महिमा , कल कौन मेहमान आए थे तुम्हारे यहाँ ? मैं तो बुनाई का डिज़ाइन सीखने आई थी पर दरवाज़े पर बड़ी सी गाड़ी देखकर रुक गई , कान से लगाए तो अंदर से बहुत लोगों की आवाज़ आई… बस वहीं से उल्टे पाँव चली गई ।
हाँ… वे अंजलि के पीहर वाले आए थे इसका संक्रांति का सामान लेकर …पर आ जाती ना , बाहर से क्यों चली गई?
अंजलि के पीहर से …..ऐसी कौन सी ये नई- नवेली थी जो गाड़ी भर के लोग आए संक्रांति का सामान लेकर …. बता , मुझे तो हैरानी हो रही ।
अरे ! तुझे तो सुनकर हैरानी हो रही , मुझे तो देख-देखकर हैरानी होने लगी है । जब कभी नई नवेली थी तो ना कभी ऐसी गाड़ियाँ भर के लोग आए और ना ही इतना सामान आया …… अब वे देने वाले बने हैं । उनकी माया को वे ही जानें या अंजलि जाने …. मैं तो किसी को कुछ नहीं कहती , माया ! ला दे ऊन और सलाइयाँ, कौन सी बुनाई सीखनी है?
रसोई में चाय बनाती अंजलि के कानों में सास और उनकी पड़ोसन सहेली की सारी बातें पड़ रही थी । कहने को तो वह जवाब दे सकती थी पर फिर क्या होगा ? कलह- क्लेश , माँजी का बेटे के सामने रोना , हफ़्ता दस दिन पूरे घर का तनावपूर्ण माहौल और अंत में उसे ही समझौता करने की नसीहत मिलना ।
बरसों बीत गए । वह अपने परिवार की सबसे बड़ी बेटी थी । बी० ए० करते ही पापा ने उसका रिश्ता तय कर दिया ।
पापा , दो तीन साल तो रुक जाएँ ना ….कम से कम बी० एड० कर लूँ ?
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अंजलि , तेरे से छोटी दो ओर बहनें हैं बेटा ….. मैं रिटायर होने से पहले तुम तीनों की शादी कर देना चाहता हूँ । फिर राहुल की भी ज़िम्मेदारी है । तू पढ़ना चाहती है तो पढ़ लेना वैसे भी सास खुद नौकरी करती है तो तुझे कोई रोकटोक नहीं होगी ।
पापा की यह बात तो सही साबित हुई । उसकी पढ़ाई को सास- ससुर ने पूरा करवाया और उसे घर के पास ही एक अच्छे स्कूल में नौकरी भी मिल गई ।सास- ससुर और पति ने हर कदम पर उसका साथ निभाया ।
कमी रह गई तो बस ये कि सास को कभी अंजलि के माता-पिता का दिया सामान मन नहीं भाया । वे अपनी तरफ़ से अच्छे से अच्छा देने की कोशिश करते पर सास उसमें भी कोई न कोई कमी निकाल ही देती —-
अंजलि , जो साड़ी मेरे लिए भेजी है तुम्हारी मम्मी ने, मैं तो वैसा चटक रंग पहनती नहीं….. तू रख लें अपनी अलमारी में, कहीं लेने- देने में काम आ जाएगी ।
बता ! तेरी मम्मी ने पैसे भी खर्च किए पर इतने हल्के रंग की साड़ी पहनने लायक़ अभी उम्र ना हुई मेरी ….. रख लें बेटा अपनी अलमारी में, लेने- देने में काम आ जाएगी ।
थक-हारकर अंजलि ने अपनी मम्मी को कह दिया कि सास की साड़ी के पैसे दे दिया करो , अपनी पसंद से ख़रीद लेंगी ।
आज भी अंजलि को अच्छी तरह याद था कि उसकी पहली होली से पहले जब राहुल मायके लिवाने आया तो मम्मी ने गुझिया , ढेर सारे नमकपारे , फल और मिठाइयाँ भेजी पर माँजी ने छोटे भाई से कहा —
बेटा राहुल, बेकार में बोझा ढोकर लाया । इतने से सामान में से क्या तो मोहल्ले- रिश्तेदारी में बँटवाऊँगी और क्या घर में रखूँगी? मुझे तो फिर भी बाज़ार से ही ख़रीदना पड़ेगा….
उसके बाद अंजलि का मन ऐसा खट्टा हो गया कि मम्मी- पापा के ज़ोर देने के बावजूद भी मायके से लौटते समय कुछ लाने का मन ही नहीं करता था ।
मम्मी! माँजी को कुछ पसंद नहीं आएगा, आप क्यों परेशान हो रही है और क्यों बाज़ार में पापा को दौड़ा रही है?
