ये कहानी पूरी तरह से काल्पनिक है और मौलिक है। मेरी खुद की उपज इस कहानी का उद्देश्य ही है समाज मे अपने पन का एहसास हो।
वाह भाभी ! आप तो बड़ी सयानी हो गई हो…!
रमा अपने मायके आई थी और रात को अपनी भाभी को माँ का पैर दबाते देखा तो गर्व करती हुई बोली…” माँ की इतनी से सेवा ..!
क्या रमा दी आप भी, ये सब तो अब हमारी दिनचर्चा में है। मैं अम्मा जी की सेवा रोजाना करती हुँ और बिना पैर दबाए तो ना मुझे नींद आती है और ना इन्हें।
हाँ रमा…! बहु सही कह रही है…!
विवाह के करीब दस महीने बाद रमा अपने मायके आयी थी और उसने पहली ही रात में अपनी माँ से बात किया तो माँ की आँखें छलक गई। माँ ने खूब अच्छे से और देर तक बात भी की क्योंकि उन्हें खुशी जो खूब मिल रही थी। ये वही रमा थी जो बात बात पर नखरे करती थी। एक जगह पैर नहीं टिकता था
और कोई काम करने को कहो तो कहती थी..” माँ मुझे पढ़ने के अलावा कोई और काम मत दिया करो, मैं ये सब नही सीखने वाली। पर माँ ने रमा को धीरे धीरे सब सिखाया था। माँ हमेशा यही कहती थी, मेरी बेटी को यदि ससुराल समझने वाला नहीं मिला तो ये शिकायतें सुनवायेगी। पर रमा ने कभी शिकायत वाला काम नही किया उसने परिवार को अपनी कुशलता से सम्भाल ही लिया।
रमा दी चलो अब आप भी आराम करो…!
भाभी मैं माँ के पास ही सोऊंगी…!
अच्छा ठीक है फिर मैं आपकी तेल मालिश यहीं कर देती हुँ।
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नही नहीं भाभी आप रहने दो…!
क्या दीदी…! मुझे सेवा तो करने दीजिये। आपको इस अवस्था मे सेवा की जरूरत है, तभी तो सब कुछ ठीक से होगा। आप शादी से पहले जैसे रहती थी वैसे ही रहिए..!
और तभी माँ बोल पड़ी…” बहु सही तो बोल रही है रमा। तू अपने बच्चे का ध्यान रख और यहाँ खूब सेवा करवा, एक काम नही करना तुझे, तभी तो बच्चा सलामत, स्वस्थ और तंदुरुस्त होगा।
रमा कुछ न बोल सकी, वो सिर्फ मुस्कुराई और अपनी भाभी को सेवा करने दिया।
दरअसल रमा गर्भावस्था में थी, प्रसव की तारीख जब नजदीक आई तो रमा के भैया ने बहन को अपने पास बुला लिया। दोनों परिवारों में सहमति के आधार पर ये निर्णय लिया गया कि बेटी की सेवा मायके से अच्छा कहीं नही हो सकता। बेटी ससुराल में बहु बन जाती है और ना चाहते हुए भी आराम नही मिल पाता।
बहु चाहे जितना भी बेटी वाला काम करे वो बहु जैसा ही लगता है। जबकि ससुराल में वही बहु खुलकर रहती है, कहीं भी बैठ जाये, कहीं भी लेट जाएं, किसी भी तरह बिना घूंघट के रहे, आते जाते लोग सब भाई बहन चाचा ताऊ होते हैं। जबकि ससुराल में मर्यादित रहना पड़ता है। सौ दर्द के बावजूद भी सारी औपचारिकताओं की पूर्ति करनी पड़ती है।
प्रसव के दो दिन पहले से लेकर एक सप्ताह बाद तक जो भरपूर आराम मिलना चाहिए वो ससुराल से कहीं अच्छा मायके में मिलता है। चाहे जितनी भी अच्छी सास हो उसके पास बेटी उसकी गोद मे सिर रखकर नही सो सकती। पर उस दौरान रमा अपनी माँ के साथ सोती और कभी कभी छोटी बच्ची की तरह उनकी गोद मे सिर रखकर सो जाती।
माँ की ममता का तभी तो ईजाद होता है। एक माँ जो पहले से है और एक जो माँ बनने वाली है उसे धीरे धीरे ममत्व का एहसास हो रहा था। रमा के पेट को रमा भी सहलाती और रमा की माँ भी उस दौरान रमा को जिस आनंद का अनुभव होता उसे बताना मुश्किल है।
रमा को एक बेटी हुई थी, बहुत धूमधाम से उस क्षण को मनाया गया। रमा के ससुराल वाले भी आये थे और अब उस बात का एहसास हुआ कि रमा की डिलीवरी यहॉं होना कितना फायदेमंद हुआ। करीब पंद्रह दिन बाद रमा अपने ससुराल गई। ऐसे में वो अपनी भाभी रचना को भूल न सकी, उन्होंने जो सेवा की थी वो अनमोल थी, माँ की सेवा,
मेरी सेवा और पंद्रह दिनों तक बच्चे की सेवा । जी तोड़ मेहनत की थी रचना भाभी ने। यदि वो ससुराल रहती तो उसकी ना ना करने के बाद भी परिवार में कचरा निकल जाता। शर्म, लिहाज के साथ साथ उसकी खुद की जिम्मेदारी तो रहती ना।
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करीब आठ महीने के बाद अचानक रमा पति और नन्हे बच्चे के साथ अपने मायके आती है, साथ मे दो बड़े शुटकेश के साथ। रमा के पति चाय नाश्ते के बाद चले जाते है तो माँ पूछती है रमा सब ठीक तो है ना…? अचानक बिना बताये और दामाद जी चले गए, तू कितने दिनों के लिए आई है…?
