प्रेम में लांछन ना लगे – शुभ्रा बैनर्जी : Moral Stories in Hindi

नित्या का मन किसी काम में नहीं लग रहा था। रह-रहकर सिद्धांत की याद आ रही थी। कहने को कह तो दिया था कि अब कभी बात ना करे,पर उसके मैसेज का इंतजार भी किया कल पूरा दिन।

कुछ दिनों की ही जान- पहचान थी,वो भी औपचारिक।उसकी चार पंक्तियों की शायरी पढ़कर बड़ा अच्छा लगता था।सोशल मीडिया में आए ज्यादा दिन हुआ नहीं था,नित्या को। कमेंट्स करती रहती थी,जो भी अच्छा लगता था।ख़ुद वो भी कविताएं और कहानियां लिखती थी।बेटी ने इसी साल फेसबुक पर एकाउंट खोल दिया था।ज्यादा जानकारी थी नहीं नित्या को।

सिद्धांत को नियमित पढ़ती थी।वह भी शुक्रिया या थैंक यू जरूर कहता।एक दिन उसने फ्रैंड रिक्वेस्ट भेजी,जो नित्या ने सहर्ष स्वीकार कर ली।अपनी अगली शायरी लिखकर वो पहले भेजता नित्या को,और पूछता भी”बताइये,ठीक है या नहीं?”

नित्या बड़े हक से उसकी गलतियां बताती,और सुधार भी देती।वह मासूमियत से कहता”वाह!!आपकी पकड़ तो बहुत अच्छी है हिंदी में। शुक्रिया।”

बातों-बातों में ही पता चला नित्या को,कि वह बहुत छोटा है उम्र में।हैरानी तो उसे तब हुई , जब पता चला कि वह काफी दिनों से लिख रहा है।बहुत सारे प्लेटफॉर्म उसकी शायरी प्रकाशित होती है।गुस्से से भरकर तब उसने कहा था”तुम तो इतना अच्छा लिखते हो,फिर मुझसे क्यों पूछते हो?कैसा लिखा है?मुझे शर्मिंदा करने के लिए ऐसा कहते हो ना तुम?मैं तो नौसिखिया हूं,तुम्हें सलाह देने लगी थी।”

वह अभी तक जी,या आप ही कहता था,पर आज उसने बहुत ही आत्मीयता से कहा”नित्या,मुझे अच्छा लगता है,जब तुम सहजता से मेरी गलतियां निकालती हो।अधिकार से सुधार भी देती हो,पंक्तियां मेरी।बहुत अपनापन लगता है।तुम भी अच्छा लिखती हो,पर मुझसे अच्छा नहीं।”

सिद्धांत की अकड़ देखकर तो दंग ही रह गई थी नित्या”क्या कहा? नित्या?तुम्हें शर्म नहीं आती!!कितनी बड़ी हूं मैं तुमसे,और तुम नाम ले रहो हो मेरा।कम से कम जी तो लगा ही सकते हो।मैं तुम्हारी दोस्त नहीं हूं,समझे।मुझे ऐसे लापरवाह लोग पसंद नहीं।”

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जवाब में उसने सपाट स्वर में कहा”तुम्हें पसंद नहीं तो कोई बात नहीं।मैं तुम्हें मुझको पसंद करने के लिए कहां कह रहा हूं?हां,मुझे तुम्हें नाम से बुलाना पसंद है।अच्छा एक बात सच-सच कहना,तुम्हें अपना नाम लेना पसंद नहीं क्या?कितना प्यारा नाम है।”

नित्या उस दिन सच में झूठ कह नहीं पाई।काफी सालों के बाद किसी ने उसका नाम लेकर बुलाया था। मम्मी- पापा अब थे नहीं।पति को भी गुजरे तीन साल हो चुके थे।परिवार में कोई दीदी,कोई भाभी,कोई बहू ही कहता।बच्चों की मम्मी,और अपने छात्रों की मैम।नित्या तो कहीं खो गयी थी।इसके नित्या कहने से अच्छा ही लगा था।चुप रह गई थी नित्या,तो जैसे उसने चोरी पकड़ी ली हो”बोलो-बोलो,अच्छा नहीं लगा क्या मेरा नित्या कहना?मैं जानता हूं,तुम्हें बहुत शांति मिलती है,अपने नाम से।”

