मम्मा…मम्मा सुनो तो मुझे वो रंग बिरंगी टाॅफी खानी है…जो सामने फुटपाथ पर पान की दुकान पर रखी थी । बंटी, माँ के साथ स्कूल जाते वक्त उन्हें देखकर खाने के लिए मचलने लगा…शायद वो उनका स्वाद चख चुका था तभी दुबारा खाने को इतना लालायित नजर आ रहा था ।
मम्मा ऽऽ ये बहुत टेस्टी होती हैं यम्मी.यम्मी …खट्टी-मीठी अनेक बार दोस्तों ने शेयर की, मैंने टेस्ट की है दिलवा दो न मैं भी बच्चों संग इनको शेयर करूंगा ।
नहीं बिल्कुल नहीं…बबिता चिल्लाई.. बंटी पिटाई हो जायेगी तुम्हारी…ये सस्ती टाफियां गंदे बच्चे खाते हैं इनको…. हम हाई सोसायटी से है तुमको ये शोभा नहीं देती …
टाफी तो एक छोटा सा उदाहरण है…..भला बंटी की मम्मा बबिता के सर पर तो हर जगह स्टेटस का भूत सवार उसकी ही “आंखों पर चर्बी चढ़ी” थी ..हर जगह चाहे खरीददारी हो या दिखावा हर जगह अपना स्टेटस उसके अंदर तो अहंकार घर किए रहता था वह सदा स्वयं को दूसरों से बेहतर…सबसे अलग मानने की भावना से ग्रसित रहती,
उसके लिए तो हर बात में ‘मैं को सामने रखने की लालसा रहती जो भावना बच्चे की भावना, खुशी, संतुष्टि रिश्तों व सम्मान से वंचित कर रख देती है। आखिर आदतन बबिता ने बंटीं को सबसे महंगी चाकलेट दिलवाकर ही दम लिया…कहा ले जाकर दोस्तों से शेयर कर ले कह देना हम नहीं खाते वो सस्ती गन्दी टाफी….!!!!
रोज़ रोज़ एक ही स्वाद, परेशान हो गया बंटी ऐसी चाकलेट खा खाकर उसका मन उकता गया था मन तो उसी रंग-बिरंगी में अटका सा रह गया । और ‘मांँ बबिता के आंँखों पर जो स्टेटस की चर्बी चढ़ी थी आखिर उसकी वै भावना अहंकार नहीं तो और क्या है….?उसके अपने इस अहंकार में रहने के दुष्परिणाम भी सामने आने लगे।
मम्मा बबिता का अहंकारी स्वभाव हमेशा सामान्य बात दूसरों से प्रशंसा पाना स्वीकृति की मोहर लगवाना, सदा उसी में चिंतित रहना,हर बात पर दूसरे बच्चों से उसकी तुलना करना…क्योंकि वह बंटी को किसी भी कीमत पर कमतर नहीं दिखाना चाहती थी । हमेशा पैसे के प्रदर्शन के साथ अपने को हर क्षेत्र में प्रदर्शित करनी की उसकी कोशिश रहती….
जबकि हर की एक सीमा होती है.. चाहे वह धन दौलत, शौहरत,पद या प्रतिष्ठा कोई भी क्षेत्र क्यों न हो..? बबिता तो चाहे पढ़ाई हो या कुछ अन्य बढ़-चढ़ कर बोलने की कोशिश में ही रहती .यह.सब देख कर दूसरे बच्चे बंटी से असंतुष्ट रहने लगे।
और यह भावना बंटी को दूसरे बच्चों की नजर से अलग करके रख देती है।वह असंतुष्ट और शंकित रहने लग जाता है। मित्रों से वंचित एकाकी जीवन जीने को अभिशप्त होता है.. अनेक बार बच्चे उसका मजाक भी बनाते। वह अनुभव से लाभ उठाने की कोशिश नहीं करता …. चापलूस बच्चों से ही घिरा रहने लगा जो कमियों को दूर नहीं करते ।
माँ की देखा-देखी, धीरे- धीरे वो भी अपनी माँ के नक्शे कदम पर चलने लगता है । उसको अनेक मनोदैहिक व्याधियां घेरने लगती है।वह अन्य बच्चों से तालमेल नहीं बैठा पाता और घर परिवार से माता पिता से कटा-कटा सा रहने लगता है।
वह सदा अधिकाधिक पाने के लिए लालायित रहता, दूसरों को दिखावे व रोब जमाने के लिए हर चीज की कामना करता, दूसरों की मदद लेने में परहेज करता और सदा अहसान करने के चक्कर में ही रहता ।
बंटी वर्तमान में न रहकर बीते समय में विचरण करने लगा और भविष्य योजनाओं को बनाने में लगा रहता । उसको भी सदा यही दम रहता मैं उत्कृष्ट हूँ…इसी चाह में अहंकारी व जिद्दी बच्चा बन कर रह गया वह अल्पज्ञ अनुभव हीन बन गया । जिससे माँ बबिता परेशान रहने लगी।
अब बबिता के पास मनोचिकित्सकों के पास चक्कर काटने के सिवाय और कोई चारा नहीं रह गया था।
चूंकि अहंकार में रहना एक दुर्गुण है मनोरोग है जिसका प्रभाव भी नकारात्मक ही होता है…हमेशा अपने को एक पूर्जे के समान समझना चाहिए ऐसा पूर्जा जो अन्य पूर्जो के अभाव में अस्तित्व हीन ही रहता है।
लेखिका डॉ बीना कुण्डलिया
8 .1. 2025
अहंकार में रहना लघुकथा
(#आँखों पर चर्बी चढ़ना)