कोई बात नहीं अंजलि, बेटी को ख़ाली हाथ भेजूँगी क्या ससुराल? अपशकुन होता है ।
छोटी बहन के विवाह के बाद तो अंजलि को सास की बातें ओर भी अखरने लगी थी । अनूपा की सास साधारण गृहिणी थी पर बहू के मायके से आई छोटी सी चीज़ के लिए भी मम्मी को फ़ोन करके उनकी पसंद के लिए धन्यवाद देती ।
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एक मेरी सास है कि मम्मी- पापा अपना कलेजा भी निकाल कर दे दें पर इन्हें यही शिकायत रहती है कि हमने तो समधियाने की एक कत्तर तक नहीं पहनी कभी ……. लोगों के बहुओं के मायके से इतना खाने- पीने का सामान आता कि महीने भर तक नाश्ता तक नहीं बनता ……
अंजलि रसोई में खड़ी- खड़ी कुढ़ रही थी और बाहर माँजी सहेली के साथ बैठी अप्रत्यक्ष रूप से उसे कुछ न कुछ सुना रही थी । रात को खाने के बाद बच्चों को सुलाकर अंजलि ने पति से कहा—
ज़रा मेरे साथ माँजी- पिताजी के कमरे में आइए ।
पति यह सोचकर कि शायद माँ ने ही बुलाने को कहा होगा …बिना किसी सवाल के उसके पीछे चल दिया ।
बेटा , तुम दोनों इस समय यहाँ? क्या बात हुई?
माँ, क्या आपने नहीं बुलाया?
माँजी ने नहीं, मैंने आने के लिए कहा था…क्योंकि मुझे कुछ बात करनी है ।
माँ जी- पिताजी! क्या आपको मुझसे कोई शिकायत है? या कभी मैंने आजतक आपका कभी दिल दुखाया है?
क्या बात है अंजलि? आज ऐसी बात क्यों कर रही हो बेटा ?
क्योंकि जितना दिल आज आपने मेरा दुखाया है माँजी, इससे ज़्यादा मैं बर्दाश्त नहीं कर पाऊँगी । क्या मेरे मम्मी- पापा की इज़्ज़त आपकी इज़्ज़त नहीं है……जो आपने माया आँटी के सामने उन्हें क्या-क्या नहीं कहा ।
इतना कहकर अंजलि ने ससुर और पति को आज की पूरी बात बता दी ।
अगर मेरी बात ज़रा भी झूठ हो तो बताइए माँजी!
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महिमा ! मुझे तुमसे ऐसी उम्मीद नहीं थी कि तुम अपनी सहेली के सामने इस तरह घर की इज़्ज़त उछालोगी ? तुम जैसी सास ही तो होती हैं जो शुरुआत खुद करती हैं और बाद में बहू की गलती निकालती हैं । याद रखना ….. जो बहू को दोगी बदले में तुम्हें वही मिलेगा । चाहे प्रेम हो , सम्मान हो या कड़वी बातें … घूमफिर कर सब तुम्हारे पास आएगा ।
माँ, पहले अंजलि के पिता पर तीन लड़कियों और एक लड़के की ज़िम्मेदारी थी , आमदनी बहुत ज़्यादा नहीं थी पर अब सबकी शादियाँ हो चुकी हैं । अनूपा दूर रहती है, अदिति विदेश चली गई । राहुल की अच्छी नौकरी है इसलिए अब खुला हाथ हो गया है । फिर लेने- देने की पहले और अब में क्या तुलना करने लगी हो आप ? यह सब ठीक नहीं है माँ ।
इतना कहकर अंजलि का पति कमरे से बाहर चला गया और उसके पीछे अंजलि भी चली गई ।
अगले दिन सुबह जब अंजलि उठी तो सास को रसोई में देखकर चौंक उठी —
माँजी! आप इतनी जल्दी उठ गई? तबीयत तो ठीक है?
अंजलि, ले मेरे हाथ की चाय पी । सास- बहू के बीच में छोटी- मोटी तकरार तो होती रहती है । अरे बेटा , ये बातें दिल पे लेने की नहीं होती । इसे कहते हैं मीठी तकरार । और रही माया की बात , वो तो मेरी बचपन की सहेली है। सहेलियों के बीच में सारी बातें अच्छी- अच्छी थोड़े ही होती हैं….बहुत सारी अर्थहीन भी होती हैं । रही तेरी मम्मी को फ़ोन करने की बात तो मैं आज ही बात कर लूँगी पर बेटा , बहू के साथ छोटा-मोटा गिला- शिकवा हर सास का अधिकार है और इस अधिकार को तो तू मुझसे नहीं छीन सकती ।
चाय का कप हाथ में पकड़े अंजलि को समझ नहीं आ रहा था कि सास अपनी गलती सुधारने की बात कर रही है, माफ़ी माँग रही है या कुछ ओर इशारा कर रही है । जो भी हो पर मन की बात कह लेने से उसका मन तो हल्का हो ही गया था, सास के प्रति मन की कड़वाहट चाय की मिठास में बह गई थी ।
करुणा मलिक
# घर की इज़्ज़त