पिछले कुछ दिनों से सीमा बहुत व्यस्त थी।पहले ननद की बेटी की शादी..फिर सूरत से बेटी-नातिन आ गई।एक महीना कैसे बीत गया, उसे पता ही नहीं चला।पति जब तक थें, तब तक तो वो सोशल मीडिया का स भी नहीं जानती थी।उसकी सहेलियाँ फेसबुक पर आने को कहती तो हँसकर कहती,” मेरा फेसबुक तो मेरे पति और बच्चे हैं।” बात वहीं खत्म हो जाती थी।
दो साल पहले उसके पति का साथ छूट गया..बेटी ससुराल में और बेटा- बहू अपने काम में व्यस्त..।दस साल का पोता है जो अपनी पढ़ाई के बाद या तो अपनी माँ के पास रहता या फिर मोबाइल फ़ोन पर गेम खेलता।तब उसने अपने बेटे को कहा कि मेरा भी फेसबुक बना दे..मैं भी देखूँ कि ये क्या बला है?
बेटे ने फेसबुक पर उसका अकाउंट खोल दिया..बहू ने चलाना भी सीखा दिया और फिर वो उसी में व्यस्त हो गई।बेटी और नातिन जब तक रहें..फ़ोन की तरफ़ उसका ध्यान ही नहीं गया था।आज महीने भर बाद उसने अपना फ़ेसबुक खोला…सहेलियों की नयी तस्वीरें और कमेन्ट्स पढ़-पढ़कर वो हँसी के मारे दोहरी हुई जा रही थी
।तभी उसकी नज़र एक फ़ोटो पर पड़ी तो वो चौंक पड़ी।नाम पढ़ा, मोहित सिन्हा…हैंऽऽऽ ये मोहित है…इसके बाल तो…और फिर वो अपनी उम्र के बयालीस साल पीछे चली गई…।
हाॅस्टल में पढ़ने वाली वो बिंदास लड़की थी।पिता बिजनेसमैन और माँ गृहिणी।एक छोटा भाई जिससे वो बहुत प्यार करती थी।
दसवीं कक्षा की परीक्षा देकर जब वो हाॅस्टल से घर आई तो अपनी आदतानुसार शाम को चाय का कप लेकर छत पर टहलने लगी।तभी उसकी नज़र साथ वाली छत पर टहलते एक लड़के पर पड़ी।दूर से देखने पर तो वो उसे हमउम्र ही लगा।कुछ सोचा, विचारा और फिर अपने दिमाग को झटक दिया।
लेकिन अगले दिन से वो सिलसिला चलने लगा।जब वो चार बजे चाय का कप लेकर छत पर जाती तो उसे वही लड़का टहलता मिलता।अब उसे इतना तो समझ आ गया था कि रोज-रोज छत पर उसका जाना और उसी समय उस लड़के का भी छत पर आना इत्तेफ़ाक तो हो नहीं सकता तो फिर क्या? वो मुझे…या मैं उसे…अरे नहीं..ये कैसे हो सकता है…।
एक दिन उसने अपनी सहेली अर्चना को सारी बात बताई तो वो उसके गाल पर थपकी देते हुए बोली,” डियर…इसी को तो इश्क कहते हैं।”
” छोड़ यार…इश्क- विश्क का रोग मैं नहीं पालने वाली…।” उसने कह तो दिया था लेकिन सच ये था कि उसके हृदय में प्रेम का अंकुर फूट चुका था।
एक दिन उसने सुना कि माँ पिता से कह रहीं थीं,” सिन्हा जी का बेटा मोहित अब यहीं रहकर पढ़ाई करेगा और उनका हाथ बँटायेगा।”
” अच्छा..तो उसका नाम मोहित है।” उस दिन वो नाम उसके मन पर भी छप गया था।छुट्टियाँ खत्म हो गयी और वो फिर से हाॅस्टल चली गयी।जब भी छुट्टियों में घर आती तो छत पर मोहित के साथ देखा-देखी होती थी।
एक दिन मौका देखकर उसने ही मोहित को आवाज़ लगाई..हाय-हैलो के बाद टेलीफ़ोन नंबर लिया और फिर फ़ोन पर दोनों की बातें चलने लगी।
एक दिन हाॅस्टल में उसके नाम मीना नाम की लड़की की चिट्ठी आई।पहले तो वो समझी नहीं, पढ़ने पर पता चला कि मोहित ने मीना बनकर लिखा था क्योंकि उसके हाॅस्टल में पत्र सेंसर(वार्डन खोलकर पढ़ती है) होते थे।
मिलन संभव नहीं है..यह जानते हुए भी दोनों बस एक- दूसरे से प्यार करते रहे।हर प्रेम कहानी की तरह सीमा के प्रेम की अवधि भी समाप्त होने को आ गई।ग्रेजुएशन पूरा होते होते ही उसका विवाह तय हो गया।उसने मोहित को बताया…सुनकर वो थोड़ा अपसेट हुआ, फिर बोला,” कभी-कभी याद कर लेना।” उसकी आँखें नम हो आई थी।
विवाह के बाद सीमा पति के साथ चली गई।कभी-कभी मायके आती तो मोहित का ख्याल आता लेकिन वो झटक देती थी।एकाध बार अर्चना ने ही उसे छेड़ दिया था,” और…मोहित की याद…।” वो हँसकर बोली,” यार..वो सब पुरानी बात हो गई है।” अर्चना बोली,” मैडम..प्यार कभी पुराना नहीं होता..।”
समय बीतता गया।अपनी गृहस्थी में सीमा बहुत खुश थी।एक पत्नी,बहू, भाभी, माँ..सभी ज़िम्मेदारियों को उसने हँसकर जीया..।पति के जाने पर उसे बहुत खालीपन महसूस होने लगा था तब उसने फेसबुक से दोस्ती कर ली और आज बरसों बाद मोहित की तस्वीर देखी तो….।तभी उसके मैसेंजर पर मोहित सिन्हा का फ़्रेंड रिक्वेस्ट आया।एक बार तो वो ठिठक गई..।एक्सेप्ट करे या डिलीट कर दे..।फिर स्वतः ही उसकी अंगुलियों ने एक्सेप्ट टाइप कर दिया।हाय- हैलो से दोनों की चैटिंग शुरु हो गई…।उसकी सहेली ने सच ही कहा था कि प्यार कभी पुराना नहीं होता।
विभा गुप्ता
स्वरचित , बैंगलुरु