अनचाही – डॉ. पारुल अग्रवाल : Moral Stories in Hindi

नताशा की माँ संध्या जी कुछ सहेलियों के साथ आ रही थी। नताशा को सरकार की तरफ से उसके विशेष कार्योँ के लिए सम्मानित किया जाना था। जब नताशा की माँ को पता चला तब उन्होंने अपनी किटी समूह की सहेलियों पर अपनी धाक ज़माने के उद्देश्य से उनका भी अपने साथ आने का कार्यक्रम बना दिया और नताशा को सूचित कर दिया। नताशा जिले में जिलाधिकारी के पद पर कार्यरत थी और उसके पति राजस्व विभाग में उच्चाधिकारी थे।

नताशा और उसके पति की गिनती बहुत ही कर्मठ और ईमानदार अधिकारियों में होती थी अपनी इसी ईमानदारी की वज़ह से प्रदेश सरकार द्वारा नताशा को सम्मानित किया जाना था माँ और उनकी सहेलियों के आने के कार्यक्रम का पता चलते ही नताशा ने उनके रहने खाने और सभी दर्शनीय स्थलों को घूमने का प्रबंध बहुत अच्छे से कर दिया था नताशा अपनी माँ के स्वभाव से भली-भांति परिचित थी

क्योंकि अगर प्रबंध में जरा सी भी ऊंच-नीच हो जाती तो उसकी माँ सबके सामने ताने मारने से ना चूकती खैर तय समय पर माँ और उनकी सहेलियाँ नताशा के कार्यरत शहर पहुंच गई नताशा को बहुत सारे नौकर चाकर मिले हुए थे अतः शुरू के तीन चार दिन बहुत आराम से निकल गए i

इतनी सारी सुविधाएं देखकर संध्या जी की सहेलियां मन ही मन उनकी अच्छी किस्मत की सराहना कर रही थी।दो-तीन दिन तक सब सही तरीके से ऐसे ही चलता रहा पर एक दिन शाम को नताशा अपने कार्यालय से कुछ जल्दी आ गई थी आज वो भी अपनी माँ और उनकी सखियों की वार्ता का हिस्सा बन गई थोड़ी देर इधर-उधर की बातचीत के बाद संध्या जी की एक सखी ने अपने दिल की बात कह ही दी उसने संध्या जी सम्बोधित करते हुए कहा कि वो बहुत किस्मतवाली हैं

जो नताशा जैसी बेटी और अंकुर जैसा दामाद उनको मिला वो कुछ कहती इससे पहले उनकी एक सखी ने तो यहां तक कह दिया कि आज के समय में अंकुर जैसे लड़के मिलते ही कहाँ हैं जो अपनी पत्नी के साथ-साथ उसके घर वालों को भी इतना सम्मान देते हैं बात अभी कुछ और आगे बढ़ती उससे पहले ही संध्या जी थोड़ा तुनकते हुए बोली कि क़िस्मतवाली मैं नहीं,नताशा है क्योंकि अगर मैंने इसको पढ़ने लिखने की छूट नहीं दी होती तो ये कभी यहां तक नहीं पहुंचती वैसे भी भगवान ने भी इसको रंग रूप देने में कंजूसी की थी

ऐसे में इसके पास पढ़ाई का ही सहारा था ये इसकी किस्मत ही तो है जिसके बलबूते पर आज इसके आगे पीछे इतने नौकर-चाकर दौड़ रहे हैं वैसे भी शादी के लिए लही चुना नहीं तो चाहे लड़के का पद बड़ा ही क्यों ना हो पर ऐसे साधारण परिवार से रिश्ता जोड़ना मखमल में टाट का पैबंद लगाने के समान है। बात को आगे बढ़ता देखकर नताशा ने ही किसी तरह बात का रुख दूसरी तरफ मोड़ दिया वो तो अच्छा था कि आज अंकुर भी विभाग के काम से बाहर गया हुआ था नहीं तो अपने परिवार के लिए ऐसे शब्दों का प्रयोग उसको भी पसंद नहीं आता।

हालांकि उस समय तो नताशा ने बात को आगे बढ़ने से रोक दिया था पर आज रह-रहकर माँ की बातें उसके दिमाग में गूँज रही थी संध्या जी का इस तरह का व्यवहार कोई नया नहीं था आज तक वो उनके लिये अनचाही बेटी थी। संध्या जी प्रिया के समान नताशा को कभी दुलार नहीं दे पायी थी क्योंकि नताशा देखने में बहुत साँवली थी जब वो पैदा हुई तब उसका इतना पक्का रंग देखकर संध्या ने उसे प्यार से गले भी नहीं लगाया था।

