आज शाम से ही रुक -रुक कर बारिश हो रही है।
चार कमरे वाले विशाल फ्लैट की बलकॉनी में शिवानी उमस भरी गर्मी में बेचैन सी टहल रही है। पति सुधीर ऑफिस के टूर से मुम्बई गये हैं।
अचानक उसे कुछ याद आया उसने कमरे के टेबल पर आ कर देखा ,
” यह क्या ?
सुधीर फिर अपनी डायबिटीज की दवा ले जाना भूल गये हैं”
कितने लापरवाह हैं सुधीर शिवानी ने उसे फोन मिलाया उधर घंटी बजती रही। सुधीर ने फोन नहीं उठाया वह अधीर हो रही है।
उसका एक-एक क्षण भारी गुजर रहा है।
एक बार इच्छा हुई रहने दे।
लेकिन बस फिर एक और आखिरी बार इस बार सुधीर ने फोन उठा लिया शिवानी झल्ला गई है ,
“ये क्या सुधीर किधर बिजी थे ? कॉल ही नहीं उठा रहे थे “
” सॉरी ,सॉरी … शिवानी मीटिंग में था “
शिवानी गुस्से में है फिर भी ताकीद करना नहीं भूली,
Short Story In Hindi
” तुम अपनी डाइबिटीज की दवा छोड़ गये हो।
देखो मीठे से परहेज करना और हाँ काम का ज्यादा टेंशन मत लेना ” कहती हुई फोन रख दी।
फिर बाहर बलकॉनी में आ गई चुपचाप रेलिंग पकड़ सामने रोड पर आने-जाने वालों को देखती रही।
गाड़ियों की रेलमपेल के बीच ऑटोरिक्शे की भीड़ … साथ में स्कूटी और साइकिल पर भागते बच्चे…
पूरा शहर ही जैसे भाग रहा है।
शिवानी को ऐसा महसूस हुआ मानों सिर्फ उसकी कहानी ही थम कर रह गई है।
जो कभी भी अचानक खत्म हो सकती है वो एकाएक घबरा गई।
इस वक्त उसका ‘अकेलापन’ उस पर हावी होने लगा है।
कंही कोई पत्ता खड़का साथ ही शिवानी का दिल भी जोर से धड़क गया…
उसके और सुधीर की शादी को पैंतीस वर्ष बीत गये हैं इस बीच जाने कितना कुछ छूटा ,टूटा फिर जुड़ा है।
सुधीर के साथ उसकी शादी शिवानी की मर्जी के खिलाफ हुई थी। उसकी चाहत कुछ और थी लेकिन घरवालों और खास कर माँ को वह अपनी मर्जी समझा नहीं पाई थी।
Moral Short Story In Hindi
बहरहाल जो हो सुधीर उसका प्यार नहीं महज समझौता हैं जिसे बखूबी निभाते हुए वह सुधीर के दो बच्चों की माँ बनी है। अब तो बच्चे भी अपनी जगह सेटेल हो गये हैं।
बेटा बंगलुरू में किसी मल्टीनेशनल कम्पनी में जॉब कर रहा है और बिटिया इन्दौर के किसी हाई स्कूल की असिस्टेंट टीचर बन गई।
जिसने अपनी मर्जी से साथ पढने वाले सहपाठी से घरवालों की इजाजत ले कर पिछले साल ही शादी की है।
अब शिवानी की जिन्दगी किसी शांत ठहरे हुए जल से भरे तालाब की तरह है जिसपर कंकड़ मारने पर भी कोई उथल-पुथल नहीं होती।
शाम धीरे-धीरे रात में ढ़लती जा रही है। सुधीर इस बार पाँच दिनों के लिए बाहर गये हैं। बारिश ने जोर पकड़ लिया है।
थोड़ी देर तो वो बारिश की बूदों से खेलती रहती।
Short Hindi Inspirational Story
पानी की छोटी-छोटी बूदें उसके तपते दिल को ठंडक पंहुचाते रहे लेकिन फिर जल्दी ही उबी हुई अनमनी सी शिवानी अन्दर आ कर आरामकुर्सी पर बैठ गयी।
रेडियो पर गाना आ रहा है…
“भीगी-भीगी रातों में ऐसी बरसातों में कैसा लगता है? “
शिवानी ने यों ही अनमनी सी मोबाइल में फेसबुक खोल ली है।
इधर-उधर नजर फिराती हुई एक तस्वीर पर नजर जा टिकी। पहले तो विश्वास ही नहीं हुआ कि वह सही देख रही है या उसकी नजर का धोखा है।
फिर उसकी प्रोफाइल पढ़ी तब जा कर कहीं यकीन हुआ शिवानी को कि यह सुशांत ही है।
जो अब चश्मिश बना पहचान में ही नहीं आ रहा है उसने उस तस्वीर पर अपनी उंगलियाँ फिराई महसूस करने के लिए कि यह सच में सुशांत ही है फिर काफी देर यकीन करूँ या ना करूँ इसमें ही ठिठकी रही। उसके दिल के धड़कनें तेज हो गई।
इसी उत्तेजना में उसने सुशांत को फ्रेंड रिक्वेस्ट भेज डाली ।
इतने दिनों बाद सुशांत का दिख… जाना
शिवानी को ऐसा लगा मानों कितने दिनों से उसकी चल रही खोज आज जा कर पूरी हुई है या फिर लंबे सफर में चलते हुए अचानक पुराना
बिछुर गया हमसफर मिल गया हो।
उस साइड से तत्क्षण ही रिक्वेस्ट स्वीकार कर ली गई थी।
शिवानी पुलकित हो गई फिर न जाने क्यों उसने झट से फेसबुक बन्द कर दिया।
फेसबुक बन्द कर के गहरी उधेड़बुन में डूबी हुई शिवानी स्मृतियों के उलझे हुए संसार में जा पँहुची है।
यह कैसा मोह ? कैसी अपेक्षा ? है इस उम्र में एक शादीशुदा स्त्री का किसी गैर मर्द के साथ दोस्ती … का आग्रह ?
