पता नहीं बहू मेरे लिए क्यों इतना विष उगलती है – मंजू ओमर : Moral Stories in Hindi

आज रंजना ने बेटे गौरव से कहा बेटा जाकर बहू और बच्चों को लिवा लाओ घर , कुछ पूजा पाठ करवा लेते हैं । बच्चा हुआ है तबसे घर में कुछ हुआ नहीं है । मैंने बहू से कहा भी था कि बच्चा होने के चालीस दिन जब घर में पूजा हो जाएगी तब जच्चा-बच्चा घर से बाहर जाते हैं

लेकिन बहू मानी ही नहीं मायके चली गई। उसकी मम्मी आई थी साथ ले गई पूछा भी नहीं हमसे। लेकिन बेटा बच्चे का क्या दोष वो तो अपने है न ले आओ उसे साथ में बहू को ।उनका आज नामकरण संस्कार भी हो जाए । तुमने हमसे कहा था न कि बच्चे का भोले नाथ के नाम पर कोई नाम निकालो मम्मी वहीं रखना है तो मैंने दो तीन नाम सोचें है देख लो तुम लोगों को जो पसंद आए रख लो ।

                लेकिन मम्मी श्रेया यहां आना ही नहीं चाहती ।ऐसा करो आप मेरे साथ श्रेया के घर चलों आप ही कह देना आने को। पता नहीं श्रेया को आपसे क्या शिकायत है जब भी जाओ तो आपके लिए उल्टा सीधा बोलती रहती है हमेशा वो आपके लिए विष ही उगलती रहती है। अच्छा ऐसा पता नहीं क्या कर दिया है हमने रंजना बोली जो कुछ मना करो करने को वहीं करती है कल के कुछ बुरा हो जाए तो सब कहेंगे

कि हमने बताया नहीं ।अब कुछ समय पहले ग्रहण पड़ा था तो उसके लिए मना किया था कि जब तक ग्रहण है बाहर मत निकलना सामने नहीं पड़ना , कुछ काटना या कोई भी काम मत करना अंदर रहना । अच्छे के लिए ही तो बता रहे थे तो फोन ही नहीं उठा रही थी ।जब मैंने कई बार फोन किया तो पूरी बात भी नहीं सूनी और फोन काट दिया।

          और यहां हमारे पास रहती भी नहीं है पता नहीं क्या परेशानी है मुझसे। जितना ही सबकुछ सुधारने की कोशिश करती हूं पर सुधरता ही नहीं है।हर बात श्रेया को मेरी खराब ही लगती है। अभी डिलीवरी के दो महीने पहले से यहां घर ले आए हो श्रेया को दिनभर इतनी देखभाल करती रही। हमेशा समय पर खाना नाश्ता गरम गरम बना कर देती रही ।

ऊपर कमरे में रह रही थी ,कहा था नीचे रहो तो हर समय नजरों के सामने तुम्हारी देखभाल होती रहेगी तो नहीं मानी ऊपर चली गई। फिर भी सारा खाना नाश्ता सबकुछ ऊपर पहुंचा रही हूं कि नहीं क्योंकि डाक्टर ने सीढियां चढ़ने उतरने को मना किया है ।और यहां तक कि मैंने उसके कपड़े तक धोए।

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और सच बताऊं तो तुम्हारी शादी के तीन साल हो गए बेटा आजतक मैंने श्रेया के हाथ का खाना नहीं खाया । फिर भी तुम लोग आते हो तो आगे से आगे मैं ही सबकुछ करती रहती हूं यही सोचकर कि चलो ठीक है ।और मैंने समझाया था कि देखो

डिलीवरी के चालीस दिन बाद ही घर से बाहर जाते हैं जब पूजा हो जाती है तब फिर भी नहीं मानी और मायके चली गई।चलो ठीक है जैसी उनकी मर्जी है वैसा करें । लेकिन बच्चे का कोई संस्कार तो होना चाहिए न बेचारे बच्चे का क्या कसूर पूजा पाठ कराना है तो बुलाना तो पड़ेगा ही ।अब पता नहीं मम्मी उसके मन में क्या चलता रहता है आपसे नाराज़ ही रहती है ।

                आज रंजना अपने पति विनय और बेटे गौरव के साथ बहू के मायके गई।बहू से बोली रंजना घर आ जाओ बच्चे को लेकर तो घर में सत्यनारायण की कथा करवा लें बच्चे होने के बाद घर में कुछ पूजा पाठ कराना होता है । लेकिन मैं उस घर में नहीं आऊंगी श्रेया बोली वहां तो आपका राज चलता है करना धरना कुछ ंनहीं है जब देखो रोक टोक करती रहती है श्रेया बोली। क्या रोक टोक मैं करती रहती हूं रंजना बोली श्रेया तुम तो‌ हमारे पास रहती भी नहीं हो अभी दो महीने से आई

हो और इन दो महीनों में तो मैंने तुम्हारा पूरा ध्यान रखा।और मेरा राज क्या चलता है घर में सबकुछ मुझे ही करना पड़ता है तुम ऊपर रहती है कोई काम तो तुमसे हम कहते नहीं है ।गौरव को अपनी नौकरी से छुट्टी नहीं है और पापा जी , पापा जी भी कुछ नहीं करते सबकी देखरेख करने में और घर की सारी व्यवस्था करना सब मुझे ही करना पड़ता है ।सबका सबकुछ करने पर भी कोई खुश नहीं रहता हमसे ।और क्या रोक-टोक लगा

