#शब्द: #अहंकार – डॉ आभा माहेश्वरी
“अरे अहंकार तो रावण का भी नही रहा ,” दादी चिल्ला रहीं थी और मुग्धा निस्तब्ध खड़ी थी।शहर की जानीमानी डाक्टर मुग्धा से आज एक माँ और बच्चे की मौत होगई। प्रतिष्ठित गायनी डाक्टर अपने पेशे में सिद्धहस्त और उसे अहंकार भी था अपनी काबलियत पर।आजतक कोई भी क्रिटिकल केस उसके हाथ से बिगड़ा नही था– लेकिन आज डाक्टर मुग्धा एक माँ और बच्चे को बचा नही पाई मौत के हाथों से– आज उसका अपने पेशे पर अहंकार धूल धूसरित होगया– खड़ीखड़ी अपनी आँखों से पश्चाताप के आँसू बहारही थी आज मुग्धा।
अहंकार क्या गुमान था– मिटगया धूल मे।।
स्वरचित मौलिक
डॉ आभा माहेश्वरी अलीगढ
#प्रतियोगिता# गागर में सागर
अहंकार – रश्मि प्रकाश
“ बस कर बेटा इतना अहंकार अच्छा नहीं है… क्या ही हो जाएगा जो तुम उसे माफ़ कर दोगी ?” मानसी को समझाते हुए रत्ना जी ने कहा
“ माँ तुम भी मुझे ही समझा रही हो…आखिर तुमने भी दिखा ही दिया बहू के आने के बाद बेटी का मायका मायका नहीं रहता।” ग़ुस्से में अपना सामान बाँधती मानसी ने कहा
“ मैं ना बहू की तरफ़दारी कर रही ना तेरी… बस तुझे समझाना चाहती हूँ… तेरी भाभी को नहीं पता था तेरी हर चीज़ ब्रांडेड होती… उसको अच्छी लगी तो बस मुझे दिखाने ही तो आई थी…उसके हाथ में देख कर तुमने समझ लिया वो चोरी कर रही… कितना कुछ बोल गई तुम और वो सॉरी सॉरी करती रही…अब इतनी सी बात पर तुम बवाल कर अपने ससुराल जाने की बात करने लगी बेटा हमने तेरी शादी उच्च घराने में इसलिए की ताकि तुम्हें हर सुख सुविधा मिले पर तुम तो अहंकार करने लगी.. ये तेरे ही भाई भाभी है जरा सोच कर देख जब भाई को पता चलेगा वो क्या सोचेगा… नाजों पली बहन उसकी पत्नी को चोर बोल रही बस अब बात यही ख़त्म कर।” माँ समझाते हुए बोली
मानसी कमरे से निकल भाभी के पास जाकर उसे सॉरी बोल गले लग गई ।
रश्मि प्रकाश
#जीत – डॉक्टर संगीता अग्रवाल
गगन और अलका संग पढ़े, साइंटिस्ट बन गए और पति पत्नी भी जल्दी ही बन गए।
“हम दोनो बाहर कमाने जायेंगे तो बच्चों को कौन संभालेगा?”
गगन के इस प्रश्न पर अलका ने खुशी खुशी अपना सुनहरा कैरियर छोड़ घर की बागडोर संभाल ली।
गगन नित प्रति दिन ऊंचाइयों पर पहुंचने लगा,अलका भी घर के काम काज निबटा कर चोरी छिपे कुछ न
कुछ पढ़ती रहती,नई रिसर्च से रूबरू रहती।
एक बार गगन बहुत परेशान था किसी प्रोजेक्ट को लेकर,अलका ने सहायता करनी चाही पर उसने खिल्ली
उड़ाते कहा,”ये रसोई का काम नहीं जो तुम कर लोगी।”
ये उसका अहंकार बोल रहा था,अलका समझ गई।
अगले दिन गगन की टेबल पर उसका प्रोजेक्ट पूरा हुआ रखा था,इतनी सही फिगर्स और मैटीरियल…?ये
किसने किया?
