“सुदर्शन सुदर्शन पिताजी पिताजी की साँस नही चल रही है डाक्टर भी आने वाले हैं।मुझे समझ नही आ रहा क्या करूं?मम्मी और मैं अकेले ही हैं ।”
फोन पर रोते हुए शीतल ने अपने भाई को बात बताई
“अरे मैं अभी निकल रहा हूँ दीदी आप चिंता मत करो सुबह तक पहुंच जाऊँगा। “
सुदर्शन ने ढांढस बाँधते हुए दीदी की कहा।और फोन बंद करके तुरंत बाॅस के के केबिन में गया और सारी बात बतायी।
बाॅस बोला
“ओह साॅरी ठीक है। चलो आजकल तो तुम लोग सीधे बाॅस को बोल सकते हो और बाॅस भी मेरे तरह दयालु है तुम्हें पता है मेरी सगी बुआ जब गयी थी तो मैं नही गया था ये तो तो भी तुम्हारे दीदी के ससुर हैं।”
इससे आगे बाॅस कुछ और अपनी कहानी सुनाते सुदर्शन ने कहा
” सर आप अपने रिश्ते नही निभा पाये तो इसमें गलती किसकी है वैसे भी मेरी दीदी अकेली रहती हैं सास ससुर के साथ ।जीजा जी बच्चे बाहर हैं। सबसे
पास मैं ही हूं। “
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बाॅस कुछ ना बोल पाये ।सुदर्शन बुलेट की स्पीड से निकला और कड़कड़ाती ठंड में रात को बस पकड़कर रवाना हो गया।पूरे रास्ते दीदी का ख्याल रहा मनमें कि कैसे कर रही होंगी अकेली घर में कोई आदमी भी नही सारे रिश्तेदार दूर रहने वाले पड़ोस के नाम पर दो चार घर ।अपना पूरा जीवन सास ससुर की सेवा में लगाया
और बच्चों को बनाया बच्चे सब विदेश भेजे पढ़ने के लिये।और भी कितने त्याग किये पूरे कुनबे में सबसे ज्यादा पढ़ी लिखी है उसकी दीदी।यही सब उनकी बातें सोचते हुए उसकी कब आँख लग गयी रोडवेज बस में पता ही नही चला फिर कुछ समय बाद अचानक से ब्रेक मारे ड्राईवर ने सुदर्शन दो झटके खाकर सीट के नीचे टपके आम की तरह गिर पड़ा
“अरे यार बिल्कुल जाहिल आदमी हो क्या ड्राईवर अभी हमारी कपाल क्रिया हो जाती।”
ड्रायवर बोला
“अगर ना मारते ब्रेक तुम सीधे यमराज के भैंसे साथ चारा खाते हुये नजर आते।”
सुदर्शन ने साॅरी बोल के मामला रफा दफा करने में ही भलाई समझी।
सुबह चार बजे जाकर बस लगी घने कोहरे में सुदर्शन को अपना हाथ ना दिखे वो ओटो देख रहा था।कुछ समय बाद ओटो मिला और घर पहुंच गया घर का नजारा कूलिंग चेम्बर में उसकी दीदी के ससुर का शव रखा था ।चार औरतें दीदी और उनकी सास के पास बैठी थी सुदर्शन को देखकर दीदी लिपट ओर रोने लगी सास भी बेसुध सी थी।
सुदर्शन बहुत ही प्रैक्टिकल बंदा था हर चीज की तर्कशीलता के पैमाने से कहकर देखता लेकिन ऐसी स्थिति में उसका ह्रदय विचलित हो उठा भले उम्र अस्सी की थी लेकिन जो आत्मा उस शव में विधमान थी वो अजर अमर थी।बहुत सारे पुराणों और सांईस का प्रभावकारी अध्ययन करने के पश्चात सुदर्शन इस शाश्वत सत्य को जानता हुआ भी विचलित हो रहा था।
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इतने में मोहल्ले की औरतें आयी और “हाय बहनजी ये क्या हो गया हाय बहन जी यह क्या हो गया “
अब सासु माँ के आंसू रो रोकर सूख चुके थे गला रूंध चुका था आवाज खराब हो चुकी भूखी प्यासी विलाप के कारण अब वो और रोना शुरू कर दी।इतने में एक दादी बोली ।
“अरे अब रहन दे री काहे तबियत खराब कर रही हाल बेहाल कर रही तूने और तेरी बहू ने जितनी सेवा की दो साल से ये बेड पर पड़े थे कोई ना करता आजकल कोई नर्स ना रखी अब और पीड़ा से मुक्ति हो गयी इनकी भी अब तू परिवार संभाल तू निस्तेज हो जायेगी तो यह बालक कैसे करेंगे”
