यशोदा•••! जहां तक•• मैं समझता हूं– तो•• तिलक सही कह रहा है•• एक बार हमें उसके कथन पर विचार करना चाहिए••!
देखो जी•••” मैं तो बिल्कुल भी इस बात के लिए राजी नहीं हूं•• यदि गांव वालों को पता चला तो क्या इज्जत— इज्जत जाएगी नहीं•• बल्कि” घर की इज्जत”घर में ही रहेगी•••! बीच में बात काटते हुए राजनाथ जी पत्नी यशोदा से बोले।
मैं तुम्हें बताये देती हूं– कि अगर मेरी मर्जी के खिलाफ यह शादी हुई तो बहुत बुरा होगा—!
“अरे भाग्यवान”•••!काहे इतना भड़क रही हो••तुम भतीजे की शादी का भरपूर मजा लो यहां के लिए अपने दिमाग का घोड़ा ना दौराओ•••!
हां हां अब बैठे-बैठे यही तो कहोगे•• वहां भी लोग तुम्हें आने के लिए कह रहे हैं और तुम हो कि यहां की उलझन को सुलझाने की वजह और उसमें गांठे बांधे जा रहे हो•••! यशोदा जी गुस्से से बोली। भाग्यवान••• तभी तो कह रहा हूं– कि सारी चिंता मुझ पर छोड़, तुम शादी का मजा लो•• एक ही भतीजा है तुम्हारा•• ! रोज-रोज थोड़े ना उसकी शादी होगी•••!
राजनाथ जी यशोदा को तसल्ली देते हुए बोले।
वही तो समझा रही हूं कि हमारा भी अब अंतिम बेटा है बड़े अरमान लिए घूमती हूं कि छोटे बेटे की शादी में वह सब करूंगी जो बड़े बेटे में नहीं किया•••! और जो कुटुंब बड़े बेटे की शादी में रह गए थे इस बार छोटे में सबको बुलाऊंगी••• इसलिए अपना दिमाग मत चलाना•• जहां तक हो सके मेरे आने तक•••” तिलक” को समझा के रखो•• बाकी मैं आऊंगी•• तब सब संभाल लूंगी•••!
यशोदा जी राजनाथ जी को समझाते हुए बोली।
ठीक है•• ठीक है तुम्हारे आने तक में तिलक को समझता रहूंगा•••!
“बाबूजी•••! मां ने क्या कहा••? तिलक कमरे में प्रवेश करते ही राजनाथ जी से पूछा ।
मां ने तो साफ मना कर दिया•• अब देखो जैसा तुम उचित समझो करो•• लेकिन•• तुम्हारे हर फैसले में मैं साथ हूं••!
बेटे का हौसला बुलंद किया।
“आलोक नाथ जी और राजनाथ जी “दोनों सहोदर भाई थे••• । आलोक नाथ जी गांव के मुखिया थे और इनका एक ही बेटा चंदन•• जो पिता के ही काम में बढ़-चढ़ के हिस्सा लेता। पत्नी करुणा जी अक्सर चंदन को समझाया करती कि•• बेटा•• अभी से इस राजनीति के झंझट में ना फसो••• अभी कॉलेज पूरा कर, कोई सरकारी नौकरी की तैयारी करने की सोचो••!
चंदन पिताजी के नक्शों कदम पर ही चलना चाहता इसलिए ग्राम पंचायत के इलेक्शन में पिता के लिए प्रचार-प्रसार में वह सबसे आगे रहता•••!
इधर राजनाथ जी के दो बेटे बड़ा बेटा अक्षत और छोटा बेटा
तिलक ।
घर में भाइयों से बड़ा अक्षत ही था इसलिए कायदे से उसकी शादी सबसे पहले हुई••। चंदन ग्रेजुएशन कर रहा था कि•• इसी बीच उसके लिए कई रिश्ते आने लगें परंतु•• पिता आलोक नाथ जी सभी रिश्तों को ठुकराते चले गए••। वह कहते हैं ना कि भाग्य का लिखा कोई नहीं मिटा सकता त्रिलोक जी जब अपनी बेटी का रिश्ता लेकर आलोक नाथ जी के पास आए तो त्रिलोक जी का “संस्कार” तथा उनका “औरा” देख ,वह इस रिश्ते के लिए ना नहीं कर पाये।
“लड़की का नाम जानकी है” बहुत ही सुंदर और सुशील है उम्र यही 20 साल के लगभग होगी•• क्यों रे चंदन••• पसंद है ना तुझे•••? मां करुणा जी जानकी का फोटो चंदन को करीब से दिखाते हुए पूछी। चंदन पहले तो सख्त मना कर गया लेकिन जब फोटो देखा तो मां मुझे लड़की पसंद है–!
हां हां अभी तो मना कर रहा था अब अचानक भैया के सपनों में भगवान जी आए और बोले•• वत्स– अब जल्दी से शादी कर ले वरना यह लड़की कही किसी और की ना हो जाए•• तभी तिलक आकर चंदन को छेड़ने लगा । अच्छा तो बच्चू कहीं ऐसा तो नहीं कि•• मेरे शादी के आर में अपना पता साफ करना चाहता है••
वह कैसे भैया••?
