वंश वृक्ष – शिव कुमारी शुक्ला
देविका जी एवं राजदीप जी बरामदे में कुर्सी डाले सजे-धजे बैठे थे आज उनके पोते की शादी जो थी। पोते ने अपनी पंसद की ड्रेस एवं साड़ी अपने दादा-दादी जी के लिए खरीदी थी। खूब चहल-पहल थी बहुयें बेटियां सजी-धजी, हंसती खिलखिलाती घूम रहीं थीं। ननद भाभी आपस में एक-दूसरे के साथ हंसी ठिठोली भी करती जा रहीं थीं।घर ठहाकों से गूंज रहा था।
उन्हें देख राजदीप जी बोले देखो देविका अपना वंश वृक्ष कितना फूल -फल रहा है। तुमने कभी बहू बेटी में अंतर नहीं समझा उन्हें समान रूप से मान-सम्मान एवं प्यार दिया खुश रखा तो बहुयें बेटियां भी आपस में कितने मेल-जोल से रह रहीं हैं एवं कितनी खुश हैं।
देविका जी और इस फूलते-फलते वंश वृक्ष को देख कर हमारी आत्मा भी कितनी संतुष्ट है । स्वर्ग तो देखा नहीं किन्तु हमारा घर ही स्वर्ग समान है। कितनी खुशीयां यहां बिखरी पड़ीं हैं।हम कितने खुशनसीब हैं जो इतना सुख और मान सम्मान पा रहे हैं।
शिव कुमारी शुक्ला
15-12-24
स्व रचित
शब्द बहू बेटी गागर में सागर
बेटी-बहुएं – चाँदनी झा
मेरा एक ही सपना है, अपनी बहू को एक उसका घर दे सकूं,… माँ और बेटी को? मासूम नन्ही ने शिवानी से पूछा। बेटी तो जन्म से अधिकारी हो जाती बिटिया, पराया तो बहू को कर दिया जाता है। ये घर जितना नितिन का है उतना तुम्हारा भी। पर आनेवाली बहू को पराया न होने दूंगी। जैसे
मेरी सास ने अपनी बहू नहीं अपनी बेटी बनाकर किया। आंखों में आत्मविश्वास के आँसू लिए, परित्यक्ता शिवानी, अपने सास का दिया हुआ घर निहारने लगी। नन्ही, नन्ही बस माँ को निहार रही थी, अभी बेटी बहू का फर्क कहाँ पता था उसे?
चाँदनी झा
कहानी…बेटी बहुये – एम पी सिंह
मालिनी पहली बार माँ बनने वाली थी। ऑपरेशन थियेटर जाते हुए डॉ ने पूछा, क्या चाहिए, लड़का या लड़की? मालिनी बोली, मुझे तो लड़की चाहिये। डॉ आश्चर्य से बोली, लड़की? क्यो?
मालिनी बोली, जब तक हाथ पैर चलते रहेंगे तब तक तो ठीक है, बुढ़ापे में बहू पूछे या न पूछे, पर बेटी तो पूछ ही लेगी। बेटी की शादी तो 15-20 लाख में हो जाएग। आज कल की लड़किया छोटी छोटी बात पर तलाक ओर कोर्ट की धमकी देती हैं जो शादी से ज्यादा महंगा ओर दुखदाई होता है।
बचपन में मेरी नानी बोलती थी कि अगर बेटा पैदा हो तो मिठाई मत बांटना, बेटे की शादी करो तो भी मिठाई मत बाटना, अगर बहु अच्छी हो तो ही मिठाई बाटना।
जमाना बहुत खराब है, अब मॉ बाप के लिये बेटियां, बेटे /बहुओं से ज्यादा भरोसेमंद हो गई हैं।
एम पी सिंह
(Mohindra Singh)
स्वरचित, अप्रकाशित
14 Dec 24
सफर – संध्या त्रिपाठी
हेलो कैसी है समधन जी..?