दी हमने तुमको यही तो कहा था कि चालीस दिन तक घर से बाहर नहीं जाते ये तो सब घरों में होता है किसी से भी पूछ लो।और कोई अलग से तुम्हारे ऊपर बंदिश नहीं लगा दी है । हां हर समय मैं बच्चे को नहीं देख सकती तो उसके लिए दिनभर की नौकरानी भी लगा दीं थीं।और नहीं आना तुमको तो मत आओ बेकार का इल्ज़ाम न लगाओ मुझपर ।

             और हमारा बच्चा है तो आप कौन‌ होती है उसका नाम रखने वाली श्रेया बोली । अरे मुझे क्या पड़ी है तुम्हारे बच्चे का नाम रखने की वो तो गौरव ने कहा था कि कोई नाम ढूंढकर बताना तो बता दिया था कौन सा रख ही दिया है । तुम्हारा ही बच्चा है बस मेरा तो कुछ लगता ही नहीं है न।

                 फिर श्रेया गौरव से बोलने लगी गौरव मुझे एक किराए का मकान लेकर दे दो मैं तुम्हारे मम्मी पापा के साथ नहीं रह सकती ।गौरव जो इतनी देर से मम्मी और श्रेया की बातें सुन रहूं था बोला अच्छा मकान किराए का लेकर दे दूं ।एक मकान दिल्ली में है एक मकान मम्मी पापा का है

और एक मकान और लेकर दे दूं फिर उसमें सारी व्यवस्था करूं रहने का । नहीं लेना और कोई मकान ।तो मैं तो नहीं आऊंगी तो मत आओ रहो यही पर अपनी मम्मी के यहां। पता नहीं तुम्हें क्या परेशानी है हमारे मम्मी पापा से । इतना तो कुछ भी नहीं है जितना तुम मम्मी के लिए कह रही हो । कुछ दिन के लिए आते हैं उसमें भी तुम्हें परेशानी है तो फिर यही रहो अपनी मम्मी के पास।इतनी बहस के बाद रंजना और विनय सब लोग घर आ गए।

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             रंजना घर आकर फूट फूटकर रोने लगी कि पता नहीं श्रेया मेरे लिए क्यों इतना विष उगलती रहती है। जबकि मैं कुछ कहती भी नहीं हूं। कभी मैंने जोर से बोला तक नहीं बेटा बेटा कहते ज़ुबान नहीं थकती लेकिन श्रेया , श्रेया तो मेरे लिए जहर ही उगलती रहती है। बहुत दुखी रहने लगी रंजना एक ही बहू बेटा थे सोचा था अच्छे से रहेंगे हम दोनों लोग । लेकिन मैं तो बहू को जरा भी नहीं सुहाती । बच्चे की आने की खुशी काफूर हो गई ।उसे गोद में खिलाने की आशा मन में ही रह गई। सोचती थी उसकी मुस्कुराहट से और उसकी किलकारी से घर गूंजेगा।उसे गोद में उठाकर सारे जहां की खुशियां पा लूंगी।पर नहीं ईश्वर ने शायद किस्मत में कोई ख़ुशी नहीं लिखी है।

               आज रंजना ने बेटे से कहा बेटा श्रेया को बच्चे का जो नाम रखना हो रख लें मेरा बताया नाम नहीं रखना नहीं तो तुम्हें भी दिनभर ताने दिए जाएंगे कि तुम्हारी मम्मी ने मेरे बच्चे का नाम क्यों रखा।और जब कभी बेटा घर आता है चार छै महीने में तो बच्चे को थोड़ी देर को दादा दादी से मिलाने ले आता है बस थोड़ी देर रंजना के पास रहकर चला जाता है बच्चा अभी छोटा है तो ज्यादा देर रह नहीं सकता । वैसे बच्चे की तस्वीरें मोबाइल पर भेजता रहता है बस उसी में बच्चे को बड़ा होते देखती रहती है रंजना।

          रंजना ने बहू से दूरी बना ली है रोज रोज के लड़ाई झगडे से घर में कलह पैदा करने से क्या फायदा।बहू बेटे यदि अकेले खुश हैं तो ठीक है । मां बाप ये भी बर्दाश्त कर लेते हैं बच्चों की खातिर जाने क्या क्या त्याग करना पड़ता है।

          कभी कभी बात कुछ न होने पर भी परिस्थितियां कुछ इस तरह की बना दी जाती है कि जिसको आप पसंद नहीं करते वो अपने आप ही दूर हो जाएगा। इससे पहले एक दूसरे से दूरी बना लेने में ही समझदारी है कम से कम कड़वी बातें तो हर समय नहीं सुनने को मिलेगी ।हर समय विष तो न उगलेंगी। खुद को जैसे रहना है रहो क्या फायदा कुछ कहने सुनने का।बड़ों को अपनी इज्जत अपने हाथ में रखनी पड़ती है । आजकल बहुएं ऐसी स्थिति बना देती है कि आपका मुंह अपने आप ही बंद हो जाएगा ।

मंजू ओमर

झांसी उत्तर

18 फरवरी

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