समय बदलता सोच भी बदलती लेकिन ममता का स्वरूप कभी नहीं बदलता एक अपनत्व की डोर रिश्ते को कैसे आपस में बांधे रखती है…?
आज़ सुबह से ही घर में खुशी का माहौल था रेखा जी के कभी बातें करने,कभी खिलखिलाने की आवाजें पडोसन बेला जी के लिए तो रहस्य का विषय बनी हुई थी। गृहस्वामी रमाकांत जी की भाग-दौड़ दसों बार बाजार से जाकर आ चुके थे। रेखा जी की आवाज को आज चुप्पी बर्दाश्त ही नहीं हो रही थी विराम लगने का तो नाम ही नहीं ले रही
कभी ये… ले आइये, कभी वो… ले आइये, एक के बाद एक फरमाइशें जैसे खत्म होने का नाम लेना न चाहती हो । भोर सवेरे से ही कुकर की सीटी की आवाज तड़के छोंका की महक,खर खर फर फररर मिक्सर-ग्राइंडर की मोहभंग करती ध्वनि आस पड़ोस के घरों में आसानी से पहुंँच रही थी ।
पड़ोस की बेला जी जाने कितनी बार बाउंड्री से रेखा जी के यहां ताक-झांक कर चुकी सोचती दिखें तो पूछा जाए कोई पार्टी शार्टी है क्या ..?
अचानक रेखा जी रमाकांत जी को पुकारते बाहर आई।
“अजी सुनते हो.. कहां हो आप “..?
हाँ, हाँ आ रहा हूँ…बहरा नहीं हूँ । रमाकांत जी तुरंत हाजिर हो गये सोचा ऐसा न हो आगे कुछ और सुनना पढ़ जाए।
सोच रही थोड़ा पालक ,पनीर और ले आते बहु अक्सर फोन में बतियाती रहती उसको बहुत पसंद है। दोनो कामकाजी बाहर से ही मंगवा लेते।समय की कहां होता होगा उनके पास पालक धोना काटना दस झंझट..
अरे तुम भी ना एक बार नहीं बता सकती सारा सामान, सुबह से दसों चक्कर लगा चुका हूँ बाजार के । रमाकांत जी थोड़ा क्रोधित होने का दिखावा कर रहे मगर भीतर से कितना प्रफुल्लित थे ये वो ही जानते थे ।
बस आखिर बार हो आये, बाकी सब तैयार है । वैसे भी प्लेन का समय हो गया है बस एक आध घंटा ही लगेगा बहु बेटा को घर पहुँचने में.. रमाकांत जी जैसे ही झोला लेकर घर से निकले बस बेला जी को मौका मिल ही गया रेखा जी के घर में घुसने का तुरन्त उनके घर पहुँच गई।
अरे रेखा जी… बड़ी जोर शोर से तैयारी हो रही कोई पार्टी है क्या ?
अरे बेला बहन.. नहीं नहीं बहु बेटा आ रहे अहमदाबाद से दो तीन दिन के लिए।
बेला जी थोड़ा सपकपकाई…हें ऽऽऽ ओऽऽ होऽऽ भई तैयारी तो ऐसे की जैसे….
अब बेला जी के घर में होने को तो दो, दो बहुएं दोनों साथ में रहती एक अविवाहित बेटी सुन्दरी भी है। एक बेटा तो ठीक ही है दूसरा आवारा किस्म का सारा दिन बाहर इधर उधर मुंह मारता फिरता पत्नी की उसे कोई परवाह ही नहीं। बेलाजी को भी बहु फूटी आंँख नहीं भाती और तो और बेला जी तो बस बेटी के काम को सराहती और बहु के किए दस काम पर मिट्टी फेर देती। बिटिया की तबीयत होती तबीयत खराब और बहु की तबीयत उनके लिए होती आडम्बर …दिन भर उनके घर से किच किच चिल्लाने चीखने एक दूसरे पर छींटाकशी की ही आवाज गूंजती रहती।
अरे रेखा जी आपको तो बहु भी कितनी अच्छी मिली है। बेलाजी बोली…एक मेरी बहु है… एकदम कामचोर सारा दिन आराम ही करती रहती आज भी बेटा बिचारा भूखा ही घर से चला गया मगर महारानी को कोई चिंता ही नहीं ?
बेला बहन अगर इंसान अपनी सोच सही कर ले तो कोई भी बहु बुरी नहीं हो सकती एक लड़की बीबी बनने के लिए शादी करती है बहु बनने के लिए नहीं। हमारा समाज झूठे आदर्श रीति-रिवाज और सबसे ज्यादा सास का अहं बहु को कभी अच्छा बनने ही नहीं देता …
बहु से मतलब गुलाम या दासी बनना नहीं है।हर रिश्ते में तालमेल होना जरूरी है। अच्छी बहु होने का मतलब यह नहीं वो किसी की गुलामी करे ,सबकी इच्छा पूर्ति करने के लिए अपनी इच्छाओं को दबा के अच्छी बने बस बड़ों का आदर सम्मान कर ले ।
लेकिन रेखाजी आपकी बहु कितनी कद्र करती तभी तो आप उसके स्वागत में इतनी तत्परता और तल्लीनता से व्यस्त हैं। (बेला जी रूआंसी और मायूसी से बोली) ।
देखों बेला जी ताली एक हाथ से तो कभी बजती नहीं , हमें समझना होगा हर लड़की सर्व गुण सम्पन्न तो हो नहीं सकती। अपना बेटा कैसा भी हो,एक अच्छी बहु सबको चाहिए पर क्यों चाहिए…? शायद इसीलिए सभी चीजें आराम से उन्हें मिल सके ,सारा काम ठीक समय पर हो जाये…. बेटा चाहे कैसा भी हो मगर बहु अच्छी सुशील होनी चाहिए।
“ किसी को भी अच्छा काबिल इंसान पहले होना चाहिए रिश्ते तो बाद में आते हैं “!!!!
