संजू दो भाइयों में अपने घर की सबसे लाडली बहिन थी। पिता की मृत्यु के बाद दोनों भाइयों ने मिलकर शानदार तरीके से उसको घर से विदा किया था। अब मां की देखभाल की सारी जिम्मेदारी दोनों भाइयों और बहुओं पर आ गई थी। मां ने एक दिन दोनों बेटों को बुलाकर अपनी दिल की बात बताते हुए कहा-
” देखो बच्चों अब मैं बीमार बहुत रहती हूं, पता नहीं कब सांस साथ छोड़ दें लिहाज़ा मैं चाहती हूं कि अब जमीन-जायदाद के हिस्से कर लिए जाएं तो बेहतर है।”
मां की बात सुनकर दोनों बहुएं भी कमरे में बिस्तर के पास ही बैठ गई।
बड़े बेटे ने मां का हाथ अपने हाथों में लेते हुए कहा -” कर लेंगे मां, ऐसी भी क्या जल्दी है। अभी तो आपको सौ साल से भी अधिक जीना है। और फिर हम दोनों भाइयों को जमीन, जायदाद के दो बराबर हिस्से करने में वक्त ही कितना लगेगा। सब कुछ तो आधा आधा बांट ही लेंगे।”
छोटा बेटा और दोनों बहुएं भी हां में हां मिलाते हुए ऐसे मुस्कुराई जैसी किसी ने उनके मूंह की बात कह दी हो।
पर मां उदास हो गई। उनके मूंह से निकला -” दो हिस्से नहीं बेटे, तीन हिस्से होंगे। तेरे पिताजी की आखिरी ख्वाहिश थी कि संजू को भी उसका हक़ इस पूरी जायदाद में बराबर दिया जाए।”
मां की बात सुनकर दोनों बेटे और बहुएं एक दूसरे का मूंह हैरत से देखने लगे। उनको उम्मीद ही नहीं थी कि ऐसा कुछ भी मां के मन में चल रहा है।
बड़े बेटे की बहु ने कुछ कहने के लिए मूंह खोला ही था कि छोटा बेटा बीच में ही बोल पड़ा -” क्या बात कर रही हो मां, संजू अच्छे खाते पीते घर में ब्याही गई है, भला उसे क्या जरुरत है जमीन, जायदाद की ? “
बड़ा भाई भी उसकी हां में हां मिलाते हुए बोला, “सही कहा भैया, पिताजी ने अपने जीते जी तो कभी इस बात का जिक्र नहीं किया। फिर हमारी पत्नियों को ही कौनसा हिस्सा मिला है। बल्कि उतना दहेज भी नहीं दिया जितना हमने संजू को दिया है।”
दोनों की बातें सुनकर मां ने कहा -” मुझे पता था बेटों कि तुम्हारे पिताजी की आखिरी ख्वाहिश पूरी करने में तुम दोनों मेरी मदद नहीं करोगे, इसलिए मैंने आज ही संजू को बुला लिया है, वो बस अभी आती ही होगी।”
मां की यह बात सुनकर सभी एक दूसरे का मूंह देखने लगे। दोनों बहुएं गुस्से से लाल हो चुकी थीं। तभी दरवाजे पर टैक्सी के रुकने की आवाज़ आई। संजू अपने दो बच्चों के साथ घर में प्रविष्ट हुई। सबसे हाल चाल पूछती हुई वो मां से जाकर लिपट गई । “कैसी हो मां। आज अचानक आपने मुझे कैसे याद किया। सब ठीक तो है ? “
मां बिस्तर से उठते हुए बोली -” सब ठीक है बेटा, बस तेरे बाऊजी की आखिरी ख्वाहिश पूरी करने के लिए ही तुमको याद किया है। मां की बात पूरी होने से पहले ही संजू बोल पड़ी ” आखिरी ख्वाहिश, कौनसी ख्वाहिश मां, मैं कुछ समझी नहीं।”
मां कुछ बोलती इससे पहले ही बड़ी बहु ने अपना मूंह बनाते हुए कहा – ” आपके दोनों भाइयों के बच्चों की खुशहाली की नीलामी की ख्वाहिश और क्या !”
संजू कुछ समझ पाती तभी छोटा बेटा बोल पड़ा -” देखो मां हम अपने हिस्सों में से एक फूटी कौड़ी संजू को नहीं देने वाले । पूरी जमीन जायदाद के सिर्फ दो हिस्से होंगे और राखी या भाई दूज पर संजू का आना जाना लगा ही रहेगा सो इसके उसके लिए कोई मनाही नहीं है।”
संजू को सारी बात समझते देर नहीं लगी। उसने मां को समझाते हुए कहा -” देखो मां तुम्हारी संजू को किसी प्रकार की कोई कमी नहीं है। मैं चाहती हूं कि मेरे दोनों भाई खुश रहे तथा जैसा वे चाहते हैं वैसा ही आप करो।”
यह कह कर संजू ने मां को सहारा देकर बिस्तर पर लैटाना चाहा पर यह क्या मां के शरीर में कोई हल चल नहीं थी। संजू मां के शरीर को पूरी ताकत से झिझोड़ते हुए चिल्लाई – ” मां, आँखें खोलो मां! ” दोनों बेटे भी मां की नब्ज़ टटोलने लगे। मां इस दुनिया से विदा हो चुकी थी। शायद उन्हें दिल का दौरा पड़ा था।
सब फूट फूट कर रोने लगे। मां की तेरहवीं के बाद संजू अपने परिवार के साथ अपने ससुराल लौट आईं थीं। दोनों भाइयों ने मिलकर जमीन जायदाद के दो बराबर हिस्से कर लिए थे। बड़ा भाई भी अब अपना हिस्सा बेचकर शहर चला गया था। शहर में नया मकान खरीदना चाहता था
लेकिन बिजनेस में घाटे के चलते किराए के मकान में ही गुजारा करना पड़ रहा था। इधर छोटे भाई के इकलौते बेटे को कैंसर ने घेर लिया । लाखों के कर्जे के बाद भी वह ठीक से बेटे का इलाज नहीं करवा पा रहा था।
यह सब समाचार जब संजू को मिले तो वो खुद को नहीं रोक पाई। दौड़ कर अपने छोटे भाई के पास आई। उसने अपने सोने के कंगन भाई के हाथों में देते हुए कहा -” भैया क्या हाल बना रखा है आपने, एक बार तो मुझे याद किया होता सारी मुसीबतें अकेले झेल रहे हो ।
लिजिए इन कंगन को बेचकर छुटकू का इलाज करवाइए। और हां कोई और जरुरत हो तो बताइएगा । आखिर बहिन हूं आपकी। बस मेरे ससुराल में किसी को मत बताना कि मैंने आपको अपने कंगन दिए हैं। भाभी को भी नहीं। ” पर संजू की भाभी ने दरवाजे के पीछे से सब कुछ सुन लिया था। वो संजू को गले लगाकर रोए जा रही थी।
मौलिक एवम् स्वरचित
एडवोकेट नवल किशोर सोनी