई के नाम ही कर देती हूं दोनों भाइयों के पास अपना मकान हो जाएगा। बाकी मेरे पास जो भी जेवर है तेरी पत्नी को दे दूंगी। लेकिन न जाने क्यों मुझे बड़ा गुस्सा आया मैंने माँ से कहां? मां मैं भी तो आपका बेटा हूं आपने ऐसे कैसे सोच लिया कि मैं यहां पर आकर रहूंगा नहीं? मुझे दिल्ली अच्छी नहीं लगती मैं बुढ़ापे में यहीं आकर रहूंगा। इसी बात पर भाई साहब और भाभी जी मेरे खिलाफ हो गए थे।

 घर में महाभारत छिड़ गई थी। आखिर मैं अपना हिस्सा क्यों छोड़ देता। बढ़ते बढ़ते लड़ाई इतनी बढ़ गई नफरत की दीवार खड़ी हो गई। 2 महीने बाद ही मा भी चल बसी थी मां के मरने के बाद भाई साहब ने।् रोकना चाहा था लेकिन मैं नहीं रुका । मुझे लगा कि सब कितने स्वार्थी होते हैं। अपना ही अपना सोचते हैं।

तब से आज तक मैं भाई साहब से कभी नहीं मिला शुरू शुरू में एक दो बार उनके फोन आए थे लेकिन मैंंने नहीं उठाया। फिर उन्होंने बंद ही कर दिए। अब तो स्थिति ही है कि अगर वह बच्चे जिन्हें हमने गोद में खिलाया था कभी हमारे सामने आकर खड़े भी हो जाए तो हम पहचान भी नहीं पाएंगे।बुरा मत मानना अंकल लेकिन आपको फोन उठाना चाहिए था आपके परिवार के नाम पर एक आपका भाई ही तो है।

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 क्या पता उनहे क्या कहना था, जमीन और घर का बंटवारा तो हमेशा से होता आया है लेकिन इसका मतलब यह तो नहीं भाई से संबंध ही खत्म कर लो।

 भाई भाई के बीच नफरत की दीवार अच्छी नहीं लगती। आपने अपने बच्चों को भी उनके बच्चों से कितना दूर कर दिया। आपको नहीं पता आपके बिना ाआपके भाई साहब कितने परेशान हैं। और हां उनके किसी बच्चे की शादी नहीं हुई है। भला आपके बिना शादी हो सकती है क्या?अगले महीने आपके भतीजे अजय की शादी है। अजय तुम अजय हो कहते कहते मुकेश की आवाज भर्आ गई। उन्होंने खड़े होकर अजय को तुरंत गले लगा लिया और लिएाऔर माथा चूमने लगे। आंखें आंसुओं से भरी हुई थी सारिका की आंसू टपटप बह रहे थे। जड़ से हो गए थे सब कुछ देर के लिए। 

 लेकिन तूने आज क्यों बताया पहले क्यों नहीं बताया

 अजय ने कहना शुरू किया मुझे नहीं पता था कि आप लोग मुझे अपनाओगे या आपका मेरे प्रति क्या व्यवहार होगा इसीलिए मैं पहले आपके साथ रह कर करीब से जानना चाहता था। आपसे पहले मैं अपने भाई राघव से देहरादून जाकर मिल चुका हूं। वह जानता है मैं आपके साथ रह रहा हूं। सारिका कह रही थी आज की पीढ़ी भी इतनी समझदार परिवार को समर्पित हो सकती है मैंने सोचा भी नहीं था। कल मैं कानपुर जा रहा हूं मैंने झूठ बोला था आपसे मैं लखनऊ से हूं। आपको भी मेरे साथ चलना पड़ेगा

अपने घर जहां पर आपके भाई साहब आपका इंतजार कर रहे हैं अबतोरात काटे नहीं कट रही थी । अगले दिन सब लोग मिलकर कानपुर चले गए। कितने बूढ़े से हो गए थे भाई साहब और भाभी जी समय से पहले ही ,अपने भाई को देखकर उनकी आंखों में चमक आ गई। सारे गिले शिकवे आंसू में बह गए।

और जब उन्हें मुकेश ने बताया कि यह सब अजय की वजह से हुआ है तब उन्होंने अपने बेटे से कहा बेटा तुम नहीं जानते।‌ृतुमने मुझे मेरे भाई से मिलाकर कितनी बड़ी दौलतदी है। अरे अपना ही हिस्सा तो मांगा था उसने जिस वजह से मैं अपने छोटे भाई से लड़ बैठा उसके जाने के बाद उसकी कमी का एहसास हुआ लेकिन नफरत की दीवार इतनी बढ़ गई थी कि प्यार के दो कदम बढा ही ना सका। आज बच्चों ने वो दीवार तोड़ दी।अरे ऐसे तो सौसो घर कुर्बान मेरे भाई पर।

 आज ढलती सांझ में पता चला रिश्तो की क्या अहमियत होती है? सारिका भी अपनी जेठानी से मिलकर रो पड़ी। अब सच में घर-घर लग रहा था परिवार से बढ़कर कोई दौलत नहीं होती पैसा बहुत कुछ होता है लेकिन सब कुछ नहीं हो सकता जब दो भाई एक साथ मिलकर चलते हैं तो किसी तीसरे की जरूरत ही नहीं पड़ती। खैर अंत भला तो सब भला।

 पूजा शर्मा स्वरचित।

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