‘अमिता, मेरी नीली कमीज प्रेस नहीं की? कल सुबह तुम्हें बोलकर घर से निकला था। आज मेरी प्रेजेन्टेशन है।मुझे वही कमीज पहननी थी।पता नहीं तुम्हारा ध्यान कहाँ रहता है?’
ओह सॉरी,भुवन! दरअसल कल कपड़े प्रेस करने के लिए समय ही नहीं मिल पाया। मैं अभी प्रेस कर देती हूँ।
‘समय नहीं मिल पाया ?? बाई- द- वे तुम करती क्या हो सारा दिन ? सफाई- बरतन काम वाली कर जाती है। कपड़ों की धुलाई के लिए मैंने तुम्हें फुली ऑटोमैटिक वाशिंग मशीन लेकर दी है। कहो तो किचन के लिए एक रोबोट भी ला दूं ?’ भुवन के कटाक्ष से कमीज प्रेस करती अमिता की आँखों में आंसू आ गए। किंतु, भुवन की प्रजेंटेशन का ध्यान आते ही उसने प्रेस की हुई कमीज भुवन को पकड़ाई और भीगी आँखों से किचन में चली गई।
भुवन के ऑफिस के लिए निकलते ही उसने भारी मन से अपने लिए चाय बनाई। चाय पीते समय भी भुवन का कटाक्ष उसे तकलीफ पहुंचा रहा था, ‘क्या, घर की सफाई और बरतन साफ करने के अलावा घर में और कोई काम नहीं होता है? नाश्ता, लंच, शाम को बच्चों के फरमाइशी स्नैक्स,डिनर का प्रबंध,किचन का सामान लाने की व्यवस्था, सब्जी-फलों की खरीददारी, घर का रखरखाव, बच्चों का होमवर्क क्या समय नहीं लेते ? वाशिंग मशीन में कपड़े क्या स्वयं चलकर चले जाते हैं ?
जितनी बैड शीट्स उतरेगीं, उतनी बिछानी भी तो पड़ेगीं। मशीन से कपड़े निकलकर क्या स्वयं ही सबकी अलमारियों में चले जाते हैं ? पर ये पुरुष घर में रहकर ये सब करें तो इन्हें अहसास हो न ? इन्हें तो घर में सब कुछ तैयार मिलता है न ! अब के निकले भुवन रात सात बजे के बाद घर वापिस आएंगे। काश ! ये हम स्त्रियों की स्थिति को समझ पाते ?
तभी परेशान अमिता के मन में एक ख्याल आया कि काश ! मेरे पास कोई ऐसी ‘सुपर पावर’ होती जो चाहे दो ही दिनों के लिए क्यों न सही पर भुवन को स्त्री बना देती और मुझे पुरुष।
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वाउ! कितनी मजेदार कल्पना है…’मैं’ भुवन और ‘भुवन’ मैं। फिर तो मैं भी भुवन पर अपना खूब रौब झाड़ती। न घर के काम की कोई चिंता न बच्चों के नखरे उठाने की सरदर्दी। नाश्ता, लंच, डिनर सब बना बनाया मिलता। कपड़े धुले एवं प्रैस किए मिलते। सुबह बन ठन कर निकलो और रात को घर की खातिरदारी के पश्चात आराम से सो जाओ।
न बच्चों को सुलाने की चिंता न सुबह जल्दी उठकर उन्हें स्कूल भेजने की टैंशन। कल ‘अभि’ कैसे अड़ गया था, स्कूल न जाने के लिए। लेकिन…. फिर तो मुझे सारा दिन अपने घर और बच्चों से दूर रहना पड़ेगा। मैं बच्चों के स्कूल से आने का कितनी बेसब्री से इंतजार करती हूं और बच्चों के आते ही उनके साथ समय बिताकर कैसे झटपट मेरी सारी थकान दूर हो जाती है। बेचारे भुवन को तो सही मायने में बच्चों का संग केवल छुट्टी वाले दिन ही प्राप्त होता है।
