मनुष्य की जिन्दगी में कब कौन-सा मोड़ आकर उपस्थित हो जाएँ और कौन-सा फैसला लेना पड़ जाएँ,कुछ कहा नहीं जा सकता है।कथानायिका सरोज भी आज इसी दोराहे पर खड़ी है।सरोज को उसके पिता बहुत प्यार करते थे।सभी भाई-बहनों में बड़ी सरोज पिता की अत्यधिक दुलारी थी।पिता हमेशा उसे रानी कहकर ही बुलाते थे। उसे देखकर हमेशा गुनगुनाते थे’रानी बेटी राज करेगी!’
दफ्तर में कंप्यूटर पर काम करती हुई सरोज सोचती है -” यही राज कर रही हूँ,दिनभर काम करते-करते ऊँगलियाँ घिस जाती हैं,तब कहीं जाकर पन्द्रह हजार मिलते हैं,जिनसे बमुश्किल से घर का खर्चा चलता है।”
उसी समय उसकी सोच पर विराम लगाते हुए दफ्तर का चपरासी कहता है -“मैम!सर आपको अपने केबिन में बुला रहे हैं।”
उसकी सहकर्मी सुमन उसे तिरछी नजरों से देखती है।उसको नजरअन्दाज करती हुई सरोज नजरें झुकाए बाॅस नितिन के केबिन में पहुँचती है।बाॅस उसे एक फाईल देते हुए कहते हैं -” सरोज !इस फाईल को ठीक से देख लो और आज ही पूरी कर दे जाओ।”
सरोज स्वीकृति में सर झुकाकर फाईल लेकर अपनी सीट पर आ जाती है।
बाॅस नितिन की उम्र पचास के आस-पास थी।काफी खुबसूरत और स्मार्ट होने के कारण उतनी उम्र नहीं दिखती थी।अपने पारदर्शी केबिन से नितिन की नजरें हमेशा सरोज पर लगी रहती थी।पच्चीस वर्षीया सरोज बड़ी-बड़ी आँखें,दुबली -पतली काया,लम्बे बालों वाली गौरवर्णी सीधी-सादी लड़की थी।उसकी भोली सूरत और गदराया बदन नितिन को अपनी ओर आकर्षित करता,परन्तु सरोज उनकी ओर आँखें उठाकर भी नहीं देखती।बस अपने काम से काम रखती थी।
सरोज को इस दफ्तर मे काम करते हुए दो साल हो चुके थे,परन्तु उसने कभी भी पैसे या काम को लेकर बाॅस से कभी कोई शिकायत नहीं की।शिकायत करती भी तो कैसे?घर में दो छोटी बहनें,एक भाई और माँ की जिम्मेदारी उस पर थी।हर पल उसके मन में नौकरी छूटने का भय समाया रहता था।जबतक उसके पिता जीवित थे ,
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तो प्राइवेट नौकरी में छः जनों का परिवार खींच रहे थे,परन्तु किसी से कोई शिकायत नहीं करते।जिस दिन सरोज के स्नातक का परिणाम आया,उस दिन उसके और उसके पिता की आँखों में सुनहरे भविष्य के सपने सज गए थे।परन्तु उनकी खुशी ज्यादा दिनों तक टिक नहीं पाई। अचानक से उसके पिता क्षय रोग से ग्रसित हो गए। उनके इलाज में घर की जमा-पूँजी समाप्त हो गई और एक दिन पिता भी परलोक सिधार गए।
अचानक से भोली-भाली सरोज के परिवार पर गमों का पहाड़ टूट पड़ा।उसकी माँ तो कुछ ज्यादा पढ़ी-लिखी नहीं थी,तीन छोटे भाई-बहन थे।देखते-देखते परिवार की जिम्मेदारी सरोज पर आ गई। सरोज ने हिम्मत न हारते हुए कंप्यूटर कोर्स कर लिया ,जिसकी बदौलत चार्टर्ड एकाउंटेंट नितिन के दफ्तर में उसकी नौकरी लग गई।
दफ्तर का काम करते-करते आज उसे काफी देर हो गई। बाॅस नितिन चपरासी के द्वारा उसकी सीट पर चाय-समोसा भिजवा देते हैं।उन्हें देखकर सरोज कुछ हिचकिचाती है,परन्तु काम की अधिकता के कारण उसे चाय की तलब तो हो ही रही थी।वह चुपचाप चाय-नाश्ता कर बाॅस के केबिन में जाकर फाईल सौंप देती है।नितिन उससे कहते हैं-” सरोज!काफी देर हो चुकी है,चाहो तो मैं अपनी गाड़ी से तुम्हें घर छोड़ दूँ?”
