जब से मेरे काले-घने, नागिन-से लहराते बाल सफ़ेद होने लगे, मेरी सहेलियाँ और हितैषियों ने अपने सलाह- मशवरों का पुलिंदा ही खोल दिया था।
कोई कहता मेंहदी लगा तो कोई हेयर डाई का नाम बताता।कोई लोहे का तवा देने को तैयार हो जाता तो कोई आँवला-त्रिफला की विशेषता गिनाने लगता।
एक ने तो यहाँ तक कह दिया कि मैं अपने बालों को तो रंगती ही हूँ, थोड़ा तेरे बालों पर भी पोत दूँगी।
अब रोज-रोज एक ही बात सुनते- सुनते मेरे कान पकने लगे तब मैंने अपने हाथ ऊपर कर दिये और साफ़ शब्दों में कह दिया
कि आखिर सफ़ेद बालों में बुराई क्या है..नेचुरल हैं..उनसे छेड़छाड़ क्यों करना..।
” अरे..बालों को काले कर लेंगी तो आपका चेहरा भी खिल जायेगा और यंग दिखेगी।”
” यंग क्यों दिखना..साठ के पार हूँ..बेटे- बेटी की शादी कर दी..नानी- दादी बन गई।यंग तो मेरे बच्चे है ना..मैं अपनी जवानी बिताकर ही तो यहाँ तक पहुँची हूँ ।”
इसी तरह से हमारे बीच काफ़ी तर्क-वितर्क होता रहा।सामने वाली बोली, ” अच्छा नहीं दिखता है ना..।”
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मैंने कह दिया,” चेहरे का रंग भी काला अच्छा नहीं दिखता है तो…उसे उजला कर लोगी..।”
” अरे वो तो नेचुरल है..।”
अपने बालों को छूते हुए गंभीर स्वर में मैं बोली,” ये भी तो नेचुरल ही हैं।मैंने इन्हें रंगा नहीं है बल्कि इनमें पूरे साठ बरस की ज़िंदगी जीने की कहानी छिपी है।
इनमें मेरे आँसू हैं और खुशियाँ भी हैं।दो बच्चों को पाल-पोसकर, उन्हें इंसान बनाने की मेरी कड़ी मेहनत छिपी हुई है।
” माहोल गंभीर होते देख मैं हँसकर बोली,” बालों पर सफ़ेदी चढ़ जाने से मेरे सम्मान में इजाफ़ा हुआ है।बैंक में मेरा काम जल्दी हो जाता है..
बस में बैठने के लिये सीट मिल जाती है…ट्रेन में लोअर बर्थ मिल जाती है और एयरपोर्ट पर मेरी मदद करने के लिये चार आदमी भी तैनात रहते हैं…।
” मैं अपनी धुन में बोलती जा रही थी।उसके चेहरे के हाव-भाव देखकर स्पष्ट हो रहा था कि घर जाकर वो भी अपने बाल सफ़ेद कर लेगी।
विभा गुप्ता
स्वरचित