कहां-कहां नहीं ढूंढा पापा मैंने आपको? पिछले महीने से पागलों की तरह इधर से उधर ढूंढ रहा हूं आपको, उसने हाथ पकड़ कर अपने पापा को कुर्सी पर बैठाया और उनकी गोद में सर रखकर रोने लगा। जानकी दास जी उसके सर पर हाथ फेरते रहे। वे जानते थे जब तक उनका बेटा जी भर कर रो नहीं देता है उससे बात भी नहीं होतीहै, न जाने क्या हुआ थोड़ी देर बाद उसने अपने पापा के पैरों पर सर रख दिया।
आंखों से झर झर आंसू ऐसे बहे कि जानकी दास जी के पैरों पर गिरने लगे। जानकीदास जी ने अपने बेटे सुहास को उठाकर कस कर गले लगा लिया बस बेटा बस इतने आंसू मत बहा, मेरा शेर बच्चा होकर बच्चों की तरह बिलखबिलख कर रो रहा है तू ,तूने तो मेरे पैर भी सारे भिगो दिए अपने आंसुओं में देख तो, अब बच्चा थोड़ी रह गया है
तू बड़ा हो गया है एक बेटे का बाप है, जानकी दास जी बोले। हां पापा आप सही कह रहे हो मैं एक बेटे का बाप हूं लेकिन मैं कितना बड़ा भी हो जाऊं आपके लिए तो आपका वही छोटासा सुहास रहूंगा जिसका आपके बिन कोई वजूद नहीं है जिसने दुनिया ही आपके कंधे पर बैठ कर देखी है।
रो लेने दीजिए आज मुझे देखो आपके चरणों पर गिर के मेरे आंसू भी मोती बन गए है, भगवान के चरणों में चढ़ाए फूल जैसे प्रसाद बन जाते हैं। जानकीदास जी ने भी चश्मा हटाकर अपने आंसुओं को साफ किया और खुद को संयत करके बोले मैं किशोर के घर से केवल यही सोच कर चला आया था कि मुझे किसी पर बोझ नहीं बनना है
जीवन भर खुद कमाकर खाया है अब आखरी समय पर मैं किसी पर बोझ नहीं बनना चाहता? मेहनतकश शरीर है कुछ ना कुछ कहीं ना कहीं करके खा ही लूंगा। इसीलिए बिना बताए मैं किशोर के घर से चला आया था। बाप बेटे के इस मिलन को होटल में बैठे हुए सब लोग देख रहे थे लेकिन सुहास इन सबसे बेखबर अपने पापा से नम आंखों में बात किए जा रहा था।
अचानक हृदय गति रुक जाने से किशोर और सुहास की मां की जब मृत्यु हुई थी उस समय किशोर और सुहास छोटे थे। किशोर ने दसवीं की परीक्षा दी थी और सुहास सातवीं क्लास में था। सुहास के पापा एक फैक्ट्री में चौकीदार थे। अपनी मां के लाख कहने पर भी उन्होंने दूसरी शादी इसलिए नहीं की क्योंकि उन्हें भरोसा नहीं था’
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कि कोई आने वाली मेरे बच्चों को एक मां का प्यार दे भी पाएगी या नहीं? उन्होंने अपने दोनों बच्चों को मां और बाप दोनों का प्यार दिया था दोनों बच्चे पढ़ने में बहुत होशियार थे। सरकारी स्कूल में पढ़ने के बाद भी बड़े बेटे किशोर का आईआईटी दिल्ली में नंबर आ गया था और अब दिल्ली मेंही एक कंपनी में ऊंचे पद पर कार्यरत है।
उसकी पत्नी भी इस कंपनी में सॉफ्टवेयर इंजीनियर है।।सुहास ने पहले प्रयास में ही नीट की परीक्षा पास करके दिल्ली के एम्स हॉस्पिटल के कॉलेज में एडमिशन ले लिया था। और मुंबई में एक डॉक्टर बन चुका था। उसकी पत्नी भी डॉक्टर है। अपना सारा जीवन अपने छोटे से किराए के घर में ही बीता देने के कारण
जानकी दास जी का मन अपने कोई से बेटे के पास जाने को नहीं करता था लेकिन फिर भी जबरदस्ती उनका बड़ा बेटा उन्हें अपने पास दिल्ली ले आया था क्योंकि सुहास के पास एक बार 15 दिन के लिए मुंबई जाने पर ही उनका मन नहीं लगा था दिल्ली में उनका शहर नजदीक होने के कारण
वह 15 20 दिन में अपने घर भी जाते रहते थे, उनकी कितनी स्मृतियां जो जुड़ी थी उस घर से। यही वजह थी कि वो अपने बड़े बेटे के साथ ही रहते थे, उनके बेटे ने वह किराए का घर मकान मालिक के कहने पर खाली कर दिया था। सुहास भी अपने पिता से मिलने आता रहता था उसके लाख चाहने पर भी वे उसके साथ नहीं गए।