नित्या ने फिर डपटा “तुम्हें कैसे पता चला?तुमने मेरी कुंडली देखी है क्या?आइंदा कभी मेरा नाम मत लेना।मुझे आदत नहीं है इस बेबाकी की।मेरा नाम बहुत सम्मान से लेतें हैं लोग।तुम मेरे दोस्त भी बनने की कोशिश मत करना।मैं ब्लॉक कर दूंगी तुम्हें,हां नहीं तो।”,

वह वाचाल या शरारती नहीं था।बहुत ही संजीदगी से बोला”नित्या,मुझे तुमसे दोस्ती करनी भी नहीं। तुम्हारी आंखें देखी हैं मैंने, फेसबुक वाली प्रोफाइल पर।मुझे उन आंखों ने ही तुम्हारे बारे में सब बता दिया।तुम जो हो,जैसी हो,वैसी ही रहो।मुझे बस तुमसे बात करनी है।दिन में एक बार बस बात कर लिया करो। प्लीज़।मैं तुम्हें कभी परेशान नहीं करूंगा।”

नित्या के लिए यह अप्रत्याशित था।ऐसा पहले कभी नहीं हुआ था। औपचारिक तौर पर कई जान-पहचान वाले,या अपिरिचित बात करते थे नित्या से।नित्या ख़ुद भी बहुत अनुशासित थी,इस तरह नाम लेकर किसी कम उम्र के लड़के ने कभी बात नहीं की थी।सोशल मीडिया में कभी -कभार अवांछित तत्वों के द्वारा अभद्रता की जाती है,सुना था उसने। नहीं-नहीं अब बात नहीं करेगी।ब्लॉक कर देगी उसका नंबर।पता नहीं और क्या-क्या करें आगे।

नित्या को अगले दिन सुबह उसका गुड मार्निंग का मैसेज मिला।उसने जवाब ही नहीं दिया,टालने के लिए। सिद्धांत ने शाम को फिर अपनी एक शायरी भेजी। साथ में लिखा”देख लो,तुम्हारी पसंद का है ना?जहां जरूरत लगे,सुधार देना।रात में पोस्ट करूंगा।ओ के।”

नित्या सोचने लगी,कल ही तो इतना सब सुनाया था उसे।सब भूल गया इतनी जल्दी। उफ्फ़!आफ़त है यह पूरा।बेमन से पढ़ा और कुछ नहीं कहा।थोड़ी देर में ही मैसेज आया”नित्या,जल्दी करो ना।पोस्ट करनी है मुझे।जल्दी से ओके करो।मैं इंतजार कर रहा हूं।सोना है फिर मुझे।”

अरे इसने क्या अपना असिस्टेंट बनाया हुआ है।आज कर देती हूं।कल से बिल्कुल मना कर दूंगी।

फिर वह कल कभी आया ही‌ नहीं। नित्या को रोज उसकी रचनाओं का इंतजार रहता।थोड़ा बहुत हर बार ही लफ्ज़ बदलती थी वह।उसने हंसकर एक बार कहा भी”तुम्हारी परेशानी पता है क्या है?तुम मेरी शायरी को सिर्फ अपने लिए ही समझती हो।ऐसा नहीं होता बाबा।हमारी जिम्मेदारी है

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कि हम समाज के हर पहलू के बारे में लिखें।सभी पढ़ें और अपनी प्रतिक्रिया दें।मेरी शायरी नित्या को ही केवल समर्पित नहीं होती।”उस दिन तो खून खौल उठा था नित्या का।इतनी बेइज्जती कभी किसी ने नहीं की थी।मुंह के ऊपर ही कहता है कोई ऐसा? साफ़-साफ़ बोल दिया था उसे”आज के बाद हमें मत भेजा करो।अपनी मर्जी से ही जब पोस्ट करना है तो,क्यों हमें पढ़ाते हो पहले?हम तुम्हारे प्रूफ रीडर थोड़े ही हैं।हां नहीं तो।”,

