बाबा के घर आते ही मेरा सबसे पहला काम होता किसी पुलिस वाले कि तरह उनकी जेबों की तलाशी लेना। उनकी जेबें किसी हलवाई की दुकान से कम नही थी
जब भी हाथ डालता कुछ न कुछ मिल जाता कभी टॉफियां कभी गच्चक कभी बिस्कुट तो कभी कागज में लिपटा हुआ लड्डू। और यकीन मानिए उस लड्डू का स्वाद याद करके आज भी मुहं में पानी आ जाता है। जिस दिन मिठाई न होती उस दिन जंगली बेरी के बेर जामुन या कहीं से वो देसी आम तोड़कर ले आते थे।
बाबा गांव में ही जल बिभाग में काम करते थे घर मे मां बाबा और मेरे अलावा और कोई नही था इकलौता होने की बजह से मुझे बहुत ही लाड़ प्यार से रखा था मेरी हर जिद्द पूरी होती बाबा की कमाई ज्यादा नही थी मगर फिर भी मुझे कभी किसी चीज की कमी नही होने दी। मेरी जरा सी तख़लीक़ से मानो उनकी जान निकलती थी।
वो हमेशा कहते थे कि तेरी शादी ऐसी धूमधाम से करेंगे कि आसपास के गांव भी देखते रह जाएंगे दरअसल बाबा कहते थे कि दादाजी की गरीबी की बजह से उनकी और मां की शादी एक मंदिर में हुई थी जिसमे किसी तरह का कोई ढोल धमाका नही हुआ
था शायद इसीलिए वो अपने अरमान मेरी शादी में पूरे करना चाहते थे ताकि मुझे जिंदगी में ये मलाल न रहे कि मेरी शादी धूमधाम से नही हुई या मेरा कोई अरमान मेरे दिल मे न रह जाए।
मैं पढ़ने में शुरू से ही बहुत होशियार था स्कूल से लेकर कॉलेज तक हमेशा टॉप किया जिसकी बजह से मेरी ज्यादातर पढ़ाई सरकारी स्कॉलरशिप से ही पूरी हो गयी और उच्च शिक्षा के लिए भी मुझे सरकारी कोटे से अच्छा शैक्षणिक संस्थान मिल गया था।
शिक्षा पूरी होने के बाद मुझे कनाडा की एक कंपनी से आफर मिला मैने घर मे बात की हालांकि माँ बाबा दोनो ही अंदर से तैयार नही थे मगर मेरे भविष्य को देखते हुए उन्होंने दिल पे पत्थर रखकर मुझे जाने की इजाजत दे दी। कनाडा में अच्छी नौकरी के साथ साथ अच्छी तनख्वाह भी मिलने लगी
तो मैं घर मे भी खूब पैसा भेजता जिससे उनकी सारी जरूरतें पूरी हो जातीं मगर जब भी फ़ोन करता तो वो हमेशा यही पूछते की बापिस कब आओगे उनकी आवाज में उदासी साफ झलकती थी । मैं हमेशा जल्द आने की बात कहकर टाल देता।
दो साल बाद जब घर गया तो घर मे शादी जैसा माहौल था ढोल बाजे के साथ मेरा स्वागत हुआ दोनो के पांव जमीन पे नही लग रहे थे उनकी खुशी उनकी आंखों में झलक रही थी मगर ये खुशी ज्यादा दिन की नही थी दो महीने बाद जब मैं बापिस जाने लगा तो बाबा ने कहा कि अभी थोड़ा बहुत पैसा हो गया है क्यों न तुम यहीं कोई काम कर लो जाना जरूरी है क्या।
मैने उन्हें आश्वासन देते हुए कहा कि अभी थोड़ा और पैसा जोड़ लूं फिर हमेशा यहीं रहूंगा आपके पास। दोनो ने नम आंखों से मुझे विदाई दी मेरी भी आंखे भर आईं मगर आंसू छुपाते हुए मैंने आशीर्वाद लिया और निकल पड़ा।
अबकी यहां आने के बाद मेरी मुलाकात सोनाली से हुई जो मुम्बई की थी मगर उसकी नौकरी भी हमारी कम्पनी में लगी थी वो नई नई आई थी थोड़ी बातचीत शुरू हुई कब दोस्ती हो गई और कब हमने एक साथ रहने का फैंसला कर लिया ताकि हमारा किराया
भी बच जाए और खाना बनाने में हाथ बंट जाए। एक दो महीने में हमारी दोस्ती आगे बढ़ गई और एक दिन उसने बताया कि वो पेट से है मेरे लिए ये पल खुशी से ज्यादा हैरत में डालने वाला था क्योंकि बिना शादी के बच्चा होगा तो उसका भविष्य क्या होगा
बहां के कानून के हिसाब से ये अपराध होता। इसलिए मजबूरी में हमे जल्दी में कोर्ट मेर्रिज करनी पड़ी। जब ये बात मैने घर मे बताई तो दोनों पे मानो बिजली सी गिर गई उनके मेरी शादी के अरमान धरे के धरे रह गए थे
