बड़ी बहू – अमित रत्ता : Moral Stories in Hindi

अरे कुछ तो कुल की मान मर्यादा के बारे में सोचा होता क्या मुहं दिखाएंगे समाज को रिश्तेदारों को क्या बताएंगे हम कि किस नीच मनहूस को ब्याह के लाया है। पूरी दुनिया मे तुझे यही मिली थी क्या अपनी जाति में लड़कियां खत्म हो गईं थी पता नही कैसे इसने मेरे बेटे को अपने जाल में फंसा लिया। है भगवान मैं क्या करूँ ये दिन देखने से पहले मुझे मौत क्यों नही दे दी। अब कौन तेरे भाई से शादी का रिश्ता जोड़ेगा जब उन्हें पता चलेगा कि ये नीच जाति की हमारी बड़ी बहू है।

मानव चुपचाप मुहं नीचे करके सुन रहा था उसने सुनैना को भी समझा दिया था कि मां कुछ भी बोले तुम कुछ मत कहना थोड़े दिन में सब ठीक हो जाएगा। दरअसल मानव ब्राह्मण परिवार से था और सुनैना छोटी जाति की। दोनो को प्यार हुआ अब प्यार कहाँ देखता है जातपात। घर मे बात की तो माँ बाप ने साफ इंकार कर दिया कि अगर उझसे शादी करेगा तो हमारे साथ कोई रिश्ता नही रहेगा यहां तक कि माँ ने तो मरने की धमकी भी दी। सुनैना थी खूबसूरत थी संस्कारी थी अपने से बड़ों का मान सम्मान कैसे करना है घर का कामकाज सब अच्छे से जानती थी बस उसका कसूर इतना था कि वो छोटी जाति की थी।

आज दोनो कोर्ट में शादी करके घर आए तो मानव की मां ने पूरा घर सिर पे उठा लिया था उसने न जाने क्या क्या नही बोला सुनैना के खानदान से लेकर उसके चरित्र पर कई सवाल उठा दिए मगर सुनैना चुपचाप सुनती रही। खैर बात यहाँ खत्म हुई कि सुनैना न तो रसोई में पैर रखेगी न पूजा घर में। घर के आंगन में वाला चूल्हा उसे दे दिया गया और बोल दिया कि दोनों यहीं पकाओ यहीं खाओ। सुनैना रसोई और पूजा घर को छोड़कर पूरे घर की साफ सफाई करती, सास ससुर के कपड़े धोने हो या गाय भैंस का काम हर काम को दिल से करती वो चाहती थी कि वो अपने सास ससुर की सेवा करे मगर ये संभव नही था।

अभी छः महीने ही गुजरे थे कि छोटे बेटे मनमीत की सगाई एक सजातीय परिवार में कर दी झट मंगनी फट ब्याह छोटी बहू पल्लवी भी घर मे आ गई। 

छोटी बहू को सास अपनी बेटी की तरह प्यार करती छोटी बहू ने भी घर का काम अच्छे से संभाल लिया सास ससुर को खाना देना हो या घर के छोटे मोटे काम वही करती मगर बड़ी बहू अभी भी साफ सफाई झाड़ू पोछा या गाय भैंस का ही काम करती थी। सास आज भी बड़ी बहू को बातें सुनाने का कोई मौका न छोड़ती थी हर बक्त उसकी जाति को लेकर कितनी ही कटु बातें सुना देती। उसकी मौत की दुआएं करती कि हे भगवान कब इससे पीछा छूटेगा कबतक ये हमारी छाती पर बैठी रहेगी आखिर कौन से पाप किये थे जो ये मनहूस पल्ले पड़ गई। 

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एक दिन सुनैना की सास नहाकर वाशरूम से बाहर निकली और एकदम आए नीचे गिर पड़ी उसने उठने की कोशिश की मगर वो उठ न सकी उसे लकवा मार गया दाईं तरफ का शरीर एकदम शिथिल हो गया न उसका हाथ उठा रहा था न टांग हिल रही थी, जुवान पे भी जैसे ताला लग गया था। सुनैना और पल्लवी भागी हुईं आई दोनो ने उठाकर बिस्तर पे डाला अपने पतियों को फ़ोन करके बुला लिया। उसे हॉस्पिटल ले जाया गया इंजेक्शन और दवाई देकर डॉक्टर न घर भेज दिया और कह दिया कि ठीक होने में महीना भी लग सकता है साल भी और कई साल भी

