टूटते रिश्ते आज फिर से जुड़ने लगे – मंजू ओमर : Moral Stories in Hindi

दीप्ति जैसे ही अपनी सास वसुधा जी के पैर छूने आगे बढ़ी वसुधा जी ने हाथ आगे बढ़ा कर उसे रोक दिया। रहने दो दिखावा करने की कोई जरूरत नहीं है ।बड़ों की इज्जत मन से होती है जब मन में तुम्हारे हमारे लिए कोई इज्जत नहीं है तो ये पैर छूने का दिखावा क्यों कर रही हो। मुझसे गलती हो गई मम्मी मुझे माफ़ कर दें।

अब मैं पिछली सारी बातें भुला कर आई हूं नए सिरे से रिश्ते बनाने ।जो कुछ पीछे हुआ उसको मैं भूलकर आई हूं फिर से रिश्ते को जोड़ने ।आप लोग भी प्लीज़ भूल जाइए पुरानी बातें और मुझे माफ़ कर दे ।माफ़ कर दूं तब तो तू मेरा बात बात में अपमान करती थी तब तूझे नहीं समझ आया था।

तभी वसुधा जी के पति मदन जी ने हल्के से आंख से इशारा किया कि अब बात को बहुत न बढ़ाओ जाने दो जो हुआ सो हुआ । आखिर अपना एक ही तो बेटा है तुम लोग के झगडे से वो भी कितना परेशान रहता है ।बीबी की तरफ बोले तो तुम नाराज़ और मम्मी की तरफ बोले तो बीबी नाराज़ बताओ क्या करें । तुम ही शांत हो जाओ ।

               वसुधा और मदन जी का एक ही बेटा था ‌‌‌बड़ी हंसी खुशी से शादी की थी बेटे की और सोचा था सब मिलकर खुशी खुशी रहेंगे । लेकिन जैसा हम सोचते हैं वैसा होता कहां है।बहू के घर आते ही वसुधा जी ने बहू के कान में धीरे से कहा था परेशान न होना एक मां को छोड़कर आई हो तो दूसरी मां मिल गई है ।

मुझे अपनी मां ही समझना ।घर में कोई परेशानी हो तो मुझसे कहना ।या बेटे अभय की तरफ से भी कोई परेशानी हो तो मुझे बताना कान खिचूंगी उसके।और वसुधा ने बहू को सारी बंदिशों से भी आजाद कर दिया । वैसे तो मेरे घर में थोड़ा सा पर्दा होता था लेकिन मैं तुमसे कोई पर्दा नहीं करवाऊंगी। मैंने तुम्हें आजादी कर दिया बस थोड़ा लिहाज रखना रिश्तों का और जैसे मन हो वैसे रहो बस खुश रहो ।

                   फिर क्या था दीप्ति को तो जैसे पूरी आजादी मिल गई।अब तो वो अपनी मनमानी करती ,सुबह सोकर ही दस ग्यारह बजे उठती । जबतक वसुधा जी सारा नाश्ता वगैरह बना चुकी होती अभय भी आफिस निकल जाता और मदन जी भी अपने काम पर चले जाते।अब वसुधा दिप्ती का नाश्ते पर इंतजार करती रहती।एक दिन वसुधा जी से नहीं रहा गया

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तो उन्होंने दिप्ती से कह दिया बेटा इतनी देर तक सोना अच्छी बात नहीं है ।सुबह उठकर नाश्ता वगैरह कर लिया करो और अभय को भी आफिस चले जाने दिया करों फिर चाहे आराम कर लिया करो। बेटा थोड़ा बहुत घर का काम भी करना चाहिए घर भी तो आखिर तुम्हारा ही है न ।

मैं तो अपने घर में ऐसे ही उठती हूं मम्मी जी। लेकिन सबके घर की दिनचर्या अलग-अलग होती है न बेटा, ज्यादा देर तक‌ सोना अच्छी बात नहीं होती। वसुधा ने तो साधारण तरीके से समझाया था लेकिन दिप्ती बुरा सा मुंह बनाकर कमरे में बैठ गई जाकर।

                एक दिन दिप्ती घर में र्शाट  टी शर्ट और घुटने तक पायजामा पहन कर आ गई । वसुधा जी ने टोका अरे दिप्ती ये क्या पहन रखा है ।अरे मम्मी जी आपने ही तो कहा था कि जैसे मन हो वैसे रहो तो घर में मैं यही पहनती थी सो पहन लिया। वसुधा ने सिर पकड़ लिया बेटा मेरा मतलब पर्दे सा था और घर में सलवार सूट पहनो पायजामा कुर्ता पहनो और भी आजकल सुंदर सुंदर लांग गाऊन और बहुत से कपड़े है पहनो लेकिन ये नहीं अच्छा नहीं लगता । हमारे घर में पर्दा वगैरह होता था

तो वो सब नहीं करना है ।ये नहीं अच्छा लगता बेटा बदल लो इसको।बस दिप्ती पैर पटकती हुई कमरे में चली गई और अपने मम्मी को फोन करने लगीं मम्मी मैं यहां नहीं रह सकती यहां तो मम्मी बहुत टोकती रहती है दिनभर में न करों वो‌न करो। वसुधा जी ने सब सुन लिया कि दिप्ती मम्मी को फोन कर रही है। वसुधा सोचने लगी कि कह दिया कि जैसे मन हो वैसे रहो तो इसका मतलब ये थोड़े नहीं है कि हर काम ऊटपटांग करो।