मगर फिर भी उन्होंने खुशी जाहिर करते हुए बहु का ख्याल रखने और जल्दी घर आने की बात कही मैने भी कहा कि हां हम जल्दी ही आ जाएंगे। मगर सोनाली चाहती थी की उनका बच्चा बहीं जन्म ले ताकि उसे बहां की नागरिकता मिल सके इसलिए हमें घर आने के लिए काफी इंतज़ार करना था।
थोड़े दिन में ही कोरोना वायरस ने पूरी दुनिया मे तबाही मचानी शुरू कर दी सारी फ्लाइट बन्द हो गईं और हम घर मे ही नजरबन्द से हो गए। डेढ़ दो महीने ही हुए होंगे कि एक दिन सुबह ताया के लड़के का फ़ोन आया उसने बताया कि माँ पिछले कुछ दिनों से बीमार थी जो आज चल बसी
आपको बेबजह परेशानी न हो इसलिए वो आपसे फ़ोन पर कुछ भी कहने को मना करती थी। मेरे पैरों तले जमीन निकल गई मगर अब कुछ किया भी नही जा सकता था क्योंकि फ्लाइट बन्द थीं।
मां का अंतिम संस्कार भी वीडियो कॉल पे ही देखा मेरे लिए ये सब कितना दर्दनाक था शव्दों में बयाँ नही कर सकता। मां के जाने के बाद में रोज बाबा से बात करता मगर बाबा बिल्कुल अकेले पड़ गए थे बो मुझे हिम्मत बंधाते मगर उनकी आवाज में जो दर्द जो अकेलापन जो तड़प थी वो मैं आसानी से महसूस कर सकता था।
कुछ दिन गांव वाले बाबा को खाना देते रहे फिर वो खुद ही जैसे कैसे बनाकर खाने लगे मैं खुद को लाहनते दे रहा था कि क्या करना है इस पैसे का अगर बाबा को दो बक्त की ढंग की रोटी भी नसीब नही है अगर माँ के भोग में भी मैं जा न सका। उसे एक कफ़न भी खरीदकर डाल न सका उसकी अस्थियों को भी विसर्जित न कर सका।
बाबा अंदर से टूट चुके थे माँ के जाने का दर्द वो किसी से बांट नही पा रहे थे न खुलकर रो पा रहे थे न जी पा रहे थे कुछ ही दिनों में वो हार गए और उनके जाने की मनहूस खवर भी आ गई। मैं एकबार फिर मजबूर था और इसबार भी अंतिम संस्कार वीडियो कॉल पे ही हुआ। आज मुझे लग रहा था
कि मैं दुनिया का सबसे गरीब और मेरे मां बाप दुनिया के सबसे बड़े बदनसीब थे जिन्हें मैं एक खुशी भी दे न पाया जो मेरी एक खुशी के लिए अपनी हर खुशी कुर्वान करते रहे। मेरे पास रोने के अलावा कोई चारा नही था। पांच महीने बाद मेरे घर किलकारी गूंजी एक बेटी ने जन्म लिया बाप होने का एहसास क्या होता है
खुशी क्या होती है मुझे अब पता चल रहा था बेटी की जरा सी चीख से मैं तड़प उठता था जरा सी बीमार हो तो मेरी जान निकलने लगती थी। अब मुझे एहसास हो रहा था कि मेरे मां बाप भी मेरे लिए ऐसे ही तड़पते होंगे जब मुझे दर्द होता था।
कुछ ही दिनों में फ्लाइट शुरू हो गईं ।मैं सोनाली और बेटी को लेकर गांव आया।
घर के आंगन में घास उगी हुई थी आंगन में वो चूल्हा सुना पड़ा था यहां मां खाना बनाती थी । एक चारपाई कोने में खड़ी थी। दरवाजा खोला तो अंदर एक सन्नाटा था जो रूह को चीर रहा था घर मानो काटने को आ रहा था। सामने मां की चप्पल पड़ी थी जिसको छूकर मैने आशीर्वाद लिया
सामने दीवार पर बाबा के कुर्ते पाजामे टँगे थे उनकी जेब मे बचपन की तरह हाथ डाला मगर आज पहली बार वो खाली थी। मैं अपने आंसुओं को और रोक नही पाया उन कपड़ो से लिपटकर खूब रोया मगर अब सबकुछ खत्म हो चुका था।
अगले दिन श्मशान में जाकर बहां की थोड़ी मिट्टी लेकर मैं अस्थियों की तरह एक क्लश में भरकर हरिद्वार विसर्जित कर आया मगर उनका एक अनकहा सा दर्द मुझे हमेशा झकझोरता है कि शायद वो मुझसे कुछ कहना चाहते हों जो वो कभी कह न पाए।
अमित रत्ता
अम्ब ऊना हिमाचल प्रदेश