सरोज मना करते हुए ऑटो से अपने घर निकल जाती है।
अगले दिन दफ्तर पहुँचते हुए उसकी सहकर्मी सुमन उससे व्यंग्य से कहती है -“तुम्हारे तो बहुत मजे हैं।तुम्हें तो दफ्तर में बैठे-बैठे चाय-समोसे मिल जाते हैं।बाॅस तुम्हें बार-बार अपने केबिन में बुलाते हैं,एक हम हैं जो एक नजर को तरस जाते हैं।”
उसकी बातों पर सभी सहकर्मी खिलखिला कर हँस पड़ते हैं।सरोज उनकी बातों का कोई जबाव न देकर अपनी सीट पर जाकर बैठ जाती है।आजकल नितिन के ख्यालों में सरोज ज्यादा ही आने लगी है।सरोज को देखकर उसका मन चंचल हो उठता है।बार-बार चुंबक की तरह सरोज का आकर्षण उसे खींचता रहता है।
कुछ समय बाद नितिन फिर सरोज को अपने केबिन में बुलाता है।उसकी सहकर्मी फिर से कुटिल मुस्कान के साथ उसकी ओर देखती है।सरोज नितिन के केबिन में जाकर चुपचाप खड़ी हो जाती है।
नितिन-” सरोज!खड़ी क्यों हो?कुर्सी पर बैठ जाओ। सरोज सकुचाते हुए कुर्सी पर बैठ जाती है।
नितिन-“सरोज!मैंने तुम्हारा प्रमोशन कर दिया है।अब से तुम मेरी सेक्रेटरी हो।तुम्हारी तनख्वाह भी 35,000 हो गई है।यह सुनते ही सरोज को ऐसा महसूस हुआ, मानो वह कुर्सी से ही उछल पड़ेगी।आन्तरिक खुशी उससे छिपाए नहीं छिप रही थी,परन्तु वह बयां नहीं कर पा रही थी। जिस प्रकार किसी गूँगे को गुड़ खिलाकर उससे उसका स्वाद पूछा जाएँ,वही स्थिति उसकी हो रही थी।उसने झट से बाॅस को धन्यवाद कहा और केबिन से बाहर निकल गई।
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दफ्तर से लौटते हुए उसने अपने परिवार के लिए गिफ्ट खरीदी।छोटे भाई-बहन गिफ्ट देखकर खुश हो जाते हैं।माँ उसे टोकते हुए कहती है -“बेटी!घर के खर्चें ही मुश्किल से चलते हैं।क्या जरूरत थी इतने पैसे खर्च करने की?”
सरोज हर्षातिरेक से माँ के गले लगते हुए कहती है -“माँ!अब चिन्ता की बात नहीं है।मेरी तरक्की हो गई है।अब तीनों भाई-बहनों की पढ़ाई अच्छे से हो पाएगी!”