जीवन की सबसे बड़ी सच्चाई यही है की अक्सर बेटा साथ में रहता तो कम पढ़ा-लिखा होता ज्यादा पढ़े-लिखा तो वहीं रहेगा जहां नौकरी लगेगी और बेटा जहां रहेगा बहु भी साथ में वही रहेगी लोग झूठी शान में जीते बेटा ये बेटा वो यहां रहता वहां रहता ।
आप का अपनी बिटिया का खुद से श्रेष्ठ कहलाना आपको गर्व का अहसास कराता है और बहु का श्रेष्ठ कहलाना घर में अपमान अस्तित्व ह्मस मायके की नादानी बचपना लगता है।
हमारे बेटे बहु की शादी को दो वर्ष होने को आये हम सबमें आपस में बहुत प्यार है मेरी बहु आधुनिक विचारधारा की और लड़कियों की तरह उसका व्यवहार भी अन्य लड़कियों की तरह ही है मगर हमारा रिश्ता कितना प्रेम पूर्ण है ।
देखिए बेला जी रिश्ता कोई भी हो परफेक्ट कोई भी नहीं होता दिक्कतें हर रिश्ते में होती है ऐसे में खुद से पूछें आपके लिए दिक्कते और अहंकार ज्यादा जरूरी है या फिर आपका रिश्ता
“ आप विरोध करें लेकिन बिना आवाज ऊँची करके भी कर सकते हैं जितनी तेज आवाज उतनी तेज दरार व तकरार “!!!
“रिश्ते पेपर नेपकिन नहीं है जिनको कूड़ा दान में फेक दिया जाये”!
“ रिश्ते जेवर भी नहीं है जो लाॅकर बंद कर दिए जाये जरूरत पड़ने पर ही निकाले जाए “!!
रिश्ते त्याग करने से पनपते हैं उन पर स्वार्थ हावी न होने दें क्योंकि स्वार्थ वश जो त्याग किये जाते पूरा न होने पर रिश्ता तोड़ने की नौबत तक आ जाती है।
मैं कभी बच्चों के निजी मामलों में दखल नहीं देती। स्वभाव व परिस्थिति देख ही संवाद करती हूँ ये छोटी- छोटी बातें रिश्ते में टिकाऊ पन लाती है इस दुनिया में जमा घटा गुणा भाग के बाद प्रेम ही बचा रह जाता है जिसकी धूप-छांव में हम खिलते हैं। हमारे प्यार कि पूल जितना मजबूत चौड़ा होगा उतना ही हमारा सफर भी सुहाना होगा ।छोटे मोटे हिचकोले हो तो सन्तुलन बनाये हम पति-पत्नी तो अपने बच्चों के लुटाए प्यार के कर्ज में डूबे हुए हैं ।
“ दूरियां किसी रिश्ते को तोड़ नहीं सकती और नजदीकियां रिश्ते को बना नहीं सकती । केवल भावनाएं मायने रखती है उनसे ही रिश्ते मजबूत बनते हैं “।
तभी रमाकांत जी घर में प्रवेश करते हैं
बेला जी को देखकर थोड़ा सहमे से बोले
“अरे बेला जी कैसी है आप” उत्तर सुने बिना ही रेखा जी को पालक पकड़वाते हुए कहते हैं
थोड़ा ज्यादा ही ले आया शाम को पकोड़े बना लेना हां तो बेला जी आप भी आये शाम में पालक के गर्म- गर्म पकोड़े खाने !!
जरूर क्यों नहीं भाई साहब “अपनी दोनों बहुओं को भी साथ लेती आऊँगी “! बेला जी की आवाज में अजीब रहमीयत बरस रही थी आज । शायद रेखा जी की बात अच्छे से समझ चुकी थी।
“ शाम पकोड़े तैयार रहेंगे ” रेखा जी कहकर मुस्कुराईं
जरुर जरुर चलो मैं जाती हूँ आपके बहु बेटे भी पहुंँचने वाले होंगे।
रेखा जी रमाकांत जी की तरफ देखकर मुस्कुराई बोली जो भी हो ममता का स्वरूप कभी नहीं बदलता। अपनत्व, प्यार,आत्मीयता रिश्तों को केसे बांधे रख सकता है देखा आपने…अपने अनुसार ढालने की अपेक्षा उसे वैसे ही स्वीकार कर लिया जाये क्योंकि हर का स्वभाव अलग होता है ….रमाकांत जी बेला जी के घर के माहौल से पहले से परीचित मुस्कुराये बिना न रह सके वो तो आज सुबह से ही पत्नी के चेहरे पर खुशी मस्ती के भाव देखकर आनंदित थे ।
लेखिका- डा बीना कुण्डलिया
19 2 2025