ऑंसू बन गए मोती – डाॅ संजु झा : Moral Stories in Hindi

 आज शशि अपनी मेहनत और लगन के बल पर  मशहूर  शेफ बन चुकी है।कुछ दिनों पहले शशि ने  खुद की डिशेज की किताब भी लाॅन्च  की।उसकी तस्वीर एक प्रसिद्ध पत्रिका में छपी थी।उसके नीचे तारीफ में लिखा था’मशहूर शेफ शशि जी ने अपनी डिशेज की किताब भी लाॅन्च की है,जिसे अत्यधिक सराहना मिली है।उस पत्रिका में अपनी पूर्व पत्नी की तारीफ और फोटो   देखकर विजय  विकल हो उठा। उसे  सहसा विश्वास नहीं हो रहा था कि ऐसा कैसे हो सकता है? शायद उसकी पत्नी ने उसके दिऍं हुए ऑंसुओं को मोती बना लिया है!

जब से विजय  ने अपनी पूर्व पत्नी का फोटो देखा है,तब से उसके मन में खलबली मची हुई है। बार-बार शशि के साथ गुजरा हुआ जीवन उसकी ऑंखों के समक्ष आकर खड़ा हो जाता है।

शशि और विजय एक ही काॅलेज में पढ़ते थे।विजय बहुत ही ऊॅंचे घराने से ताल्लुक रखता था, शशि सामान्य परिवार से थी।काॅलेज में ही दोनों में प्यार हो गया। दोनों जल्द ही शादी करना चाहते थे, परन्तु उस समय प्रेम-विवाह को अच्छा नहीं समझा जाता था।इस कारण दोनों के परिवार इस शादी के खिलाफ थे।

परिवार की मर्जी के खिलाफ दोनों ने शादी कर ली।शादी के बाद जल्द ही माॅं बनने के कारण शशि की पढ़ाई छूट गई।विजय पढ़ -लिखकर सरकारी अफसर बन गया।विजय आरंभ से ही पाश्चात्य संस्कृति से प्रभावित था।एक-एक कर तीन बेटियों के जन्म देने और घरेलू महिला होने के कारण पत्नी से उसका मन उचटने लगा। शशि उसे बहुत प्यार करती थी। बेटियों के साथ-साथ उसका भी बहुत ख्याल रखती थी। पत्नी का इतना ध्यान रखना उसे गॅंवारुपन लगता था।वह सदैव पत्नी को टोकते हुए कहता -“मैंने तुम्हें कुछ और समझकर शादी की और तुम बस घरेलू महिला बनकर रह गई हो।खुद को बदलने की कोशिश करो।”

बार-बार पति की टोका-टोकी से परेशान होकर सुसंस्कृत और प्रतिष्ठित परिवार में पली-बढ़ी शशि सोचती -” पाश्चात्य संस्कृति से प्रभावित पति के साथ कैसे उसकी जिंदगी  कैसे गुजरेगी?”

पति के अपमान और ताने के कारण उसकी ऑंखों से ऑंसू निकल पड़ते।

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उसकी जिंदगी कशमकश में गुजर रही थी।उसी बीच विजय सरकारी काम से कुछ दिनों के लिए अमेरिका चला गया। वहाॅं उसे अपनी कलीग एली से प्यार हो गया। पाश्चात्य संस्कृति में डूबीं हुई एली उसके दिल को भा गई। उसने शशि से बिना पूछे उसे तलाक दे दिया और एली से शादी कर ली।भारत लौटकर कुछ समय तक तो वह शशि को बच्चों की परवरिश के लिए पैसे देता रहा, फिर पहली पत्नी और बेटियों को लगभग भूल ही गया।

एली से शादी के कुछ समय तक तो विजय काफी खुश रहा।उसे महसूस होता कि घरेलू,गॅंवार पत्नी से पीछा छूटा, परन्तु जल्द ही उसकी ऑंखों पर से भ्रम का पर्दा हट गया।एली उसकी कोई परवाह नहीं करती थी।हमेशा क्लब और पार्टियों में व्यस्त रहती। अपनी खुबसूरती और यौवन बरकरार रखने के नए-नए तरीके अपनाती।उसे माॅं बनना गॅंवारा नहीं था। शशि के जो गुण उसे अवगुण लगते थे,अब उसे वहीं याद आते।कुछ समय बाद एली उसे तलाक देकर अपने वतन वापस लौट गई।अब वह एकाकी जीवन जीने को मजबूर हैं।

