* पति पत्नी का रिश्ता कोई खेल नहीं है* – पुष्पा जोशी : Moral Stories in Hindi

आशा ने कहॉ – ‘आ बेटा शुभि’….. फिर दरवाजे की ओर देखते हुए बोली- ‘यह क्या अकेली आई है, जमाई बाबू नहीं आए? आज तो रविवार की छुट्टी है, आ जाते तो अच्छा रहता।’

शुभी ने कुछ तमक कर कहॉ- ‘यह क्या हर पल जमाई बाबू…जमाई बाबू की रट लगाए रहती हो, तुम्हें मेरे आने की खुशी नहीं हुई क्या ?’ आशा को लगा कि शुभी गुस्से में है, वह फिर कुछ नहीं बोली। राजू को प्यार किया

और कहॉ – ‘बेटा तुम्हारे नाना बाहर गार्डन में पौधों को पानी दे रहे हैं, तुम उनसे मिल आओ।’राजू  फुदकता हुआ नाना के पास चला गया। आशा ने पूछा – ‘क्या बात है शुभी , तू उखड़ी-उखड़ी क्यों है ? क्या रौनक बाबू के साथ कोई झगड़ा हुआ है?’शुभी  कुछ नहीं बोली।

आशा उसके बालों पर हाथ फेरने लगी,तो उसकी रुलाई फूट पड़ी। ‘माँ अब मैं सहन नहीं कर सकती, मैं नहीं रह सकती उनके साथ।’

          ‘क्यों, क्या हुआ? तुझे कुछ कहा क्या?’

वो अनाम रिश्ता – संगीता त्रिपाठी : Moral Stories in Hindi

            ‘नहीं मुझे कुछ नहीं कहा। माँ तुम्ही बताओ? यहाँ भोपाल में उनकी अच्छी खासी नौकरी है, जमा जमाया घर है, मैं जब चाहूँ, तुम्हारे पास आ सकती हूँ। मगर, इन्हें एक ही धुन है कि उनके मम्मी-पापा के पास दिल्ली में बसना है। कहते हैं, माँ वृद्ध है, उनका स्वास्थ ठीक नहीं रहता है, उनकी साज- सम्हाल करना मेरा धर्म है। मैं भी तो आपकी अकेली बेटी हूँ, क्या मेरा फर्ज नहीं है आपके प्रति?’

                आशा को समझ में आ गया था, कि यह सब शुभी की अपरिपक्व सोच का परिणाम है। एक बचपना है, एक अहं के भाव का उदय है। वह मनोविज्ञान की प्रोफेसर थी, ऐसे कई प्रकरण को उन्होंने सुलझाया था। बच्चे जवानी की देहलीज पर कदम रखते हैं तो कभी-कभी भावुकता में बहकर, क्षणिक आवेश में,प्रेम के वास्तविक अर्थ को

समझ ही नहीं पाते और विवाह कर लेते हैं। ऐसा ही शुभी और रौनक के साथ हुआ, दोनों एक ही कॉलेज में पढ़ते थे। उन्होंने प्रेम विवाह किया, और बाद में अपने-अपने मम्मी-पापा को खबर दी। दोनों के मम्मी – पापा के पास उन्हें अपनाने के अलावा कोई विकल्प नहीं था। उन्होंने इस रिश्ते को अपना लिया।

मोना दिल्ली में सास – ससुर के पास जाती तो प्रेम से रहती, रौनक भी ससुराल आता-जाता रहता। सात वर्षो तक सब ठीक-ठाक चलता रहा। उनका एक बेटा था राजू, ४ वर्ष का, बड़ा प्यारा, दोनों की आँखो का तारा। शादी के बाद कुछ वर्षों तक तो वे दोनों शारीरिक आकर्षण में बंधे रहै। धीरे-धीरे यह आकर्षण कम होने लगा, और एक दूसरे की गलतियाँ निकालने लगे,उनके अहं टकराने लगे।

              आशा की समझ में आ गया था, कि शुभी के मन में जो अहं और अलगाव का बीज उगा है, उसे जल्दी उखाड़ना पड़ेगा।इसकी जड़ गहरी फैल गई तो, पूरे परिवार को हिला कर रख देगी।

तिरस्कार का तिरस्कार – सुभद्रा प्रसाद 

              आशा ने उस समय सामान्य रहते हुए शुभी से कहॉ -‘बेटा सब ठीक हो जाएगा। तू बाबा से मिलकर आ तब तक मैं चाय नाश्ता बनाती हूँ। और देख… बाबा  से अभी इस बारे में कुछ नहीं कहना। मुझे कॉलेज के काम से कुछ दिनों के लिए बाहर जाना है, जब वापस आ जाऊँगी। आकर तुमसे बातें करूँगी। तब तक तुम तुम्हारे घर में शांति से रहो।’  शुभी बोली – ‘ठीक है माँ।’ वह बाबा के पास ग‌ई। आशा ने चाय और नाश्ता बनाकर उन्हें आवाज लगाई। सबने चाय नाश्ता किया और शुभी  उसके घर चली गई।

             उसके जाने के बाद, आशा ने सारी बातें गिरीश जी को बताई  और कहॉ – ‘समस्या का समाधान जल्दी कर लेना चाहिए, वरना घर बिखर जाएगा। मैंने एक योजना बनाई है, मैं शुभी के ससुराल जाकर उन्हें भी इस योजना का हिस्सा बनाना चाहती हूँ।’ आशा ने सारी योजना बताई और पूछा- ‘तुम्हारा क्या विचार है?’