अलका दूर खड़ी मुस्करा रही थी,विनम्रता अहंकार से जीत चुकी थी।
डॉक्टर संगीता अग्रवाल
वैशाली,गाजियाबाद
अहंकार – के कामेश्वरी
विजय कोर्ट के बाहर कदम रखते ही टूट गया और फूटकर रोने लगा ।उसकी आँखों के सामने से ही सरिता बेटी प्रीति का हाथ पकड़कर जीत की खुशी आँखों में लिए चली गई थी । उसने कभी नहीं सोचा था कि अपने अहंकार में चूर होकर वह अपनी पत्नी और बेटी को अपनी ज़िंदगी से दूर कर लेगा। माँ कहती ही रह गई कि बेटा पत्नी का सम्मान करो पिता के पदचिह्न पर मत चलो । उस समय उसके कानों पर जूँ तक नहीं रेंगी थी । उस समय माँ की बात सुन लेता तो आज परिवार बिखरता नहीं था ।
के कामेश्वरी
*गर्व* – बालेश्वर गुप्ता
छपाक की आवाज सुन शेखर ने मुड़कर देखा कि पड़ोस की बालिका नाले में गिर गयी है,शेखर ने तुरंत नाले में कूद बालिका को निकाल लिया।ऐसे ही एक गुंडे द्वारा मुहल्ले की लड़की द्वारा छेड़े जाने पर शेखर अपनी परवाह किये बिना उससे भिड़ गया और उसे पुलिस को दे दिया। कस्बे में आई बाढ़ के समय भी शेखर ने सहायता समिति के माध्यम से अपने को आगे ही रखा।शेखर की प्रतिष्ठा और लोकप्रियता बढ़ती जा रही थी तो उसके पिता का अहंकार।सेठ जी को लगने लगा था कि वे उस शेखर के पिता है जिसके बिना कस्बे में शायद ही कोई सेवा कार्य उसके मुकाबले कर सके।इस गुमान में वे किसी का भी अपमान कर देते।शेखर बोला पापा मैं यदि कोई सामाजिक कार्य करता हूं तो उसमें लोकेषणा का जरा भी अंश नही होता।फिर आप क्यों अहंकार पाले हैं?बेटे से सुने शब्दो ने उनकी आंखें खोल दी।परन्तु सेठ जी का सीना आज भी तना था,पर अहंकार से नही बल्कि बेटे के प्रति गर्व से।
बालेश्वर गुप्ता,नोयडा
मौलिक एवं अप्रकाशित
अहंकार – राम मोहन गुप्त ‘अमर’
मोहित फर्श से अर्श तक क्या पहुंचा बात-बात पर अपने अपनों को ही दुत्कारने, नकारने लगा। इनमें वे भी शामिल थे जिन्होंने न दिन देखा न रात, जाड़ा, गर्मी और न ही बरसात बस मोहित के सपनों को पूरे करने में जी-जान लगा दी।
धीरे-धीरे उसके अपने उस से दूर और चापलूस पास होते गए फिर क्या था सही को सही, गलत को गलत कहने वाला कोई भी न था, थे तो बस मतलबी और मौका परस्त ही।
शनै-शनै बढ़ते अहंकार और नीर-क्षीर विवेकी साथियों की दूरी का फिर वही असर हुआ जो अति अहम वालों के साथ होता है ‘धड़ाम’, अर्श से फर्श पर आते देर न लगी, एकाकीपन और मुफलिसी ने मोहित को कहीं का न छोड़ा।
रामG
राम मोहन गुप्त ‘अमर’
लखीमपुर खीरी
बेटी बहु – रश्मि झा मिश्रा
सुमित्रा जी अचानक बीमार पड़ गईं… घर में कोई देखभाल करने वाला नहीं था…
अब बहू नौकरी छोड़कर थोड़े ही घर बैठती… बहू ने पति से कहा…” मां की सेवा यहां नहीं हो पा रही तो दीदी के पास भेज दो ना…!”
सौरभ ने बहन से कहा.…” दीदी तुम ले जाओगी मां को…!”
” नहीं रे… आजकल मुझे ही फुर्सत कहां है… ऊपर से मेरे सास ससुर पहले ही तैयार हैं आने को… ऐसे में मां को कैसे लाऊं…!”