माँ खुश होकर उसके लिए चाय बनाने चली जाती है।
अगले दिन प्रमोशन को लेकर उसे दफ्तर में अपने सहकर्मियों के व्यंग्य-वाण सुनने पड़े।उसकी सहकर्मी सुमन ने तो अपनी ईर्ष्या -भावनाओं का खुलकर इजहार करते हुए कहा -“हमें तो कुछ पता ही नहीं चला कि तुम कंबल ओढ़कर घी पीती हो।तुम बाॅस की सेक्रेटरी बन गई और हम सीनियर होते हुए भी मुँह ताकते रह गए। चलो!अब मुँह तो मीठा करवाओ।”
सरोज का दिल उनके व्यंग्य वालों से छलनी हो रहा था.परन्तु उसने किसी बात का जबाव नहीं दिया।उसके मन में बस अपने भाई-बहनों की अच्छी शिक्षा की बातें जड़ जमाएँ थीं।
अब नितिन दफ्तर के काम से जहाँ भी जाता,वह भी उसके साथ जाती।कभी-कभार वह नितिन की नजरों से असहज हो उठती,पर वह जान-बूझकर अनदेखा कर जाती।
एक दिन बाॅस ने उसे अपने केबिन में बुलाकर कहा -“सरोज!आज रेडिसन ब्लू होटल में विदेशी क्लाइंट के साथ मीटिंग है,तुम्हें भी चलना है।वहाँ देरी भी हो सकती है,घर में खबर कर दो।”
वह हमेशा की तरह बाॅस की बात मानकर उनके साथ होटल चल पड़ी।सरोज ने जिन्दगी में पहली बार किसी फाइव होटल में कदम रखा था।यहाँ की सुख-सुविधा और ऐशो-आराम देखकर उसे महसूस हो रहा था मानो वह किसी और दुनियाँ में पहुँच गई हो।अपने मन के भावों को छिपाते हुए उसने बड़ी सहजता के साथ क्लाइंट के साथ मिलकर अपने काम को अंजाम दिया।उसकी कार्यकुशलता से क्लाइंट और नितिन काफी प्रभावित हुए।
मीटिंग समाप्त होने पर सरोज घर जाने के लिए नितिन की गाड़ी में बैठ गई। नितिन ने गाड़ी अपने घर की तरफ मोड़ दी। गाड़ी मुड़ते ही सरोज ने कहा -” सर!काफी देरी हो गई है।मुझे घर जाना है।”
नितिन-“सरोज! कृपया बस आधे घंटे के लिए मेरे घर चलो,तुमसे बहुत जरुरी बात करनी है।उसके बाद तुम्हें घर छोड़ दूँगा।”
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रात के सन्नाटे में सरोज के पास नितिन की बात मानने के सिवा कोई चारा भी नहीं था।सरोज नितिन के घर पहुँचती है।सूने घर को देखकर एकबारगी वह डर जाती है।नितिन उसे आश्वस्त करते हुए कहता है कि स्कूल की छुट्टियों में बच्चे नानी के घर गए हैं।आगे बिना लाग-लपेट के उसके साथ सोफा पर बैठते हुए एक फोटो की ओर इशारा करते हुए कहता है
-” सरोज!इस फोटो को गौर से देखो, मेरी पत्नी की है,जो मुझे और दो बच्चों को छोड़कर पाँच साल पहले गुजर गई है।उसकी मौत की आँधी के एक झोंके से मेरी दुनियाँ तिनका-तिनका बिखर गई। उसके बाद मैंने शादी का विचार ही त्याग दिया,परन्तु तुम्हारा चेहरा मेरी पत्नी से इतना मिलता-जुलता है कि मैं आज तुम्हारे रुप में मैं उन तिनके को समेटकर अपने और बच्चों के साथ फिर से नई दुनियाँ बसाना चाहता हूँ।”
नितिन की बातें सुनकर सरोज हतप्रभ-सी रह गई। उसका गोरा चेहरा अचानक से लाल हो जल उठता है।यह घटनाक्रम इतना जल्द घटित होता है कि सरोज समझ नहीं पाती है कि क्या जबाव दे।उसके कोरे-कुँवारे मन में एक कुँवारे हमसफ़र का सपना बसा हुआ था।अपने से इतनी बड़ी उम्र के हमसफ़र की तो उसने कभी कल्पना भी नहीं की थी।
वह किंकर्तव्यविमूढ़ हो उठी।उसे परेशान देखकर नितिन ने कहा -” सरोज!घबड़ाने की कोई जरूरत नहीं है।समय लेकर सोच-विचारकर जबाव देना।शादी के बाद तुम्हारे परिवार की जिम्मेदारी मेरी होगी।”
