“अरी सुमन की माँ, जितने लाड़ लड़ाने अपनी बेटी को लगा लो, फिर कल को ये चली जाएगी, तो कोई लाड़ लड़ाने वाला नहीं होगा!” यह शब्द सुमन की माँ के कानों में गूंज रहे थे। वे अपनी बेटी सुमन को निहारते हुए यह सोच रही थीं कि उनकी बिटिया का क्या होगा,
जब वह इस घर से विदा होकर किसी और के घर जाएगी। यह आंसू बहाते हुए उन्हें वही पुराने दिन याद आ गए, जब खुद वे भी अपनी माँ के लाड़ में बहे जाती थीं। हर माँ की तरह, वे अपनी बेटी के लिए हर खुशी चाहती थीं, पर इस बात का भी डर था कि बेटी को बहुत ज्यादा लाड़-प्यार में डूबा दिया तो वह समझ नहीं पाएगी कि ससुराल में क्या जिम्मेदारियाँ हैं।
सुमन की माँ के मन में यह डर और चिंता घर कर गई थी, क्योंकि वह अपनी बेटी को ससुराल में खुश देखना चाहती थीं। लेकिन जब वह सुमन के चेहरे पर झलकते सपने देखतीं, तो उन्हें ऐसा लगता जैसे सब कुछ बदलने वाला है। “क्या वो ससुराल में भी वही लाड़ और दुलार पाएगी जो मैंने उसे दिया है?” यही सवाल उनके मन में दिन-रात घूमता रहता।
लेकिन सुमन की माँ का यह डर और चिंता तब और बढ़ गई जब एक दिन, उनका पति, सुमन के पिता, गंभीरता से बोले, “क्यों जी, कल को तो दो-दो बहुएं भी इस घर में आएंगी, उन्हें भी तो लाड़ लड़ाऊंगी।” यह सुनकर सुमन की माँ चुप रह गईं और उन्होंने थोड़ी देर तक अपने पति का चेहरा देखा।
उनका मन हल्का सा चिढ़ा, पर उन्होंने अपने पति की बात का उत्तर दिया, “अरे, बहुएं तो बहुएं होती हैं। बेटी की बात अलग है।” वह एक गहरी सांस लेकर अपनी बात को आगे बढ़ातीं, “बिटिया के लिए दिल में जो लाड़ है, वह किसी और के लिए नहीं हो सकता।”
सुमन की माँ जानती थीं कि समाज की यह सोच कितनी गहरी है कि बेटी का स्थान केवल एक घर तक सीमित होता है, जबकि बहू का स्थान किसी और घर में होता है। लेकिन वह इसे सही नहीं मानती थीं। उन्होंने हमेशा यह कहा था कि, “हर बेटी को बहू बनकर जाना होता है और हर बहू किसी की बेटी होती है।” यही कारण था कि उन्होंने अपनी बेटी सुमन को उसी लाड़-प्यार में पाला, जिसमें वे खुद को पाला करती थीं।
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यह कहानी एक ऐसी माँ की है, जिसने अपनी बेटी को न केवल संस्कार दिए, बल्कि उसे जीवन में हर चुनौती का सामना करने के लिए भी तैयार किया। सुमन की माँ का मानना था कि लाड़-प्यार और संस्कार, दोनों एक ही सिक्के के दो पहलू हैं। एक बेटी को हमेशा उसकी पहचान देना बहुत महत्वपूर्ण होता है। अगर बेटी को शुरू से ही यह एहसास हो कि उसे इस दुनिया में अपनी जगह बनानी है, तो वह ससुराल में अपने कदम सही तरीके से रख पाएगी।
सुमन की माँ जानती थीं कि घर की खुशहाली के लिए बहुत से फैक्टर होते हैं, लेकिन सबसे अहम यह है कि रिश्ते मजबूत हों। उनके मन में एक गहरी सोच थी कि बेटी के लिए लाड़ लड़ाने का मतलब यह नहीं कि उसे पूरी दुनिया से हटा दिया जाए, बल्कि इसका मतलब यह था कि उसे आत्मनिर्भर और जिम्मेदार बनाना। सुमन की माँ चाहती थीं कि उनकी बेटी सिर्फ ससुराल में ही नहीं, बल्कि अपनी जिंदगी में भी खुश रहे और समझे कि जिम्मेदारी क्या होती है।
