हर्षाली की शादी नई नई एक ऐसी परिवार में हुई जहां की परंपरा लोगों की सोच और खान-पान बिल्कुल अलग था। इसलिए हर्षाली के लिए सब कुछ अजीब और नया था। इसी नए माहौल में उसने कुछ और भी महसूस किया । हर बात में बेटी पर अधिक ध्यान देना उसकी हर बात सुनना ये सब हर्षाली के लिए बहुत अजीब था।
हालांकि की हर्षाली की नन्द की शादी हो चुकी थी । पर हर्षाली की सास ( सुधा) घर की छोटी सी छोटी बात अपनी बेटी को बताती । वह हर्षाली को कुछ नहीं समझती थी । उनकी बेटी की सब खुश थी । उनकी बेटी घर के लिए जो कहती वही होता । उसके इस व्यवहार से घर और रिश्ते दोनों बदल रहे थे। वह सारा दिन अपनी बेटी से फोन पर बात करती
और हर्षाली को अपनी मां से ज्यादा बात करने के लिए मना करती थी ।सुधा जी हर बात पर बेटी का ही पक्ष लेती क्योंकि उनकी आंखों पर ममता की चर्बी जो चढ़ी थी । कुछ
दिनों बाद हर्षाली और उनके बेटे में तलाक हो गया , क्योंकि सुधा जी अपना घर ना करना देखकर बेटी को तव्वजों दे रही थी । एक दिन बेटी की अपने परिवार में लड़ाई हो गई और वो कुछ समझने की बजाए, वह अपना घर छोड़कर पीहर में रहने आ गई ।
अब फिर से घर पर बेटा और बेटी थी। सुधा जी को एहसास हुआ कि उन्होंने दोनों घरों को बर्बाद कर दिया काश समय रहते हुए मैं अपनी आंखों में जमी चर्बी को हटा लेती । तो जिंदगी में ये दिन नहीं आते ।
डॉ रूपाली गर्ग