सरोज-सर!अब मुझे घर जाना है।”
नितिन अपनी गाड़ी से सरोज को घर छोड़ देता है।सरोज फ्रेश होकर जल्द ही सोने चली जाती है,परन्तु उसकी आँखों से नींद कोसों दूर है।उसके मस्तिष्क में मंथन चल रहा है।वह द्विविधा में फँस चुकी है।उसके सपने तार-तार हो चुके हैं।अगर वह अपना स्वार्थ देखती है,तो उसके भाई-बहनों का भविष्य अंधकारमय हो जाएगा।
बेचैनी में बिस्तर से वह कभी उठती है,तो कभी खिड़की के पास खड़ी होकर आसमान की ओर निहारती है।भावनाओं का तूफान उसे अंदर तक हिलाए जा रहा है।उसे कुछ समझ में नहीं आ रहा है कि आखिर क्या फैसला ले?फिर से आकर बिस्तर पर लेट जाती है,परन्तु मस्तिष्क में बहुत सारे सवाल घुमड़ने लगते हैं।
अगर वह नितिन के निर्णय को ठुकरा देती है,तो उसे फिर से नौकरी के लिए दर-ब-दर की ठोकरें खानी पड़ेगी।अगर नौकरी मिलेगी भी तो पन्द्रह-बीस हजार से ज्यादा की नहीं मिलेगी।उनमें तीनों भाई-बहन की शिक्षा कैसे पूरी होगी?अपने स्वार्थवश अगर वह नितिन से शादी नहीं करने का निर्णय लेती है,
तो परिवार की जिम्मेदारी नहीं उठाने के कारण खुद को जिन्दगी भर माफ नहीं कर पाएगी।रात की गहराती कालिमा में उसकी सोच स्पष्ट और धवल होती जा रही थी।स्वार्थ के मोहपाश से मुक्त होकर आनेवाले पल के लिए खुद को सबल बना रही थी।मन में आखिरी फैसला लेने पर उसके होठों पर मुस्कान छा गई और वह नींद के आगोश में समा गई।
एक सप्ताह बाद उसने नितिन को अपना आखिरी फैसला सुनाते हुए कहा -” सर! मुझे आपका प्रस्ताव मंजूर है!”
आखिरी फैसला सुनाते समय उसकी आवाज भर्रा गई। वह अपनी आँखों में चमकते आँसुओं को छिपाने के लिए दूसरी ओर देखने लगी।उसे ऐसा महसूस हो रहा था,मानो उसके भीतर बहुत कुछ टूटकर बिखर रहा है।उसका मन कर रहा था कि अभी यहीं फूट-फूटकर रो ले,पर उसने बड़ी कठोरता से खुद को सँभाले रखा।
सरोज की स्वीकृति से नितिन उछल पड़ता है।वह हर्षोल्लास से दफ्तर में सभी सहकर्मी को सुनाकर कहता है-” मैं अगले महीने सरोज के साथ कोर्ट-विवाह कर रहा हूँ!”
कुछ सहकर्मी तो नितिन का घर फिर से बसने के कारण खुले दिल से बधाई देते हैं और कुछ ईर्ष्यावश अपने शब्द भेदी व्यंग्य-वाण से सरोज को लहू-लुहान भी कर देते हैं।कितने कठोर और भावशून्य हृदय है उन लोगों का,जो उसकी विवशताजन्य निर्णय पर भी प्रहार करने से नहीं चूकते हैं।सरोज के मन में उनकी बातों से क्षोभ उत्पन्न हो रहा था,पर विवशता की छाया में उसने क्रोध को पी लिया।आखिरकार उसे अपने परिवार की भी जिम्मेदारी निभानी थी।
एक महीने बाद नितिन सरोज के साथ कोर्ट-विवाह कर लेता है।घर पर सात वर्षीय बेटा और पाँच वर्षीया बेटी सूनी-सूनी आँखों से उसकी ओर देखते हैं।सरोज हाथ बढ़ाकर दोनों को अपने आलिंगन में ले लेती है।बच्चों को आलिंगन में लेकर सरोज मन-ही-मन सोचती है कि मेरे फैसले का परिणाम जो भी हो,
परन्तु इन बच्चों ने मुझे माँ बने बिना ही मातृत्व की खुशबू से सराबोर कर दिया।खुशी की ये छोटी-सी लहर उसके हृदय में समंदर का एहसास करा रही थी।नितिन वर्षों बाद दोनों बच्चों की आँखों में खुशी महसूस कर रहा था।
समाप्त।
लेखिका-डाॅक्टर संजु झा(स्वरचित)