नाटक – बीना शुक्ला अवस्थी : Moral Stories in Hindi

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नई नवेली मण्डिता ने दुल्हन के रूप में जब ससुराल में कदम रखा तो सहेली और बड़ी बहन जैसी जेठानी स्वाति को पाकर बहुत खुश थी। पढाई और नौकरी के कारण उसे तो घरेलू काम बिल्कुल नहीं आते थे लेकिन स्वाति के कारण उसे नये घर में बिल्कुल परेशानी नहीं हुई।

मण्डिता ऑफिस जाने लगी तो स्वाति उसका टिफिन भी तैयार करने लगी जिसके लिये वह स्वाति की बहुत प्रशंसा करती लेकिन उसने देखा कि इतना काम करने के बाद भी स्वाति की कमियॉ गिनाने वाले, उसका अपमान करने वाले तो बहुत थे लेकिन कोई उसके काम की प्रशंसा और सराहना करने वाला नहीं था। 

यहॉ तक मण्डिता का पति पंकज भी हर समय अपनी भाभी को कुछ भी बोल देता। मण्डिता को बुरा तो बहुत लगता लेकिन उसने किसी से कुछ कहने के स्थान पर स्वाति से ही बात की – ” भाभी,आप इतना सब कुछ कैसे सह लेती हैं? हर व्यक्ति आपका अपमान कर देता है और आप कोई उत्तर नहीं देती हैं? आपकी इतनी मेहनत का यह परिणाम?”

” क्या करूॅ मण्डिता, घर की शान्ति के लिये चुप रह जाती हूॅ।”

” घर की शान्ति का ठेका केवल आपने ही लिया है क्या? जब आपकी जरा सी कमी के लिये ये लोग कलह मचाते हैं तब घर की शान्ति भंग नहीं होती? सच तो यह है कि आपके चुप रहने से ही सबकी हिम्मत बढ़ गई है।”

” मैं अधिक पढी लिखी नहीं हूॅ और मेरा मायका भी अधिक सम्पन्न नहीं है। ये लोग जानते हैं कि मेरी ओर से कोई बोलने वाला नहीं है। मुझमें नौकरी करके पैसा कमाने की क्षमता भी नहीं है।”

” भाभी, अपने लिये खुद खड़ा होना पड़ेगा आपको। मैं आपके साथ हूॅ और रही पैसा कमाने की बात तो आपके अन्दर इतने हुनर हैं कि मैं आपको बता दूॅगी कि उनके माध्यम से कैसे पैसा कमाया जा सकता है? लेकिन पहले आपको मेरी बात मानकर अपना यह अपमान बन्द करवाना होगा। “

” तुम्हीं बताओ क्या करूॅ मैं? ये लोग तो मुझे मायके भी नहीं जाने देते हैं कि घर का काम कौन करेगा?”

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मण्डिता ने स्वाति से कुछ कहा और दूसरे दिन जब सुबह सब अपनी अपनी दिनचर्या में व्यस्त थे अचानक रसोई से बहुत तेज आवाज आई साथ ही स्वाति की एक तेज चीख पूरे घर में गूॅज गई – ” क्या हुआ?” कहते हुये सभी रसोई की ओर दौड़े।

रसोई में बर्तन बिखरे पड़े थे और स्वाति जमीन पर पड़ी कराह रही थी – ” देखकर काम नहीं कर सकती? उठो, सुबह का समय है, कितना काम पड़ा है, अभी तक चाय भी नहीं बनी है।” सास की पहली प्रतिक्रिया।

” अरे, मम्मी जी, भाभी गिर पड़ी हैं और आपको इस समय काम की पड़ी है।” फिर मण्डिता ने स्वाति को उठाने का प्रयास किया तो वह फिर से चीख पड़ी।

” लगता है, भाभी को अधिक चोट लग गई है और वह उठ नहीं पा रही हैं। आप इन्हें गोद में उठा कर कमरे तक ले चलिये भइया जी।”

मण्डिता ने अपने जेठ नीरज से कहा तो वह अपने माॅ का मुॅह देखने लगा – ” अब यहॉ कितनी देर तक पड़ी रहेंगी महारानी? कमरे तक तो पहुॅचाना ही पड़ेगा। उठाओ इसे।” सास का आक्रोश।

स्वाति को कमरे में लिटाकर और दवा लगाने के बाद सब लोग सास के कमरे में आ गये – इस विषय पर विचार करने कि अब घर के काम कैसे होंगे?”

