मत रो बिटिया मां चली गई तो क्या हुआ बाबू जी तो है ,हम है मायके आती रहना इतना कहकर शकुन्तला ने दोनों बेटियों को गले लगा लिया और दोनों के हाथों में दस ,दस का एक-एक नोट रख दिया।और खुद भी आंसू पोंछने लगी। बिटिया जो आया है संसार में वाको तो एक दिन जाना ही है । मां के बिना मायका तो सूना हो जाता है अब हम ही कैसे मांजी के बिना रहेंगे लेकिन क्या कर सकते है। लेकिन बिटिया मायके आती रहना हम करेंगे तुम सबकी अच्छे से देखभाल।
शकुन्तला जो सेठ रामदास जी के घर में काम करती थी ।सेठ रामदास जी और उर्मिला के तीन बेटे और दो बेटियां थीं। दोनों बेटियों की शादी शहर से काफी दूर दूसरे शहर में हुई थी ।और बेटों की भी शादी व्याह हो चुके थे।घर में बिजनेस होता था। रामदास जी की पत्नी उर्मिला बहुत भली और दयालु औरत थी। पूजा पाठ में बहुत मन लगता था उनका , बड़ी दयावान भी थी।उनकी एक कीर्तन मंडली चला करती थी । जिसमें 15 से 20औरते जुड़ी हुई थी।उन लोगों ने तय कर रखा था
कि महीने में दो दिन अमावस्या और पूर्णिमा को कीर्तन मंडली के जो सदस्य थे उनके घर पर बारी बारी से कीर्तन-भजन होगा। कोई खाने नास्ते का चक्कर नहीं था।बस प्रसाद वितरण होगा।और जो कुछ पैसे आरती पूजा में इकट्ठे होंगे उनसे पहले तो गाने बजाने का सामान जैसे ढोलक, मंजीरा , हारमोनियम आदि खरीदें जाएंगे और फिर जो पैसे बचेंगे
वो इकट्ठा करके किसी गरीब बेटी की शादी में खर्च किए जाएंगे या तो पढ़ाई के लिए गरीब बच्चों की फीस दी जाएगी । इसके नाम पर आरती में सभी लोग कुछ पैसों का सहयोग करते थे। रामदास जी जरा कंजूस किस्म के इंसान थे। वैसे घर में आर्थिक स्थिति तो अच्छी थी लेकिन सेठ जी पैसा जल्दी खर्च नहीं करते थे। फिर भी मालकिन उर्मिला जी किसी न किसी बहाने से सेठ जी से कुछ पैसे निकलवा लेती थी।
ऐसे ही एक दिन उर्मिला जी किसी के घर से कीर्तन करके रात के करीब नौ बजे लौट रही थी ।तो उनके घर के बगल में पीपल के पेड़ के नीचे एक औरत बैठी रो रही थी । उर्मिला जी का रिक्शा जब अपने घर के सामने आकर खड़ा हुआ तो वो रिक्से से उतर कर उस औरत के पास गई और उससे रोने का कारण पूछा
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तो वो रोते-रोते बोली मेरा नाम शकुन्तला है और मुझे मेरे पति ने मारकर घर से निकाल दिया है ।और मेरी एक साल की बच्ची को भी मुझसे छीन लिया है और मुझे बहुत मारा है।अब हम कहां जाएं तो उर्मिला जी बोली अपने मां-बाप के घर चली जाओ । मां-बाप नहीं है दुनिया में भाई भाभी है तो वो न
रख रहे हैं भगा दिया ।अब मैं कहां जाऊं मांजी । उर्मिला को दया आ गई । दिसम्बर की ठंडी रात बेचारी के पास कुछ ओढ़ने बिछाने को भी नहीं था बेचारी सारी रात ठंड में अकड़ जाएगी। उर्मिला जी बोली अच्छा चलो मेरे साथ और उसे घर ले आईं।