“तो बेटी – बहू दोनों को लाड़ दो तो हर घर में खुशहाली रहती है, और मैं अपना घर खुशहाल चाहती हूँ,” यह सुमन की माँ का अंतिम निर्णय था, और उन्होंने इसे पूरी तरह से अपनी ज़िंदगी में लागू किया। वह हमेशा यह कहती थीं कि ससुराल में बेटी का स्वागत उसी आत्मविश्वास और समर्थन से किया जाना चाहिए जैसा उसे मायके में मिला था।
सुमन के घर के माहौल में एक अलग तरह का प्यार था, क्योंकि वहाँ रिश्तों की गरिमा और एक-दूसरे के प्रति सम्मान था। सुमन की माँ ने हमेशा इस बात पर जोर दिया कि किसी भी रिश्ते में एक-दूसरे का मान रखना चाहिए, चाहे वह बेटी हो या बहू।
सुमन की शादी की तैयारियाँ धूमधाम से चल रही थीं। उसकी माँ ने बड़ी मेहनत से हर चीज़ की योजना बनाई थी। सुमन की माँ ने सोच रखा था कि उसे अपनी बेटी को कभी भी इस बात का एहसास नहीं होने देना कि वह अब ससुराल जा रही है। बल्कि, वह यह चाहती थीं कि सुमन को यह महसूस हो
कि वह हमेशा उनके दिल में रहेगी, चाहे वह जहां भी जाए। इसलिए, सुमन की माँ ने ससुराल जाने से पहले उसे एक छोटी सी सलाह दी, “बिटिया, जो भी हो, तुम कभी अपने माता-पिता को नहीं भूलना। तुम्हारी ससुराल में भी तुम्हारा सम्मान उतना ही होना चाहिए जितना हमारे घर में है। और तुम वहाँ भी अपनी जिम्मेदारियों को समझकर निभाना।”
सुमन को यह बातें दिल से याद आईं। उसकी माँ ने हमेशा उसे यह सिखाया था कि परिवार सिर्फ खून के रिश्तों से नहीं बनता, बल्कि उस रिश्ते में एक-दूसरे की समझ, समर्थन और प्यार का होना जरूरी है। इसीलिए, सुमन ने भी यह निर्णय लिया था कि ससुराल में जाने के बाद भी वह अपने परिवार के प्रति वही सम्मान और प्यार रखेगी, जो उसने अपनी माँ से सीखा था।
शादी के बाद, सुमन को अपने नए घर में ढलने में थोड़ी समय लगा। लेकिन उसने अपनी माँ की सलाह को हमेशा याद रखा और धीरे-धीरे ससुराल वालों के साथ अपने रिश्ते को और मजबूत किया। वह जानती थी कि यह सिर्फ एक लड़की के ससुराल में जाने का पल नहीं था, बल्कि यह एक नए परिवार में अपनी जगह बनाने की शुरुआत थी।
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सुमन की ससुराल में भी उसे वही लाड़ मिला, जो उसकी माँ ने उसे दिया था। उसके ससुरालवालों ने उसे अपने परिवार का हिस्सा मानकर उसे अपनाया। सुमन ने अपनी माँ की सीख को अपनी जिंदगी में अपनाया, और वह अपने घर में खुश रहने के साथ-साथ अपने ससुराल में भी खुशहाल जीवन बिता रही थी।
इस कहानी ने हमें यह सिखाया कि किसी भी रिश्ते की खुशहाली के लिए लाड़, प्यार और समझ की जरूरत होती है। बेटी हो या बहू, हर किसी को प्यार और सम्मान से अपना स्थान मिलता है, और जब परिवार में ये तत्व होते हैं, तो खुशहाली अपने आप आती है।
संगीता अग्रवाल