सन्न रह गई वह अपनी इस हरकत पर बिल्कुल चुप … या यों कंहे जड़वत सी।
उसने अपनी आंखो को दोनों हथेलियों से ढ़क लिया जैसे अपने-आप से ही छिपना चाह रही हो…।
क्या सच में छिप पाई ? शिवानी खुद अपनी ही प्रतिबिंब से… ‘नहीं …नहीं ना’।
आखिर उसने गलत क्या किया शादी से बहुत पहले कॉलेज में जब वह अपने आप में ही सिमटी- सकुचाई सी रहती थी।
तब सुशांत ने ही तो दोस्ती का हाथ बढ़ा कर उसके सपनों के ‘ प्रथम पुरुष ‘ के रूप में मन के दरवाजे पर हौले से दस्तक दी थी।
जिन्दगी ने उसे चुनाव का अधिकार ही नहीं दिया था।
अगर वक्त ने अवसर दिया होता तो उसने सुशांत ही को तो चुना होता !
फिर अब ऐसा क्या बीत गया इस दर्मियान ?
कि पुनः उसकी अपेक्षा करना भी अपराध है ?
इस सोच के साथ ही वह कॉलेज के दिनों में चली गई…
कॉलेज में उससे एक साल सीनियर था।
हाँ बनर्जी हुआ करता था ‘सुशांत बनर्जी ‘
तब शिवानी नई-नई को एड कॉलेज में आई थी सहमी हुई रहती थी।
लड़के-लड़कियों के एक साथ पढ़ने का उसका नया और पहला रोमांच था।
अपनी वेशभूषा और सहमेपन से भीड़ से बिल्कुल अलग थलग दिखती थी।
ऐसे में एक दिन सुशांत ने ही आगे बढ़कर अपनी स्वच्छ मुस्कान बिखेरते हुए पूछा था ,
” आइ एम सुशांत बनर्जी तुम्हारा नाम ?”
” ‘ शिवानी… शिवानी मेहरा ‘ लगभग हकलाते हुए कहा था।
” तुम बहुत अच्छी हिन्दी बोलती हो जब कभी जरूरत हो मुझसे बेझिझक नोट्स ले लिया करना तुम्हारा सीनियर हूँ “
“ओके ! और कह कर उसने हौले से मुस्कुरा भर दिया था।
सुशांत से नोट्स लेने और बातें करने के लिए क्लास की लड़कियों में होड़ सी मची रहती थी।
जबकि शिवानी इतने में ही खुद को कोसने लगी थी ,
” क्या जरूरत थी उसे इतना आगे बढ़कर बातचीत करने की ?”
” क्यूँ नहीं अनदेखा करके आगे बढ़ गई “
अगर शिवानी सच कहे तो उसे भी लुत्फ़ आने लगा था।
यह तो वह आज इतने दिनों बाद समझ पाई है।
कि वो भी कंही दिल के कोने में सुशांत के प्रति वही भावना रखती थी। एक -एक करके अतीत के पन्ने पृष्ठ दर पृष्ठ खुलते गये…।
उन दिनो कैसे उन दोनों की दोस्ती जंगली घांस की तरह पनपती चली गयी थी ?
