देखा एक ख्वाब, जो हक़ीकत बन गई – सुषमा यादव

 #ख़्वाब 

**** किसी ना किसी का कोई ना कोई ख्वाब जरूर होता है,, जरूरी नहीं कि वो पूरे ही हो जायें,, मैंने भी एक ख्वाब देखा,,बार बार,किराये का मकान बदलना,, कभी मकान मालिक का मकान खाली करने का अनुरोध तो कभी मकान में ही कुछ ना कुछ कमियां,,तंग आ गए थे,,,

यहां से वहां भटकते हुए,,ये देखकर मेरे मन में भी एक आकांक्षा कभी कभी हिलोरें मारने लगती,,काश,,मेरा भी एक छोटा सा घर होता,,जो मेरा अपना होता,, मैं भी गुनगुनाती,, पिया का घर है ये,, मैं घर की रानी हूं, रानी हूं घर की,,

पर मैं जानती थी कि,, ये बस मेरा एक ख्वाब है, एक सपना है, कभी सपने भी पूरे होते हैं,, मेरी ये दिली तमन्ना दिल में ही कहीं किसी कोने में दफन हो गई थी,, क्यों कि मैं जानती थी,, ये असंभव ही नहीं, नामुमकिन भी है,,

वैसे तो मैं शिक्षिका थी और ये एक बड़े अधिकारी,,पर मेरी दोनों बेटियां उस समय कक्षा तीन से ही नैनीताल बोर्डिंग स्कूल में पढ़ रही थी,, तो उनकी मंहगी फीस में ही सब पैसा चला जाता था,, कभी लोन लेकर तो कभी मेरे मायके से और कभी ससुराल से ले देकर हम उनकी फीस जमा करते थे,

, हमारे पास बैंक बैलेंस जीरो था,

इनकी ज़िद थी कि सब आर्थिक परेशानियां सहते हुए भी मैं उनका 

भविष्य बनाऊंगा,,उसका भी एक कारण था,,

,,, मेरी जब पहली बेटी हुई तो मायके में और हमारे जीवन में खुशियां छा गई,, इनकी तो जैसे जान ही बसती थी उस बच्ची में,,पर मेरी सासु मां ने उदासीनता से उसे देखा, और कोई प्रतिक्रिया नहीं दी,,, कुछ सालों के बाद मेरी जब दूसरी बेटी हुई,तो उन्हें बहुत बुरा लगा,, उन्होंने उसे हाथ तक नहीं लगाया

और गाहे बेगाहे मुझे ताने मारती रहती,,हम सब अक्सर छुट्टियों में ही गांव जाते, वरना तो ये सुनकर जीना मुश्किल हो जाता,,, खैर, कुछ समय बाद दूसरी बेटी भी नैनीताल चली गई,,,


,, एक बार मैं अकेले ही अपने गांव ससुराल गई थी, , मेरी स्कूल की लंबी छुट्टी थी, इन्हें बाद में आना था,,,, एक दिन मेरी सास ने मुझसे पूछा,दुलहिन, कितना वेतन पाती हो,, मैंने सरलता से कहा,, ज्यादा नहीं, अम्मा जी,बस दो हज़ार,,उस समय में दो हज़ार बहुत मायने रखते थे,,,,

,,ये सुनते ही वो आगबबूला हो गई, और मुझे खूब खरी खोटी सुनाने लगीं, मेरे पिता जी को भी अपशब्द कहे, और पैर पटक पटक कर चिल्लाते हुए बोलीं ,निपूती कहीं की,,दो दो लड़कियां पैदा कर के बैठ गई,मेरा वंश कैसे चलेगा,मेरा तो एक ही बेटा है, कोई दूसरा भी नहीं,, ऊपर, से रुपए का रौब दिखाती है, चल निकल मेरे घर से, मैं अपने बेटे की दूसरी शादी करूंगी,, और मेरा हाथ पकड़ कर खींचती हुई बाहर धकेलने लगीं, मैं उनके इस रौद्ररूप को देखकर हक्की बक्की

