14 वर्षीय रूचि ने आज स्कूल से आते ही अपना बैग अपनी मां अंजलि के सामने जोर से पटक दिया और भाग कर अपने कमरे में चली गई। अंजलि ने उसे बहुत आवाज़ लगाई पर उसने ना तो कमरे का दरवाजा खोला और ना स्कूल यूनिफॉर्म बदली।उसके कमरे से टीवी की आवाज लगातार आ रही थी। अंजलि को लगा कि स्कूल में कुछ हुआ होगा,किसी दोस्त से लड़ाई हुई होगी, थोड़ी देर अकेला छोड़ देती हूं अपने आप ठीक हो जाएगी।
रुचि वैसे तो बहुत समझदार लड़की है उसने कभी ऐसा व्यवहार नहीं किया,ना जाने इस आज क्या हुआ है।
लगभग 1 घंटे बाद रुचि बाहर आई,उसकी आंखों से लग रहा था कि वह रो रही थी उसने गुस्से में अंजलि से पूछा-” आज आप मुझे लेने क्यों नहीं आई? ” अंजलि ने कहा-” तुम्हें बताया था ना कि आज तुम्हारे छोटे भाई अज्जू को डॉक्टर के पास ले जाना है उसे बुखार है और फिर तुमने भी तो कहा था कि मैं अब बड़ी हो गई हूं अपने आप फ्रेंड्स के साथ आ जाऊंगी। ”
रुचि ने कोई जवाब नहीं दिया। अंजलि ने पूछा-” इतने गुस्से में क्यों हो,स्कूल में कुछ हुआ है क्या? रुचि बिटिया बताओ मुझे। ”
रुचि -” वह मेरी फ्रेंड है ना कशिश और सोनम की मम्मी कुछ बात कर रही थी मेरे बारे में, अच्छा छोड़िए खाना दीजिए भूख लगी है। ”
अंजलि को लगा कि रुचि ने बात बदल दी है और कुछ कहते कहते चुप हो गई है। अंजलि-” अभी खाना देता हूं, हां बताओ तुम क्या कह रही थी कुछ बता रही थी। ”
रुचि-“नहीं कुछ नहीं,आप सिर्फ अपने बेटे की चिंता कीजिए, मेरी नहीं। ”
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अंजलि-“रुचि तुम कैसे बात कर रही हो,अज्जू तुम्हारा छोटा भाई है। ”
रुचि-“नहीं,वह आपका बेटा है,मुझसे हर कोई झूठ बोलता है। कोई सच नहीं बताता। “
ऐसा कह कर वह अपने खाने की प्लेट लेकर फिर अपने कमरे में चली गई और खाना खाकर थाली झूठे बर्तनों में पटक कर चली गई।
अंजलि उसके व्यवहार से बहुत चिंतित थी और उसे पता था कि इस उम्र मेंबच्चों का बहुत ध्यान रखना पड़ता है।उसने शाम को अपने पति विकास को सारी बात बताई क्योंकि उस समय रुचि ट्यूशन गई हुई थी और वापस आने ही वाली थी।
रुचि के वापस आने पर विकास ने उसे अपने पास बुलाया,वह उसके पास तो आई लेकिन रोज की तरह खुशी-खुशी अपने पापा से नहीं मिली और फिर चुपचाप पढ़ने बैठ गई।
थोड़े दिन बाद उसने अपने आप अपने मम्मी पापा को अपने व्यवहार के लिए सॉरी बोला और वह नॉर्मल हो गई। फिर एक दिन अचानक ना जाने क्यों गुस्से में बड़बड़ाने लगी। ” सब मुझे कुछ छुपाते हैं, कोई मुझे प्यार नहीं करता,सब अज्जु को प्यार करते हैं,मुझे कोई नहीं चाहता। मैं भाग्यहीन हूं मेरा कोई नहीं है। न जाने मुझे कहां से उठा कर लाए हैं। ”
अंजलि सब कुछ सुन रही थी।उसने और उसके पति विकास ने तय कर लिया था कि छुट्टी वाले दिन रुचि से खुलकर बात करेंगे। उन्होंने रुचि को बड़े प्यार से अपने पास बिठाया और उससे पूछा -” क्या बात है रुचि बेटा तुम बहुत दिनों से परेशान लग रही हो, कुछ बात है तो हमें बताओ हम तुम्हारी परेशानी का हल निकालने की कोशिश करेंगे।स्कूल में क्या कोई लड़का या लड़की तुम्हें परेशान करता है। या किसी टीचर ने कुछ कहा है तुम्हें। ”
रुचि-” ऐसा कुछ नहीं है” कह कर जाने लगी
तब विकास ने थोड़ा सख़्ती से कहा -” बैठो इधर, बताओ क्या है तुम्हारे मन में। ”
रुचि ने गुस्से में कहा-” क्या आप सच बताएंगे? ”
अंजलि-” हां बताएंगे। ”
