लता दीदी को सलूट है – नेकराम : Moral Stories in Hindi

रोज की तरह मैं नाइट शिफ्ट वाली ड्यूटी पर आकर खाली पड़ी चेयर पर बैठ गया रात होते होते मोहल्ले की सभी दुकानों के शटर धीरे-धीरे बंद होने शुरू हो चुके थे मौसम भी सर्द था इसलिए लोगों का आना-जाना भी बहुत कम था सामने ही मेंन रोड है जिस पर वाहनों का आना-जाना लगा रहता था रोड पर निकलने वाली छोटी बड़ी गाड़ियों को देखते-देखते न जाने कब सवेरा हो  जाता पता ही ना चलता था ।

दिसंबर का महीना था इसलिए कोहरा रात 3:00 बजे से ही शुरू हो जाता था सुबह के 4:00 बजते बजते मैं आसपास पड़ी पेड़ों की कुछ टहनियां उठा लाता कुछ सुखी लकड़ियां पहले से ही मेरे पास मौजूद रहती थी दीवारों पर लगे पोस्टर मेरे बहुत काम आते थे उन्हीं पोस्टरों को दीवारों से खुरच कर मैं अपने पास जमा कर लिया करता था

दाएं बाएं देखता चारों तरफ सन्नाटा दिखाई देता फिर अपनी जैकेट की जेब से माचिस निकालता कांपते हाथों से माचिस की डिब्बी से एक तीली निकालता और माचिस के खोखे पर रगड़ने लगता

एक छोटी सी चिंगारी निकलती और तीली जलने लगती

यह तमाशा देख आंखें खुशी से चमक उठती ,,

जलती हुई तीली लकड़ियों के ढेर में फेंक देता और आग धूं धूं करके जलने लगती थी रात भर के ठंडे बदन को जब गर्माहट मिलती तो ऐसे लगता जैसे ठंड का मौसम अभी आया ही नहीं ,

उस कोहरे वाली सुबह को

मेरी नजर बार-बार मेंन रोड पर जा रही थी मेरी आंखें किसी का इंतजार कर रही थी मोबाइल निकाल कर जब समय देखा तो सुबह के 5:00 बज चुके थे लेकिन मेरी नजर अभी भी सामने सड़क पर टिकी हुई थी

एक सप्ताह पहले मेरी इसी जगह पर एक महिला से मुलाकात हुई थी

उम्र से लगभग 45 वर्ष के आसपास थी कद भी काफी ऊंचा था देखने में बहुत खूबसूरत थी जींस और टॉप पहने वह अक्सर इसी समय सैर के लिए निकलती थी

मेरी लकड़ियों की जलती आग को देखकर वह मेरे पास ही रुक जाया करती थी

2 मिनट ठहरती और कहती ,, गार्ड भैया कैसे हो,,

मुझे भी अच्छा लगता चलो किसी ने मेरा हाल-चाल पूछा

उनके जवाब में मैं भी कह देता मैं बिल्कुल ठीक हूं ,,

यूं ही रोज सुबह मुलाकात हो जाती थी ,, एक दिन सवेरे सवेरे मैंने पूछ ही लिया ,,

आपका घर कहां पर है आप कहां से आती हो और कहां पर जाती हो

तब उन मैडम ने अपना परिचय देते हुए कहा मेरा नाम लता है

यही पास में मेरी कोठी है सरकारी स्कूल में मैं एक टीचर हूं पांचवी कक्षा के बच्चों को पढ़ाती हैं घर में किसी चीज की कमी नहीं है लेकिन मुझे बच्चों से बहुत प्यार है इसलिए मैंने शिक्षिका की नौकरी ज्वाइन कर ली बचपन से ही मुझे सैर करने की आदत है और यह आदत आज भी बरकरार है इस कॉलोनी का एक बड़ा सा चक्कर लगाती हूं

और सुबह-सुबह ही मुझे स्कूल भी पहुंचना होता है इसलिए मैं घर से सुबह 4:00 बजे निकलती हूं ठंड का मौसम है आप आग जलाकर बैठे रहते हो इसलिए 2 मिनट आग के पास खड़े होकर सैर करने की हिम्मत थोड़ी और बढ़ जाती है

जब भी मैं उन्हें मेंम साहब कहता तो वह बताने लगती मोहल्ले में सब लोग मुझे लता दीदी के नाम से जानते हैं

स्कूल की शिक्षिका होने के नाते ,, लता दीदी के प्रति मेरे लिए सम्मान की भावना अधिक बढ़ चुकी थी ,,

लेकिन आज पूरा एक सप्ताह बीत चुका था लता दीदी अभी तक नहीं आई सुबह के 6:00 बज चुके थे शायद लता दीदी आज भी नहीं आएंगी आखिर अचानक उन्होंने सैर करना क्यों बंद कर दिया

मैं काफी चिंता में डूब गया और सोचने लगा लता दीदी का घर पास में ही है उनकी खबर लेनी चाहिए

तभी मुझे ऐसा लगा ,, नहीं ,, नहीं ,, नेकराम तुझे लता दीदी के घर नहीं जाना चाहिए कहीं लता दीदी ने तुझे पहचानने से मना कर दिया तो