रह गई और घबरा कर दरवाज़ा पकड़ लिया,, रोते हुए बोली,, अम्मा जी, मैं कहां जाऊंगी,, मुझे मत निकालिए,,शरम भी आ रही थी,कि परिवार, गांव देखेगा, तो क्या कहेगा,, जैसे ही उन्होंने मुझे जोर से धक्का दिया,, किसी ने मुझे थाम लिया,ये क्या कर रही हो माई,, देखा तो ये सामने थे,, मुझे पकड़ते हुए सूटकेस उठा कर अंदर आये,, मेरी सास अचकचा गई, और फिर चिल्लाते हुए बोलीं,, ये हमको अपने रुपए का धौंस दिखा रही है,, एक ठो लड़का तो पैदा कर नहीं सकी,, इन्होंने कहा,, वो कभी ऐसा बोल ही नहीं सकती,, आज़ तक तो आपके इतना सुनाने के बाद हम लोगों ने आपको कभी ज़बाब दिया नहीं,, इसने कभी मुंह नहीं खोला,, कभी भी आपकी शिकायत नहीं की,, आज़ तो मैंने सब आंखों से देखा और सुना,,अब उल्टा दांव पड़ता देख कर सासु मां बिफर पड़ी,,अब या तो मैं इस घर में रहूंगी या ये रहेगी,,इसको निकालो इस घर से,

वरना मैं अभी कुएं में कूद जाऊंगी,इतने में ससुर जी आकर बोले,,जा अभी कूद जा,, खैर वो कूदी तो नहीं,पर बगल के कच्चे मकान में जाकर अकेले रहने लगी और वहीं खाना बनाने लगी,, मेरे पति वैसे तो मातृभक्त हैं,पर शायद उन्हें अपनी मां का ये हठ अच्छा नहीं लगा,, और दूसरे दिन वो मुझे लेकर वापस अपने कार्य स्थल लौट आए,,

 

,,,,,, दो साल बाद एक दिन ये आये और मेरे हाथ में एक बढ़िया छोटा सा कार्ड और एक चाबी का

खूबसूरत गुच्छा रखते हुए बोले,,

ये लो,, मैंने कहा कि,, ये क्या है,,देखो,, अरे, ये तो गृह प्रवेश का

निमंत्रण पत्र है,, और मैंने खोल कर देखा तो आश्चर्य से मेरी आंखें फटी रह गई,, मैं अपने को संभाल नहीं पाई और धम से बैठ गई,, मुझे विश्वास ही नहीं हो रहा था,ये क्या सपना है,, उसमें मेरे ही घर के गृह प्रवेश का निमंत्रण पत्र छपा था,,, मेरी आंखों से गंगा जमुना बह रही थी,, मैं हैरत से इनको देख रही थी,, ये मेरे पास आकर बैठ गए और मेरे आंसू पोंछते हुए बोले,, नहीं, ये सपना नहीं,सच है,, मैं बोली,पर ये कैसे, हमारे पास तो जमीन खरीदने को भी पैसे नहीं थे,, फिर ये मकान,,

ये बोले,, दरअसल जब मेरी मां ने तुम्हें घर से बाहर ये कहते हुए निकाला,,चल निकल मेरे घर से,,ये सुनकर मेरे अंदर हाहाकार मच गया था,, इस वाक्य ने मेरे दिल में एक तीर की भांति घुस कर मुझे लहुलुहान कर दिया था ,,