सुदर्शन का तर्कशील मष्तिष्क को बात बिल्कुल जँची और सासु मां को दिलासा दिया। कुछ समय बाद लोग आने शुरू हो गये सारे नाते रिश्तेदार हर रिश्तेदार के आने पर फिर विलाप और तेज होता। सुदर्शन ने देखा की ठंड बहुत हो रही लोग इकठ्ठे हैं सबके लिये दौड़कर बाहर से चाय बनवा के लाया और पिलायी चाय मिलते ही एक अम्मा बोली “अरे अमृत मिल गयो वर्ना तो लग रिया था भाईसाहब के साथ मोयन भी मोक्ष मिल जावेगा”
अब सबने घूघंट नीचे कर लिये कंधे फड़कने लगे।
सुदर्शन चाय लेकर बाहर बैठे आदमियों को देने लगा
इतने चाय कि सिप मारता हुआ लगभग मोक्षधाम जाने को तैयार वृद्ध बाबा बोला “कौन से वाले मरघट ले जावोगे लकड़ी वाले या वह आजकल लाईट वाले भट्टी के ।बताओ का का चल गया है आजकल एक बार में मुर्दाडाल दो दस मिनटमें हड्डी तैयार “
इतने पीछे से एक शरारती तत्व बोला “बाबा तुम कौन से में जावोगे”
यह बात सुनकर सब उस गमगीन माहौल में मुस्करा गये।
तैयारियां होने विमान सजने लगा भागदौड में मौहल्ले के लड़के को पकड़कर सुदर्शन सारा सामान ले आया था। दुकान वालों ने भी अर्थी पैकेज बना रखे थे कि बढिया वाली बाँस लकड़ी हल्की सोवर डिस्काउंट के साथ इतने की और ये उतने की।यह देखकर सुदर्शन सोचने लगा सुविधा के साथ आजकल मानवता भी मर गयी।
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अब सब कुछ तैयार था फिर एक बोला अरे वो आजकल मुक्ति वाहन आ गये हैं घर तक आ जायेगा अर्थी ज्यादा नही उठानी पड़ेगी अब यह सुनकर सुदर्शन का खून उबाल मार पड़ा वो चीखकर बोला
“जिसे कंधा देने शर्म आ रही है जो तुम गली पार कराने में मरे जा रहे हो जाओ भागो यहाँ से करने क्या आये यहाँ फिर नही उठाना मत उठाओ मैं खुद ले जाऊंगा उठाकर “
यह सुनकर सारी औरतें जोर जोर से रोने लगी आदमियों तुरंत प्लान कैंसिल करा कंधे पर रखा और चल दिये श्मशान की ओर।अब हर किसी को “राम नाम सत्य ” बोलने में शर्म आ रही। तो पड़ोस में रहने वाले बारह वर्षीय बालक ने तेज आवाज में बोलना शुरू किया तब जाके लोगों ने सुर में सुर मिलाये बाबूजी बहुत दुलारते थे उस बालक को।
सब श्मशान पहुंचे शव को एक चबूतरे पर रखकर अर्थी सजाने की तैयारी करने लगे अब कुछ लोग कंडे लगा रहे कुछ लकड़ियाँ और कुछ मुंह से आहुति दे रहे थे ज्ञान की “अरे यार ऐसे ना लगते कंडे पता भी है कुछ खड़े लगाओ खड़े ये देखो पट लगाये रहे यार हद है “इतने में एक बोला चाचा तुम आजाओ तुम्हे बहुत एक्सपीरियंस है लगा लो खुद ही “वहाँ तकरीरें और तकरार दोनों शुरू हो गयीं।
सुदर्शन बोला “हद है तुम लोग चिता पर भी लड़ लो”
सब कुछ तैयार हो गया ससुर जी को रखा गया फिर एक बोला “अरे सीने भारी लकड़ी रखियों से जब हमारी सास मरी तो कोई भूल गया और अग्नि दे दिये थे ।सासु माँ आधी जली बैठ गयी आधे तो भाग लिये एक दो बेहोश हो लिये वो तो डोम ने कारण बताया तो रूके”
सब ठहाके लगा रहे मुंह दबाकर
जलती चिता के बीच तेरहवीं का मेन्यू डिसाइड होने लगा हलवाई डिसाइड होने लगा फिर सुदर्शन को लगा व्यापार ही एक ऐसी चीज है जिसे निर्मोही कहा जा सकता है जन्म से लेकर मरण तक।
इतने में दूर का इक रिश्तेदार आया और विलाप करने के बाद एक भाईसाहब को साईड में जाकर बोला
” यार ठंड बहुत है बोतल मिलेगी क्या आसपास दो तीन घंटे काटना मुश्किल हो जायेगा”
सुदर्शन बस देखता ही रहा और सोचा यही है इस संसार का सत्य।सबको अपनी पड़ी जो चिता पर पड़ा वो बस बाबूजी से डेड बाॅडी कहलायी जा रही। उस परम तत्व आत्मा के निकल जाने के बाद।
लौटते वक्त श्मशान की एक दीवार पर लिखा था।
“इतनी मेहनत पूजीं इसी दिन के लिये तूने खड़ी करी तैयार
आजा मै ही हूँ परम परमात्मा की गोद सत्य तेरा मोक्ष द्वार”
-अनुज सारस्वत की कलम से