जख्म – खुशी : Moral Stories in Hindi

आरती और विष्णु दोनो अनाथ आश्रम में पल कर बड़े हुए कोई रिश्तेदार ना था न ही उन्हें कोई गोद लेने आया। बचपन से एक साथ पले बढ़े तो विष्णु को जब नौकरी लगी तो उसे वह आश्रम छोड़ कर जाना पड़ा।आरती बहुत रोई बोली मुझे भी ले चलो।विष्णु बोला ६ महीने दो मैं तुम्हे ले जाऊंगा।विष्णु चला गया आरती उसका इतंजार करती ।उधर विष्णु ने २ जगह काम कर कुछ पैसा इकट्ठा किया एक किराए पर कमरा लिया जरूरत का सामान लेकर रखा।अनाथ आश्रम पहुंच कर उसने वहां के मैनेजर से कहा

कि मैं आरती से शादी करना चाहता हूं।आरती और विष्णु की शादी हो गई और मैनेजर ने उन्हें थोड़े पैसे दे कर विदा किया।आरती विष्णु का नया संसार शुरू हो गया।विष्णु फैक्टरी में जी तोड़ मेहनत करता और आरती कपड़े सिलती और आचार पापड़ बना कर बेचती।अच्छी गुजर बसर चल रही थी इसी बीच आरती को दिन रह गए।अब विष्णु ज्यादा मेहनत करता ताकि वो अपना घर बना सके।नियत समय पर आरती ने बहुत प्यारे बेटे को जन्म दिया जिसका नाम अवि रखा अवि उनकी आंखों का तारा था

दोनो मेहनत करते और अवि को अच्छी शिक्षा दिलवा रहे थे।इसी मेहनत से उन्होंने एक दो कमरों का अपना घर बना लिया। धीरे धीरे अवि जवान और मां बाप बूढ़े हो गए अवि की पढ़ाई पूरी हुई और वो इनकम टैक्स ऑफिसर बन गया।वो उस छोटी सी झोपडी से मां बाप को महल में ले गया।आरती और विष्णु बहुत खुश थे कि ईश्वर ने उन्हें ऐसा बेटा दिया घर में नौकर चाकर थे सब सुविधाएं थी पर आरती खुद ही विष्णु और  अवि का खाना बनाती। अवि कहता मां आपने बहुत काम कर लिया अब आराम करो।

आरती कहती तेरी बहु आएगी तो आराम करूंगी। विष्णु अपने दोस्त अमृत की बेटी मेघा को अपने घर की बहु बनाना चाहते थे।पर पहले उन्होंने अवि का दिल टटोला।अवि बोला मां पापा मैं मेरे साथ पढ़ी विद्या से शादी करना चाहता हूँ। सभी विद्या से मिले वो बहुत मिलन सार और खुश मिजाज लड़की थी।परंतु उसके पिता इस रिश्ते के लिए तैयार ना थे वो चाहते थे कि अवि अपने माता पिता से संबंध खत्म कर ले। क्योंकि वो दोनों अनाथ हैं।विद्या बोली पापा उनके बीते वक्त से हमें क्या लेना मै अवि को चाहती हूं उसकी समाज में इज्जत है

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उसके तो अपने माता पिता है।अवि बहुत दुखी था एक दिन वो शराब पीकर आया और विष्णु और आरती से बोला आप लोगों के काले भविष्य ने मेरी खुशियां छीन ली।मै बिना विद्या के मर जाऊंगा।आप अनाथ थे तो वही रहते मेरी जिंदगी क्यों खराब की।यह सब सुन विष्णु और आरती के पैरों से जमीन निकल गई।जिस बेटे के लिए इतना कुछ किया वो उनके बारे मे ऐसा सोचता है।विष्णु जी ने आरती से कहा चलो अपना सामान समेटो हम वापस अपने घर जा रहे है हम अपने बेटे की खुशियां नहीं छीन सकते। विष्णु ने अवि के लिए पत्र लिखा प्यारे बेटे हम जा रहे है अपना सुखी संसार बसाओ हमे मत ढूंढना।हमारी परछाई भी तुम पर नहीं पड़ेगी।