एक पुराना गद्दा और एक कंबल दे दिया और कहा कि नीचे दालान में सो जाओ। रातभर उर्मिला जी सोचती रही कि क्या करें इसका, उनके पतिदेव तो बिल्कुल तैयार नहीं होंगे इस बात के लिए कि वो यही रह ले ।एक आदमी के खाने पीने कि खर्चा बढ जाएगा। शकुन्तला सुबह उठकर हिम्मत करके ऊपर के हिस्से में आई जहां सबलोग रहते थे।एक तरफ खड़ी हो गई । किसी ने बात नहीं की सब सोचं रहें थे मां ये क्या बला उठा लाई। तभी उर्मिला जी उसे दो परांठे और चाय दिया कि लो खालों फिर इत्मीनान से बताओ कि अब कहां जाओगी।
वो चुपचाप बैठी रही चाय नाश्ता करके। फिर उर्मिला जी ने बात की अब कहां जाना है , कहां जाएंगे मांजी मेरा कोई सहारा नहीं है।पति ने घर से निकाल दिया है मायका है नहीं कहां जाऊंगी। आपके घर का काम कर दिए करूंगी और यही एक कोने में पड़ी रहूंगी।बड़ा अहसान होगा आपका। उर्मिला जी बड़ी नरम दिल इंसान थी उन्होंने कुछ सोच समझकर घर में रहने की इजाजत दे दी।पति जो भी कहें सुन लूंगी,अब इस बेसहारे को कहां निकाल दूं । यही सोचकर उर्मिला जी ने शकुन्तला को घर पर रहने की इजाजत दे दी।
अब धीरे धीरे शकुन्तला घर का काम करने लगीं।दो बहुएं थी उनके कमरे की सफाई और बच्चों का कोई काम होता तो ,जो कोई कुछ कहता कर देती । उसकी उम्र करीब पैंतीस साल के आसपास होगी। लेकिन सबसे ज्यादा उर्मिला जी का ख्याल रखती थी उनका सारा काम करती ।
उर्मिला जी और शकुन्तला का आपस में स्नेह बढ़ता जा रहा था। उर्मिला जी ने अपनी कुछ साड़ियां दे दी थी उसको और चार पांच पेटीकोट और ब्लाउज बनवा दिए थे वो तो उसी में बहुत खुश रहने लगी थी।काम के नाम पर उसको महीने के कुछ पैसे भी दे देती थी। बेटे बहू भी कभी कभी कुछ पैसे दे दिया करते थे वैसे वो मांगती कुछ नहीं थी। सभी अब उसको चाहने लगे थे क्योंकि काम अच्छे से करती थी और सभी को सहारा भी तो मिल गया था।
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एक दिन उर्मिला जी ने पूछा लिया कि तुम बता रही थी की तुम्हारी एक बेटी भी है कुछ पता नहीं किया उसका । हां मांजी कभी कभी बहुत याद आती है उसकी । पता नहीं कहां है उसको लेकर अपनी बहन के घर चला गया था अब पता नहीं कहां है।अब तो यहां बहू बेटों के बच्चे हैं उन्हीं में अपनी बेटी की छवि देख लेती हूं शकुन्तला बोली।घर के बहू के छोटे बच्चे भी उसे अब शकुन्तला काकी कहने लगे थे।अब तो शकुन्तला घर में इतना घुल-मिल गई थी कि सभी को उसकी जरूरत पड़ती रहती थी।
आज घर में उर्मिला जी के पोते का जन्मदिन मनाया जा रहा था। सभी घर के बेटे आयुष को टीका लगा कर कुछ उपहार दे रहे थे तो शकुन्तला ने भी अपने पैसे से बाजार से एक छोटी सी चाकलेट ख़रीद ली थी और उसने भी आयुष को टीका लगा कर चाकलेट दिया तो सभी ने मना किया कि