तेरा समय खराब होगा और तेरा अपमान भी

फिर मेरा दूसरा मन कहने लगा , लता दीदी तो एक शिक्षिका है उनका व्यवहार मैंने उनकी बातचीत के दौरान समझ लिया था वह मेरा सम्मान जरूर करेंगी ,, लता दीदी अपने घर पर है या नहीं बस यही जानना है मुझे

यही सोचते सोचते लकड़ियों की आग बुझ चुकी थी लेकिन राख के ढेर से कुछ बचे खुचे अंगारे अभी भी दहक रहे थे

तभी पीछे से आवाज आई , गार्ड भैया कैसे हो आवाज मुझे जानी पहचानी लगी , मैं समझ गया यह तो लता दीदी की आवाज है

मैंने झट पीछे मुड़कर देखा तो लता दीदी आते हुए दिखी ,,

मैंने तुरंत पूछा ,, मेंम साहब एक सप्ताह से आप सैर करने के लिए नहीं आई ,,

मेरी बात सुनकर वह एकदम खामोश हो गई ,,

मैंने तुरंत पास पड़ी हुई दो-चार लकड़ियां फिर से जलानी शुरू कर दी

कुछ ही सेकंड बाद राख के ढेर पर कुछ लकड़ियां जलनी शुरू हो चुकी थी

जलती हुई लकड़ियों को देखकर

मेंम साहब मुझे बताने लगी ,, गार्ड भैया इस समाज में बहुत बुरे लोग भी रहते हैं लेकिन मैं उनसे निपटना अच्छी तरह जानती हूं ,,

एक सप्ताह पहले की बात है ,, मेरे घर खाना पकाने वाली सुधा खाना पकाते हुए अचानक रोने लगी मैंने कारण पूछा तो उसने बताया

मैं यहां शहर में अकेली रहती हूं मेरा मर्द मुझे छोड़ कर चला गया

उन्हें गए हुए 6 महीने से ज्यादा हो चुके हैं मेरी 14 बर्ष की बेटी को भी साथ ले गया मुझे अपनी बेटी की बहुत याद आ रही है ,,

मैंने बहुत कोशिश की अपनी बेटी से मिलने के लिए मगर मेरी बेटी से मुझे मिलने नहीं दिया गया मेरा मर्द एक नंबर का शराबी है मैं अपनी बेटी को अपने मर्द के साथ नहीं भेजना चाहती थी ,,

लेकिन वह मेरे पीठ पीछे मेरी बेटी को जबरदस्ती ले गया

मेंम साहब मुझे मेरी बेटी चाहिए ,,

मैं सुधा की भावनाओं को समझ रही थी एक मां का एक बेटी से जुदा होना कितना पीड़ा देता है

सुधा की बातें सुनकर

मैंने उसके गांव का पता पूछा और उसे धीरज बंधाया तुम्हारी बेटी तुम्हारे पास होगी तुम चिंता मत करो अपने मर्द का नाम और उसकी फोटो और अपने ससुराल का पूरा पता मुझे दे दो मैं अभी इसी वक्त

ट्रेन पकड़ कर तुम्हारे गांव पहुंचती है

मैंने तुरंत स्कूल से एक सप्ताह की छुट्टी ले ली ,, और अकेली ही सुधा के गांव पहुंच गई ,, मेरे पति ने भी मुझे पूरी हिम्मत दी और कहा

किसी कारण के चलते में तुम्हारे साथ नहीं जा सकता हूं लेकिन तुम वीडियो कॉलिंग के माध्यम से मुझसे जुड़ी रहना ,,

36 घंटे का सफर तय करके मैं एक सुनसान से छोटे से गांव में पहुंची

बहुत खोजबीन करने के बाद ,, मुझे सुधा का ससुराल मिल गया

लेकिन वहां सुधा का मर्द और उसकी बेटी नहीं मिली ,,

लेकिन मेरी खोज निरंतर चलती रही ,,

एक मन तो मुझे यह कह रहा था तुझे अब वापस खाली हाथ दिल्ली चल देना चाहिए सुधा हमारे घर की एक नौकरानी ही तो है उसके लिए इतना झमेला क्यों

लेकिन फिर दूसरा मन कहने लगा ,, समाज में सर उठाकर जीने का अधिकार सब महिलाओं को है सुधा की बेटी आज मुसीबत में है अगर मैं भी मुंह मोड़ लूंगी ,, तो फिर मेरा शिक्षिका होने का क्या मतलब ,, मर्दों ने हमेशा से ही नारियों को मसला और कुचला है लेकिन आज के नए भारत में महिलाएं जागरूक हो चुकी है मैं पढ़ी-लिखी हूं समाज के सब कानून जानती हूं

लेकिन जो पत्नी या बेटी अनपढ़ है कमजोर है उसे सताया जा रहा है

हमारे संस्कारों ने हमें यही तो सिखाया है कमजोरों का साथ देना और जुर्म के खिलाफ आवाज उठाना

