“पापा कल पीटीएम में आप मेरे साथ चलोगे।
मम्मी को इंग्लिश बोलना आता नही है और जब हिंदी में बात करती हैं तो मुझे अच्छा नहीं लगता। मेरी सभी सहेलियों की मम्मी इंग्लिश में बात करती है तो मुझे अपमान सा महसूस होता है”
पाखी बेरुखी से बोली
दरवाजे के बाहर खड़ी सौम्या ने सब सुन लिया और सोचने लगी क्या इंग्लिश बोलना ही आजकल का हुनर है ? हिंदी हमारी राष्ट्र भाषा है ये बच्चे जानते हुए भी मानते क्यों नहीं ? क्यों इंग्लिश नही बोलने वाले के हुनर को कम आंका जाता है? सोचते सोचते वो अपने अतीत में चली गई
जब हिंदी हमेशा से ही सौम्या का प्रिय विषय रहा था और बचपन में वो सोचती थी कि बड़े होकर हिंदी की अध्यापिका बनूंगी पर जब बड़ी हुई हकीकत कुछ और ही थी क्योंकि गांव से शहर का माहोल बिलकुल जुदा था। जिसे देखो वो अपने बच्चे को इंग्लिश स्कूल में दाखिला दिलाने की जद्दोजहद में लगा हुआ था
मानो जैसे हिंदी स्कूल में एडमिशन करवाना कोई गुनाह हो फिर चाहे स्कूल की फीस पहुंच से बाहर ही क्यों न हो। क्योंकि सौम्या पढ़ने में होशियार थी तो अच्छे स्कूल में दाखिला तो हो गया पर इंग्लिश नही बोल पाने की वजह से कभी उसकी अलग पहचान नहीं बन पाई। नौकरी के लिए आवेदन किया तो वहां भी इंग्लिश बोलने वाले को प्राथमिकता दी जा रही थी इसलिए उससे कम अंक प्राप्त करने वाले लोग भी आगे निकल अपनी पहचान बना चुके थे,
और सौम्या खुद को अपमानित महसूस करती।
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उसका हौसला कम पड़ गया और उसने कम बोलना शुरू कर दिया ये सोचकर कि हिंदीभाषी को कोई नही पूछता ।
इसलिए उसने बच्चों का एडमिशन भी अच्छे इंग्लिश स्कूल में करवा दिया यही सोचकर कि बच्चे शहर में रहते हैं,पति की बैंक में अच्छी नौकरी है , किसी चीज की कोई कमी नहीं तो बच्चों को अच्छी शिक्षा दिलाने में कोई हर्ज नहीं । उसकी तरह कम से कम वो तो इंग्लिश बोलने में नहीं हिचकिचाएंगे
पर जब आज पाखी ने उसका पीठ पीछे ऐसे अपमान किया तो वो निराश हो गई और खुद को कोसने लगी कि क्यों कभी भी इंग्लिश बोलना नहीं सीखा , क्यों बच्चों के लिए अच्छी मां नहीं बन पाई? आज भी वो पाखी को डांटने के बजाय खुद को कोस रही थी
उसने पाखी से तो कुछ नहीं कहा पर मन ही मन दुखी ज़रूर थी और उसकी ये हालत पति राजेश से नहीं छुपी
जब रात को उसने सौम्या का उतरा चेहरा देखा तो पूछा
” क्या हुआ सोनू आज फूल की तरह खिलने वाली मेरी पत्नी मुरझाई क्यों है?”
सौम्या ने सुबह का सब हाल कह सुनाया
“अरे पागल पाखी तो बच्ची है वो तो ऐसे ही बोल रही थी
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तुम भी न कितना सोचती हो।”
“नहीं राजेश मुझे हिंदी को लेकर हमेशा ही अपमान सहना पड़ा है
बचपन से अभी तक
पर मुझे हिंदी से लगाव है । मुझे नहीं लगता हिंदी बोलना कोई शर्म की बात है पर पता नहीं आजकल सभी को इंग्लिश बोलने वाले लोग पसन्द आते हैं।”
“हां तो किसने कहा तुम हिंदी को छोड़ो बल्कि मैं तो कहता हूं तुम कुछ ऐसा करो कि बच्चे भी मान जाए हिंदी में कितना दम है।”
सौम्या को राजेश की बात समझ आ गई और उसने अपने अपमान को ही वरदान बनाने की ठान ली
उसने मन ही मन अपनी कमजोरी( हिंदी बोलना) को अपना हुनर बना लिया और अपने शौक ,लेखन को समय देने लगी।
जब भी समय मिलता कहानी,कविताएं लिखने लगी।
कई साहित्यिक मंचों से जुड़ गई। पत्र पत्रिकाओं में प्रतियोगिता में अपनी कहानी भेजने लगी।
कुछ समय बाद
न्यूजपेपर में आर्टिकल , मासिक पत्रिकाओं में उसकी कहानी फोटो के साथ छपने लगी
और जब उसका पहला आर्टिकल फोटो के साथ अख़बार में छपा तो उसकी हिंदी लेखनी ने सबकी बोलती बंद कर दी और उसने आत्मविश्वास के साथ बोलना और लिखना शुरू किया। कई मंचों ने उसकी लेखनी को सराहा और विजेता बनाया और उसे एक हिंदी लेखिका के नए नाम से पहचान दिलाई
कई साहित्यिक मंचों पर उसकी लेखनी ने सफलता के झंडे गाड़ दिए ।
सौम्या के दोनों बच्चे पाखी और प्रसून भी अब मम्मी को पी टी एम में ले जाने के लिए उत्सुक रहते थे और शान से अपनी लेखिका मां का परिचय टीचर को देते थे।
सौम्या ने बच्चों को सिखा दिया था कि हिंदी बोलने में कोई अपमान नहीं होता बल्कि हिंदी भाषा तो हमारे लिए एक वरदान है क्योंकि ये दिल की भाषा है , अमीर गरीब सारे वर्ग की भाषा है। ये हमारी राष्ट्र भाषा है जो अनेकता में एकता का पाठ सिखाती है।
स्वरचित और मौलिक
निशा जैन