नहीं तुमसे तोहफा नहीं लेंगे बड़ी बहू बोली।तो शकुन्तला बोली का बड़ी बहू जी अभी तक हमका तुम अपना नहीं समझी का अब तो यही हमारा घर है ये नाती पोते हमारे भी तो है ।अब तो हम भी इस घर का हिस्सा बन गए हैं । मांजी ने तो हमका दूसरा जीवन दिया है अब से यही हमारा घर है और तुम सबकी सेवा सहाय करते करते ही मर जाऊंगी।पर, अब इस घर से नहीं जाऊंगी। हां बहू जी ये अलग बात है कि हमारा उपहार बहुत छोटा है । तभी बड़ी बहू बोल पड़ी नहीं शकुन्तला बड़े छोटे की बात नहीं है । फिर उर्मिला जी बोली रहने दो बहूं दे दिया है तो मना नहीं करो ।
ऐसे ही शकुन्तला की इस घर में मौजूदगी मजबूत होती जा रही थी ।सबके सुख-दुख में बराबर से खड़ी रहती थी जैसे घर की ही एक जिम्मेदार मेम्बर हो।अब उर्मिला जी के सबसे छोटी बेटी की शादी थी तो शकुन्तला ने खूब काम किया दौड़ दौड़ कर ।
और विदा के समय बेटी के गले लगकर खूब रोई भी। ऐसे ही जब उर्मिला जी की बेटियां ससुराल से मायके आती तो उर्मिला जी को आराम से बैठा देती और पूछ-पूछ कर बिटिया क्या खाओगी हमें बताओ हम बना कर खिलाएं ।सबको बड़े प्यार से खिलाती पिलाती । बेटियों के बच्चों को बाजार पार्क घूमा ले आती । बेटियों के बच्चे भी उसको छोटी नानी नानी बोलने लगे थे।सबके साथ शकुन्तला का एक स्नेह का बंधन बंधता जा रहा था।
इसी बीच उर्मिला जी को गर्भाशय में कुछ दिक्कत आ गई । डाक्टरों ने आपरेशन की सलाह दी । बड़े अस्पताल में आपरेशन कराया गया । वहां अस्पताल में रात दिन शकुन्तला ही रहती थी अच्छे से देखभाल कर रही थी ।बहुएं भी निश्चित थी कि चलो शकुन्तला तो है मांजी के पास। करीब करीब सभी का दिल जीत लिया था शकुन्तला ने। अस्पताल से घर आने पर भी जी जान से सेवा की शकुन्तला ने अब तो उर्मिला जी का एक कदम भी नहीं उठता था शकुन्तला के बिना।हर तरफ शकुन्तला शकुन्तला की ही पुकार होती। शकुन्तला भी सबका काम करने की कोशिश करती।
अब धीरे धीरे शकुन्तला को 20 साल हो गए उस घर में रहते रहते।और आज उर्मिला जी नहीं रही लेकिन सबके सामने उर्मिला जी की जगह शकुन्तला ढाल बनकर खड़ी थी।और आज बेटियों के वापस ससुराल जाते समय मां को याद करके रो रही थी तो शकुन्तला ढांढस बंधा रही थी । मां जी के जाने का दुख कम तो नहीं है बिटिया लेकिन एक और मां तुम्हारी अभी जिंदा है तुम लोग मायके आती रहना । मां की कमी को तो कोई पूरा नहीं कर सकता लेकिन बिटिया हम तुम लोगों को भरपूर प्यार दुलार देंगे।तुम लोगों को कोई तकलीफ़ नहीं होगी।
ऐसा होता है स्नेह का बंधन जो कभी कभी ऐसे जुड जाता है जो तोड़े नहीं टूटता ।खून के रिश्ते ही सगे नहीं होते ऐसे रिश्ते भी बहुत खास होते हैं जैसा कि शकुन्तला का हो गया था ।
मंजू ओमर
झांसी उत्तर प्रदेश
26 मार्च