” मुझे लाईब्रेरी जाने से बचाने के लिए वह किताबों की लाइन लगा देता मेरे सामने “
मैं हैरान हो उससे कहती ,
” सुशांत तुम तो वाकई दूसरों से अलग हो “
वह मुस्कुरा देता ,
” हाँ जहाँ बाकी के सारे फिल्मी गॉसिप, गानों और मौज मस्ती की बातें करते हैं वहाँ मैं राजनीति, सामाजिक चिंतन की बातें किया करता हूँ क्यों यही ना ? “
” हाँ… ” और शिवानी पलट कर चल देती।
घर से निकलने समय भाई के दिए इन्ट्रक्शन याद आ जाते उसे ,
” कॉलेज में किसी लड़के से बात की तो देख लेना टाँगें तोड़ दूंगा “
फिलहाल … आज तो वह सोच कर ही हठात् होठो पर मुस्कान आ गई… है।
फिर न जाने कब सुशांत ने दोस्ती की सीमा से आगे अपनी हद को बढ़ाते हुए प्रेम की ज़द में आने की कोशिश करता हुआ एक दिन बोल उठा… ,
” देखो शिवानी मैं सब साफ-साफ कहता हूँ और शायद तुम्हें इसका अंदाजा भी हो,
” मेरी आंखे तो क्या रोम-रोम में तुम्हारे लिए जो भरा है उसे अगर सिर्फ और सिर्फ एक लफ्जों में बयाँ करना हो तो वह है ‘ प्यार ‘ ” ।
उस क्षण शिवानी अंदर ही अंदर सुलग… उठी थी सुशांत को एक वफादार दोस्त से प्रेमी बनते देख कर।
फिर उसने क्या जबाब दिया था ?
यह याद करने का प्रयास कर ही रही थी कि…
अचानक फोन की घंटी बज उठी।
जिसके साथ ही शिवानी एक झटके से वर्तमान में आ गई।
फोन शायद सुधीर का हो ?
तत्परता से उसने फोन उठाया देखा बिटिया का है ,
” हैलो … ममा… “
” ममा आप ठीक तो हो ” बिटिया की चिंतातुर आवाज …
वह फोन लिए हुई बालकॉनी में आ गई और स्नेह भरे स्वर में पूछ बैठी,
” हाँ बोल बेटा “
” कुछ नहीं बस आपकी बहुत याद आ रही थी या फिर पा और आपकी , आप दोनों की ही ” ,
” पा कब तक लौटेगें … ? “
शिवानी की इच्छा नीचे तक झुक आए बादलों को छूने की हो आई ,
” क्यों ऐसे क्यों पूछ रही हो ‘ चंदा ‘
‘ मैं और तेरे पा दोनों ही बिल्कुल ठीक हैं।
तेरे पा पूरे पाँच दिनों के टूर पर शिमला गये हुए हैं बेटे “
” ओ नो… फिर आप अकेली हो घर पर आप भी चली जातीं उनके साथ ही… “
फिक… से हँस दी शिवानी।
” अच्छा ममा … डोंट वरी आप अकेले ही काफी हो खूब घूमें फिरे ऐन्ज्वाए करें
बस ऐसे ही अचानक आपसे बातें करने का मन हो रहा था तो फोन लगा लिया “
” अच्छा किया बच्चे “
फिर दो चार इधर-उधर की बातें कर के फोन रख दिया शिवानी ने और अन्दर आ आरामकुर्सी पर पीछे सिर टिका कर बैठ गयी।
शिवानी परम्परा वादी परिवार से थी।
उसे याद है ‘आई एस सी ‘की परीक्षा उसने कितने अच्छे नम्बर ले कर पास किया था दो विषय में डिंसट्रिंक्शन भी मिले थे पर परिवार में इससे किसी को कोई फर्क नहीं पड़ा था।
सबसे भली वह लेकिन किसी ने उसकी पीठ नहीं थपथपाई थी।
हाँ अलबत्ता उसके आगे बाहर जा कर पढ़ने की इच्छा पर कितना बबाल मच गया था पूरे परिवार में।
घर में उसकी शादी के चर्चे होने लगे थे ।
तब वह कितना रोई-धोई थी। उसका मन अभी और आगे पढ़ने का था ।
वह ‘बी एस सी ‘ करना चाहती थी।
लेकिन पापाजी का कहना था… ,
” आगे पढ़कर क्या होगा ?
अगर पढ़ना ही है तो यहीं प्राइवेट से पढ़ लो आर्टस लो या सांइस क्या फर्क पड़ता है ? “
लेकिन उसने भी जिद ठान ली थी ,
“अगर ऐडमीशन नहीं कराया तो फिर किसी कीबात नहीं सुनूगीं ” आश्चर्य हुआ था उसे कि बड़े भैयाजी ने इजाजत दे दी थी।
इस धमकी के साथ कि सीधे कॉलेज से घर और घर से कॉलेज बीच-बीच में भाई की धमकी भी मिलती रहती ,
“कुछ गड़वड़ हुई तो पढ़ाई बंद ” कहते हुए कान उमेठ दिए थे।
चलो आगे पढ़ने की इजाजत तो मिली यही सोच कर उसने हामी भर दी थी।
तब उसकी कितनी मुश्किलों भरी जिंदगी थी।
आज उसकी बेटी ने खुले आम प्रेम विवाह किया है और वह भी परिवार वालों की मर्जी से खुद शिवानी ने आगे बढ़ कर सारे रस्मोरिवाज निभाई हैं।
समय कहाँ से कहाँ आ गया है ?