किशोर की पत्नी का व्यवहार उनके प्रति बिल्कुल अच्छा नहीं था। वह नहीं चाहती थी कि वो उनके साथ रहे उसे लगता था कि हमारे अकेले की जिम्मेदारी नहीं है, बार-बार पत्नी के द्वारा पिता के खिलाफ उकसाने के कारण कच्चे कानों वाला किशोर भी अपने पिता से दूरी बनाने लगा था। ऐसे घुटन भरे माहौल में जानकी दास जी का बिल्कुल मन नहीं लग रहा था
वह अंदर ही अंदर घुट गए थे। सुहास जब भी उन्हें अपने पास ले जाने के लिए फोन करता वह मना कर देते थे। एक दिन उन्होंने सुन ही लिया जब उनकी बहू अपने पति से कह रही थी आप सुहास से कह दो अब वो पापा की जिम्मेदारी उठाएं। इतनी दूर जाकर बसा ही इसीलिए है आपका भाई ताकि अपने पिता से छुटकारा मिल सके।
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अपनी बहू की बात सुनकर उनके पैर वहीं जड़ हो गए थे उसी दिन उन्होंने किसी से बिना कुछ कहे घर छोड़ दिया था। जिस इंसान ने जिंदगी भर इज्जत और सम्मान के साथ जिंदगी बिताई हो उसे अपनी ही औलाद से अवहैलना मिले तो उसे बर्दाश्त कहां होता है?। उन्होंने सुहास के पास जाना भी इसीलिए उचित नहीं समझा कि क्या पता कल वहां जाकर भी मेरी यही दशा हो इससे अच्छा मैं आत्म सम्मान से कुछ भी करके अपना बचा जीवन गुजार सकता हूं।
अपने बेटे के नाम एक कागज लिखकर छोड़ गए थे मुझे ढूंढने की कोशिश मत करना मैं अपनी मर्जी से घर छोड़कर जा रहा हूं। मैं अपने जीते जी अपना आत्म सम्मान नहीं खोना चाहता।अपना फोन भी अपने साथ लेकर नहीं गए थे। सुहास भी अगले दिन फ्लाइट से आ गया था पुलिस में सूचना भी कर दी थी लेकिन कहीं भी जानकी दास जी का कुछ पता ना चला।
किशोर को खुद पर आत्म गिलानी हो रही थी। उसने सब कुछ सुहास को सच-सच बता दिया। सुहास भी खुद को ही धिक्कार रहा था कि मैं कमाने के पीछे इतना अंधा हो गया कि जिसकी वजह से इस काबिल बना उन्हें ही ना समझ सका। क्यों बार-बार जिद नहीं कि अपने पास ले जाने की अगर मैं जिद करता तो पापा जरूर चले जाते?
दो दो बेटों के होते हुए भी न जाने आज कहां किस हाल में होंगे पापा? किसी अनहोनी की आशंका से उसका मन कांप जाता था अपना सारा जीवन उन्होंने हमारे खातिर कुर्बान कर दिया और हमसे एक पिता ही ना संभल सके।लेकिन कितने दिन रहता वह वापस मुंबई चला गया था। फिर एक दिन न जाने क्या हूक सी उठी वो वापस दिल्ली आ गया
और अगले दिन गाड़ी लेकर अपने पिता को गाजियाबाद।ढूंढने निकल गया, हालांकि पहले भी वहाँ कितनी पूछताछ हो चुकी थी, हताश हो वापस दिल्ली की ओर चला तो नोएडा के एक छोटे से होटल में खाना खाने बैठ गया जहां पर आज उसे अपने पिता वेटर का काम करते मिले। जड़ हो गया था वह अपने पिता को देखकर।
पिता पुत्र का ऐसा मिलन देखकर होटल में जो भी बैठा था सब की आंखें नम हो गई थी। सुहास ने किशोर को भी फोन कर दिया था। जब सुहास किशोर के पास अपने पापा को लेकर पहुंचा तो किशोर भी अपने पिता के पैरों में गिर पड़ा मुझे माफ कर दो मुझे माफ कर दो पापा सब मेरी गलती है। निशा तो दूसरे घर से आई है मैंने तो आपका सारा संघर्ष अपनी आंखों से देखा है फिर भी जाने कैसे मैं इतना स्वार्थी हो गया । लेकिन आपके जाने के बाद एक दिन भी चैन से नहीं रह पाया हूं। जानकी दास जी ने अपने दोनों बच्चों को अपने कलेजे से लगा लिया। उनके आंसुओं में हर गिला शिकवा बह गया था। खुशी और प्रेम से मिश्रित आंसू सच में मोती बन गए थे।
पूजा शर्मा स्वरचित