जीवन की सांझ – मंजू ओमर : Moral Stories in Hindi

आज सुबह सुबह ही कमला नीरजा भाभी को बता गई कि सरस्वती बहन जी आ गई है और आपको याद कर रही थी ।अरे इतनी जल्दी कैसे आ गई भाभी जी, कोई भारत में थोड़े ही थी कि इतनी जल्दी आ गई । अमेरिका गई थी ।और मुझे तो ये भी लगा कि  शायद लौटकर ही न आए बच्चों के पास ही रहे । कमला सरस्वती भाभी जी को बोल देना कि मैं आऊंगी नीरजा बोली। कमला काम करती थी नीरजा भाभी के यहां चौंका बर्तन और जाने से पहले सरस्वती भाभी के यहां भी ।

                सरस्वती और नीरजा में काफी अच्छी दोस्ती थी हालांकि नीरजा सरस्वती भाभी से उम्र में छोटी थी लेकिन आपस में दोनों की खूब पटती थी ।सारा सुख दुख एक दूसरे से कहती थी।एक ही मोहल्ले में कुछ दूरी पर उनका घर था। क़रीब क़रीब रोज ही मिलना होता था उनका ।शाम को दोनों लोग समय निकाल कर सैर करने को जाती थी। बहुत मन मिलता था आपस में दोनों का ।घर में कोई समस्या हो तो बेधड़क नीरजा सरस्वती भाभी को बताती थी और उनका समाधान भी कर देती थी सरस्वती भाभी।

                नीरजा के घर बिजनेस चलता था और दो बच्चे थे एक बेटा और एक बेटी। सरस्वती भाभी के पति सुनील जी रेलवे में नौकरी करते थे । उनके तीन बच्चे थे एक बेटी प्रियंका और दो बेटे। सरस्वती भाभी के तीनों बच्चे पढ़ने लिखने में बहुत अच्छे थे। नौकरी में रहकर घर गृहस्थी चलाना और बच्चों की पढ़ाई लिखाई कराना थोड़ा मुश्किल होता था लेकिन हर चीज से बचत करके बच्चों की पढ़ाई लिखाई में कोई कंजूसी नहीं करते थे।इसी बीच कुछ पैसे अपना लगाकर और थोड़ा सा लोन देकर एक जमीन भी खरीद लिया था।

जिसपर मकान बनवाने का सपना भी देखा था । यदि आप सपना देखो तो उसे पूरा करने की कोशिश भी करते हैं । धीरे धीरे। थोड़ा सा अपना लगाकर और कुछ लोन की सहायता से रहने लायक एक छोटा सा घर भी बनवा लिया था । जिससे किराए से बचा जा सके।

          बेटी प्रियंका सबसे बड़ी थी ।उसका सपना डाक्टर बनने का था ।इंटर की परीक्षा पास करने के बाद वो मेडिकल की तैयारी में जुट गई और उसका सलेक्शन भी हो गया ।तब तक भाई भी इंटर कर चुका था और छोटा भाई भी हाई स्कूल पास कर चुका था ।बडा बेटा पारस और छोटा प्रशान्त दोनों आई, आईं की करना चाहते थे । चूंकि बच्चे पढ़ने में होशियार थे तो सभी को कम्पटीशन की तैयारी करनी थी । बेटी का मेडिकल के में सलेक्शन हो चुका था वो ग्रेजुएशन करने के बाद पीजी करने के लिए अमेरिका जाना चाहती थी उसकी तैयारी में भी सफल रही और उसको स्कालरशिप मिल गई जिससे प्रियंका पीजी करने अमेरिका चली गई।

         दोनों बेटों ने भी आईं आई टी निकाला और चार साल बीत टेक करने के बाद बड़ा बेटा पारस एम एस करने को अमेरिका गया उसने थोड़ा लोन लिया लेकिन बाद में उसको भी स्कालरशिप मिल गई ।छोटा बेटा भी एम बीए करने अमेरिका गया उसकी आईं आई टी में काफी अच्छी रैंक आई थी तो उसको पूरा स्कालरशिप मिला।अब तीनों बच्चों ने वहीं पर अपनी पढ़ाई पूरी होने पर नौकरी कर ली । बेटी प्रियंका ने अपने सहपाठी से शादी करने की मंशा जताई तो सुनील और सरस्वती तैयार हो गए । इतनी पढ़ाई-लिखाई करने के बाद और फिर इंडिया में है भी नहीं तो कहां से लड़का ढूंढा जाता इसलिए मां बाप की मंजूरी मिल गई । लेकिन होनी को कुछ और मंजूर था।

