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बहुत ढूंढ़ते ढूंढ़ने आज जाके उसे किराए का मकान मिला सच कितना मुश्किल होता है गर अपना घर न हो तो दर व दर की ठोकरें खाते फिरो, हर तीन साल पर मकान बदलते रहो,वो भी दस परसेंट ब्याज के साथ। उसे अच्छे से याद है जब वो इलाहाबाद आई थी तो पचास रूपए किराया देती थी।और आज चालीस सालों में कितना बढ़ गया।कि जितने में पहले पूरा घर चलता था अब उतना किराया देना पड़ता है।
पर खलता इसलिए नहीं कि बच्चे बड़े बड़े हो गए सब कमा धमा रहे , पर एक कमी हो गई कि जितने यहां लाकर खड़ा किया अब वही इस दुनिया में नहीं रहा तो बस जिंदगी तैसे तैसे कट रही, अब शादी की बात करती हूं तो बच्चे कहते हैं कि जब तक मकान नहीं होगा तब तक शादी की सोच भी नहीं सकते। और देख भी रहे हैं जैसे ही पसंद आ जाएगा खरीद लेंगे।पर कभी कभी सोचती हूं कि आज सब कुछ है नहीं है तो वहीं जिसने इस सुख के काबिल बनाया।
और बालकनी में पौधों को पानी देते देते उसकी नज़र सामने वाले घर पर पड़ी।जो देखने में बहुत बड़ा था पर रहने वाला कोई दिख नहीं रहा था।इतने में पानी देते देते अचानक एक बुढ़िया दिखाई दी।तो देखते ही प्रणाम किया ।
और बोली कैसी है आप तो वो मुस्कुरा कर बोली मैं ठीक हूं पर आप कौन पहले कभी नहीं देखा।तो ये बोली,अरे मैं आपके कालोनी की नई किरायदार अब मैं तीन साल यही रहूंगी।
कहती हुई दीवार फांद कर वहां पहुंच गई जहां वो खड़ी थी। फिर कोई आश्चर्य भी नहीं अभी जवान है तो फांदना कोई बड़ी बात नहीं वो तो कम उम्र में शादी हो गई थी तो बच्चे जल्दी हो गए और समय से पहले जवान भी हो गए। फिर क्या पहुंचते ही दोनों ने एक दूसरे का परिचय लिया तो सामने वाली बोली मिलनसार लगती हो।कितने बच्चे हैं पति देव क्या करते हैं।
इस पर इसने कहा अम्मा तीन बच्चे हैं दो की नौकरी लग गई तीसरा पढ़ रहा तो वो बोली और पतिदेव। इस पर इसकी आंखें भर आईं और बोली अब वो इस दुनिया में नहीं रहे दिल का दौरा पड़ा और अस्पताल ले जाते ले जाते रास्ते में ही दम तोड़ दिया।
इस पर वो सीने से लगाकर बोली।अरे अरे नाहक ही तुम्हारा दिल दुखाया।
असल में अब औरतें हो या लड़कियां सुहाग चिह्न लगाती ही नहीं तो फर्क कर पाना बड़ा मुश्किल होता है।
इस पर ये फीकी मुस्कान के साथ बोली।
और आप अम्मा।तो वो दृढ़ता के साथ बोली।
मेरा क्या इतने बड़े घर में अकेले रहती हूं बेटे बहू विदेश में हैं बेटियां अपने अपने ,बस फोन का सहारा है और कामवालियों का समय समय पर सब आते जाते रहते हैं इसी से दिल लगा रहता है।अभी कुछ ही साल पहले ये भी नहीं रहे ।ऐसे में मैं भी सोचती थी कि अकेले कैसे रहूंगी पर जो जहां जमा है वहां से तो आएगा नहीं ,इसलिए हिम्मत जुटाकर रहना पड़ रहा ।
कहते हुए दर्द भरी मुस्कान मुस्कुराई।मानों बहुत गहरा दर्द छिपा लिया हो इसके पीछे।
तो ये बोली अम्मा आपको डर नहीं लगता।तो वो बोली।डर काहे का बिटिया बेवा स्त्री मन से बहुत मजबूत होती है उसे डर नहीं लगता । कभी कभी तो सोचती हूं मैं भी कितना डरती थी कि रात को बाथरूम भी जाना हो तो इन्हें जगाकर जाती।
पर इनके मरते ही जैसे हिम्मत और ताकत दोनों आ गई,हां पहले पहल असूझ लगता था पर अब तो आदत हो कहती हुई कुर्सी खींच कर बैठ गई।
और इसको इसके बेटे ने आवाज लगाई तो ये भागकर अपने घर में आ गई।
पर एक ऐसी सीख साथ लेकर आई जिससे वो सालों से पीड़ित थी कि बच्चे बाहर चले जाएंगे तो क्या होगा।
आज वो सोच रही कि वही वो भी करेगी जो बगल वाली अम्मा कर रही।और डर को विराम दे अपने काम में लग गई।
स्वरचित
कंचन श्रीवास्तव