बधाई हो ..बड़े अरमान थे आप दोनों के कि बेटा प्रशासनिक अधिकारी बने तोआप लोग उसकी सरकारी गाड़ी में घूमें फिरें सरकारी आवास का लुत्फ उठाएं आखिर भगवान ने आपकी सुन ही ली महेंद्र जी ने गुलाबजामुन खाते हुए कहा ।
हां भाई साब ईश्वर की कृपा है शिवनाथ जी ने हाथ जोड़ते कृतज्ञ भाव से कहा देखिए कितने नौकर चाकर है कितना ठाठ बाट है तीन तीन गाड़ियां बाहर खड़ी हैं ….गर्व था उनके स्वर में ।महेंद्र चिढ़ गए।
लेकिन भाईसाब आप अपने अरमान निकालने के चक्कर में अपने बेटे हिमांशू के अरमानों पर कुठाराघात कर रहे हैं महेंद्र फुसफुसाए।
क्या कह रहे हैं आप अनजाने अपराधबोध से संकुचित हो शिवनाथ ने प्रश्नवाचक दृष्टि अपनी पत्नी शिवी की तरफ डाली।
देखिए …हिमांशु की पहली पोस्टिंग है कितने अरमान हैं उसके भी अपनी नौकरी को लेकर …..अभी आप लोगों के आ जाने से उसका पूरा ध्यान आपकी ही तरफ हो गया है।उसके भी अरमान होंगे अकेले नई गाड़ी में घूमने के नए संबंध बनाने के रौब उठाने के पर आप लोगों के यहां आ जाने से बिचारा बंध गया मजबूर हो गया होगा…अभी आप लोगों को यहां नहीं आना चाहिए था थोड़ा…
अंकल जी प्रणाम…मैं तो अपने #अरमान निकाल रहा हूं।यही तो अरमान थे मेरे कि मेरी अच्छी सी नौकरी लग जाए तो मैं मां पापा को गाड़ी में घुमाऊंगा ,सरकारी बंगले में साथ रहूंगा,नौकर चाकर लगवाऊंगा जो इनकी सेवा करेंगे।जिंदगी भर असुविधाओं और संघर्षों के कांटे सह कर मुझे इस मंजिल तक पहुंचाने वाले
अपने मां पापा को थोड़ा सुख दे सकूं यही अरमान थे मेरे।ये गाड़ियां,ये नौकर चाकर,ये ठाट बाट जो आप देख रहे हैं ये सब मेरे संघर्ष या भाग्य से नहीं बल्कि मेरे मां पापा के संघर्ष और भाग्य से मिला है….बीच में ही बात काटते हुए हिमांशु ने हंसते हुए विनम्र भाव से कहा तो महेंद्र अंकल अचकचा गए विस्मय से उनका मुंह फटा रहा गया।
लीजिए अंकल एक और गुलाबजामुन खाइए और पापा मां जल्दी चलिए ड्राइवर तैयार है शहर घूम के आते हैं कहता हिमांशु मां का हाथ पकड़ बाहर की ओर बढ़ गया था।
अरमान निकालना #मुहावरा लघुकथा
लतिका श्रीवास्तव