परिवार की कद्र – विभा गुप्ता : Moral Stories in Hindi

  ” निशि..रोज तो तुम्हारा अपनी पड़ोसिनों के साथ ही उठना-बैठना होता है..अभी तो माँ-पापा जी के पास बैठो…उनसे बातें करो..।” आनंद निशि पर चिल्लाया।तब निशि भी उसी लहज़े में बोली,” तुम्हारे माँ-पिताजी तो चार दिन रहकर चले जायेंगे…काम तो मेरे पड़ोसी ही आयेंगे ना..।”

  ” पड़ोसी ही काम…तुम्हारा दिमाग तो ठीक..।” बात बढ़ती देख आनंद के पिता ने उसे चुप रहने का इशारा कर दिया। 

       निशि ‘ नवीन टेक्सटाइल ‘ शोरूम के मालिक श्री आत्माराम जी की इकलौती बेटी थी।अपने मित्र के बेटे के बरात में आत्माराम जी ने आनंद को देखा था।आसपास के लोगों ने उन्हें बताया कि एमबीए करके वो दिल्ली के एक मल्टीनेशनल कंपनी में ज़ाॅब कर रहा है।पिता रामस्वरूप जी अध्यापक हैं और माँ सुशीला देवी सुघड़ गृहिणी हैं।

बड़ी बहन जबलपुर के बिजनेस परिवार में ब्याही गई है और पिछले साल छोटी बहन अंजू की शादी भी हो गई है।ऐसा शिक्षित और संस्कारी घर-वर वो हाथ से जाने देना नहीं चाहते थें।इसीलिए पता लेकर वो दो दिन बाद ही रामस्वरूप जी के घर पहुँच गये और अपनी इच्छा बताकर उन्हें सपरिवार अपने घर आने का निमंत्रण दे दिया।

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       आनंद के साथ रामस्वरूप जी जब आत्माराम जी घर गये तो घर की साज-सज्जा और शानो-शौकत देखकर वो दंग रह गये। वो बोले,” आत्माराम जी..इतने बड़े घर की बेटी एक मध्यवर्गीय परिवार में एडजेस्ट नहीं कर पायेगी..आप अपने जैसा सम्पन्न परिवार देखि..।”

” रामस्वरूप बाबू..विश्वास रखिये..हमारी बेटी से आपको कभी कोई शिकायत नहीं होगी।” आत्माराम जी उनके दोनों हाथ अपने हाथों में लेकर बोले तब उन्होंने बेटे की तरफ़ देखा जो निशि के साथ बहुत खुश दिखाई दे रहा था।बस बात वहीं तय हो गई और एक शुभ-मुहूर्त में आनंद का विवाह निशि के साथ हो गया।

         दो दिन ससुराल रहकर निशि पति के साथ दिल्ली आ गई।मन बहलाने के लिये उसने अपने पड़ोसियों जो उसी की तरह ही सम्पन्न थे, के यहाँ जाना शुरु किया और उन्हें अपने घर भी बुलाने लगी।उन्हीं के साथ वो मार्केट जाती और खाना-पीना भी उन्हीं के साथ करती।आनंद घर आते, तो उनसे भी मिसेज़ शर्मा..मिसेज़ धारीवाल इत्यादि महिलाओं की ही बातें करती।

       एक दिन आनंद ने निशि को बताया कि माँ-पापाजी आ रहें हैं..।उनका कमरा ठीक करवा कर पानी वगैरह रखवा देना।सास-ससुर के आने पर निशि ने उन्हें चाय-नाश्ता देकर अपनी ज़िम्मेदारी पूरी कर दी और फिर मिसेज़ धारीवाल के यहाँ चली गई।घर आने पर आनंद ने जब माँ-पापाजी को अकेले देखा तो उसे बुरा लगा और उसने निशि को टोक दिया।

        सुशीला जी समझ गईं कि बहू की अपनी लाइफ़ है।दो- चार दिन रहने के बाद वो पति से बोलीं,” बेटे से मिल लिये..बहू को भी देख लिया..अब खुशी-खुशी वापस चले जाना ही बेहतर है।”

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       कुछ समय बाद निशि एक बेटे की माँ बन गई।बेटे के पहले जन्मदिन पर आनंद ने बड़ी पार्टी रखी..अपने परिवार के साथ-साथ उसने ससुराल वालों को भी बुलाया था।निशि चहक-चहक कर अपनी रंजना भाभी का परिचय मिसेज़ चंद्रा..मिसेज़ धारीवाल इत्यादि महिलाओं से करवा रही थी…अपने सास-ससुर और ननद की तरफ़ बिल्कुल भी ध्यान नहीं दिया।

तब रंजना ने उसे कहा,” निशि..पड़ोसियों के साथ-साथ अपने परिवार की कद्र भी तो करो..उनका भी परिचय कराओ..।” ” उनके लिये आनंद हैं ना…।”  कहकर वो अपने बेटे को लेकर अपनी सहेलियों के बीच चली गई।रंजना ने रामस्वरूप बाबू, सुशीला जी और अंजू का पूरा ख्याल रखा।

     कुछ समय के बाद आनंद का प्रमोशन हुआ..वो नये घर में शिफ़्ट हो गया।निशि ने वहाँ भी अपने नये पड़ोसियों के साथ दोस्ती कर ली..।उसका दो साल का मनु भी उन लोगों के साथ हिलमिल गया था।तब आनंद बोला,” निशि..घर तो सेट हो ही गया है..मैं तीन-चार दिनों के लिये माँ-पापा जी के पास चला जाता हूँ।