ओह ! भुवन बनकर तो वो सारी सैलरी जो भुवन हर पहली तारीख को मुझे पकड़ा देते हैं, मुझे ‘मैं’ बन चुके भुवन को लौटानी होगी। हाय दैया ! सारे पैसे भुवन के पास चले जाएंगे और मैं रीती रह जाऊंगी। न जी न ! मैं तो अपने मायके से मिले और जोड़-तोड़ से जुटाए पैसे की भी हवा भुवन तक नहीं लगने देती और भुवन बनकर तो सारी की सारी सैलरी उन्हें देनी होगी। कदापि नहीं ! मैं भुवन सी उदार नहीं हो सकती कि अपने खून-पसीने से जुटाई सारी की सारी तनख्वाह इस प्रकार बिना किसी शिकन के किसी अन्य के हाथों में सौंप दूं और फिर उसका हिसाब भी न पूछूं ।
कल रात सोने से पहले अचानक कूलर बंद हो गया तो भुवन कैसे अपने हाथों की परवाह किए बगैर कूलर के फंस चुके शटर खोलकर तारे जोड़ने लगे थे। हाय ! इस सब में मेरे तो लंबे नाखून ही टूट जाते !
वैसे भी, चाहे घर के कामों की लिस्ट बहुत लंबी है फिर भी मैं अपने मन की मालिक हूँ। इन सभी कामों को मैं अपनी सेहत और मन की इच्छा अनुसार ही निबटाती हूँ। अपनी किचन की तो मैं महारानी हूँ। इस पर सिर्फ मेरा एकछत्र राज्य है। लेकिन भुवन ? उनका क्या ? घर की मालकिन मैं और ऑफिस के मालिक बॉस ? भुवन गुलाम के गुलाम ! सर्दी हो, गर्मी हो या तेज बारिश, उन्हें तो हर हाल में बॉस की इच्छानुसार उसकी खिदमत बजाते हुए 10 घंटे काम करना ही है। मेरी तो दोपहर की झपकी के बगैर शाम ही नहीं शुरू होती और भुवन ???
उन्हें तो ऑफिस के सभी काम अपने बॉस के हुक्म और समयानुसार करने पड़ते हैं। कैसे कभी-कभी वे सही वक्त पर लंच भी नहीं कर पाते।
छुट्टियों में भी मुझे और बच्चों को तो सिर्फ घूमने जाने का उत्साह रहता है किंतु भुवन ? वे हमारे इस उत्साह को बनाए रखने के लिये कार के पैट्रोल, उसकी सफाई, उसकी सर्विसिंग, उसकी इंश्योरेंस और न जाने क्या-क्या में उलझे रह जाते हैं।
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न भई न ! जिसका काम उसी को साजे ! मुझे नहीं चाहिए कोई सुपरपावर! ‘मैं’ मैं ही ठीक हूँ और ‘भुवन’ भुवन ही। क्या हुआ जो अपनी ‘प्रेजेन्टेशन’ के स्ट्रैस में थोड़ा झिड़क दिया मुझे। आखिर मैं अपनी हूँ उनकी।
उधर,अपनी प्रेजेन्टेशन की सफलता को शेयर करने के लिए भुवन ने अमिता को फोन मिलाया, ‘डार्लिंग! मूड कैसा है तुम्हारा ? सुबह कुछ ज्यादा ही बोल गया मैं। दरअसल बच्चों के चल रहे टैस्टों के कारण तुम्हारे बढ़ चुके वर्कलोड से मैं बिल्कुल अनजान था न ! सब तुम अकेले ही तो संभाल लेती हो न ! खैर.. नीली शर्ट के लिए तुम्हारा दिल से धन्यवाद !’
और दोनों की खिलखिलाहट से फोन के साथ- साथ सारा घर भी गूंज उठा।
उमा महाजन
कपूरथला
पंजाब