और हो सकता है कि कभी भी ज्यादा रिकवरी न हो पाए। अब सास के हालात ऐसे हो गए की जो अपने ऊपर मक्खी भी बर्दाश्त नही करती थी उसको शौच और पेशाब भी कपड़ों में ही करना पड़ रहा था छोटी बहू ने साफ मना कर दिया उसने कहा कि रोटी पानी तक तो ठीक है मगर ये इसकी लैटरिंग वाले कपड़े साफ करना मेरे बस का नही है। सब लोग बुढ़िया को नफरत की निगाहों से देखने लगे और हमेशा जाति का भेदभाव करने वाली खुद अछूत हो गई कोई उसके पास जाना नही चाहता था।

गांव में दो चार औरतों से बात की जो पैसे के बदले ये सब काम कर दें मगर सबने मना कर दिया कि दो दो बहुएं हैं अगर वो ये सब नही कर सकती तो हम क्यों करें। 

सासु मां की शौच सलवार में ही हो गयी थी वो इशारों में बता रही थी मगर बद्धवू के चलते कोई उसके पास नही जा रहा था। पल्लवी ने तो साफ मना ही कर दिया था बेटे भी चाहे शर्म के मारे या गन्दगी के चलते पास नही जा रहे थे। तभी बड़ी बहू आज पहली बार सास के कमरे में आई थी यहां एक छोटा सा मंदिर बना था जिसमे सासु मां रोज पूजा करती थी उसने आज पहली बार अपनी सासु मां को कपड़े बदलने के बहाने हाथ लगाया था। सासु मां की साफ सफाई की कपड़े बदले और फिर लिटा दिया।

अब सुनैना ही सुबह शाम उसके कपड़े बदलती उसकी साफ सफाई करती और चमच से उसे दाल जूस या पानी पिलाती। 

सुनैना ने दिल से दिन रात सास की सेवा की आज जब वो चमच से उसे जूस पिला रही थी तो सास ने अपना बायां हाथ उठाकर उसकी हथेली पर रख दिया मुहं से कुछ कहना चाहती थी कुछ बोल नही पा रही थी मगर उसकी आँखों से टपकते आंसू बयां कर रहे थे कि वो सुनैना से माफी मांगने की कोशिश कर रही थी।

सुनैना ने उसे दाल पिलाई उसके आंसू पोंछे और उसका सिर अपनी गोद मे रखकर दबाने लगी।

कई महीनों तक सुनैना ने सास की मां की तरह सेवा की अब उसकी सास चलने फिरने लग गई। अब सुनैना ने सोचा कि अब माँ जी ठीक हो गईं है तो अब फिर से उसने अपने आटे वाला बर्तन उठाया और बाहर आंगन वाले चूल्हे को जलाने लगी। तभी अंदर से सास ने आवाज लगाई “बड़ी बहू” इधर आओ। आज पहली बार सास के मुहं से बहु सुनकर सुनैना का दिल भर आया वो भागती हुई अंदर गईं तो सास ने उसके सिर पे हाथ रखते हुए कहा बहु तूने मुझे माफ़ नही किया क्या अभी तक? सुनैना ने पूछा मांजी आप ऐसा क्यों बोल रहे हो मैं भला कौन होती हूँ आपको माफ करने वाली।

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सास ने कहा अगर माफ कर दिया था तो अपना खाना अलग से जाकर क्यों बना रही थी? सुनैना घबराते हुए बोली पर मांजी मैं तो नीच… बोलते बोलते रुक गई। सास उसका हाथ पकड़ते हुए रसोई में ले गई और बोली कि नीच तू नही बेटा नीच तो मैं हूँ जो तुम्हारे जैसी बेटी को समझ नही पाई। शायद भगवान ने मुझे इसी बात की सजा दी

जो पाप मैने तुझे बुरा भला बोलकर किया। देख न मैं ही अछूत हो गई थी कोई मेरे पास आना नही चाहता था तब मुझे समझ आया कि जब कोई किसी के शरीर से नफरत करता है तो उसे कितना दर्द होता है। ये शरीर कब किस बीमारी से ग्रस्त हो जाए किसे पता मैं इस शरीर का घमंड कर रही थी भगवान ने सारा घमंड पल में तोड़ दिया। मुझे खुद को अपने शरीर से घिन्न आने लगी थी बेटा ये तो तेरी हिम्मत है जो तूने किया अगर सगी बेटी भी होती तो पता नही वो भी कर पाती या नही। 

आज से तू यहीं रसोई में खाना बनाएगी और हां अब अगर मैं बीमार हो जाऊं तो मुझे खाना चमच से नही अपने हाथों से खिलाना। सुनैना का गला घर आया और आंसू पोंछते हुए वो सास के गले लग गई। पीछे से सबकुछ सुन रहा मानव भी अपनी आंखें पोंछते हुए मुस्कुराने लगा। उसके बाद बे दोनो मां बेटी की तरह रहने लगी और अब सास तो पूरे गांव में बड़ी बहू की तारीफ करते न थकती थी।

                 अमित रत्ता

        अम्ब ऊना हिमाचल प्रदेश

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