शिवानी का गला इस बरसात में भी सूखने लगा है ।
वह कुर्सी पर से उठ कर किचन में गयी पानी का ग्लास उठा कर गटगट एक सांस में पी गयी।
फिर गैस के चूल्हे जला कर उस पर चाय का पानी चढ़ा दिया उसे भूख भी लग आई थी।
फ्रिज का दरवाजा खोल बहुत देर तक योंही खड़ी रही लेकिन जाने क्यों आज कुछ में दिल नहीं लग रहा है।
तभी टेबल पर रखे आलू के पराठे पर नजर गयी।
कप में चाय ढ़ाल कर उसने उन पराठों को गोल कर के मोड़ लिया जैसे बचपन में किया करती थी और लेकर वापस कमरे में आ गयी।
” कमरे में बैठ कर चाय की चुस्कियां लेती शिवानी की उंगलियां अनायास ही मैसेंजर खोल बैठी,
” बेहद अच्छा लगा तुम्हे देख कर शिवानी क्या हम मिल सकते हैं ? “
उसकी इस फरमाइश से वह चिंहुक गयी।
” पहली ही बार में मिलने की इच्छा जाहिर करना यह कुछ ज्यादा नहीं हो गया सुश “
वह हँस पड़ी ,
” पागल “
और हँसने वाली इमोजी भेज दी।
“कहाँ हो आजकल ? “
” पुणे में ” शिवानी ने लिख दिया।
काफी बेचैन दिख रही शिवानी ने ‘व्हाट्सएप कॉल’ पर उंगली रखनी चाही पर फिर कुछ सोच पीछे हटा लिया।
वो मोबाइल बंद कर बिस्तर पर लेट गयी। उसे अच्छा लग रहा था इस समय सुशांत के बारे में सोचना एक राग जैसा लग रहा था।
तब कॉलेज में इग्जाम खत्म हो गये थे। उसे सारी रात नींद नहीं आई थी उसका मन था सुशांत से कितनी ही बातें करने का लेकिन ऐसा संभव नहीं हो पाया था।
वह जान रही थी इस बार घर पर फिर से वही शादी की चर्चा और इस बार तो उसके पास इसे टालने का कोई बहाना भी नहीं होगा ।
सच में घर में सिर्फ़ चर्चा ही नहीं इस दफा़ पूरी तैयारी ही हो गई थी।
शिवानी जान गयी अब बात बढाने से भी कुछ फाएदा नहीं है।
पिछली बार ही बाहर जा कर पढ़ने की बात पर पापा कितने नाराज थे।
अब तो शायद गला ही दबा देगें। वह गलत नहीं सोच रही थी।
माँ हर बार खड़ी होती रही हैं उसकी खातिर पापा के विरुद्ध… पर उस बार उन्होंने भी अपने हाथ उठा लिए थे।
विरोध करने की हिम्मत नहीं थी तो खुद को भाग्य के भरोसे छोड़ नहीं दिया था दिया शिवानी ने
बहुत मिन्नतें की थी माँ की ,
” एक बार तो बात कर के देखिए माँ शायद … मैं ‘ एम एस सी ‘ कर आगे अपने पैरों पर खड़े होना चाहती हूँ “
” तू चाहती है कि घर की सुख शांति सब तेरी जिद के आगे भंग हो जाए ? “
उल्टा माँ ने ही तीखे सवाल कर दिए थे।
वो अपनी जगह सही ही थींं कुछ भी गलत नहीं सोच रही थीं।
आखिर उन जैसी स्त्री की औकात ही क्या थी पापाजी के सायने।
मिन्नतों के जबाब में वही रटा-रटाया वाक्य…
” कैसी बातें कर रही हैं आप ? शिवानी की माँ ,
” अब और मनमानी नहीं चलेगी शादी के बाद ससुराल वालों की मर्जी से चाहे जो इच्छा हो करे । “
इसके दो महीने बाद ही सुहाग की खनकती चूड़ियाँ पहन कर शिवानी सुधीर के साथ पुणे चली आई थी।
हालांकि नयी जिन्दगी की शुरुआत इतनी बुरी भी नहीं थी।
सुधीर खुले दिल वाले समझदार पति साबित हुए थे।
उन्हें इस बात से कि … शिवानी की आगे की पढ़ाई जारी रहे या नौकरी करना चाहे तो ?
किसी बात से ऐतराज नहीं था।
कितना सरल हो जाता है ना जीवन बिताना तब …
जब सामने वाला भले ही आपके मन की पसंद का ना होते हुए भी रिश्ता निभाना बखूबी जानता है।
वरना तो कभी-कभी हम इसी में उलझ कर सारी जिन्दगी तनाव युक्त रह कर गंवा देते हैं।
उम्र से प्रभावित सोच का कोई दबाव नहीं था।
सुधीर की आदत है वह हर बात बिना लाग- लपेट के सादगी और आसानी से कह देते हैं।
बहरहाल… सब मिला कर शिवानी के एक तरफ ‘दोस्ती’ और ‘पढ़ाई’ दोनों ही बीच में अधर में छूट जाने से गुस्से और समझौता नहीं करने की कोई खास तार्किक वजह तो नहीं थी।
तो बस … वह भी समय की धारा में बहती हुई आगे बढ़ती रही है।
सब कुछ… घर, परिवार ,बेटे और प्यार करने वाली बिटिया के रहते हुए भी आज न जाने क्यूँ और कैसे एक फाँस सी चुभ रही है ?