               इधर जीवन की आपाधापी में सुनील जी रिटायर मेटं के करीब पहुंच रहे थे ।दो साल बाकी थे तभी उनका ट्रांसफर अपने शहर से दूर आगरा कर दिया गया । सुनील जी सरस्वती को बोल कर गए कि वहां पहुंच कर कोई मकान किराए का देखता हूं फिर तुम्हें ले चलुंगा ।अब हमलोग साथ साथ रहेंगे बच्चे तो यहां है नहीं और हम लोगों को भी अब चिंता नहीं है सब अपनी अपनी नौकरी अच्छे से कर रहे हैं ।अब हमलोग चिंता मुक्त होकर आराम से दिन व्यतीत करेंगे और फिर इस उम्र में बाहर का खाना भी तो नहीं खाया जाता।

            ठंड का समय था आगरा जाने के तीन चार दिन बाद सुनील जी की तबियत खराब हो गई सर्दी ज़ुकाम के साथ सीने में हल्का हल्का दर्द महसूस हो रहा था।साथ में रहने वाले लोगों ने उन्हें डाक्टर को दिखाया भर्ती करना पड़ा अस्पताल में ।इधर सरस्वती जी के पास खबर पहुंची कि तबियत खराब है आना पड़ेगा ।अगली गाड़ी से सरस्वती जी पहुंच गई।दवा वगैरह लेकर एक दिन बाद सुनील जी की छुट्टी हो गई । लेकिन एक‌ हफ्ते बाद सुबह सुबह सुनील जी को फिर ह्रदयाघात आया और अस्पताल ले जाते जाते रास्ते में ही उनकी मृत्यु हो गई । हृदयाघात से मौत उनके घर में सभी को था सुनील जी के पिता जी और बड़े भाई को भी हृदयाघात से मृत्यु हुई थी।

            सरस्वती जी की सारी खुशियां काफूर हो गई। जिंदगी भर जीने के लिए जद्दोजहद करते रहे और जब सुकून से जिंदगी जीने की उम्र आई तो सुनील जी चले गए। तीनों बच्चे विदेश में थे। सुनील जी के पार्थिव शरीर को आगरा से घर लाया गया।डीपफ्रीजर में रखा गया। तीन दिन तक रखा रहा निर्जीव शरीर बच्चों के आने के इंतजार में । तीन दिन बाद फिर अंतिम संस्कार हुआ। पांचवें दिन फिर सारा कार्यक्रम निपटा कर बच्चे अपनी अपनी नौकरी पर चले गए ।अब यहां सरस्वती जी अकेली रह गई।बस यही सोच सोच कर आंसू बहाती रही कि जीवन की संध्या में मुझको अकेला छोड़ गए अब कैसे जीवन कटेगा।

            बेटी प्रियंका ने कोर्ट मैरिज कर ली । दोनों बेटों ने भी अपनी अपनी पसंद से शादी कर ली। इंडिया आकर मिलीं जुली एक छोटी सी पार्टी कर ली करीबी लोगों को बुला कर ।सारी हसरत धरी रह गई मन में ही। सरस्वती जी ने बड़े बेटे से कहा तुम इंडिया में नौकरी कर लो तो मैं तुम्हारे साथ रह लूंगी। लेकिन बच्चों को अमेरिका की आबोहवा और वहां की नौकरी ज्यादा रास आ गई थी । कोई वापस आने को तैयार नहीं था।सब वही बसना चाहते थे।और ये कहकर गए कि मां तुम्हें कुछ दिन में वही ले जाएंगे अभी पासपोर्ट वगैरह बनवाना पड़ेगा इसलिए थोड़ा इंतजार करना पड़ेगा। लेकिन ये कुछ दिन बिना सहारे के कैसे व्यतीत करें सरस्वती जी।