, मैं रात दिन सोचता कि यदि मुझे कुछ हो गया तो,,,, तो,,,

और फिर मैंने अपनी योजना को क्रियान्वित करना शुरू कर दिया,,

तुम तो आंखें बंद कर मेरे हर पेपर पर दस्तखत कर देती हो,,बीमा हो, पोस्ट आफिस के पेपर्स हो या तुम्हारे वेतन का चेक हो,उसी का फ़ायदा उठाते हुए, पहले जमीन की रजिस्ट्री करवाई,,लोन लिया, अपने स्टाफ से उधार लिया,, और हां, तुम से भी तो फीस के बहाने तुम्हारी सहेलियों से पांच, पांच हजार रुपए उधार मांगने को कहा था,,एकाध महीने के लिए,,, हां,याद है, मैंने कहा,,, इसके बाद ये बोले, हां तो,अब मीनू जानी,,,, तैयार हो जाओ,, अपने घर में जाने के लिए,,, बहुत बड़ा नहीं,, बस चार कमरों का छोटा सा ही है,, मैंने अपने घर और तुम्हारे मां बाबूजी, भैया भाभी को निमंत्रण पत्र भेज दिया है,पर मैं जानता हूं,कि मेरी मां नहीं आयेगी,


और, हां,सब कुछ तुम्हारे नाम से है,, घर, बिजली,नल,,सब कुछ,,

तुम अब अपने घर की मालकिन हो,,चाहे तो मुझे भी घर में मत आने देना, और खिलखिला कर हंसने लगे,, मैं बस अभिभूत हो कर देखे जा रही थी,,

 

*****अब तुम्हें कहने की किसी की हिम्मत नहीं होगी,, मेरे घर से निकलो,***

अब उठो, और पूजा की तैयारी करो,, मैं रोते हुए इनके पैरों पर गिर पड़ी,,आप धन्य है,, आपने सरकारी दौरे का बहाना करके इतने गरमी, ठंडी और बरसात में रात दिन एक करके चुपचाप घर बनवा दिया और मुझे तनिक भी आभास नहीं हुआ,, और अक्सर बाहर रहने के कारण गुस्सा भी करती थी,, इन्होंने मुझे उठाकर गले से लगाया,, और बोले, भगवान् ने भी मेरी सुन ली, शायद उन्हें भी तुम्हें अपमानित करने का

अफ़सोस हुआ है, और इतनी जल्दी मेरी दिली इच्छा पूरी हो गई,,

 

,,, गृह प्रवेश, गायत्री मंदिर के पुजारियों द्वारा बड़े धूमधाम से कलश यात्रा निकालते हुए विधि विधान से संपन्न हुई,, और जब मैंने घर के ऊपर देखा तो नज़र पड़ी,,,,, प्रभू कृपा,,,

,ये आपको याद था,,, हां, बिल्कुल,, एक बार मैंने तुमसे पूछा था,कि मान लो,अपना घर बनता है, तो उस घर का नाम क्या रखोगी,तब तुमने ही बताया था,,

और बाहर सामने मेरे ही नाम की प्लेट चमक कर मुझे जैसे बता रही है,,,

,,,आओ घर की रानी,, ये तुम्हारा अपना घर है,,,

 

,,,,,मेरा ख्वाब ऐसे पूरा होगा,, कभी सपने में भी नहीं सोचा था,,

,,सच हुए सपने पूरे, झूम ले ऐ मन मेरे,,


 

,,,,,अब तो दिल खोलकर गा सकती हूं ना,,, पिया का घर,, नहीं, नहीं,मेरा घर है ये,, अपने घर की रानी हूं मैं,,, और मेरे ख्वाब ने हकीकत का रूप ले लिया,,

 

तो कैसे लगा, आपको,मेरा इस तरह से ख्वाब पूरा होना,,वो क्या कहते हैं,,, सरप्राइज़ गिफ्ट,,

 

,,, मेरा ये हसीन बरसों का ख्वाब पूरा करके कुछ सालों बाद ये अनंत यात्रा पर चले गए,, शायद भगवान जी को धन्यवाद कहने,,

,, आज़ मेरा क्या हाल होता,, वो बस मैं ही जान सकती हूं,, सोचती हूं तो रूह कांप जाती है,,

,, भगवान सब होनी अनहोनी देख कर हमारा भविष्य तय करते हैं,,

 

सुषमा यादव,, प्रतापगढ़,,उ, प्र,

स्वरचित, मौलिक, अप्रकाशित,,

 

 

 

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