शायद अकेलेपन का अहसास या रुमानी मौसम ?
या फिर जो कुछ भी हो…
उसके तन-मन में जैसे कुछ टीस रहा है
सच समय कितना आगे निकल गया है।
लेकिन आज न जाने क्यूँ उसका दिल बेहद मासूम किस्म की उछाल ले रहा है।
मन जोर-जोर से हँसने के साथ गाने- गुनगुनाने का भी कर रहा है।
लेकिन हँसी को होठों में दबा कर वह मोबाइल खोल कर बैठ गई।
सुशांत के डी पी की हरी बिंदी जलती देख उंगलियाँ खुद बखुद मैसेंजर खोल कर बैठ गई ,
” बहुत वक्त गुजर चुका सुशांत करीब तीस पैंतीस साल… “
उधर से जबाब ,
” हाँ यह बात तो है बच्चे जवान हो कर अपने-अपने घर बस गये “
” वाह !
और तुम बताओ कुछ मिसेज सुशांत के बारे में तो जिक्र ही नहीं किया “
उधर एक सन्नाटा छा गया… जैसे सीने में ठंडी आग अटक गई हो ।
काफी देर बाद… एक छोटी लाइन लिख कर आ गई …
” काश अतीत व्यतीत ना होता ? “
पढ़ कर शिवानी धक्क से हो कर गई।
उसके दिल में एक हूक सी उठती लगी ।
५फिर शुभरात्रि की इमोजी आई थी उधर से।
लेकिन तब तक शिवानी का मेसेज जा चुका था,
” क्या हम मिल सकते हैं ? “
हालांकि शिवानी जानती है समय का सिरा पकड़ना इतना आसान नहीं होता है।
उसने डिलीट करने वाले बटन पर उंगली रखनी चाह कर उंगली बढाई ही थी कि टुन्न की आवाज,
कुछ उन्मत्त सी शिवानी ने मेसेज पढ़ा ,
” क्या सच में ऐसा संभव हो सकता है ?”
” बिल्कुल ! तुमने ऐसा क्यों पूछा ?”
“बस ऐसे ही ‘
“कहाँ ?”
” जहाँ तुम कहो ? “
फिर बदहवासी के इसी आलम में उसने फोन बंद कर दिया।
दरअसल इस दुविधा वाले माहौल के असमंजस में पड़ी हुई गुजरते समय और आसपास की भीड़ के बीच वह अकेली अपने आप को सनाके के साथ घिरी हुई पा रही है।
शिवानी की उधेड़बुन जारी है।
यह तो वो अब समझ पाई है कि जीवन इसी का नाम है।
एक दिन बुनी जाती है कोई कहानी तो दूसरे दिन ही उघेड़ दी जाती है।
एक एक क्षण उस पर भारी गुजर रहा है।
यूँ अचानक फिर से सुशांत से मिलने की कल्पना मात्र से ही मन कमजोर होने लगा है।
यह कैसी अपेक्षा थी ? कैसा मोह है ?
उम्र के इस मोड़ पर एक शादीशुदा स्त्री का किसी गैर मर्द के साथ यों आधी रात को बातचीत और उससे मिलने का आग्रह करना …?
क्या उचित है ?
लेकिन फिर अगले ही पल दो विरोधी परिस्थितियों की जकड़ शिवानी को बराबर कसती जा रही है।
सुधीर के प्रति अपने कर्तव्य निभाने की पुकार और दूसरी ओर बीते कल के सहपाठी सुशांत से पनपा भावनात्मक लगाव।
शिवानी चौंक गयी गहरी खामोशी में स्वगत कथन करती हुई उसकी आवाज़ कुछ कंपकंपा सी गयी ,
” तुम मेरा भावनात्मक संबल रहे हो तुम्हारे साथ जितना बाँट सकती थी बाँट चुकी हूँ “
बेचैन है शिवानी… उसे समझ नहीं आ रहा है वह क्या करे ?
अपना ध्यान कैसे बंटाएं ?
कहाँ बंटाएं ?