                शादी के छै महीने बाद दिप्ती प्रेगनेंट हो गई । शुरू शुरू मे वसुधा जी उसे हिदायतें देने लगी कि ये न करों वो न करों ज्यादा ऊपर नीचे न करो सीढियां न चढो उतरो तो आखिर में दिप्ती ने वसुधा जी को कह दिया मम्मी जी अब मैं यहां नहीं रहुंगी मैं अपने मम्मी के घर जा रही हूं । वसुधा जी ने अभय से कहा बेटा दिप्ती को थोड़ा समझाओ ।मैं उसके भले के लिए ही समझाती हूं मेरा उसे कहने का ग़लत मतलब नहीं है पर वो बुरा मान जाती है।अभय बोला ठीक है मम्मी मैं देखता हूं ।

            किसी तरह नौ महीने बीते और डिलिवरी का समय आ गया।एक बेटी को जन्म दिया दिप्ती ने ।जब अस्पताल से घर आई दिप्ती तो वसुधा ने उसे गुण का मेवा डालकर पाग बना कर दिया और जो कुछ जचके में खाया जाता है वो बना रही थी तो दिप्ती कहने लगी नहीं मैं ये सब नहीं खाऊंगी कितना वजन बढ़ जाएगा इससे , मुझे फल मंगवा दे नहीं बेटा यही सब खाया जाता है फल नहीं खाया जाता है। नहीं अभय तुम मेरे लिए फल लाओ ।तो वसुधा जी जोर से बोल पड़ी क्या जचके में फल खाया जाता है क्या ।

लेकिन दिप्ती ने जिद करके फल मंगवा लिए और खा लिए। दूसरे दिन बच्चे को खूब दस्त लग गए और सर्दी भी लग गई ।अभय ने कहा मम्मी बच्ची को सर्दी लग गई है सर्दी तो लगेगी ही फल खाएंगी तो बच्ची दूध पी रही है मां का । ठीक हो जाएगा चलो मैं तेल गरम करके लगा देती हूं थोड़ी आग से सिखाई कर देती हूं ठीक हो जाएगा।

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दिप्ती अभय से जिद करने लगी कि डाक्टर को दिखाओ अभय ने कहा ठीक हो जाएगा मम्मी ने मालिश कर दी है हां तुम तो बस अपनी मम्मी का कहना मानोगे दिप्ती बोली दिनभर पता नहीं क्या क्या तुम्हारे कान में भर्ती रहती है मेरी तो सुनना नहीं है । फिर वसुधा जी से दिप्ती बोली आप तो चाहती है कि मेरे बच्चे को कुछ हो जाए । वसुधा कहने लगी मैं चाहती हूं कि मेरे बच्चे को कुछ हो जाए ।सोच में पड़ गई वसुधा जी कि सोचो क्या और क्या हो जाता है ।मैं तो अपने मम्मी के यहां जा रही हूं तो वसुधा जी ने भी गुस्से से कह दिया जाओ चली जाओ मम्मी के यहां ।और दिप्ती मायके चली गई।

           और जिद करके दिप्ती मायके चली गई।छै महीने हो गए आ नहीं रही है । वसुधा जी ने भी नहीं बुलाया ।अब दिप्ती के मायके में खुसुर फुसुर होने लगी कि बेटी ससुराल छोड़कर मायके में बैठी है। दिप्ती के छोटी ब हन की शादी की बात चल रही है । वहां तक ये बात पहुंच गई कि बेटी ससुराल छोड़कर मायके में बैठी हुई है

तो छोटी बेटी की जहां बात चल‌ रही थी वो लोग भी सोचने लगें बड़ी बेटी ऐसी है तो कहीं छोटी भी ऐसे ही नाटक न करने लगे।बहन का रिश्ता जुड़ते जुड़ते टूटने लगा ।तो मां ने कहा दिप्ती तू ससुराल छोड़कर यहां बैठी है तो कीर्ति का रिश्ता भी नहीं जुड़ पा रहा है।जाओ बेटा जो हो गया है हो गया अपने घर जाओ तुम ही नाटक करती हो मैं जानती हूं । छोटी छोटी बातों का बड़ा बना देती हो।

            आज दिप्ती को पता नहीं क्या समझ में आया वो अपनी मम्मी से बोली मम्मी मैं ससुराल जाना चाहती हूं ।जो कुछ भी हुआ उसकी बेटा अपनी सास से माफी मांग लो ऐसे छोटी छोटी बातों में घर छोड़कर थोड़े ही आते हैं।इस तरह से जिद पकड़े रहने पर रिश्ते टूटने के कगार पर आ जाते हैं।

       बड़ी समझदारी दिखाकर दिप्ती ससुराल आ गई और वसुधा जी से माफी मांग रही है । इसलिए मदन जी ने वसुधा को अलग ले जाकर समझाया वसुधा एक बार फिर से टूटते रिश्ते जुड़ने जा रहे हैं पिछली बात को भूलकर एक कदम दिप्ती ने बढ़ाया है तो बड़े होने के नाते एक कदम तुम भी बढ़ाओ ।जोड़ दो टूट रहे रिश्ते को।हम बड़े है यदि माफी मांग रही है दिप्ती तो माफ़ कर दो ।बेटे का भी कुछ ख्याल करो ।

            वसुधा ने नन्ही को गोद में लेकर प्यार किया और बोली दिप्ती आज तुमने टूटते रिश्ते को फिर से जोड़ने की कोशिश की है चलो ठीक है ये तुम्हारा घर है रहो यहां आराम से । तुम्हें कुछ टोकने का मतलब ये नहीं है कि कुछ तुम्हारा बुरा चाहते हैं हम।। बेटा सही बात को समझो क्या सही है और क्या ग़लत।जी मम्मी जी ठीक कह रही है आप और आगे बढ़कर दिप्ती ने वसुधा जी के फेर छुए ।और एक बार सांस बहू फिर से गले लगकर टूटते रिश्ते को जोड़ लिया ।

मंजू ओमर

झांसी उत्तर प्रदेश

6 मार्च

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