मस्त है ,मौज उड़ा रहे हैं बहू के घर पर… सच मानिए समधन जी मेरी कोई बेटी नहीं है तो मैं कुछ छोटी-छोटी सुखद अनुभव से वंचित रही थी… कल जैसे ही मैं सो कर उठी चारों ओर गुब्बारे, टेबल पर केक, मेरे लिए गिफ्ट रखा था… इस प्रकार के सुखद सरप्राइज कभी किसी से मुझे मिला ही नहीं , अब बहू के आने से ये सब पूरी हो रही है ।
वो अल्हड़ सी, चंचल ,मस्त, बिटिया बहू बनते ही इतनी समझदार हो गई… सच में बेटी से बहू तक के सफर का उतार चढ़ाव के मध्य ससुराल वालों विशेष रूप से सासू मां से प्रशंसा सुन एक बेटी की मां शालिनी गर्व महसूस कर रही थी ।
(स्वरचित) संध्या त्रिपाठी,
अंबिकापुर, छत्तीसगढ़
जिम्मेदारी – रूचिका राय
चुपचाप जाकर आराम करो,
तुम्हारी तबियत ठीक नही फिर भी काम में लगी हो।
रमा जी ने गुस्सा दिखाते हुए अपनी बहू से कहा।
मगर माँ जी….बहू ने कुछ कहना चाहा।
मगर रमा जी ने टोका,कोई अगर-मगर नही।
पहले भी तो मैं काम करती थी जब सरिता (रमा जी की बेटी) बीमार पड़ती थी।एक दिन आज कर लूँगी तो पहाड़ नही टूट पड़ेगा।
बहू हो या बेटी दोनों का ख्याल रखना मेरी भी तो जिम्मेदारी है।
यह सुन उनकी बहू के आँखों में खुशी के आँसू बहने लगें।
रूचिका राय
सीवान बिहार
बेटी- बहुएँ – पूजा शर्मा
ना रे, मैं इतनी रंग बिरंगी साड़ी ना पहनूंगी इतनी तड़क भड़क की साड़ी तो कभी अपने जमाने में भी ना पहनी मैंने। बेटी बहुएं ही सजी सवंरी अच्छी लगती हैं बुढ़ापे में मुझे तो कोई यही कहेगा बूढ़ी घोडी लाल लगाम। अरे अम्मा , अपनी पहली तनख्वाह में से मैं आपके लिए यह साड़ी और दादा जी के लिए कुर्ता पजामा लाया हूं आपको पहननी ही पड़ेगी। दीनानाथ जी अपने पोते का दिया कुर्ता पजामा पहन कर आए और अपनी पत्नी से कहने लगे, क्यों ना पहनेगी हमारा पोता लाया है तुझे पहननी पड़ेगी? भाग वाले हैं हम भगवान ने हमें यह दिन दिखाया है। चल जल्दी तैयार हो जा। आज हमारा पोता हमें होटल में खाना खिलाने ले जा रहा है। उनकी खुशी को देखकर पीछे खड़े उनके बेटा बहू की आंखों में भी आंसू आ गए।
पूजा शर्मा स्वरचित।
दोनों अपने ही हैं – विभा गुप्ता
” मेरी मानिये तो आप समधी जी से विवाह की तारीख आगे करवा दीजिये…इतने कम समय में मैं अकेली…सब कैसे…।अम्मा जी तो अब रहीं नहीं और आपकी #बेटी-बहुएँ एक- दूसरे की शक्ल देखना चाहतीं नहीं..।” प्रेमा जी अपने पति रमाकांत से बोलीं तो वो हा-हा करके हँसने लगे..फिर बोले,” ननद- भाभी के नोंक-झोंक तो जग-जाहिर है पर दोनों अपने ही हैं।तुम रीमा की शादी की तैयारी करो..बाकी सब तुम्हारी बड़ी बेटी-बहुएँ संभाल लेंगी।”
सप्ताह भर पहले आई उनकी बेटी मीता और दोनों बहुओं ने मिलकर रीमा के पसंद के कपड़े खरीदे..मेंहदी- संगीत के फ़ंक्शन की साज-सज्जा, दुल्हन का मेकअप, खाने के मेन्यू आदि की तैयारी और व्यवस्था इतने अच्छे तरीके-से की कि प्रेमा जी दंग रह गईं और घराती-बराती भी प्रशंसा करते नहीं थके।
