“सुजाता ओ सुजाता जल्दी आओ, देखो मयंक हम सब को छोड़ कर जा रहा है”- दीनानाथ चिल्लाते हुए पत्नी सुजाता को बुलाया रहे थे ।
दीनानाथ जी की आवाज सुन सुजाता जी कमरे से बाहर आ गई | बाहर आकर उन्होंने जो घर का नजारा देखा तो उनकी आँखों को विश्वास नहीं हुआ । बाहर मयंक अपनी पत्नी सविता और अपने एक माह के बच्चे के साथ खड़े हैं
और ड्राइवर उनका सामान एक एक करके गाड़ी में रख रहा था । सुजाता जी दौड़कर मयंक हाथ पकड़ लेती हैं। वह रोते हुए कहती हैं कि “तु मुझे छोड़कर नहीं जा सकता मयंक, मैं तेरी माँ हूँ, तूने सोचा है, तेरे वगैर मैं कैसे रहूँगी”।
“माँ ! मैं भी आपके वगैर नहीं रह सकता, लेकिन जिस घर में मेरी पत्नी को मान-सम्मान नहीं मिल सकता, मैं अब उस घर में नहीं रह सकता” मयंक ने सविता जी का हाथ छुड़ाते हुए बोला ।
“बेटा ! मैंने तुझे जन्म दिया है, तु मेरा इकलौता वारिस है, इस घर का चिराग है, तु कहीं नहीं जाएगा ।” सुजाता जी मयंक का हाथ पकड़ते हुए बोली “अगर कोई जाएगा इस घर से तो ये जाएगी”
सुजाता जी सविता को धकेलते हुए बोली | सुजाता के अचानक ऐसा करने से सविता बच्चे को लिए हुए लड़खड़ा गई, जिसे दौड़कर मयंक ने संभाल लिया और सुजाता के इस कृत्य पर वह चिल्ला उठा “माँ क्या कर रही हो, अभी गिर जाती सविता, चोट लग जाती उसे तो”।
“लग जाती तो लग जाती, मेरी बला से | ये जब से आई है, तु इसका गुलाम बन गया है।” सुजाता जी बोली |
माँ ! सविता मेरी पत्नी है, मेरे बच्चे की माँ है, अगर उसका ख्याल रखना, उसको मन-सम्मान देना और दिलाना अगर गुलामी है, तो यही सही मैं गुलाम हूँ सविता का” मयंक सुजाता जी को आँखे दिखाते बोला । तुम्हें शर्म नहीं आती, अपनी माँ से ऐसे बात करते हुए” – अभी तक शांत खड़े दीनानाथ जी अचानक मयंक पर चिल्ला पड़े।
“वाह पापा वाह, आखिर आपने बोल तो सही” अगर आप थोड़ा माँ के लिए और अपने लिए भी ऐसा ही सोचते कि आप लोगों के व्यवहार से दूसरों को भी कष्ट होता है तो यह दिन न देखना पड़ता | मयंक आज सारी भड़ास निकाल देना चाहता था | चलो सविता ” कहते हुए मयंक सविता का हाथ पकड़ जाने लगा ।
सुजाता जी को लगा अब वह चला जाएगा तो, उसका हाथ पकड़ कार रोने लगी । “मत जा बेटा हमें छोड़कर | तेरे बिना हम सब कैसे रहेंगे”। माँ अब मुझ पर आपके आँसुओं का भी असर नहीं होगा, क्यों कि अब बात केवल सविता की ही नहीं मेरे बच्चे का भी है और मैं नहीं चाहता कि मेरा बच्चा अपने ही घर में अपनी माँ का अपमान होते हुए देखे ।”
“बेटा मैं तुमसे और सविता से अपने व्यवहार के लिए क्षमा माँगती हूँ, रुक जा बेटा, मत जा माफ कार दे अपनी माँ को “। मयंक को टस से मस न होते देख सुजाता सविता के पास जाकर हाथ जोड़ कहती हैं “बेटा हो सके तो मुझे माफ कर दे, मानने तेरे साथ बहुत गलत किया । तेरी हर अच्छाई को नजर अंदाज
कर केवल अपने अहं में चूर रही और भूल गई कि तु अपना सब कुछ छोड़कर यहाँ आई है हम सबको अपना मानती है लेकिन मैं तुझे अपना नहीं मान पाई, हमेशा तुझे पराया समझी | जाओ बेटा तुम लोग जहाँ रहो खुश रहो, हो सके तो अपनी माँ को माफ कर देना” कहकर रोते हुए सुजाता जी अपने कमरे में चली गई । दीनानाथ भी सविता के और बच्चे के सिर पर हाथ फेरते हुए कमरे में चले गए ।
थोड़ी देर बाद दरवाजे पर आहट सुन सुजाता और दीनानाथ पलटकर देखते है, तो उन्हें अपनी आँखों पर विश्वास नहीं हो रहा था सामने सविता ट्रे में चाय और समोसा लिए खड़ी थी । सुजाता जी दौड़कर उसके हाथ से ट्रे लेकर मेज पर उसे गले से लगा लेती हैं। तब तक मयंक भी बच्चे को लेकर आ जाता है ।
उसके हाथों से बच्चे को लेकर सुजाता जी लगातार चूमती जा रही थी जिसे देख सविता हँसते हुए बोली “माँ जी मुन्ना कहीं भागा जा रहा आप रोज इसे चूम सकती हैं”। सुजाता प्रश्नात्मक दृष्टि से मयंक को देखती हैं, तो मयंक उनसे लिपट जाता “माँ, आपने कैसे माँ लिया कि मैं आपको छोड़ कहीं जा सकता हूँ ? आप मेरी जीवनदाता हो ।
तो फ़िर ये सब ? माँ मुझे माफ कर दो, क्या करू कई दिनों से इतना कुछ हो रहा था, तो हम सब ने मिलकर आपके लिए एक छोटा सा नाटक किया | मयंक अपने पापा की ओर देखते हुए बोला | सुजाता जी पहले गुस्से से फ़िर हँसते हुए मयंक और सविता को गले से लगा लिया, जिसे देख बच्चा भी खिलखिला उठा |
अन्नु गोन्द
#बेटा इतने जतनों से पाला-पोसा और इस “कल की आई” के लिए हम सब को छोड़ कर जा रहा है।