पति के जाने का दुख साझा होता है – शुभ्रा बैनर्जी : Moral Stories in Hindi

चार साल होने वाला था कल अमित को गए।भाग्य की विडंबना थी कि अमित की लाड़ली छोटी बहन के पति भी पिछले साल चल बसे हार्ट अटेक से।

छोटी ननद ने फोन पर बताया था” भाभी,जीजाजी नहीं रहे।”सुनकर सन्न रह गई थी सुमन।दिल की बीमारी तो थी उन्हें,पर इतनी जल्दी चलते-फिरते चले जाएंगे,सोचा नहीं था कभी।अमित की अपनी बहन सुमिता से काफी बनती थी।दोनों की आदतें भी एक जैसी ही थीं। छोटी-छोटी बातों का बतंगड़ बना देते थे दोनों।भाई की ग़लती पर वो सुना देती मुंह पर,और उसकी गलती पर भाई डांटना शुरू कर देता था।अपने जीजा से भी अमित की अच्छी बनती थी।

अमित की मृत्यु की खबर ख़ुद उनकी बेटी ने ही दी सभी रिश्तेदारों को।बड़ी और छोटी बुआ आए भी।दुख की इस घड़ी में बच्चों को अपनी बुआ से कोई भी सहारा नहीं मिला।पास -पड़ोस के लोगों ने अपनों से बढ़कर हमारी मदद की थी।गंगा जी में अस्थियां विसर्जित करने गए थे दोनों बच्चे।घर में कोई नहीं था। सिर्फ सुमन और सास(अमित की मां) ही थे घर पर।सभी अपने घर निकल गए।

उस दिन को गुजरे दो साल ही बीते,तभी सुमिता के पति भी गुजर गए।सुमन से पूछा बेटे ने”, क्या करना है मां?जाना चाहिए या नहीं?”सुमन ने तुरंत कहा”मन बड़ा करना हमेशा।आज अगर तुम्हारे पापा होते तो बहन के घर जरूर जाते,।तुम ही अब बुआ के मायके का आधार हो।जरूर जाओ।”बेटे ने भी संकट के समय में पहुंचना सही समझा।सुमन हमेशा कहा करती थी पति और बच्चों से,कि अपना दिल बड़ा रखो,इतना बड़ा कि बैर,दुश्मनी,लांछन,जलन छंट जाए ।

बेटा सुबह चार बजे ही हस्पताल पहुंच गया था।उसे देखकर बुआ लिपटकर रोने लगी।रोती हुई बुआ को देखकर सीने से लिपटा लिया बेटे ने,और बोला,”बुआ बस,अब मत रो।तुम्हारे पास तीन बेटे हैं।एक दादा(नन्द का बेटा),एक छोटी बुआ का बेटा,और एक मैं।तुम्हें रोने की कोई जरूरत नहीं।फूफा जी की बहुत सेवा की तुमने।

चलो अब मेरे साथ अपने मायके।मां और भाभी के साथ रहोगी कुछ दिन तो अच्छा लगेगा।”,सुमिता बुआ ने अचरज से पूछा”मां और भाभी?”बेटे ने हंसकर कहा”हां बाबा दादी(तुम्हारी मां)और मां मेरी( तुम्हारी भाभी।तुम रहो आराम से।”भतीजे की बात सुनकर बहुत रोई सुमिता।

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उस समय तो ज्यादा कुछ नहीं कह सकी,पर जब बेटे की जिद के आगे हारकर सुमन के पास पहुंची तो पहली बार गले से लगाकर खूब रोई। रोते-रोते बोली”भाभी,हम दोनों ने अपना सुहाग खोया है।हम दोनों के दुख एक हैं।मैं तब रुक सकती थी तुम लोगों के साथ,पर मन में बैर टीसता रहा ना रुकने को।

सोचा तो था मैंने कि तुम बेटे को नहीं भेजोगी,मेरे पास।पर मेरा भतीजा तो अपने दादा का दाहिना हांथ बन गया।इसके आने से मुझे शरमिंदगी हुई,कि मन छोटा होता जाता है हम बेटियों का। बात-बात पर घरवालों को ताने देतें हैं।हमें लगता है कि मायके में किसी को हमारी फिक्र  ही नहीं है।

पर भाभी,तुम्हारा दिल बहुत बड़ा है।मैं ना तब रूकी,ना ही कभी बरसी में आ पाई।तुमने यह बात अपने दिल पर जमने नहीं था।तुम्हारा दिल बहुत बड़ा है।काश ,दादा के रहते मैं अपने मन के बैर को खत्म कर पाती।मुझे माफ़ कर दो भाभी।”

सुमिता मन से बहुत दुखी थी,पर भाभी का समय-समय पर उनके पास चाय लेकर जाना, बीच-बीच में सूप या जूस देना ,उसके पति के बारे में अच्छी बातें करना,दवा का काम कर रही थी।

एक सप्ताह के बाद ही नन्द के बेटे के काम की वज़ह से ननद और बेटे को वापस जाना पड़ा।उनका बेटा बहुत ही सभ्य था।जाते हुए मामी के गले से लिपटकर बोला था वह”मामी,तुम्हारे पास तो जादू की छड़ी है।कितना दुख अकेले झेली,हम सब समय पर आ नही पाए,हम हमेशा मन में पिछले बैर को पाल- पाल कर इतना छोटा कर लेते हैं अपना मन,कि रिश्ते नाते सब दूर हो जातें हैं।तुमने सारे बैर,गुस्सा ,दुख विसर्जित कर दिया मामी,संगम में।तुम परिष्कृत हो गई और हम लोग मैले ही रह गए।प्लीज़ मामी,हमारे मन को भी शुद्ध करो ना।”

सुमन ने भानजे को सीने से लगाकर कहा”मैं कोई योगी या आचार्य थोड़े हूं,मैं साधारण सी औरत हूं,जो मां है,टीचर हैं,मामी है,मौसी है,भाभी है,नन्द है।इतने सारे रिश्तों को बनाए रखने के लिए अपना दिल तो बड़ा करना ही होगा।और मजेदार बात सुन,रिश्ते में भी सबसे बड़ी हूं,तो दिल बड़ा ही करना होगा।।”

“ओके मामी,अब हम चलते हैं,।अगले साल मम्मी को लेकर ज्यादा दिन रहेंगे अपने मम्मी के मायके,जहां तुम जैसी भाभी है।”सुमन की आंखों में आंसू थे,पर खुशी के।

शुभ्रा बैनर्जी 

बड़ा दिल

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