रीमा की विदाई के बाद प्रेमा जी ने रमाकांत जी से पूछा कि ये चमत्कार कैसे तब वो बोले,” बेटी ने अपने मायके का मान घटने नहीं दिया और बहुओं ने अपने परिवार की प्रतिष्ठा पर आँच आने नहीं दिया।”
विभा गुप्ता
# बेटी-बहुएँ स्वरचित, बैंगलुरु
बेटी बहुए – एम.पी.सिंह
रचना की ननद खुश्बू को लड़के वाले देखने आ रहे थे ओर खाना खा कर जायेगे। खुश्बू बहुत नर्वस थी क्योकि वो खाना अच्छा नही बनाती थी पर रचना एक अच्छी कुक थी। ननद भाभी ने मिलकर सारा खाना बनाया। रचना बोली, माँ जी और मैं तैयार होते हैं, तुम बाद मे तैयार होना। थोड़ी देर में मेहमान आ गए पर खुश्बू अभी रसोई में ही थी। रचना ने उसे रसोई से बुलाकर तैयार होने को भेज दिया और खुद मेहमानों के साथ बैठ गई। खुश्बू आते ही बोली सॉरी, खाना बनाने में टाइम का पता नहीं चला।
सबको खाना ओर खुश्बू दोनो पसंद आ आये।
अगले दिन खुश्बू ने कुकिंग क्लासेज जॉइन कर ली और शादी तक कुकिंग एक्सपर्ट बन गई।
बेटी बहु ने मिलकर माँ बाप की चिंताये मिटा दी
लेखक
एम.पी.सिंह
(Mohindra Singh)
स्व रचित, अप्राकृतिक
12 Dec.24
माँ की कमी – रश्मि प्रकाश
घर में घुसते ही पकवानों की खुश्बू सूँघते हुए काम करने वाली कांता ने पूछा ,“ माला दीदी आ रही हैं क्या आँटी जी?”
“ नहीं मेरे बेटे बहू आ रहे हैं ।” चहकते हुए सुलोचना जी ना कहा
“ ओहहहह बेटे के लिए पकवान बनाए जा रहे हैं?”कांता
“ नहीं रे मेरा बेटा इतना शौकीन नहीं है पर मेरी बहू को बहुत पसंद है सब उसकी पसंद का बना रही हूँ ।” सुलोचना जी
“बहू के लिए भी कोई इतना करता है क्या… अधिकतर घरों में तो बेटी आने वाली होती तो सास पूरा घर सिर पर उठा लेती पर आप तो?” ठुड्डी पर हाथ रख कांता ने कहा
“ क्यों रे बेटी बहुएँ हमारी ही तो हैं जब बेटी का ख़याल रख सकते तो बहू का क्यों नहीं… वैसे भी मेरी बहू को वो सब दूँगी जो एक माँ देती उसे कभी माँ की कमी ना होने दूँगी….. उसकी माँ नहीं है तो क्या मैं माँ नहीं हूँ उसकी!”सुलोचना जी बोली
“ आप तो अनोखी सास हो।” हँसते हुए कांता ने कहा
“ हाँ वो तो है मेरी सास सबसे अनोखी ।” रसोई में घुसते हुए बहू नो कहा जो अभी अभी घर आई और दोनों की बातें सुन ली सास को प्रणाम कर उनके गले लग गई
रश्मि प्रकाश
बेटी-बहुएं – सीमा गुप्ता
रमा जी के छोटे बेटे तन्मय के विवाह का अवसर है। रमा जी ने अपनी बड़ी बहू ममता को बहुत सारी जिम्मेदारियां सौंप रखी हैं और बार बार उसे निर्देश दे रही हैं। वह रस्मों के समय ठीक से तैयार भी नहीं हो पाती है।
यह सब देखकर रमा जी की बड़ी बेटी उनसे कहती है,”मम्मी, जब आजकल सब #बेटी-बहुएं बराबर हैं तो जिम्मेदारियों का भार अकेले भाभी पर क्यों? आप सारे काम को भाभी के साथ हम दोनों बहनों में भी बांट दीजिए।” रमा जी ने बेटी को दाद देते हुए ऐसा ही किया।
शाम को घुड़चढ़ी के समय अपने देवर को काजल लगाने के लिए तैयार होकर ममता जैसे ही आई, सब उसको अपलक निहारते रह गए। बेटियों-बहू ने एकसाथ मिलकर शादी में धूम मचा दी। नई दुल्हन भी परिवार की एकता और खुशी देखकर स्वयं को भाग्यशाली मानने लगी।
-सीमा गुप्ता (मौलिक व स्वरचित)