एक छोटी सी गलतफहमी की बजह से घर मे ऐसा बबाल मचा की घर चार हिस्सों में बंट गया। आंगन के नाम पर चार गलियां सी बन गई और हंसता खेलता परिवार एक दूसरे का दुश्मन बन गया। अब एक दुसरे से बात करना तो दूर एक दूसरे को देखना भी गंवारा न था। और जब असल बजह सामने आई तो सबको हैरान कर गई ।
कहानी जिला ऊना के पास एक गांव की है यहां बड़े से आंगन में चार कमरों का घर था घर मे तीन भाई हरपाल गुरपाल और सतीश अपने माँ बाप के साथ रहते थे। हरपाल और गुरपाल की शादी हो चुकी थी दोनो के दो दो बच्चे थे। चार कमरों का मकान था एक मे हरपाल का परिवार एक मे गुरपाल का परिवार एक कमरे सतीश अपने माँ बाप के साथ और एक कमरा रजाई, कपड़े, अनाज आदि के लिए रखा था कभी कोई मेहमान आ जाता तो उसी कमरे में उसकी चारपाई लगा दी जाती।
हरपाल और गुरपाल की शादी में बेड कुर्सियां और पेटी ही आई थी तो दोनों के कमरे उसी से भर गए थे। सभी लोग एकसाथ खाना बनाते गाय भैंस सबकुछ सांझा था। घर की जरूरतें बढ़ने लगी तो हरपाल ने बीबी के कहने पर थोड़े पैसे इकट्ठा करके एक फ्रीज खरीद लिया तो गुरपाल एक टीबी खरीद लाया अब पूरा परिवार एक फ्रिज में खराब होने वाला समान रखता तो टीवी देखने के लिए सभी लोग गुरपाल के कमरे में बैठा जाते।
एक दिन की बात है कि हरपाल की बीबी ने आंगन में गोबर मिट्टी लगाने का सोचा छोटी से बात की तो उसने भी हामी भर दी।
हरपाल की बीबी ने अपनी शादी की अंगूठी निकालकर फ्रिज पे रख दी और दोनो मिलकर आंगन की लिपाई करने लगी। दोपहर तक गोबर लिपने के बाद जब बो अंदर गई तो देखा अंगूठी गायब है अब बच्चे भी घर मे थे तो छोटी वाली भी एक दो बार फ्रिज से ठंडा पानी लेने उसके अंदर गई थी।
अब क्या था मच गया बबाल बड़ी बाली ने इल्जाम छोटी पे लगा दिया कि तेरे सिवा कोई घर मे गया ही नही तो अंगूठी कहाँ गई।बात इतनी बड़ी की दोनो ने अगली पिछली पूरी भड़ास निकाल ली। शाम को हरपाल गुरपाल काम से आये तो उन दोनों में भी कहासुनी हो गई।
लड़ाई हाथापाई तक पहुंची तो पंचायत को बुलाया गया तीनो भाई मां बाप गांव के बड़े बुजुर्ग बैठे और पंचायत ने फैंसला कर दिया कि सब लोग अलग अलग हो जाओ सबको बराबर घर और आंगन बांट दिया गया अगले ही दिन मजदूर बुलाकर आंगन में डंडे गाड़कर बाड़ लगा दी गई। अब आंगन के चार हिस्से हुए क्योंकि वो नही चाहते थे कि सतीश को दो हिस्से अकेले को मिलें इसलिए फैंसले हुआ कि मां बाप का हिस्सा भी अलग हो और जब वो न रहें तो उनका हिस्सा तीनो भाइयों में बांट दिया जाए।
सतीश ने अब शहर जाकर काम करने की सोच ली मां बाप से बात की और शहर में चला गया बहां उसे होजरी कंपनी में स्टोर कीपर की नौकरी मिल गयी।
उसी कम्पनी में सुनीता भी काम करती थी सुनीता खूवसूरत होने के साथ साथ संस्कारी मेहनती समझदार भी थी मगर वो तलाकशुदा थी दरअसल उसके मां बाप गरीब थे और ससुराल वाले लालची जिनकी दहेज की मांगों को वो पूरा नही कर या रहे थे रोज की मारपीट से तंग आकर सुनीता का तलाक तो हो गया मगर घर का खर्च चलाने के लिए उसे नौकरी करनी पड़ रही थी।
सुनीता अठतीस साल की थी तो बहीं सतीश अभी चौबीस का था मगर्वो कहते हैं कि प्यार न उम्र देखता है न रंगरूप वो तो बदमास दिल मिले की बात है। दोनो की नजदीकियां बढ़ने लगी और एक दूसरे को दिल दे बैठे सतीश ने शादी का प्रस्ताव रखा तो सुनीता ने उसे अपने गुजरे कल के बारे में सब कुछ बता दिया मगर सतीश को इस सबसे कोई फर्क नही पड़ने वाला था।
दोनो ने अपने घर मे बात करने की सोची तो सुनीता के माँ बाप के लिए यहां ये सकून भरी खवर थी तो सतीश के घर मे बबाल मचना तय था क्योंकि एक तो उम्र अठतीस ऊपर से तलाकशुदा। सतीश के माँ बाप और घरवालों ने साफ मना कर दिया।
मगर सतीश फैंसले ले चुका था उसने बापिस आकर सुनीता से मंदिर में शादी कर ली। अभी महीना ही हुआ था कि सतीश की माँ की तबियत बिगड़ गयी और वो बेटे को बुलाने की जिद्द करने लगी कहने लगी कि आखरी बार बेटे से मिला दो। अब घरवाले भी उसकी आख़री ख्वाइश को भला कैसे टालते सतीश को फ़ोन किया गया। सतीश भी अगले ही दिन सुनीता को लेकर घर आ गया।
सुनीता ने आते ही घर को अपने घर की तरह संभाल लिया और मां की सेवा में जुट गई। सास की टांगे दवानी हो समय समय पर रोटी दवाई उसके सिर की मालिश करना मतलब की पूरी तरह तन मन से सेवा में जुट गई। पांच सात दिन में सास बिल्कुल ठीक हो गई उसकी सेवा भाव देखकर सास ससुर उसे अपनी बहू नही अपनी बेटी की तरह प्यार करने लगे।
सुनीता दोनो भाइयों के बच्चों को स्कूल का काम करवाती उनके सारे सवालों के हल बताती अब बच्चे भी उसके बिना एक पल नही रहते। सुनीता पूरे परिवार में अपनों की तरह घुल मिल गई। अब सब कहने लगे कि हम पूरे गांव को शादी की दावत देंगे आखिर हमने भी तो लोगो की शादी में खाया है। मां ने पूरे परिवार को एकसाथ बिठाया
और अपने दिल की बात बताई सब राजी हो गए मगर सुनीता ने कहा कि वो सब तो ठीक है मगर रिश्तेदार आएंगे गांव के लोग आएंगे तो उन्हें बिठाएंगे कहाँ? आंगन तो आपने चार हिस्सों में बांट दिया है तो सबसे पहले हमें ये बाड़ हटानी होगी चाहे चार दिन के लिए ही सही ताकि कम से कम आंगन इतना बड़ा हो जाए यहां सौ पचास आदमी बैठ सकें। बाद में चाहे आप फिर से लगा लेना।
सबने उसकी बात मान ली बाड़ हटा दी गई आंगन पहले की तरह बड़ा हो गया जिसे देखकर सारे भाई अंदर ही अंदर खुश थे। अब उसने दोनो जेठानियो को बोल दिया कि दावत तक सबका खाना में बनाउंगी मंजली दीदी घर का साफ सफाई और बच्चों को तैयार करेगी बड़ी दीदी गाय भैंस का कर लेगी इस तरह हमारा काम बंट जाएगा तो आसानी होगी।
तीनो राजी हो गईं अब उनका काम फट से हो जाता कहाँ पहले एक एक को अपने बच्चे भी तैयार करने पड़ते खाना भी बनाना पड़ता साफ सफाई भी खुद के कमरे की करनी होती तो अपनी अपनी गाय भैंस भी देखनी पड़ती। अब काम बंटा तो उन्हें समझ आया कि संयुक्त घर का क्या फायदा है। दावत को चार दिन बाकी थे
तो सुनीता ने कहा क्यों न कमरों से बेड कुर्सियां बाहर निकालकर कमरे के अंदर लिपाई कर दें चार आदमी आएंगे तो अच्छा दिखना चाहिए। सबने मिलकर बेड बाहर निकाले जैसे ही हरपाल के कमरे का बेड बाहर निकाला तो उसके नीचे चूहे ने बड़ा सा बिल बना रखा था। उस बिल को भरने के लिए उसकी तय तक खुदाई की तो उनकी आंखे फ़टी की फटी रह गईं। जिस अंगूठी के लिए ये सारा बबाल हुआ था वो अंगूठी चूहे ने अपने बिल में छुपा रखी थी सब एक दूसरे की तरफ शर्मिंदगी से देखने लगे और अपने किये की माफी मांगकर हमेशा के लिए एक हो गए।
अमित रत्ता
अम्ब ऊना हिमाचल प्रदेश