जब ऐसी बात है

फिर मैं पीछे कदम कैसे हटा लूं

बार-बार रिश्तेदारों के भी कॉल आ रहे थे लता तुम वापस आ जाओ किसी भारी मुसीबत में ना फंस जाना

लेकिन मैंने रिश्तेदारों की बातें अनसुनी कर दी और सुधा की बेटी की खोज फिर से आरंभ करने लगी

आखिरकार गांव की किसी एक महिला से मुझे सुधा के मर्द की जानकारी मिली

लेकिन उस गांव की महिला ने बताया वह जगह ज्यादा सुनसान और खतरनाक भी है आप महिला हो और अकेली भी हो कृपया करके वहां मत जाइए ,,,

मैंने गांव के एक थाने में जाकर संपर्क किया और बताया मैं एक शिक्षिका हूं दिल्ली से आई हूं मेरे पास यह एक 14 बर्ष की लड़की का फोटो है उसकी मां सुधा मेरे घर पर काम करती है

पुलिस वाले पहले तो चिक चिक करने लगे कहने लगे दूसरों के मामले में आप क्यों टांग अड़ा रही हैं ,, फिर उन्होंने वीडियो कॉलिंग के माध्यम से सुधा की मां से बात की

जब उन्हें तसल्ली हो गई कि मैं सच कह रही हूं

फिर उन्होंने कहा ठीक है हम आपके साथ चल देते हैं एक पुलिस की जीप तुरंत आई दो बंदूक सवार उसमें बैठ गए ,,

एक पुलिस अधिकारी जीप चलाने लगा मैं भी उनके ही बगल में बैठी थी ,,

कच्ची पक्की सड़कों से गुजरते हुए डेढ़ घंटे बाद हम एक सुनसान इलाके में पहुंचे वहां केवल तीन चार छोटी छोटी कच्ची झोपड़ियां थी

उन झोपड़पट्टियों की एक-एक करके तलाशी लेना शुरू कर दिया गया

उस 14 बर्ष की बेटी को मैंने पहचान लिया क्योंकि उसका फोटो मेरे पास था

एक दो बार वह सुधा के साथ मेरे घर भी आई थी इसलिए मुझे पहचानने में अधिक समय नहीं लगा

उसने जब मुझे देखा तो मेरे पैरों में गिर पड़ी,, मुझसे बोली आंटी जी मुझे बचा लो मुझे इस नर्क से बाहर निकालो

मुझे अपनी मां के पास जाना है ,, मुझे यहां कैद करके रखा गया है

उसके चेहरे पर बहुत से जख्म के निशान थे ,, उसकी ऐसी दुर्दशा देखकर मुससे रहा नहीं गया,, मैं चीखती हुई बोली एक बाप इतना जल्लाद भी हो सकता है,, अपनी ही बेटी को बंदी बनाकर उस पर जुल्म करता है ,, वहीं पास में एक बांस पड़ा हुआ था मैंने जमकर पहले तो उसकी कुटाई की ,, मगर पुलिस वालों ने,, मुझे रोक लिया

और कहा,, आप जिस काम के लिए आई थी हम पुलिस टीम ने उसमें आपकी हेल्प की है,, हम चाहते हैं आप इस लड़की को लेकर सुरक्षित दिल्ली पहुंच जाओ ,, इस लड़की के बाप को हम देख लेंगे ,,

पुलिस की जीप ने मुझे और सुधा की बेटी को रेलवे स्टेशन पर छोड़ दिया

उस गांव से वापस ट्रेन का लंबा सफर तय करने के बाद मैं घर पहुंची

सुधा अपनी बेटी को अपने पास देखकर बहुत खुश हुई,,

गांव से लौटते वक्त सुधा के मर्द ने मुझे धमकी भी दी थी मैं जब दिल्ली आऊंगा अपनी बेटी को ले जाऊंगा,,

लेकिन मैंने भी सोच लिया था उस जालीम बाप के पास इस नन्ही सी बच्ची को नहीं भेजूंगी

और मैंने सुधा की बेटी को गोद ले लिया,, और उससे कहा आज से यह घर तेरा है नए कपड़े पहनने को दिए और दिल्ली के सबसे महंगे हॉस्टल में उसका एडमिशन करवा दिया ,, जहां उसका बाप तो क्या हम लोगों को भी मिलने की जल्दी परमिशन नहीं मिलती ,,

लता मेम की हिम्मत और बहादुरी की बातें सुनकर ,, मैं तुरंत खड़ा हुआ और मैंने जोर से कहा

            ,, लता दीदी को सलूट है ,,,

जाते-जाते लता दीदी ने अपने मोबाइल में सुधा और उसकी बेटी का फोटो भी दिखाया और गांव के वह सारे दृश्य दिखाए जो मोबाइल में कैद थे

लता दीदी के जाने के बाद ,, मुझे जीने का सही मतलब समझ में आ गया उस दिन के बाद से मैं लता दीदी को और भी ज्यादा सम्मान देने लगा

लेखक नेकराम सिक्योरिटी गार्ड

मुखर्जी नगर दिल्ली से

स्वरचित रचना

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