मण्डिता ने सबको सान्त्वना दी – ” आप लोग परेशान मत होइये। मैं आज की छुट्टी ले लेती हूॅ। अभी नाश्ता और चाय मैं बना देती हूॅ। आप लोग ऑफिस जाइये, मैं टैक्सी से ले जाकर भाभी को डॉक्टर को दिखा दूॅगी। जैसा होगा, शाम को इस विषय में बात करेंगे।” 

सब लोग खुश हो गये। सास ने कहा भी – ” कितनी समझदार है मण्डिता। डॉक्टर के यहॉ भी चली जायेगी और तुम लोगों को छुट्टी भी नहीं लेनी पड़ेगी।”

” और क्या? अभी स्वाति होतीं‌ तो उससे कुछ न होता।” नीरज बोल पड़ा।

सबने चाय के साथ ब्रेड- बटर  चुपचाप नाश्ते में खा लिया। आज किसी को ऑफिस के लिये टिफिन नहीं मिला।

सबके जाने के बाद मण्डिता स्वाति का नाश्ता लेकर कमरे में आ गई। करीब एक – डेढ़ घंटे बाद वह कमरे से बाहर आई और सास से बोली – ” मम्मी जी, टैक्सी आने वाली है। आप कमरे में आइये और भाभी को टैक्सी तक पहुॅचाने में मेरी मदद करिये।”

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सास को बुरा तो बहुत लगा लेकिन उसके सामने दूसरा कोई रास्ता नहीं था।‌ चलते समय उसने सास से कहा – ” मम्मी जी, वहॉ पता नहीं कितनी देर लग जाये इसलिये दोपहर के खाने के लिये कुछ बना लीजियेगा।”

स्वाति को मन ही मन कोसते हुये सास अन्दर आ गईं। टैक्सी चलते ही मण्डिता ने जब स्वाति की ओर देखा तो दोनों की हॅसी छूट गई।

करीब तीन घंटे बाद जब मण्डिता और स्वाति लौटकर आईं तो दोनों के चेहरे उतरे हुये थे। स्वाति के एक पैर पर प्लास्टर चढ़ा था और दाहिने हाथ की कलाई पर भी प्लास्टर था। टैक्सी से उतरकर मण्डिता पहले अन्दर गई और सास को बुलाकर लाई। फिर दोनों ने स्वाति को सहारा देकर अन्दर कमरे में लिटाया। 

” मम्मी, दीदी को कुछ खिलाकर दवा देनी है। जो बना हो जल्दी से ले आइये।”

सास पहले तो चुप रहीं फिर धीरे से बोली – ” स्वाति के आने के बाद तो मैं रसोई में कभी जाती ही नहीं थी। इसलिये मैं कुछ ढूंढ ही नहीं पाई कि कहॉ क्या रखा है?”

” तो क्या सचमुच कुछ नहीं बना है? वैसे तो सब लोग कहते हैं कि भाभी को कुछ आता ही नहीं है और आज अभी कुछ घंटे ही हुये हैं, घर में नाश्ता खाना कुछ नहीं बना है।” 

सास चुप थीं। मण्डिता ने बाहर से खाना मंगवा लिया और सास को देने के बाद अपना और स्वाति का खाना लेकर कमरे में चली गई।

नीरज स्वाति के कमरे में गया तो वह सो रही थी। बाहर आया तो मॉ रसोई में चाय बना रही थीं, थोड़ी देर में पंकज भी आ गया। चाय बनाकर सास ने मण्डिता को आवाज दी। मण्डिता ने चाय के साथ कुछ बिस्कुट लाकर डाइनिंग टेबल पर रख दी। अपनी और स्वाति की चाय के साथ बिस्कुट लेकर उसके कमरे में आ गई।

सास ने दोनों बेटों को सारी बात बताई कि स्वाति के पैर और हाथ में दो महीने के लिये प्लास्टर चढ़ा है। सुनकर सब अवाक रह गये। इतने दिन घर का काम कौन करेगा? तब तक मण्डिता भी आ गई। सुबह तो किसी तरह काम चल गया लेकिन इस समय फिर खाने की समस्या आकर खड़ी हो गई। 

” मम्मी जी, आप मेरा सहयोग कर दीजिये तो मैं खिचड़ी या मैगी बना सकती हूॅ। इससे अधिक तो मुझे कुछ बनाना आता ही है। कल से मुझे भी ऑफिस जाना है।”

सबके सामने एक विकट‌ समस्या थी। घर के कामों के साथ स्वाति की देखभाल की।

” मैं ऑफिस जाने के पहले भाभी के नित्य कर्म करवा दूॅगी लेकिन फिर मैं रसोई का कोई काम नहीं कर पाऊॅगी। जब तक भाभी ठीक नहीं हो जातीं, रसोई का काम मम्मी जी देख लें। हम लोग बारी बारी से छुट्टी लेकर भाभी की देखभाल करते रहेंगे, दो महीने आसानी से कट जायेंगे।”