सुमित्रा जी की बहू बेटी दोनों ही व्यस्त हैं… उनके पास सेवा करने का समय नहीं…
इसलिए उनकी व्यवस्था वृद्धाश्रम में हो गई है… वहां उनकी खूब सेवा होती है………!
रश्मि झा मिश्रा
बेटी-बहुएं – सुभद्रा प्रसाद
” देखिए जी, मुझे सुनंदा के लिए यह सोने का सेट और अनिता के लिए यह सेट पसंद आ रहा है | ” सुशीला अपने पति शंकर बाबू से बोली |
” अनिता के लिए हल्का सेट और सुनंदा के लिए भारी सेट | ऐसा क्यों ? “शंकर बाबू पूछे |
” अरे सुनंदा हमारी इकलौती बेटी है और उसके छोटे भाई की शादी है,तो उसे कोई अच्छा सेट हीं देंगे |” सुशीला बोली |
” सुनंदा बेटी है तो अनिता बड़ी बहू है | बेटी – बहू दोनों हमारे लिए समान है , फिर सेट खरीदने में भेदभाव कर हम अनिता का मन क्यों उदास करें? उसके भी तो देवर की शादी है |बेटी-बहुएं सब की खुशी में ही हमारी खुशी होनी चाहिए | सबकी खुशी हमारे लिए मायने रखती है |”
” आप ठीक कह रहे हैं | दोनों के लिए एक जैसा सेट ही खरीदेंगें |” सुशीला हंसकर बोली |
# बेटी-बहुएं
स्वलिखित और अप्रकाशित
सुभद्रा प्रसाद
पलामू, झारखंड
बेटी बहुये – एम पी सिंह
निखिल ओर किरण अपने बेटे अनुज की शादी करके बहुत हल्का महसूस कर रहे थे। बेटी माला की शादी पहले ही हो गई थी। अब वो अपनी संपत्ति बच्चों को देकर बिल्कुल फ्री होना चाहते थे। कुछ महीने बीते होंगे कि निखिल ने वकील को बुलाकर अपनी सम्पत्ति बेटे और बेटी में आधी आधी बांट दी। बेटी को संपत्ति में हिस्सा देकर उन्होंने बड़ा महान काम किया और सबसे वाह वाही लूटी।
सब कुछ ठीक चल रहा था पर अचानक
निखिल की मौत ने सबकुछ बदल दिया। अब मॉं दोनो बच्चों को अखरने लगी। बेटी बोली माँ तो बेटे के घर मे ही अच्छी लगती हैं और बहू बोली कि बेटी ने जायदाद में आधा हिस्सा लिया है तो आधे टाइम अपने साथ रखे।
परिणाम ये निकला कि मॉ को 15 दिन बेटी और 15 दिन बहु खाना खिलाती है।
जो महीना 31 दिन का होता हैं, तो माँ को एक दिन उपवास रखना पड़ता हैं।
आजकल घर के बुजुर्ग, बेटी-बहु दोनो को अखरते है।
लेखक
एम पी सिंह
(Mohindra Singh)
स्वरचित, अप्रकाशित, मौलिक
15 Dec 24
“जैसा दोगे वैसा मिलेगा” – हेमलता गुप्ता
मां.. भाभी की सहेलियों के लिए आप क्यों चाय नाश्ता बना रही है वह खुद बना सकती हैं? क्यों.. जब तेरे दोस्त आते हैं तब तू खुद बनाती है? तो एक बात सुन ले.. मेरे लिए बेटी बहुएं दोनों एक जैसी हैं जैसे तू अपनी मां का की तकलीफ नहीं देख सकती वैसे में एक मां होकर अपनी बहू की तकलीफ नहीं देख सकती! बेटा ताली दोनों हाथों से बजती है, जैसा दोगे वैसा ही मिलेगा! कल को तू भी किसी घर की बहू बनेगी तो यही नियम अपनाना.. जैसा दोगे वैसा मिलेगा!
हेमलता गुप्ता स्वरचित
शब्द प्रतियोगिता “बेटी-बहुएं”