वह भी हंसकर कहता”मेरी लिखी हुई रचनाओं को दसों बार खुद पढ़कर प्रूफ करता हूं मैं,तब पोस्ट करता हूं।तुमसे तो गलतियां सुधरवाया करता हूं।जब मेरी किताब छपेगी,तुम्हें थोड़ा सा कमीशन दे दूंगा।हां नहीं तो।”,बस इसी तरह हर दिन एक बार झगड़ना अनिवार्य था हम दोनों का।

नित्या को भी अब जीने का मकसद मिल गया था। सिद्धांत की रचनाओं में जबरदस्ती गलती निकालते -निकालते खुद भी पहले से अच्छा लिखने लगी थी। सिद्धांत कभी -कभी एक छोटी सी कहानी का प्लॉट दे देता और कहता इसे पूरा करो,हैप्पी एंडिंग के साथ।बस अब नित्या कहानियां भी लिखने लगी थी।

वह भी पढ़ाता था एक स्कूल में। पहुंच कर नियमित मैसेज करता”रीच्ड ना।”और नित्या का जवाब होता”टेक केयर।”इन्हीं सब के बीच कब परवाह का रिश्ता बन गया दोनों में पता ही नहीं चला। उम्र में फर्क तो था ही,स्वभाव में भी समानता नहीं थी।हर बात पर बहस होती थी। कभी उसकी‌ तरफ से कभी नित्या की तरफ से। लड़-झगड़कर यही कहते दोनों “अब बात मत करना कभी।”दूसरे दिन‌ ही लड़ाई खत्म हो जाती।

अपने लिए कुछ भी खरीदता तो दिखाकर पूछता ,”कैसा लग रहा है?”

नित्या भी चिढ़ाने के लिए कहती”बिल्कुल अच्छा नहीं लग रहा।”वह तपाक से कहता”मतलब बहुत अच्छा लगा तुम्हें।यही खरीदूंगा।”

एक नंबर का अकड़ू था।किसी भी बात को हल्के में नहीं लेता था। अनाप-शनाप बातें‌ कभी नहीं हुई दोनों के बीच। सम्मान का दायरा किसी ओर से कम नहीं होने पाया।

चार साल हो चुके थे,इस परवाह के रिश्ते को।उसने खाना खाया कि नहीं, गर्मी में गमछा लिया कि नहीं,ठंड में‌ जैकेट पहना कि नहीं ,पूछना ना तो नित्या भूली,और ना वह-अपना ध्यान रखना,मैगी खाकर ही मत सो जाना,मुझे कुछ प्रश्नपत्र बनाकर दो ना,बोलना भूलता।

अभी पिछले कुछ दिनों से उसे समय नहीं मिल पा रहा था। बहुत सारे ट्यूशन ले लिए थे उसने।अब ज्यादा बात नहीं हो पाती थी।बस रात में‌ एक बार हाल चाल पूछता।अब वह लिख भी नहीं‌ पा रहा था,समय की कमी की वजह से।नित्या को खाली-खाली लगने लगा सब।जब भी फुर्सत मिलती,ताने देने लगती”,तुम्हारे पास तो अब फुर्सत ही नहीं। रगों। गुडनाईट।वह भी थका होने के कारण गुडनाईट कहकर सो जाता।पर सुबह खोज खबर लेने के लिए गुड मार्निंग जरूर भेजता।

आज नित्या ने ठान लिया था ,बात करके ही रहेगी।शाम को जब मैसेज किया,तो नित्या बिफर गई”कितने दिनों के बाद आज बात कर रहे हो।इतने व्यस्त रहते हो तुम?ऐसा करो ना खत्म करो अब ये बात चीत।हमारे बीच कुछ रिश्ता भी तो नहीं‌ है।”उसने बस इतना ही कहा”फिर तुम किस हक से लड़ रही हो।