           पापा के जाने के दो साल बाद टूरिस्ट वीजा पर मम्मी को ले गए अमेरिका। लेकिन सरस्वती को वहां की आबोहवा रास न आई अस्थमा की मरीज थी तो बार बार तबियत खराब हो जाती थी। वहां सबके रहते हुए भी नितान्त अकेली थी सरस्वती जी।आपा धापी वाली जिंदगी थी बच्चों की किसी को फुर्सत ही न थी दो मिनट मां से भी बात करने की ।बहू बेटे दोनों सुबह से नौकरी पर चले जाते ।शाम को आकर अपने अपने कमरों में थकान उतारते। किसी को भी दो मिनट सरस्वती जी के पास बैठने की या हाल चाल लेने की फुर्सत नहीं थी । तबियत खराब है तो दवा आ गई ,भूख लगी है तो खाना अपने आप खा लो या बना लो बस।बात करने को भी तरस जाती थी । जिंदगी एक बोझ ही लगनें लगी। जीवन में जो अबतक उल्लास था ज़ीने का सब खत्म हो रहा था ।

               अमेरिका में रहने का वक्त समाप्त हो रहा था अब सरस्वती जी को वापस इंडिया आना था सो आ गई। यहां आने के बाद जब नीरजा उनसे मिलने गई तो नीरजा को पकड़कर रो पड़ी सरस्वती जी। भाभी आप आ गई कैसा रहा वहां , हां आना तो था ही समय समाप्त हो रहा था इससे ज्यादा समय तो रह नहीं सकते। यहां से ज्यादा तो वहीं अकेला इस है सबके होते हुए भी अकेली थी कोई बात करने वाला नहीं था,नहीं कोई सुख दुख पूछने वाला।अकेली तो यहां भी हूं लेकिन तसल्ली है कि अपने घर में हूं ।और यहां देवर देवरानी है कभी कभी आ जाते हैं मायका है भाई भाभी है मिलना जुलना हो जाएगा ।और सबसे बड़ी बात तो तुम हो आस‌ पडोस है कहने सुनने को कोई तो है। इसलिए अब यही रहेंगे।

              क्यों नीरजा इंसान जो सोचता है वो क्यों नहीं होता।जब सबसे ज्यादा जरूरत होती है पति पत्नी को एक साथ कई तभी भगवान क्यों अकेला कर देता है। क्यों इतनी कठिन होती है जीवन की सांझ को पार करना।जिन बच्चों को पाल-पोस कर बड़ा करते हैं, बुढ़ापे के सहारे के लिए,इन कांपते हाथों को थामने के लिए वही बच्चे बेगाने हो जाते हैं। नीरजा बोली दोनों बेटों में से किसी एक को कहो कि इंडिया आ जाए । नहीं आएंगे उनको वहां की जिंदगी रास आ गई है।अब मुझे भी अपनी जिंदगी की सांझ काटने के लिए अकेले रहने की हिम्मत जुटानी पड़ेगी।अब नहीं जाना मुझे वहां । ठीक है भाभी यही रहो नीरजा बोली। ईश्वर कष्ट देता है कोई मुश्किल आती है तो रास्ता भी वही दिखाता है।जब तक आप अकेले रहने की हिम्मत कर सकती है तब-तक रहिए नहीं फिर देखा जाएगा।बाद का सोंच सोंच कर परेशान क्यों होना।।

             दोस्तों आजकल ये समस्या बहुत घरों में आ रही है । बच्चे विदेश में बस जा रहे हैं जाकर, यहां मां बाप अकेले रह‌ जा रहे हैं। जिसने सारी उम्र अपने घर परिवार अपने देश में बिता दिया है वो उम के इस पड़ाव पर अपना वतन छोड़कर नहीं जाना चाहते। पहले ये समस्या नहीं थी । बहुत बच्चे विदेश नहीं जाते थे और जाते भी तो संयुक्त परिवार होते थे तो सबका गुजारा हो जाता था कोई आती अकेला पन महसूस नहीं करता था।आज समस्या विकट हो रही है और इसका कोई समाज ंनहीं दिख रहा है।पैसों के पीछे भाग रही आज की पीढ़ी अपने मां-बाप को नजरंदाज कर रही है। पैसे कमाए लेकिन इसके साथ अपने मां बाप का भी ध्यान रखें। जीवन की संध्या बेला में उनको बेसहारा न छोड़ें।

मंजू ओमर

झांसी उत्तर प्रदेश

3 फरवरी 

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