अंकल आप ही हमारी सहायता कर सकते हो,आप ही पापा को रोक सकते हो,हमारे परिवार को बचा सकते हो।अंकल प्लीज।
बात क्या है मनीष,बताओ तो?
अंकल कहते हुए शर्म भी आ रही है, पर कहना तो पड़ेगा, पापा पाप करने जा रहे हैं, उन्हें रोकना होगा,मेरी न तो वे सुनेंगे और न मानेंगे।
पहेली क्यो बूझा रहे हो, मनीष साफ साफ बताओ,बात क्या है?
अंकल माँ के स्वर्ग सिधार जाने के बाद से पापा एक बार डांसर के चक्कर मे पड़ गये हैं।अब तक तो उस पर पैसा लुटा रहे थे,अब सुनने में आया है उसे घर मे रखने जा रहे हैं।
क्या कह रहे हो मनीष,रखने जा रहे हैं, इससे मतलब,जयप्रकाश तुम्हारे पिता हैं तो मेरे मित्र भी तो हैं, भई रखने नही जा रहे,शादी कर रहे हैं।
अंकल क्या ऐसी महिला से शादी उचित है?क्या समाज मे हमारी छिछालेदारी नही होगी?
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बेटा, कल को तुम्हारी शादी हो जायेगी, जॉब लग जायेगी,तुम तो चले जाओगे,कल को अकेला रह जायेगा जयप्रकाश।उसने अपने अकेलेपन को दूर करने को कोई रास्ता सोचा है तो तुम क्यो विरोध कर रहे हो?मेरी मानो तो नयी परिस्थिति को स्वीकार करो।
पर अंकल एक बदनाम महिला से शा—द–दी?
ये निर्णय जयप्रकाश पर छोड़ दो।तुम अभी बच्चे हो।
सब बाते सुन मनीष धक से रह गया,वह तो आया था कि योगेश अंकल सहायता करेंगे,सब सुनकर उन्हें अपने मित्र पर क्रोध आयेगा, पर योगेश अंकल तो पापा का ही पक्ष ले,उल्टा उसे ही नसीहत दे रहे हैं।योगेश जी के यहां से निराश हो मनीष अपने घर की ओर विचारो में खोया खोया वापस चल दिया।विचारो का झंझावत उसके मस्तिष्क में चल रहा था।
जयप्रकाश जी नगर के प्रतिष्ठित उद्योगपति थे।उनकी पत्नी यशोदा एक धर्मपरायण स्त्री थी।यही कारण था कि उनके एकलौते पुत्र मनीष में भी माँ के संस्कार कूट कूट कर भरे थे। ऐसा भी नही था कि जयप्रकाश जी बिल्कुल ही उदासीन या निर्लिप्त हों,यशोदा जितने धार्मिक तो वे नही थे पर धर्मपरायणता उनमें भी विद्धमान थी,
तभी तो वे यशोदा जी की धर्मपरायणता में बाधक कभी नही बने।ऐसे वातावरण में मनीष की परवरिश होती रही।मनीष अपनी पढ़ाई के अंतिम वर्ष में था कि उसकी माँ यानि यशोदा जी स्वर्ग सिधार गयी।मनीष चूंकि अब बड़ा हो चुका था और घर मे नौकर चाकर की कमी थी नही इसलिये मनीष की परवरिश में कोई समस्या नही आयी
, पर माँ की कमी थोड़े ही पूरी होती है।मनीष को माँ के निधन के झटका तो लगा ही था और उससे वह उबर पाता कि उसे पता चला कि उसके पिता जयप्रकाश जी किसी बार बाला पर आसक्त है और उससे शादी भी करने वाले हैं।यह सुनकर मनीष भौचक्का रह गया।उसे तो सपने भी विश्वास नही था कि उसके पिता ऐसा कृत्य भी कर सकते हैं।
कॉलेज में अन्य साथी उसकी ओर व्यंग्य दृष्टि से देखने लगे थे।दबे स्वर में उसके पिता के रसिक स्वभाव की बाते भी चटकारे लेकर परस्पर करने लगे थे।मनीष समझ ही नही पा रहा था वह करे तो क्या करे?
तभी उसे पिता के खास मित्र योगेश जी का ख्याल आया,तो उसके मन मे आया कि योगेश जी उसके पिता को उनके कृत्य से रोक सकते हैं।इसी कारण मनीष योगेश जी के पास आया था,पर यहां तो योगेश जी एक प्रकार से उसके पिता के पक्ष में ही खड़े दिखायी दिये।अब मनीष को कोई मार्ग नही सूझ रहा था।
आखिर मनीष ने स्वयं ही अपने पापा से बात करने का निश्चय कर लिया।एक दिन मन को कड़ा कर वह पापा के ऑफिस पहुंच ही गया।जहाँ ऑफिस के बाहर उसे अंदर से सामान्य से अधिक तेज आवाजे सुनाई दी।मनीष वही ठिठक कर रुक गया।वह निर्णय नही कर पा रहा था कि वह ऐसी स्थिति में अंदर जाये या ना जाये।
अंदर से आवाज आ रही थी उसके पापा कह रहे थे योगेश मुझे तुमसे ऐसी उम्मीद नही थी,अरे तुम मेरे दोस्त थे,मुझसे कहा तो होता तू जितना कहता पैसा मैं तुझे दे देता,पर ऐसा घिनौना खेल तो मेरे साथ ना खेला होता।उस कंचन के साथ मिलकर मुझे ही फंसा लिया।बता फिर ये हनी ट्रैप क्या होता है,
मेरी बुद्धि भी खराब हो गयी थी,हे भगवान मैं क्यूँ बहका भला, क्यों मुझे अपनी मान मर्यादा का भी ध्यान नही रहा, क्यूँ मैं मनीष को ही भूल गया?ओह कैसे प्रायश्चित हो पायेगा?वह तो अच्छा हुआ मैंने तुम्हारी और कंचन की बाते सुन ली तब पता चला तुम तो आस्तीन के सांप हो।
योगेश ने बोलने का प्रयत्न किया ही था कि जयप्रकाश जी योगेश पर बिफर कर बोले बस योगेश तुम्हारा मेरा साथ यही तक था,नमस्ते अब तुम जाओ यहां से।मनीष एक ओर खड़ा होकर योगेश को मुँह लटकाये जाते देख रहा था।मनीष ऊपर की ओर देख वापस घर की ओर चल दिया।
बालेश्वर गुप्ता,नोयडा
मौलिक एवम अप्रकाशित
#घर की इज्जत साप्ताहिक विषय पर आधारित कहानी: