#एक_टुकड़ा
बेटी को प्ले स्कूल से,, लिया, सब्जी खरीदकर,,, जैसे ही दरवाजे की घंटी बजाई,,, शलभ ने दरवाज़ा नहीं खोला,,, मुझे लगा,,, सो गए होंगे,,, दोबारा घंटी बजाई पर,,, कोई आहट ही नहीं,, दरवाज़ा अंदर से बंद,,, दिल घबराने लगा,, क्या हुआ,, शलभ दरवाज़ा क्यों नहीं खोल रहें,,आंसू,, बहने लगे,,, मुझे रोता देखकर,, मेरी दो साल की बेटी भी रोने लगी।
दिमाग काम नहीं कर रहा था,,, संयत होकर पुलिस को फोन किया,,, थोडी देर में पुलिस की गाड़ी सायरन बजाती आ गई,,, पुलिस की गाडी देख अड़ोसी पड़ोसी भी इधर उधर से झांकने लगे,,, वरना मुंबई जैसी जगह में,,,, किसी को किसी से मिलने तक का समय नहीं रहता।
हवलदार ने जोर जोर से घंटी बजाई,,, दरवाज़ा खटखटाया,,, पर कोई आहट नहीं हुई,, इंस्पेक्टर ने दरवाज़ा तोड़ने का आदेश दिया,,, जैसे ही दरवाजा टूटा,, सामने शलभ को फंदे से लटकता देख,,, चीख मारकर मैं बेहोश हो गई,,,
पानी के छींटे चेहरे पर पड़े तो होश आया,,,,, शलभ को चादर से ढका देखा तो फूट फूट कर रो पड़ीं,,,, मुंह से निकला,,, ये क्या किया तुमने,,,,, पता होता कि तुम्हें इतना बड़ा सदमा
लगेगा,,, तो मैं अपनी सच्चाई तुम्हें पहले ही बता देती,,, जिसने भी तुमसे मेरे बारे में बताया वो क्या बताया,,, मैं नहीं जानती,,, पर मुझ पर थोडा सा भरोसा तो किया होता,,, मैं तुम्हें खोना नहीं चाहती थी,,, शलभ,, बहुत कुछ खो चुकी हूं मैं
इंस्पेक्टर ने मेरा बयान लिया,,, सच छुपाने का कोई मतलब नहीं था,,,, मैने अपनी कहानी बताना शुरु किया।
मैं एक संपन्न घर का इकलौता चिराग था,,,,,,, था,, सुनकर चौंक गए न आप सब,,,,, सही सुना,,, मैने। एक लड़के के रुप में जन्म लिया,,, शुरु से ही मुझे लड़कियों की तरह सजना,, संवरना,, रंग बिरंगे कपड़े पहनना,,, बहुत अच्छा लगता था,,, मेरे माता पिता मुझे बहुत समझाते पर,,,,, मुझ पर कोई असर नहीं होता,,, किसी की शादी हो ,,,,,मैं लड़कियों की तरह ठुमक ठुमक कर ,,,,,नाचने लगता,,, माता पिता,,,, शर्म से गड़ जाते,,, पर मेरा मुझ पर बस न चलता,,,, बड़े होने पर भी यही हाल रहा,,लड़कियां मुझे देखकर हंसती,,,
लड़के मुझे छेड़ते,,, दाड़ी मूंछ तो आई नहीं,,, पर शरीर के उभार,,, लड़कियों की तरह होने के कारण घर से निकलना ही बंद हो गया मेरा,,,, एक दिन किन्नर आ गए,,, और माता पिता से मुझे मांगने लगें,,, हर त्यौहार पर नेग मांगने आते थे,,,, मेरी उनसे भी अच्छी दोस्ती हो गई थी,,,, उनके साथ मैं भी झूम झूमकर खूब नाचता था। मुझे उनका साथ बहुत अच्छा लगता था।
माता पिता रोने लगे,,,, गिड़गिड़ाने लगे,,,, कमला,,,, जो मुखिया थी,,,, उनके ग्रुप की,,,, जाते जाते बोल गई,,,, ज़रूरत पड़े तो आ जइयो,,,,, मेरे पास,, और सब चले गए।
उसी दिन पिताजी मुझे डाक्टर को दिखाने,, ले गए,,,, तरह तरह के टेस्ट करवाए गए मेरे,,, दूसरे दिन रिपोर्ट आने वाली थी,,,, हम पहुंचे,,,,, डॉक्टर ने गंभीरता से कहना शुरु किया,,,,, देखिए घबराइए नहीं,,,, लाखों केस में एक,, दो केस,, में ऐसा होता है,, एक शरीर में स्त्री पुरूष,,, दोनों के ही अंग,,, विकसित हो जाते है,,,
आपके बेटे अभिलाष,, के शरीर में पुरुष स्त्री दोनों के अंग विकसित हैं,, गर्भाशय भी पूर्ण विकसित है,,, डॉक्टर से परामर्श करके,,, हम मुंबई गए,,, डॉक्टर ने कई ऑपरेशन के बाद,, स्त्री रुप में परीवर्तित करने की बात कही,,, माता पिता,,, पूरी तरह,, हताश हो चुके थे,,, घर बेचकर,,, मुंबई गए,,, किराए का छोटा सा घर लिया,,, और डाक्टर को मेरे ऑपरेशन का बोल दिया,,,, कुछ महीनों बाद,,, मैं एक सुन्दर लड़की के,,आकर्षक,,, रुप में तब्दील हो गया,,, माता पिता,, संतुष्ट होकर तीरथ के लिए गए,,, बस का एक्सीडेंट होने के कारण,,, मैं माता पिता को खो बैठा।
मैने थोडी सी पूंजी लगाकर मेकअप के सामान की और महिलाओं के उपयोग में आने वाले,, सामान,, की छोटी सी दुकान,, खोल ली,,, मोहल्ला बदल चुका था,,, मेरी असलियत कोई नहीं जानता था,,, शलभ मेरा नया पड़ोसी था,,, हमें एक दूसरे से प्यार हुआ,,, और हमने शादी कर ली,,, खुशी खुशी रह रहे थे,,,, हमारी बेटी भी,, हमारे प्यार की निशानी बनकर ,, हमारे बीच आ चुकी थी,,,
कल की मनहूस शाम,,, न जानें किसने,, शलभ को मेरी असलियत बता दी,,, वो घर आया,,,, मुझसे पूछा,,, मैने सारी बातें पूरी सच्चाई,, से उसे बता दी,,,, सुबह मैं बच्ची को लेकर सब्जी और घर का सामान लेने निकली,,,, इधर तनाव में आकर शलभ ने आत्महत्या कर ली ।
सच्चाई सुनकर ,,, बयान पर मेरे साइन लेकर,,, शलभ के शरीर को पोस्टमार्टम के लिए भेज दिया।
शलभ को गए,,,, आज तीसरा दिन था,,,, मोहल्ले के लोग,,, धड़धड़ाते ,,, हुए आए,,, और मेरा हाथ खींचकर,,, घर के बाहर निकाल दिया,,,, बोले,, पेपर में तुम्हारी,,, असलियत,,, पता चल गई है,,, तुम औरत नहीं हो,,, न ही मर्द हो,,, तुम यहां नहीं रह सकती,,,, निकलो इस घर और मोहल्ले से बाहर,,,, मुझे जोर से धक्का दिया,,,, मैं बेटी को गोद में लिऐ,,,,, गिरते से बची,,,,, अचानक दो हाथों ने मुझे थाम लिया,,, रोते रोते,,, ऊपर देखा,,, तो कमला थी,,, मेरे शहर की किन्नरों की सरदार,, गुस्से में उसने सबको देखा,,, बोली। तुम मर्द और औरत हो न,,,,, एक असहाय,,, अबला,,, की सहायता नहीं कर सके,,,, कोई बात नहीं,, मैं तेरे ही लिए आया हूं,, उठ बेटा,,, तेरी कोई सहायता,,, करे न करे,,,, ये अर्धनारीश्वर तेरी मदद जरुर करेगा,,, मैं अपने मददगार के साथ जा रही हूं,,,, बगैर ये सोचे,,, ये स्त्री है या,,, पुरुष???????
प्रीती सक्सेना
स्वलिखित
इंदौर