जब ललिता जी के पति का निधन हुआ तो उनके बेटे अनिल ओर अजय क्रमशः 12वी ओर 10वी क्लास में थे ओर बेटी कोमल कक्षा 6 में। अजय ने पिताजी की दुकान ओर परिवार को संभाला और अपने बड़े भाई ओर छोटी बहन की पढ़ाई जारी रखी। कॉलेज में अनिल की दोस्ती राखी से हुई
ओर जल्दी ही दोनो मैं प्यार हो गया। कॉलेज की पढ़ाई खत्म होने पर राखी के पिताजी ने अनिल को अपनी फैक्टरी में नोकरी दे दी। जल्दी ही दोनो परिवारों की सहमति से उनकी शादी करवा दी। शादी के बाद अनिल ससुराल में शिफ्ट हो गया और कभी कभी घर आता था पर जल्दी ही वापस चला जाता था। धीरे धीरे आना जाना कम होता गया और फोन तक ही रिस्ता रह गया।
अगले साल अजय की भी शादी कर दी। अजय की बीवी शालू बहुत ही समझदार थी और जल्दी ही उसने अपने काम और व्यवहार से सबके दिल मे जगह बना ली। कोमल को तो अपनी बेटी की तरह मानती थी ओर कोमल भी भाभी मॉं कह कर बुलाती थी। दोनो अक्सर साथ साथ ही आना जाना करती थीं।
समय बीतता गया और अजय शालू के यहाँ भी एक बेटी हो गई। अब दोनों सबको यही कहते कि हमारी दो बेटियां हैं।
कोमल की पढ़ाई पूरी हो गई और रिश्ते आने लगे। फिर शालू ने अपने ही दूर के रिश्तेदार से बात चलाई ओर रिस्ता पक्का हो गया। शादी की तैयारिया हो रही थी एक दिन कोमल के मामा घर आये और अपनी बहन से बोले कि मेरी अनिल से बात हुई थी और उसकी इच्छा थी कि कोमल का कन्यादान मैं करू
ओर मेरी भी यही मर्ज़ी हैं। ललिता जी ने अपने भाई से कहा, जबसे कोमल के पिताजी गुजरे हैं, तुमने या अनिल ने ऐसा कौनसा काम किया है जिससे पता चले कि तुम घर के बडे तो क्या घर के सदस्य भी हो? अनिल ससुराल में जाकर बैठ गया और तुम, क्या शहर में रहकर भी कभी हाल चाल पूछने आये?
तुम साफ साफ सुनलो, कोमल का कन्यादान सिर्फ और सिर्फ अजय – शालू ही करेंगे, ये मेरा फैसला है ओर इसे कोई नहीं बदल सकता। कोमल के मामा को अपनी बहन से ऐसी उम्मीद नहीं थी, वो बेचारा “अपना सा मुंह लेकर रह गया” ओर चुपचाप वहाँ से चला आया।
लेखक
एम.पी.सिंह
(Mohindra Singh)
स्वरचित, अप्रकाशित,
17Dec.24
मुहावरा लघुकथा