हमारे बीच कुछ तो है नित्या,जो बंधन में नहीं‌ बंधा है।तुम मेरी प्रेरणा हो,प्रेयसी नहीं‌ हो।हमारे बीच पता नहीं क्या है,पर तुम मेरे लिए प्रेम हो,श्रद्धा हो,अधिकार हो,विश्वास हो,गरिमा हो।इस रिश्ते को कभी कलंकित नहीं होने दूंगा मैं।तुमसे बंधा हुआ महसूस करता हूं मैं‌ ,तुम्हारी उन्मुक्त खुशी में।तुमसे बंधा हुआ हूं मैं‌ तुम्हारे रंजो से।तुम्हारे करीब रहता हूं मैं तुम्हारे भावों में।मैं इससे ज्यादा और कुछ नहीं दे सकता तुम्हें सॉरी।मेरी ज़िम्मेदारी,मुझे इस बात की इजाजत कभी नहीं देगी कि मैं तुम्हें सब्जबाग दिखाऊं।”

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उसकी बात खतम होते ही नित्या ने कहा”इसका मतलब तुमने मुझ पर तरस खाकर बात करना शुरू किया।मैं विधवा हूं,पर चरित्र नहीं मरा मेरा।मुझे टाइम पास मत समझना तुम।प्रेम की उमर नहीं है मेरी।बस तुमसे बात करना अच्छा लगता है।मुझे भी तुमसे कुछ नहीं‌ चाहिए।तुम ठीक रहो बस।”,

उस दिन ,रात को मैसेज किया उसने”सॉरी,सॉरी कई बार बोलकर।”नित्या खिसिया गई “किस बात की सॉरी इतनी सारी?”पागल‌हो गाए हो क्या?”

उसने पहली बार बिना अकड़ के कहा”नित्या ,मैं तुमसे प्रेम करता हूं।बताना नहीं चाहता था पर यह पाप होता।इस प्रेम में‌ पाने और खोने को कुछ नहीं‌ है।यह बिना किसी अपेक्षा के किया जाने वाला प्रेम है।परवाह है एक दूसरे की। अंतहीन प्रतीक्षा है।मिलने की‌ आस्था है मन में एक बार।

तुम्हारे सानिध्य में‌ रहकर मैं अपना बेहतर प्रारूप ढूंढ़ पाया।तुमने मुझे पूर्ण किया है।मेरे जीवन पर तुम्हारा हक उतना ही है‌,जितना मेरे माता-पिता का।तुम्हारी दुआएं‌ जो तुम करती हो मेरे लिए,मुझे उसी से तुम्हारा प्रेम मिल जाता है।आत्मा शांत हो जाती है तुमसे बात करके।मैं‌ जल्दी ही आऊंगा मिलने तुमसे।नाराज़ मत हुआ करो।समय सच में नहीं‌मिलता मुझे।”

नित्या ने भी मन मारकर कह दिया था”ठीक है ,हमें‌‌ मिलने की जरूरत नहीं।एक दूसरे पर दोषारोपण की भी जरूरत नहीं।हमने तुम्हें‌ किसी बंधन‌ में‌बांधा ही नहीं।तुम जैसे हो‌वैसे ही ठीक‌ हो।तुम अपनी पढ़ाई पर भी ध्यान‌दो।सरकारी नौकरी निकालो।

अब हम बात ना ही करें तो बेहतर हैं।तुम अपने कैरियर पर फोकस करो।”

अगले दिन वाकई में‌ उसका कोई मैसेज नहीं आया।तो क्या ,अब बात नहीं‌ होगी।कभी तो लड़ाई याद नहीं‌ रखता,आज कैसे नहीं‌ भूला। नित्या का मन आशंका से कांप‌ रहा था।अब यह परवाह का रिश्ता खत्म होने जा रहा है।सोशल मीडिया से जन्मा था ना,कब तक टिकता आखिर?लोग सच कहते हैं।इसमें बने रिश्ते दो‌चार दिनों‌ के मेहमान होते हैं।