वह आधी रात को सूने घर की बालकॉनी में खड़ी सन्न पड़ी हुई आने-जाने वाली भीड़ में अपना ध्यान बँटाना चाहती है किंतु बेचैन मन तुरंत ही वहाँ से वापस लौट कर सामने फुफकारते हुए सर्प के समान लिपट जाता है।
भावनाओं से भरी शिवानी ने नजर उठा कर दीवार घड़ी की ओर देखा ,
” रात के एक बज रहे हैं उसने मोबाइल खोल लिया “
अगले ही क्षण टुन्न की आवाज के साथ मेसेज ,
“क्यों सोच- विचार कर लिया अच्छी तरह से ? मैं तुम्हारे शहर में ही हूँ “
के साथ मुस्कुराहट वाली इमोजी ।
” धत् “
एक हल्की सी स्मित उसके चेहरे पर छा गयी…
” कॉलेज में तो तुम बहुत डरपोक हुआ करती थी अब डर नहीं लगता तुम्हें “
“नहीं , कितना कुछ अनकहा रह गया ना हमारे बीच “
उसने सोचने वाली इमोजी भेज दी।
” वो सब अब कह सुन लेगें ” उधर से त्वरित जबाब आ गया।
” अगर अब भी तुम्हें मेरे साथ मिलकर कहने सुनने की नयी शुरुआत नामंजूर हो तो फिर रहने देते हैं “
खिड़की से आती तेज बरसाती हवा से शिवानी काँप गयी ,
” लगता है तुम्हारे हस्बैंड बहुत नेकदिल शरीफ शख्श हैं ,
तभी तुम बेखौफ और आत्मविश्वास से भरी हो “
“अच्छा हम कहाँ मिल रहे हैं ? “
उधर से पूछे गये सवाल पर चुप हो कर उसने अपनी पलकें कस कर मूंद ली हैं।
कुछ पलों के उपरांत अनिर्णय की सी मनस्थिति में थरथराती उंगलियों से ऐड्रेस सेंड कर दिया।
साथ ही शुभरात्रि की इमोजी भी लगा दी।
फिर नजर उठाकर दीवाल घड़ी को देखा साढ़े तीन बज रहे हैं।
” अब सो जाना चाहिए “
यह सोच कर बिस्तर पर लेट गयी …
उसने आंखें बंद कर ली… निद्रा के आने का इंतजार करने लगी।
अगला दिन शुक्रवार था।
शिवानी की नींद सुबह पक्का साढ़े नौ बजे टूटी गई मन ही मन ईश्वर को प्रणाम कर अलसाये हाथों से मोबाइल उठा लिया।
पहले सुधीर फिर बेटे और बिटिया को औपचारिक विश के साथ ही ये मेसेज डाल दिया ,
” आज एक पुराने कॉलेज मित्र के साथ टाइम स्पेंड करने जा रही हूँ शाम या रात तक लौटूँगी “
” सो प्लीज डोंट डिस्टर्ब मी ” ऐसा लिख कर उठ गई।
जबाब में सुधीर और बेटे का संक्षिप्त जबाब ,
” ओके ” आ गया।
लेकिन बिटिया ने तो पूरी खैर- खबर ले कर ही जान छोड़ी ,
“ओके ममा,
बट ड्राइवर को साथ ले जाना। खुद ड्राइव मत करना। इन दिनो आपकी बी पी बढ़ी हुई है … वगैरह, वगैरह “
जबाब में शिवानी ने कुछ भी प्रतत्युत्तर न दे कर सिर्फ फ्लाइंग किस की इमोजी भेज दी।
एक रंगीन मुस्कुराहट उसके होठों पर छा गई।
अपनी ही लगन में गुनगुनाती हुई उठ कर बैठ गयी।
फ्रेश हो कर आईने के सामने खड़ी हो तैयार होने लगी। आज उसने गहरे नीले रंग की शिफॉन की साड़ी जिसपर हल्के-हल्के गुलाबी रंग के फूलों बने हुए हैं निकाल ली है।
यह रंग उसे बेहद पसंद है… जब कभी सुधीर के साथ वह इसे पहन कर निकलती है उसकी दिली इच्छा रहती है। सुधीर से तारीफ पाने की ।
दुनिया में कौन ऐसी स्त्री होगी जो पति की नजरों की प्रशंसा की हकदार नहीं बनना चाहेगी ?