वह ऐसे की•• कोई मेरी साली होगी तो तू भी•••
बस-बस क्या भैया तुम भी– अभी तो मैं बहुत छोटा हूं– 12वीं पास कर BA में एडमिशन लिया हूं••मात्र 19 साल का••!
करुणा जी और चंदन दोनों ही हंस पड़े।
कुछ महीनों के अंदर ही चंदन और जानकी की शादी हो गई। ससुर आलोक नाथ बहू को देख खुशी से फूले नहीं समा रहे थें। जानकी भी आते ही पूरे मर्यादा के साथ घर-परिवार संभालने लगी। सभी बड़ों छोटों का अच्छे से ख्याल रखती।
अभी आलोक और राजनाथ जी का संयुक्त परिवार ही था इसलिए•• जानकी•• चाचा ससूर, चाची, जेठ, जेठानी ,देवर सभी के जरूरतो का पूरा ख्याल रखती।
उसकी कोशिश यही होती कि खान स्वयं बनाकर सभी को खिलायें ••जानकी के हाथ का बना खाना खाकर, पूरा परिवार खुश हो जाता।
हम बहुत भाग्यशाली हैं•• जो हमें ऐसी बहू मिली•• देखो ना•• घर में एक-एक सदस्य सभी का दिल जीत रखा है सारा दिन परिवार के देख-रेख में जाता है हमारी जानकी का •••!
एक दिन करुणा जी आलोक नाथ जी से बोली।
हां ये बात तो बिल्कुल सत्य है•• और देखो ना चंदन कितना खुश रहता है पहले तो कहता कि– शादी ही नहीं करूंगा ••अब देखो सारा दिन पत्नी के आगे पीछे मंडराता फिरता है•• ! आलोक नाथ जी बोले।
भगवान किसी की नजर ना लगे हमारे हंसते-खेलते परिवार पर•• करुणा जी नजर उतारते बोली । अभी शादी के कुछ ही महीने हुए थे कि•• एक दिन :-
मालिक जल्दी चलिए छोटे मालिक के ऊपर किसी ने फायर किया है गोलियां सीधे छाती पर जाकर लगी हैं •••!
कैसे हुआ यह सब और कहां है चंदन•••? आलोक नाथ जी घबराते हुए पूछे ।
मालिक बाजार में थे किसी से उनकी बहस हुई और हम कुछ समझ पाते की पॉकेट से रिवॉल्वर निकाल सीधे छाती में ढाएं-ढाएं चार गोलियां दाग दी•••!
इतना सुनते ही आलोक नाथ जी और करुणा जी घटनास्थल पर दौरे चले आए•• तब तक चंदन अस्पताल पहुंच चुका था लेकिन गोलियां चुकी डायरेक्ट सीने पर लगी थी तो डॉक्टर उसे बचा नहीं पाए••• ऑपरेशन के दौरान ही वह चल बसा।
मां-बाप का इकलौता चिराग•• सदा के लिए बुझ गया । जानकी की जिंदगी में अब अंधेरा ही अंधेरा था कहां दिन भर उसके घुंघरू और चूड़ियों की खनक से आंगन गूंजता—और अब एक सफेद लिबास में वह जिंदा लाश बनी बैठी थी।
2 महीने गुजर गए :-
बेटा•• कब तक अपने आप को एक कमरे में बंद रखेगी बाहर निकल••• तेरी हंसी के बिना यह घर सूना सा लगता है •••!
नहीं मां••••मेरी जिंदगी में अब कुछ नहीं बचा कितनी अभागिन हूं मैं••• काश मुझे भी इनके साथ ही मार दिया होता•••!
बस-बस ऐसा नहीं बोलते बेटा••! अरे•• हमारे लिए अब तू ही चंदन है तुझे कुछ हो गया तो हमारा क्या होगा••• एक बेटे को तो मैंने खो दिया अब तुझे खोना नहीं चाहती••• कहते हुए करुणा जी फफक-फफक के रोने लगीं ।
हमें तो भगवान ने कष्ट दिया ही है साथ में इस बच्ची को इतना बड़ा••• कष्ट ••बेचारी की हस्ती- खेलती जिंदगी में आग लग गई•••! आलोक नाथ करुणा जी से बोले।
उस समय परिवार के सभी सदस्य इकट्ठे बैठे थें ।
कैसे बोलूं कि बेटा अपनी जिंदगी में आगे बढ़ जा••• मैंने कल समधी जी से बात की कि जानकी को समझा-बूझाकर अपने साथ ले जाएं और अपनी पसंद की दूसरी शादी कर दें ••••!
ये तो सही किया भैया आपने•••! राजनाथ जी भाई के बातों का समर्थन करते हुए बोले ।
बड़े बाबूजी••• !अगर बुरा ना माने तो •••थोड़ा हिचकीचाते हुए•••
हां बोल बेटा•••!
भाभी का हाथ मैं थामने के लिए तैयार हूं—! तिलक जल्दी से बोल गया ।
तेरा दिमाग तो खराब नहीं हो गया •••?