काफी दिन बीत चुके थे। नित्या ने मान लिया था कि अब सिद्धांत से बात नहीं करेगी।जो भी था ,सब खत्म करना होगा।इसी में सिद्धांत की भलाई है।जितना नित्या में उलझेगा, अपनी मंजिल से भटकेगा।

शाम को कॉल आया,देखा तो सिद्धांत का ही था। बहुत कम ही कॉल पर बात होती थी।नित्या ने जैसे ही कहा”हैलो,कौन?”फिर से उसने चिढ़ाया”नंबर तो सेफ होगा तुम्हारे पास,फिर‌अनजान क्यों‌ बन‌ रही हो।”

नित्या को आगे उसने सरप्राइज देते हूए कहां,”नित्या जी,कल मैं‌आ रहा हूं  आपसे मिलने।बहुत ताना दिया है तुमने।लो‌ अब आ रहा‌हूं‌मैं।दस बजे निकलूंगा दिल्ली से।एक ट्रेनिंग के‌ लिए‌आया था ,सोचा तुमसे मिल लूं।तुम्हारी सारी शिकायतें दूर कर दूं।”

नित्या का दिल बल्लियों उछलने  लगा ।समझ ही नहीं आया कि क्या बोले?झट से बोली”अरे तुम हमेशा ग़लत समय तय करते हो मिलने का।मन‌ से नहीं चाहते ना मिलना, इसीलिए।हम लोग कल स्कूल की तरफ से  पचमढ़ी जा रहें‌ हैं कुछ दिनों के लिए।सुबह ही निकलना होगा।मना भी‌ नहीं कर सकते।”

“कोई नहीं,फिर कभी।मैं‌ घर लौट जाता हूं।हमारे निश्छल‌ रिश्ते को अभी और पकना है,रूप में आने के लिए।है‌ ना नित्या?

अगली सुबह ना तो नित्या कहीं गई और ना ही सिद्धांत घर गया।वह दिल्ली में ही था।मैसेज पर पूछा”झूठ क्यों बोला मुझसे?तुम कहीं नहीं जा रही हो।है ना,!!प्रेम में आस्था नहीं रह गई तुम्हारी।

नित्या रोते हुए कह रही थी”प्रेम से ज्यादा हमें तुम पर आस्था है।तुमने अपने पाले सारे दुख लेकर,हमें मिलन का सुख देना चाहते हो।यह तो स्वार्थ हो जाएगा हमारे लिए।मास्टर,हम ना मिले यही ठीक रहेगा।मिलकर बिछड़ना कष्टदायक होगा बहुत।हम अपने प्रेम में लांछन नहीं लगने देंगे।

ठीक ही है तुम बने रहो कृष्ण,हम बने रहें मीरा।हमने बिना मिले तुम्हें पूरा पाया है।तुम पर हमारा हक है भी,और नहीं भी। इस रिश्ते को मिलकर नया नाम देने की जरूरत नहीं।कुछ रिश्ते मन के रिश्ते होते हैं।निभाओ और बदले में कुछ ना मांगों।इबादत की तरह पवित्र हमारे रिश्ते को,हम कोई लांछन नहीं लगने देंगे।तुम्हें हमने अपने हर तानों से मुक्त किया आज।तुम बस खुश रहना।और हां बुक‌ छपने पर हमारा कमीशन भूलना मत।”,

वह चुप था,शायद रो रहा था।प्रेम कर बैठा था पागल बिना दुनिया दारी जाने।वो भी नित्या से,जो बड़ी है उम्र में उससे।

उसने फिर मैसेज किया”,एक बार मिलना था मुझे तुमसे।कुछ करो ना नित्या।”

नित्या ने गंभीर होकर कहा “,मिलेंगे ना,या तो तुम्हारी शादी में,या मेरी बेटी की शादी में।पक्का।अब तुम फोकस करो अपने कैरियर में। लड़-झगड़कर ही ठीक है हमारा मन का रिश्ता।देखकर ,पास आकर लांछन‌ नहीं‌लगा सकते हम इसे।

शुभ्रा बैनर्जी 

#मन का रिश्ता

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