माँ को पता था रमा का घर से निकलना आसान नही था। घर से उसे कभी फुर्सत नही मिलती थी, दामाद जी के पास समय नही रहता। फिर अचानक इतने दिनों के लिए…?
माँ चिंता मत करो ..! सब ठीक है…! मैं एक महीने के लिए आई हुँ।
ऐसा सुनकर रचना को, माँ को सबको अच्छा लगा पर दिमाग मे संशय अभी भी बना हुआ था कि कहीं कोई झगड़ा तो नही हुआ है ना।
तब रमा अपने नन्हे को रचना भाभी की गोद मे रखती हुई बोली..” माँ मैं इतनी भी स्वार्थी नही। मुझे पता है भाभी की डिलीवरी यहीँ होने वाली है और भाभी का मायके में तो न माँ है और न भाभी। दो भाई है जो छोटे है और इनके पापा जी बाहर ही रहते हैं। फिर इनको भी तो वो सुख मिलना चाहिए जो मुझे मिला था। इसीलिए मैं बड़ी योजना के बाद आई हूँ, अब मैं भाभी सेवा वैसे ही करूँगी जैसे इन्होंने मेरी की थी।
रचना अपनी ननद की बात सुनकर भावुक हो गई और बच्चे को लेकर अन्दर चली गई।
रचना के जाने के बाद रमा बोली…” माँ जब मैं यहॉं से ससुराल गई तब मुझे एहसास हुआ बहु और बेटी का, माँ और सास का। सास अपनी बहू को चाहे जितना भी मान दुलार करे वो माँ और बेटी वाली फिलिंग, वो खुलकर रहना, वो प्यार दुलार नही हो पाता। समाज की बनाई गई बेटी बहु वाली परंपरा और दोनों का एहसास अलग ही होता है।
मैं जानती हुँ आप भाभी को अपनी बेटी जैसी ही समझती हो पर भाभी मेरा स्थान कभी नही ले सकती। भाभी को वो सुख आपसे नही मिल सकता जो मुझे मिलता है…! मैं इसीलिए आई हुँ की भाभी को मायके वाला सुख दे सकूँ। माँ अब आप एक महीने तक अपना ख्याल रखना…! मैं भाभी को लेकर उनके मायके जाने वाली हुँ जहां उनके पिता होंगे, दोनों भाई होंगे और चाची होंगी।
पर रमा वो सेवा वो सुख यहॉं भी तो मिल सकता है। तू वो सारे काम यहाँ भी तो कर सकती है..?
नही माँ..! मायके का अनुभव, वातावरण, रहन सहन अलग ही होता है। आप बस इजाजत दे दो।
वाह रमा वाह…! मेरी बेटी बड़ी सयानी हो गई, मुझे तुझपर गर्व है रमा। तुमने सच कहा बहु चाहे कितना भी कर ले, बेटी तो नही हो सकती। जा बेटी… बहु को बेटी वाला सुख भोगने दे।
और फिर जब ये बात रचना को पता चली तो रचना की खुशी का ठिकाना नही था। उसने कभी सपने में भी नही सोचा था कि ऐसा कुछ हो सकता है। वो तो रमा के मायके वाले एहसास ने सब करवा दिया। अगले दिन भैया ने रमा, रचना और बच्चे को रचना के ससुराल छोड़ दिया और घर की सारी जरूरतों की पूर्ति भी किया। रचना को ढेर सारे रुपये भी दिए और आश्वाशन भी कि वो यहाँ बिंदास रहे मैं आता जाता रहूँगा।
समाप्त…
शैलेश सिंह ‘ शैल,
गोरखपुर उत्तर प्रदेश।