अगले दिन जब अवि उठा तो नौकर ने उसे वो चिट्ठी दी और बोला मां बाबूजी चले गए। अवि ने खत पढ़कर विद्या को फोन किया तुम्हारे पापा को बोलो मेरा मेरे माता पिता से संबंध खत्म हो गया है।अब हम शादी कर सकते है।विद्या बोली तुम पागल हो बिना मां बाप के शादी होती हैं उन्होंने कितने कष्ट से तुम्हे पाला तुम मुझे छोड़ उन्हें अपने पास रखते।अवि बोला विद्या मै तुम्हे बहुत चाहता हूं और इस तरह उन दोनों का विवाह हो

गया। विद्या को लगता की मां बाबा घर में होने चाहिए।पर अवि सख्ती से कहता मैने अपने मां बाप को लोगो से अनाथ कहते सुना है,फैक्ट्री मजदूर आचार पापड़ बनाने वाली का बेटा मैने बचपन में ऐसे शब्द सुने है ।मै अपने बच्चों को यह सब नहीं सुनाना चाहता।विद्या बोली तुम इतनी अच्छी पोस्ट पर हो मै लेक्चरर हु तो हमारे बच्चे हमारे नाम से ही तो जाने जाएंगे।पर अवि समझना ही नहीं चाहता था।

समय बीता विद्या अवि दो बेटों के माता पिता बन गए।

अवि तो पैसा कमाने में व्यस्त रहा।बच्चो को पैसे और सुख सुविधाएं सब दी पर बच्चों को संस्कार ना दे सके।बड़ा बेटा बहुत जिद्दी और बिगड़ैल था वो बात बात मै अवि को उल्टे सीधे जवाब देता चोरी करता। अवि विद्या से कहता कहा कमी रह गई सब कुछ तो दिया फिर भी विद्या बोली जो अपने मां बाप का दिल दुखाते हैं ना भगवान उन्हें सजा देता है।तुमने क्या किया अपने मां बाप जिनका तुम सहारा थे एक लड़की के लिए उन्हें घर से निकाल दिया इतने साल उनकी सुध नहीं ली वो जी रहे है या मर रहे है  उसकी सजा तो इसी जनम में भुगतेंगे। अवि बोला तुम सही कह रही हो मेरा किया मेरे आगे आया है मैने माता पिता का अपमान किया तो सम्मान कहा से पाऊंगा।

पता नहीं वो है भी या नहीं।22साल हो गए इस बात को और अवि रोने लगा।विद्या बोली तुम अपने गुनाह की माफी चाहते हो अवि बोला हा तो फिर चलो।

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विद्या अवि को लेकर एक वृद्ध आश्रम पहुंची।अवि बोला हम यहां क्यों आए है विद्या बोली किसी से मिलवाना है चलो बाहर लॉन में बहुत सारे बुजुर्ग बैठे थे उसमें अवि के ससुर भी थे अवि बोला पापा यहां विद्या बोली पापा को जब पैरालिसिस हुआ था तब तुम जर्मनी में थे उन्हें बच्चों और घर को संभालने में जिन्होंने मदद की वो सामने से आ रहे थे। अवि अपने माता पिता को देख हैरान था वो दौड़ कर गया और उनके पैरों मै गिर पड़ा मां पापा मुझे माफ कर दो मै आप जैसे लोगों का बेटा कहलाने लायक नहीं हूं।विद्या के पापा बोले असली  कसूरवार तो मै हु पर इतना पैसा सब होने पर भी मुझे संभालने यही लोग आए।

दूर से विद्या और अवि के बेटे भी चले आ रहे थे।अवि बोला बच्चे यहां विद्या बोली वो अपने दादा,दादी और नाना से मिलने यही आते है। आरती और विष्णु ने अवि को गले लगाया और माफ किया अवि ने कहा बस अब आप सब घर चलो हम एक साथ रहेंगे।आरती बोली नहीं बेटा हम यही रहेंगे हम पर इन लोगों की जिम्मेदारी है इन लोगों का और हमारा सहारा यही है ।

अवि देख रहा था मां बाप आज भी अपने अलावा दूसरों के लिए कितना कुछ कर रहे है। आज वो अपनी नजरों में गिर गया था।

स्वरचित कहानी 

आपकी सखी 

खुशी

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