यशोदा जी गुस्से में बोलीं ।आलोक नाथ और राजनाथ जी दोनों एक दूसरे का मुंह देखने लगें।
इधर अक्षत भी तिलक की बातों का समर्थन करते हुए बोला हां बड़े बाबूजी और बाबूजी••••! इसमें गलत क्या है•••? “घर की इज्जत” घर में ही रह जाएगी•• और हमें जानकी को खोना भी नहीं पड़ेगा•••!
तुम दोनों भाई पागल हो गए हो••••! कहते हुए यशोदा वहां से चली गई ।
विश्राम कक्ष में:-
देखो अक्षत और तिलक सही कह रहे हैं•• तुम क्या कहती हो••? आलोक जी करुणा जी से बोले। सच कहूं तो मुझे भी यह प्रस्ताव सही लगा लेकिन यशोदा तैयार नहीं है•• मान लूं कि यशोदा तैयार भी हो जाए•• मगर जानकी को कौन समझाएगा••• वह तैयार नहीं होगी•••!
उसकी चिंता तुम मत करो•• मुझे विश्वास है की मेरे समझाने से जानकी जरुर समझेगी••! पहले यशोदा मान जाए तब तो•••!
तभी कमरे में अक्षत आता है
बड़े बाबूजी ,अम्मा••• मेरे पास एक उपाय है मगर आपको तैयार होना पड़ेगा•••!
हां बताओ •••उत्सुकतावस दोनों पूछें ।
मां अभी मायका जा रही है•• गोलू (यशोदा का भतीजा) की शादी है इस बीच हम इन दोनों की शादी भी मंदिर में करा दें तो•••?
पर बेटा बिना यशोदा के रजामंदी से यह करना उचित नहीं••!
उचित-अनुचित का समय नहीं है बड़े बाबूजी अभी हमें बस•• जानकी के बारे में सोचना है•••! कहते हुए अक्षत वहां से चला गया ।
आलोक नाथ जी करुणा जी की तरफ देखने लगे मुझे लग रहा है कि अक्षत सही कह रहा है••• पर हमें इसके लिए जानकी को अब जल्दी से मनाना पड़ेगा क्योंकि हमारे पास समय कम है•••!
इधर यशोदा जी भी भतीजे के शादी में मायका चली गईं ।
उधर त्रिलोक जी को बुला ••उन्हें सभी बातों से अवगत कराई गई। देख बेटी••• अब हमने चंदन को तो खो दिया•• लेकिन तुझे नहीं खोना चाहते अगर तुझे हम सब के साथ इस घर में रहना है तो हमारी इस प्रस्ताव को माननी पड़ेगी•••!
कौन सा प्रस्ताव बाबूजी•••?
तुझे तिलक के साथ शादी करनी पड़ेगी••• समझाते हुए आलोक नाथ जी बोले ।
कैसी बातें कर रहे हैं •••? तिलक मेरा देवर है•• मैंने कभी उसको इस निगाह से नहीं देखा•• और मैं चंदन जी का स्थान किसी और को नहीं दे सकती•••!
जानकी रोते हुए बोली
पर बेटा अगर तू तिलक से शादी नहीं करेगी तो अपनी बची हुई जिंदगी कैसे बिताएगी•••? तू अभी तो बहुत छोटी है और दुनिया बहुत जालिम है इसलिए मैं तुझे कह रहा हूं बेटा•••!
पर बाबूजी•••
पर वर कुछ नहीं•• अगर तू तैयार नहीं हुई तो मजबूरन मुझे तुझे अपने पिता के घर भेजना पड़ेगा•• क्योंकि हम तुझे इस तरह नहीं देख सकते अगर तुझे थोड़ा भी हमारा ख्याल है तो तिलक के साथ शादी कर ले•• और ऐसा नहीं कि•• यह हम कह रहे हैं •••तिलक खुद इस प्रस्ताव को लेकर आया है•• बेटा इसे ठुकरा मत शादी कर ले ••!
बहुत कोशिश और प्रयास के बाद जानकी तिलक से शादी करने को तैयार हो गई ।
शादी के दिन
अब मैं जानकी का पिता नहीं रहा••उसकी असली माता-पिता तो आप दोनों हैं इसलिए आप दोनों ही जानकी का कन्यादान करें यह अधिकार आपका रहेगा•••!
त्रिलोक जी हाथ जोड़ते हुए बोले।
अब जानकी और तिलक की शादी मंदिर में कर दी गई ।
कुछ दिन के बाद जब यशोदा जी अपने मायके से आईं तो, तिलक के साथ जानकी को देख ,पहले तो उन्हें बहुत गुस्सा आया•• परंतु जानकी के स्वभाव ने उनका भी दिल जीत लिया•• और उन्होंने भी यह रिश्ता स्वीकार कर लिया••।
अब ऐसा हुआ की जानकी के बिना उसका रहना मुश्किल हो जाता है।
दोस्तों इस सच्ची घटना पर आपकी क्या प्रतिक्रिया है •••?
मुझे जरूर बतायें !
अगर पसंद आए तो इसे लाइक और शेयर जरूर कीजिए।
धन्यवाद।
मनीषा सिंह।