इस मामले में सुधीर ने उसे ताउम्र निराश ही किया है।
उसका शुष्क व्यवहार उसे हर बार कचोट जाता है।
अपने लंबे चमकीले बालों को हल्के ढ़ीला छोड़ कर गुलाबी क्लचर से बांध लिये ,
” देखूँ सुशांत की क्या प्रतिक्रिया रहती है उसकी अनूजा से कमतर तो नहीं हूँ “
यह सोचती हुई शिवानी ने कैब वाले के नम्बर डॉयल कर दिए।
पांच मिनट में ही कैब आ गई थी। जिसमें बैठ कर उसने पीछे की दोनों खिड़की खोल दी।
मंद-मंद-मादक हवा आ कर उसके खुले बालो को छेड़ने लगी है।
मलमली सुबह , उजास उमंगें शिवानी को दिन ,महीने और साल… कुछ भी याद नहीं रहा है ।
करीब आधे घंटेभर का रास्ता जिस पर न जाने कितनी बार आई है।
वही आज नई लग रही है।
तय किये स्थान पर जो एक बेहद खूबसूरत ‘ रोज गार्डेन है’ वह कैब से उतर गयी पैसे चुकाए।
जिन्दगी में पहली बार उसे लोगों की पकड़े जाने एवं लोगों की नजरों में धूल झोंकने का सा रोमांच हो आया है।
वह किनारे लगी बेंच पर बैठी गई एवं किशोरी की सी तत्परता से कनखियों से सुशांत के आने वाली राह को निहार रही है।
दिल में धुकधुकी सी हो रही है। यह प्रतीक्षा की घड़ी कितनी लंबी है।
उसे याद आ गया कॉलेज के जमाने में छिप-छिप कर सुशांत को निरखना।
तभी ठंडी हवा का झोंका सा बदन से टकराया अगले ही क्षण उसकी नजर सामने से आते हुए सुशांत पर जा टिकी।
सजा -संवरा सुशांत,
बिल्कुल पहले की तरह गहरी काली आंखें , होठों पर थमी हुई मुस्कुराहट
काई रंग के गुरु शर्ट और क्रीम कलर की पैंट।
जिस सुशांत पर सारे कॉलेज की लड़कियां मरती थीं।
धीमी चाल में उसकी ओर ही बढ़ा चला आ रहा है।
नजदीक आ कर बेतकल्लुफी से उसने शिवानी की ओर हाथ बढ़ाया तो है।
लेकिन पहली ही की तरह शिवानी ने संकोच भरी मुस्कान बिखेर कर अपने दोनों हाथ जोड़ दिए हैं ,
सुशांत हँस पड़ा ,
” ओह तो सिर्फ़ मैसेजिंग में नीडर बन पाई बाकी पूरी वैसी की वैसी ही “
” हाँ सुशांत हम लड़कियों को बचपन से ही ऐसी शिक्षा दी जाती है कि घर,परिवार, समाज और सर्वोपरि पति की मान-मर्यादा का ध्यान और उसकी इज्जत करनी चाहिए इसका साफ अर्थ यही हुआ ना,
इस सब के समक्ष अपने को कुछ भी तवज्जो नहीं देना है “
शिवानी की आवाज कहीं दूर से आ रही थी।
” छ़ोड़़ो उनकी बातें, आज हम सिर्फ अपनी बातें कहे और सुनेगें “
सुशांत की आवाज शिवानी के रोम-रोम झंकृत कर गये।
” तुम तो जरा भी नहीं बदले “
“तुम ही कहाँ बदली हो बाल बिल्कुल वैसे ही चमकीले, घने,लंबे और काले “।
शिवानी शर्मा गई फिर बच्चों की सी चपलता से बोल पड़ी,
” के राज ब्राह्मी आँवला केश तेल “
और खिलखिलाकर कर हँस पड़ी।
चारो ओर फिजा़ में जैसे खुशबू सी बिखर गई।
कितना कुछ सोच कर आई है वो कि सुशांत से मिल कर अपने पिछले दिनों के सारे गिले शिकवे एक एक कर के दूर कर लेगी …
उसने ध्यान से सुशांत की ओर देखा ,
” आंखों में उदासी की गहरी छाया जैसे अंतस्तल में करुणा की पुकार छिपी हो “
वो घबरा गई और घबराहट मे ं उसने सुशांत के हाथ थाम लिए दोनों की हथेलियाँ आपस में गुथ गई हैं।
उसके गले में कुछ जैसे अटक सा रहा है।
सुशांत के थोड़ा और निकट हो कर उसकी पनिली आंखो में झांकने लग गई
जिसमें कितनी ही नदियों का संगम लहरा रहा है ,
” मानों आंखें किसी को तलाश रही हों “
सुशांत ऐसा पहले तो कभी नहीं था।
शिवानी ने बस यों ही उससे पूछ लिया ,
” तुमने मिसेज के बारे में नहीं बताया ? “
सुशांत एकटक उसकी ओर देख रहा है एक पछाड़ खाई हुई लहर के समान ,
” अब मेरी चिंता करने वाली ‘अनूजा ‘ इस दुनिया में नहीं है।
करीब पन्द्रह साल पहले ही कैंसर ने उसे अपना शिकार बना लिया दिन बीतने के लिए होते हैं तो बीत रहे हैं… “
शिवानी धक सी हो कर रह गई।
मन के किसी कोने में सुशांत की पत्नी के लिए अनजाने में पनपी ईर्ष्या भाव उसका उपहास उड़ा रही थी।
सुशांत पूछ बैठा ,
” और तुम ? तुम बताओ ? तुम्हें इस तरह सबसे छिपछिपा कर मुझसे मिलने आने का कोई गिल्ट तो नहीं है ? “
शिवानी ने चौंक कर अपने दोनों हाथों में पकड़ी हुई सुशांत की कलाई हठात् ही छोड़ दिया एवं आस पास देखा।
ढ़लते हुए सूरज की रोशनी उन दोनों पर पड़ रही है वे एक बड़ी सी झील के किनारे बने पार्क में खड़े हैं बीच में चुप्पी पसरी है … मानों बगैर कुछ बोले एक दूसरे के हिस्से की उदासियाँ अपने में समेट रहे हैं।
शिवानी उसकी पत्नी के बारे में कितना कुछ पूछने की हसरत लिए मन में आई थी लेकिन…
अब वह उसके इस निहायत गोपनीय एकांत के समंदर में कंकड़ नहीं उछालना चाहती है।
रही खुद उसके गिल्ट की बात तो फिलहाल…
उनकी इस मीठी मुलाकात को लेकर रात भर बुने सपनों का महल … इस वक्त रेत की तरह भरभराकर गिरने को है।
कहाँ वह सोच रही थी ,
” मेरे परिवार ने मुझपर अपनी मर्जी की शादी थोपकर अन्याय नहीं किया है ? “
“क्या मैं अपनी मर्जी से अपनी कामना भी व्यक्त भी नहीं कर सकती “
और अब ?