पहली पत्नी की फोटो देखकर उसने उसके बारे में पता लगाया।उसे पता चला कि शशि ने भी दूसरी शादी कर ली है।दूसरे पति और बेटियों साथ वह बेंगलुरू में ही रहती है। उसने कई बार शशि से मिलने की कोशिश की, परन्तु हर बार नाकामयाब रहा। शशि से मिलने के जज्बात को वह रोक नहीं पा रहा था।एक दिन वह शशि के घर जा धमका।शशि ने अपने नौकर के हाथ में चिट्ठी लिखकर भेज दी। चिट्ठी खोलकर विजय पढ़ने लगा -“मिस्टर विजय! मैं अपना अतीत  पीछे छोड़कर बहुत आगे बढ़ चुकी हूॅं।

आपने तो मुझे गॅंवार और मूर्ख समझ लिया था। मुझे पूरी तरह बदलने की कोशिश में लगे थे। आपसे शादी और बच्चे होने के बाद मेरी दुनियाॅं ही बदल गई थी। देखते -देखते  एक काली घटा की तरह आपके  संकुचित विचार ने मुझे घुट-घुटकर जीने को विवश कर दिया। फिर भी मैं मन में आशा की लौ जलाए आपके बदलने का इंतजार कर रही थी, परन्तु आपने मुझे तलाक देकर मेरे जीवन से सारी हरियाली और सारे प्रकाश छीन लिए। मैं   बेटियों के कारण मरना नहीं चाहती थी,

परन्तु मैं अधिक पढ़ी-लिखी नहीं थी।उसी समय  सुबोध जी मेरे जीवन में देवदूत बनकर उपस्थित  हुए। उन्होंने ने मुझे उसी रुप में स्वीकार किया,जैसी मैं थी। मुझमें हिम्मत और जज्बा पैदा कर मुझे आगे बढ़ने को प्रेरित किया।  आपकी बेवफाई से टूटने के बाद मैंने सारी जिन्दगी अकेले रहने का मन बना लिया था, परन्तु  अकेलापन बर्दाश्त  से बाहर हो चला था।

सुबोध जी का दोस्ताना  अंदाज और छोटी-सी-छोटी भावनाओं  का सम्मान करना देखकर मैं उन पर रीझ उठी। उन्हें  देखकर मैंने शादी का मन बना लिया।उस समय से आजतक सुबोध जी  मेरे तथा बेटियों के  लिए मजबूत  आधारस्तम्भ  बनकर खड़े हैं। उन्होंने हमें कभी बदलने की कोशिश नहीं की।आपसे मिलकर मैं अपने पति की भावनाओं को ठेस नहीं पहुॅंचाना चाहती हूॅं।”

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  चिट्ठी हाथ में लेकर विजय  हतोत्साहित होकर बेबस-सा खड़ा रहा।शशि की निष्ठुरता ने उसके   हृदय के टुकड़े कर दिऍं।उसने अपनी बेटियों से मिलने की कोशिश की। छोटी दोनों बेटियों ने भी मिलने से इंकार कर दिया।उसकी बड़ी बेटी नीला ने बेमन से  मिलने पर कहा -” आपको तो हम पिता नहीं कह सकते हैं, क्योंकि  सच्चा प्यार तो दूसरे पिता ने हमसे और माॅं से किया है। उन्होंने कभी भी अपनी इच्छाऍं हम पर थोपने की कोशिश नहीं की,न ही हमें बदलने की कोशिश की। उन्होंने हमें स्वाभाविक रुप से अपनाया और दिल से प्यार किया।अब आप यहाॅं से जाने का कष्ट करें।”

विजय जी मायूस होकर हारे हुए जुआरी की भाॅंति सिर झुकाकर निकल गए।जमाने को तो उनकी कोई परवाह नहीं थी, किन्तु  अपनी ही निगाहों में गिर चुके थे। पश्चातापस्वरुप आत्मग्लानि के गहरे ॳॅंधेरे कुऍं में उनकी आत्मा विलाप कर उठी। उनकी‌ऑंखों के कोर अनायास ही भींग उठे। सचमुच शशि ने अपनी हिम्मत से उनके दिए हुए ऑंसू को आज मोती बना लिया है।

समाप्त।

लेखिका -डाॅ संजु झा (स्वरचित)

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