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रुचि-” कशिश की मम्मी ने बताया कि मैं आपकी बेटी नहीं हूं आप मुझे कहीं से लाए थे, शायद किसी कूड़े के ढेर से। आपने मुझे सच क्यों नहीं बताया? ”
विकास-” पहले यह बताओ कि तुम्हें हम पर विश्वास है या नहीं। ”
रुचि-” हां विश्वास है”
विकास-” तो सुनो,हम तुम्हें सही समय आने पर सब कुछ बताने वाले थे, बस हमें लग रहा था कि तुम थोड़ी और बड़ी हो जाओ और समझदार। लेकिन तब तक तुम्हें दूसरे लोगों ने गलत तरीके से बात बताई। बेटा यह बात समझो, लोग दूसरों की खुशियां देख नहीं सकते, खुश रहने वाले परिवार से जलते हैं
और उसकी एकता को तोड़ना चाहते हैं। तुम यहीं बैठो, मैं तुम्हें कुछ दिखाता हूं। ” ऐसा कहकर विकास एक लिफाफा लाया और अंजलि से बोला-” क्यों अंजलि क्या सोचती हो तुम, हमें इसे यह लिफाफा दे देना चाहिए, क्या मैं ठीक सोच रहा हूं। ”
अंजलि-” हां हां बिल्कुल सही। रुचि को अब सच बता देना चाहिए क्योंकि यह अब बड़ी हो गई है। ”
विकास ने लिफाफा रुचि के हाथ में दे दिया रुचि ने उसे खोला तो उसमें एक चिट्ठी थी।
“मेरी प्यारी बिटिया,मैं हूं तुम्हारी मम्मी सोनाली और तुम्हारे पापा का नाम अविनाश था, जब मैं कॉलेज में पढ़ रही थी तब मेरी बेस्ट फ्रेंड थी अंजलि, उसे समय मेरे मम्मी पापा का रोड एक्सीडेंट में अचानक देहांत हो गया था और मैं बहुत अकेली हो गई थी।उस समय मुझे मेरी बहनों से भी बढ़कर बेस्ट फ्रेंड अंजलि ने और एक सच्चे दोस्त अविनाश ने मुझे संभाला। इन दोनों की वजह से मैं अपने दुख से बाहर निकल पाई। कुछ समय बाद मैंने अविनाश से शादी कर ली। अविनाश के घर के लोगों ने मुझे नही अपनाया।
हमें लगा कि थोड़े समय बाद वह लोग मान जाएंगे। लेकिन ऐसा नहीं हुआ। मैं प्रेग्नेंट थी। अविनाश खुश थे लेकिन साथ ही वह बहुत तनाव में थे कि अपने बेटे के साथ कोई ऐसा कैसे कर सकता है। अविनाश के घर वालों ने अविनाश को छोड़कर विदेश जाने का फैसला कर लिया था और वह लोग सचमुच चले गए।
अविनाश हमेशा कहते थे कि मुझे अपने माता-पिता से ऐसी आशा नहीं थी मैंने अपनी मर्जी से शादी ही तो की है कोई पाप तो नहीं किया। तनाव में रहते रहते एक दिन उनका हार्ट फेल हो गया और वह भी मुझे अकेला छोड़ कर चले गए। मैं भाग्यहीन सबको खो बैठी।
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लेकिन बुरे समय में कभी भी अंजलि और विकास ने मेरा साथ नहीं छोड़ा। उसके बाद तुम मेरी गोद में आई। मैं बहुत खुश थी लेकिन न जाने क्यों मुझे ऐसा एहसास हो रहा था कि मैं जी नहीं पाऊंगी। इसीलिए मैंने तुम्हारे लिए यह पत्र लिखा और तुम्हें अंजलि को सौंप दिया और उसने खुशी-खुशी स्वीकार किया। अब यही तुम्हारे मम्मी पापा है। मैं और तुम भाग्य हीन नहीं, बल्कि भाग्यशाली हैं क्योंकि हम दोनों के पास अंजलि और विकास जैसे साथी हैं। ”
इस पत्र को लिखने के अगले दिनवह गुजर गई। अंजलि और विकास ने रुचि को बेटी बनकर पाला पोसा और उनका अपना बच्चा अज्जू बाद में पैदा हुआ। चिट्ठी को पढ़कर रुचि रोने लगी और अपनी मम्मी पापा से माफी मांगने लगी।
उन्होंने कहा-“हमारी प्यारी बच्ची,हम तुम्हारे दिल की हालत अच्छी तरह समझ सकते हैं। हमने जब सोनाली को खोया था, तब हम बहुत दुखी थे, लेकिन तुम्हारी मुस्कान से हम खुश थे। बस आगे से लोगों की बातों में मत आना और जो भी बात हो, हमसे कहना।”
तीनों गले लग कर भावुक होकर रोने लगे।
स्वरचित अप्रकाशित गीता वाधवानी दिल्ली
#भाग्यहीन