सुशांत का इतना बड़ा अनदेखा,अनबोला दुखः उसका हृदय विदीर्ण हुआ जा रहा है।
आंखें प्रश्न वाचक हो गईं हैं ? माथे पर बल पर गये।
इस हाल में उसे देख सुशांत ने जैसे सब समझते हुए उसके कंधे पर आश्वस्ति भरा हाथ रखा।
तो शिवानी की रुलाई फूट पड़ी।
सुशांत के कंधे पर कुछ पल के लिए अपना सिर टिका दिया…।
फिर तुरंत ही उसे दूर कर उद्गिन अवस्था में वहीं पीछे छोड़कर दो कदम आगे हो कर चल दी…
बहुत दूर जा कर फिर पीछे मुड़कर भी नहीं देखा।
अचेतावस्था में कितनी दूर निकल आई थी उसे पता भी नहीं चला।
कि मोबाइल की घंटी लगातार बज रही है
आवेग से भरी हुई उसने कॉल काट दिया और वहीं घांस पर थकी सी बैठ गई।
जब उसकी चेतना वापस लौटी। उसकी नजर पास के वृक्ष पर चली गयी जिसकी जड़ों से निकली कोपल शायद देखरेख के अभाव में सूख रही हैं।
उसने फोन चेक कर वापस उसी नम्बर पर लगाया ,
” हैलो … हैलो ममा आप कहाँ हो ? “
बेटी की बेचैन, चितिंत आवाज …
आप फोन ही नहीं उठा रही हो पा आपके लिए पूछ रहे थे उन्हें कॉल कर लें “” वाकई कुछ नहीं सुनाई दे रहा है बेटे “
वह खुद ही बुदबुदाई।
उसका स्वर रुद्ध हो गया। आंखों में नमी आ गई पता नहीं यह नमी किसके नाम की थी ?
” सुशांत या फिर ‘अनूजा ‘ ? “
एक बार इच्छा हुई कि वापस जाकर सुशांत के तनहाई की गहराइयों को माप आए।
जिसके लिए पिछले दिनों जाने अनजाने कितना कुछ सोचती रही है … उस सब के लिए अपने अनुमान पुख्ता कर आए।
लेकिन नहीं!
यह सुशांत की भावनाओं का निहायत निजी क्षेत्र है जिसमें प्रवेश ?
कम से कम शिवानी के लिए वर्जित है।
सुधीर का कॉल उसके फोन पर आ रहा है इस बार उसने फोन उठा लिया है,
“हैलो , मैं आ गया हूँ तुम चाहो तो आराम से आ सकती हो ?”
अभी तक शांत हो चुकी है शिवानी उसने फौ़रन जबाब दिया ,
” नहीं सुधीर मैं निकल चुकी हूँ बस थोड़ी देर बाद हम ‘साथ होगें ‘
उसकी आवाज में कंपन है ,
“तुम इतनी बुझी-बुझी सी लग रही हो क्या फ्रेंड से मिल नहीं पाई ? “
कुछ बोलना चाहती है शिवानी पर नहीं रिश्तों की मर्यादा … हर बार की तरह इस बार भी आड़े आ गई है … चुप ही रही।
वापसी के लिए कैब बुक कर दिया …
घर पहुंच कर शिवानी ने कॉलबेल पर हाथ रखती इसके पहले ही सुधीर की आवाज ,
” आ जाओ दरवाजा खुला है…
शिवानी पर्दा हटा कर अन्दर आ गई। टेबल पर दो प्याला गर्म चाय का रखा है।देख कर ही खुशी से भर गई।
इधर-उधर सिर घुमा कर देखा सुधीर कहीं नजर नहीं आ रहे हैं।
तभी हमेशा की तरह उनकी आवाज़ परेशान आवाज आई ,
“अरे या…र मेरा ‘ए.टी.एम ‘ कार्ड देखा है कहीं मिल नहीं रहा है जरा आ करा ढ़ूढ़ो ना “
कोफ्त हुई शिवानी चाय छोड़ कर उठ गई …,
” आप भी ना सुधीर!
कभी नहीं सुधरोगे ये देखो सामने तो पड़ी है ” कहती हुई साइड टेबल से उठा कर दे दिए।
“क्यूँ … सुधरूँ ?
जब तुम्हारा साथ है कहते हुए शिवानी को बाहों में भरकर उसके बुदबुदाते होठों को अपने होठ से बंद कर दिए।
समाप्त