               ‘ठीक है, जैसा तुम उचित समझो करो, मुझे भी चिन्ता हो रही है, मैं तुम्हारे साथ हूँ।आशा जब दिल्ली में शुभी के ससुराल ग‌ई, तो रेखा और अरूण ने उसका बहुत आदर सत्कार किया। आशा ने उन्हें सारी बात बताई, और अपनी योजना भी। सारी बातें सुनकर दोनों सन्न रह ग‌ए। उन्होंने आशा को धन्यवाद दिया और उसका साथ देने का वादा किया। आशा ने कहा था, कि अगले रविवार को रौनक दिल्ली  आने वाला है

              जब रौनक दिल्ली आया तो रेखा चुपचाप घर से निकल गई। उसके पापा ने उसके हाल-चाल पूछे, चाय बनाकर पिलाई। रौनक ने कहॉ -‘पापा आप परेशान दिख रहे हैं?….माँ कहाँ गई है।’  ‘अब वो मेरे साथ नहीं रहती, अपने भाई के यहाँ रहती है। मैं नहीं रह सकता उसके साथ।’

‘पर क्यों पापा….?’    

          ‘बस वैसे ही।’

फूल जैसी लड़की(HEIDI) -लेखिका -योहन्ना स्पायरी-(रूपान्तर =देवेंद्र कुमार)

      ‘पर पापा मैं क्या करूँ? मुझे तो आप दोनों के साथ रहना है। आप दोनों के साथ रहने के लिए, मैं शुभी से झगड़ा करके  दिल्ली में, कम्पनी ज्वाइन करने आया हूँ ।’

‘क्या कह रहे हो ! शुभी से झगड़ा करके ?और राजू ! उसका क्या होगा?’

                     ‘वह मेरे पास रहेगा।’  ‘तूने राजू के बारे में सोचा? क्या उसे माँ की जरुरत नहीं पड़ेगी? अभी वह कितना छोटा है। तू माँ को इस घर में चाहता है, तो पहले शुभी के पास जा। उसे समझने की कोशीश कर…. फिर अपनी बात समझाने की कोशीश करना।’ पापा आपने मेरी आँखें खोल दी। मैं भोपाल  जा रहा हूँ । पर …..’माँ ?’

            ‘मैं यहीं हूँ बेटा! मैं तुम्हारे पापा को छोड़कर कहीं नहीं जा सकती।’ रौनक ने माँ के पैर छुए और चला गया।

रविवार के दिन जब शुभी माँ से मिलने ग‌ई, तो वह कुछ नहीं बोली। ‘क्या बात है माँ ? तुम उदास हो। पापा कहाँ ग‌ए।’ ‘अब वे यहाँ नहीं रहते। फ्लेट में रहने चले ग‌ए हैं। बात-बात पर झगड़ा करते हैं। मैं उनके साथ नहीं रह सकती।’  ‘पर माँ वे झगड़ा भी तो प्यार से करते हैं, तुम थोड़ा मन मार लेती। कैसे चले ग‌ए‌, तुमने रोका नहीं? माँ मैं तुम दोनों के साथ रहना चाहती हूँ, इसलिए रौनक से भी झगड़ा हो गया। अब मैं उसके साथ नहीं रहूँगी।’ ‘झगड़ा हो गया और राजू?

 ‘राजू  मेरे साथ रहेगा।’

        ‘उसे उसके पापा की याद नहीं आएगी ? तू  इस उम्र में पापा के बिना नहीं रह सकती है, तो वह कैसे रहेगा? वह तो अभी कितना छोटा है।’ शुभी बोली – ‘माँ इस बारे में तो मैंने सोचा ही नहीं।’ 

          ‘नहीं सोचा है, तो अब सोच। बेटा !  पति-पत्नी का रिश्ता कोई खेल नहीं है, जो एक झोंके से टूट जाए। छोटी-छोटी गलत फहमी, अहं का भाव रिश्ते को खोखला कर देते हैं। बेटा ? ये बहुत नाजुक रिश्ते हैं, इन्हें फूल की तरह दिल में संजोकर रखना पड़ता है, वरना ये फूल की पंखुड़ियों की तरह बिखर जाते हैं।’

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              इतनी देर में गिरीश जी भी आ ग‌ए बोले – ‘बेटा तू चाहती है ना, कि मैं तेरी माँ के साथ रहूँ, वैसा ही हम भी चाहते हैं। तुझे सारे गिले-शिकवे भूलकर रौनक के पास लौटना होगा। बेटा! प्यार से प्यार बढ़ता है, दिलों की दूरियाँ कम हो जाती है। विभाजन किसी समस्या का समाधान नहीं, पति-पत्नी के रिश्ते में आपसी सामंजस्य होना चाहिए। तुम्हारा एक गलत कदम, राजू की सारी खुशियों को छीन लेगा।

        तुम कहीं भी रहो अपने परिवार के साथ रहो। हमारा आशीर्वाद हमेशा तुम्हारे साथ है।’

             शुभी को अपनी गलती का एहसास हो गया था। उसने क्षमा मांगी और कहॉ – ‘आपने मुझे सही दिशा दी है,अब मैं कोई शिकायत का मौका नहीं आने दूंगी।’ उसने दोनों को प्रणाम किया और उसके, अपने घर लौट ग‌ई।

अगली सुबह रौनक और शुभी के जीवन में नवीन खुशियाँ लेकर आई और उनकी खुशी में शामिल था, उनकी आँखो का तारा राजू।

प्रेषक-

पुष्पा जोशी

स्वरचित, मौलिक 

# टूटते रिश्ते जुड़ने लगे

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