” कहकर वो अपने लैपटॉप पर काम करने लगा कि तभी ‘धम्म’ की आवाज़ के साथ उसे निशि की चीख सुनाई दी।वह दौड़ कर गया तो देखा कि स्टूल गिरा हुआ है और निशि ज़मीन पर पड़ी कराह रही थी।पास में बैठा मनु भी रो रहा था।आनंद ने तुरंत उसे सहारा देकर बिस्तर पर लिटाया।मनु को चुप कराकर एंबुलेंस बुलाया और उसे लेकर अस्पताल गया।

         प्राथमिक- चिकित्सा के बाद डाॅक्टर ने निशि के पैरों की जाँच करके आनंद को बताया कि गिरने से इनके बाँयें पैर में चोट आ गई है।दवा के साथ-साथ इन्हें पूरे आराम की भी ज़रूरत है…एक सप्ताह तक चले-फिरे नहीं तो बेहतर होगा।वैसे मैंने क्रेप बैंडेज़ बाँध दिया है..आप इन्हें कल घर ले जा सकते हैं।

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     आनंद सोचने लगा कि अब निशि और मनु की देखभाल कैसे होगी।सास तो रंजना भाभी के मायके गईं हुईं हैं..कल शाम तक आयेंगी..तब तक मनु और निशि कैसे..।तब निशि बोली,”आप मिसेज़ शर्मा और गीता धारीवाल को फ़ोन कीजिये ना..मनु को आराम से संभाल लेगी..मैंने भी तो सप्ताह-सप्ताह उनके बच्चों को संभाला था ना।

” आनंद ने फ़ोन किया तो एक ने कहा कि मेरे यहाँ गेस्ट आये हुए हैं तो दूसरी ने बीमार होने का बहाना बना दिया।बाकी ने ऐसे ही टाल- मटोल कर दिया।तब निशि भुनभुनाई,” सब के सब मतलबी निकली..मीठा-मीठा बोलकर मुझसे काम करवा लिया और अब..।”

    आनंद बोला,” देखता हूँ..कोई नर्स…।” तभी उसके मोबाइल पर अंजू का फ़ोन आया।उसने हैलो कहा तो उधर से अंजू बोली,” भईया..कहाँ हैं..मैं आपके घर के बाहर खड़ी हूँ।” 

     ” क्या..! अभी आता हूँ।” कहकर वो मनु को लेकर घर गया।अंजू ने बताया कि माँ ने भाभी के बारे में बताया।तब ये(पति) बोले,” भाभी को तुम्हारी ज़रूरत है..अंकित को मैं देख लूँगा तो मैं चली आई।उसने मनु के कपड़े बदलकर सुला दिया।

        अंजू को सामने देखकर निशि की आँखें भर आई,” मैंने तो तुम्हारे साथ कभी अच्छा सलूक नहीं किया..माँ-पापा जी के साथ भी..फिर भी तुम..।” 

  ” भाभी..परिवार होते ही इसीलिए हैं..।” कहते हुए अंजू ने अपनी भाभी के आँसू पोंछे और उसे लेकर घर आ गई।उसी शाम निशि की भाभी और माँ भी आ गईं।दो दिन बाद रामस्वरूप बाबू भी पत्नी के साथ बहू को देखने आ गये।

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      ननद और रंजना भाभी के सहयोग से निशि जल्दी ठीक होने लगी।आत्माराम जी बेटी से मिलने आये,” कैसी है मेरी बहादुर बेटी..।”

    ” पापा..मैंने मतलबी पड़ोसियों के पीछे अपने परिवार को नजरअंदाज किया लेकिन उन्होंने तो मेरी बहुत…।” उसका गला भर आया।बेटी के सिर पर प्यार -से हाथ फेरते हुए वो बोले,”#पड़ोसियों और परिवार में यही तो अंतर होता है बेटा..।पड़ोसी की अपनी एक सीमा होती है..घर बदलने के साथ वो भी बदल जाते हैं लेकिन परिवार हमेशा साथ रहता है..बिना किसी शर्त और अपेक्षा के..।” तभी अंजू उसके लिये सूप लेकर आई।निशि बोली,” अंजू..तुम न आती तो…।”

     ” इस बार रक्षाबंधन पर भईया से खूब महंगी साड़ी लूँगी।” अंजू ने बात बदल दी।

   ” हाँ- हाँ.. ज़रूर लेना लेकिन हमें भी तुमसे कुछ चाहिये..।”

     ”  मुझसे क्या..!” अंजू ने आश्चर्य- से पूछा।

   ” अंकित और मनु के लिये एक प्यारी -सी बहन..।”

    ” भाभी…।” शर्माते हुए उसने दुपट्टे से अपने पेट के उभार को छुपा लिया।तभी मिसेज़ शर्मा आईं,” कैसी हो निशि..क्या करुँ..मेरे यहाँ इतने गेस्ट..।” निशि मुस्कुराते हुए बोली,” अच्छी हूँ..मेरी ननद से बातें कीजिये..मैं ज़रा आराम कर लेती हूँ।”

       सुशीला जी और उनकी समधिन बच्चों के साथ खेलने में मगन थी।आनंद बहुत खुश था कि आखिर निशि अपने परिवार की कद्र करना सीख गई।आज उसका घर अपने परिवार और अपनेपन की खुशबू से महक उठा था।

                         विभा गुप्ता 

                      स्वरचित, बैंगलुरु 

# पड़ोसियों और परिवार में यही तो अंतर होता है बेटा

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