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सुनकर सास पर तो जैसे मुसीबत का पहाड़ टूट पड़ा –

” दो महीने…. मैं कैसे कर पाऊॅगी। मेरी तो काम करने की आदत ही छूट गई है।”

” मम्मी जी वैसे तो दीदी आकर रहती ही हैं, दो महीने के लिये उन्हें बुला लीजिये तो आपको सहारा हो जायेगा। आखिर भाभी ने जिन्दगी भर सबकी सेवा की है तो आज जब वह बीमार हैं तो हम सबका भी तो फर्ज है।”

सबकी समझ में नहीं आ रहा था कि क्या किया जाये? सास जानती थीं कि उनकी बेटी तो यहॉ सिर्फ आराम करने आती है। स्वाति की चोंट सुनकर वह न आने का कोई न कोई बहाना बना देगी। इसलिये वह चुप रह गईं।आखिर सास और सबने निर्णय किया कि स्वाति को उसके मायके भेज दिया जाये और घर के काम और खाना बनाने के लिये किसी मेड को रख लिया जाये।

हालांकि मण्डिता ने इस बात का दिखावे के लिये विरोध किया कि यह गलत है। इस समय हम सब लोगों को उनकी सेवा करनी चाहिये। जब वह काम कर सकती थीं तो उन्हें एक दिन के लिये भी मायके जाने नहीं दिया जाता था लेकिन आज जब वह बीमार हैं तो उन्हें मायके भेजा जा रहा है। सबके सिर शर्म से झुक गये।

आखिर स्वाति ने खुद कहा कि उसे मायके भेज दिया जाये क्योंकि यहॉ उसे शारीरिक आराम भले मिल जाये लेकिन मानसिक आराम एक पल के लिये भी नहीं मिल पायेगा।

स्वाति के जाने के बाद सारे सदस्य अपना अपना काम स्वयं करने लगे। घर में दो मेड लग गईं लेकिन इस सबके बावजूद सास की हालत खराब हो गई क्योंकि अब हर समय उनकी सेवा करने वाला कोई नहीं था। घर की व्यवस्था चौपट हो गई थी। सास तो स्वाति के वापस आने की एक एक दिन गिनकर प्रतीक्षा कर रही थीं।

स्वाति के आने के पहले मण्डिता ने सबसे कहा – ” आशा है कि इन दो महीनों में सबको पता चल गया होगा कि भाभी अकेले कितना काम करती थीं, फिर भी उनकी कोई इज्जत नहीं थी। आप सब देख रहे हैं कि दो मेड लगाने के बाद भी घर की व्यवस्था किस बुरी तरह चरमरा गई है। आखिर उन्हें भी आराम के साथ सम्मान चाहिये। अब ये मेड हमेशा काम करती रहेंगी और इनका वेतन हम तीनों मिलकर देंगे।”

” लेकिन छोटी बहू, स्वाति जैसा स्वादिष्ट खाना कोई नहीं बना सकता। जब से गई है, हम लोगों ने पेट भर खाना नहीं खाया है। जब तक सारे काम करती थी, हम लोगों ने उसकी कोई कद्र नहीं की। लगता है उसे यह चोंट हमें आईना दिखाने के लिये ही लगी थी।”

फिर उन्होंने अपने दोनों बेटों की ओर देखते हुये कहा – ” छोटी बहू सही कहती है, अब सब लोग यहॉ तक मैं खुद अपने अपने काम खुद करेंगे। स्वाति केवल खाना बनायेगी और जो पैसे हम मेड को देते हैं वह स्वाति को जेब खर्च के रूप में देंगे।”

स्वाति को मायके से लिवाने पूरा परिवार आया। मण्डिता ने अन्दर जाकर स्वाति को सब कुछ बताया तो उसने खुशी से उसे गले से लगा लिया – ” तुम न होंती तो शायद मैं आजीवन ऐसे ही घुटती रहती और एक दिन ऐसे ही घुट घुटकर मर जाती।”

” मुझे तो अब भी आश्चर्य होता है कि भाभी, आप इतना सब कुछ कैसे सह लेती थीं? अब मैं आपको हाथ से बनी ऊन और जूट की वस्तुओं को आनलाइन बेंचना  सिखा दूॅगी। केवल इतना याद रखियेगा कि हम लोगों का यह नाटक‌ हमेशा गुप्त रहना चाहिये और हॉ••••••।”

मण्डिता ने शरारत से स्वाति की ओर देखा- ” कुछ दिन थोड़ा लंगड़ा कर धीरे धीरे चलियेगा, वरना हमारी पोल खुल जायेगी।”

स्वाति के अधरों पर मण्डिता के लिये एक कृतज्ञता और प्यार भरी मुस्कान तैर गई।

बीना शुक्ला अवस्थी, कानपुर 

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