वो तो पापा और दादी थे जो उसका सहारा बने असल में संध्या जी बहुत ही गौरी-चिट्टी और सुन्दर नैन नख से परिपूर्ण थी।सबकी नजरों में उन्होंने अपने लिए हमेशा प्रशंसा के भाव ही देखे थे।उनके सपने भी बहुत बड़े थे उन्होंने हमेशा किसी बड़े खानदान की बहू बनने का सपना देखा था परन्तु नताशा के पापा के साथ शादी के बाद उनके सारे सपने टूट गए थे

क्योंकि वो बैंक में साधारण से क्लर्क थे नताशा के जन्म के चार वर्ष बाद उसकी छोटी बहन प्रिया का जन्म हुआ,जो रंगरूप मे बिल्कुल संध्या जी पर गई थी और उसके जन्म के बाद नताशा के पापा भी बैंक की परीक्षा उत्तीर्ण कर बैंक मे मैनेजर बन गए थे।इस तरह प्रिया सभी की लाड़ली बन गई थी और नताशा अपनी ही दुनियां में सबसे अलग-थलग पड़ गयी थी। संध्या जी को कहीं जाना भी होता तो वो प्रिया को अपने साथ रखती पर नताशा को दूसरों के सामने भी ना आने देती।

प्रिया जहां माँ के प्यार में बिगड़ रही थी वही नताशा ने किताबों से दोस्ती कर ली थी नताशा के कॉलेज की पढ़ाई पूरी होने वाली थी और संध्या जी उसे अब भी उसके सांवले रंग रूप के लिए ताने सुनाती थी वे तो कई बार यहां तक कह देती थी कि इतने पक्के रंग की लड़की की शादी करना भी बहुत मुश्किल काम है कोई भी परिवार ऐसी लड़की को अपनी बहू बनाना पसंद नहीं करेगा एक-दो रिश्ते आए भी पर वो उसकी जगह प्रिया को पसंद करके चले गए अब तो संध्या जी नताशा को और भी ज्यादा ताने देने लगी थी

नताशा आज तक माँ के ताने सुनती ही आयी थी पर शादी के नाम पर वो इस तरह अपने आत्मसम्मान के साथ समझौता करने के लिए बिल्कुल तैयार नहीं थी उसने हिम्मत करके प्रतियोगी परीक्षा की तैयारी का अपना लक्ष्य सबके सामने रखकर अपने लिए शादी के लिए लड़के देखने से मना कर दिया।उसकी ये बात सुनकर संध्या जी तब भी ये कहने से ना चुकी कि अच्छा ही है जो खुद से विवाह के लिए मना कर दिया नहीं तो इसके चक्कर मे प्रिया की भी उम्र निकल जाती।

नताशा ने अब अपना पूरा ध्यान अपने आईएएस बनने के लक्ष्य पर लगा दिया वहीँ प्रिया का कॉलेज खत्म होते ही एक बड़े से समृद्ध व्यापारी परिवार मे शादी कर दी गई।प्रिया की शादी के कुछ समय बाद ही नताशा का आईएएस परिक्षा का परिणाम आ गया जिसमें उसकी रैंक काफ़ी अच्छी थी।

जब रिश्तेदारों और पड़ोसियों के बधाई संदेश आ रहे थे तब भी संध्या जी नताशा को श्रेय ना देकर खुद का गुणगान करने में लगी थी। नताशा पद पर आरूढ़ होने से पहले प्रशिक्षण के लिए लाल बहादुर शास्त्री अकादमी,मसूरी आ गई यहां उसकी मुलाकात अंकुर से हुई जिसने नताशा के बाहरी रंग-रूप को ना देखकर उसके आंतरिक सौंदर्य को पहचाना और उसके खोए हुए स्वाभिमान को लौटाया।

ट्रेनिंग समाप्त होने पर जहां नताशा को जिलाधिकारी का पद मिला वही अंकुर को राजस्व अधिकारी की जिम्मेदार प्राप्त हुई।अब दोनों ने विवाह का निर्णय लिया।अंकुर का परिवार बहुत ही साधारण और ग्रामीण परिवेश से सम्बंध रखने वाला था जो कि संध्या जी के लिए असहनीय था पर अबकी बार संध्या जी की कुछ ना चल पायी।

इस तरह नताशा और अंकुर एक दूसरे के साथ विवाह के पवित्र बंधन मे बंध गए उसके बाद भी संध्या जी ने सभी नाती-रिश्तेदारों में ये  कहकर कि मैंने तो अपने बच्चों को खुली छूट दे रखी थी अपने आपको ही ऊँचा रखा था।वो तो नताशा और उसके पति की इतने उच्च पद पर आसीन होना और तरह तरह की सुख सुविधाओं से परिपूर्ण होना कहीं ना कहीं उनके अंहकार को तुष्ट करता गया।अभी भी नताशा के साथ उनका व्यवहार स्नेहिल तो नहीं पर पहले से ठीक था

पर वो अभी भी कई बार खीझ उठती क्योंकि जैसे शादी के बाद भी प्रिया की गृहस्थी की डोर तो अपने हाथ में थामे थी वैसे नताशा के साथ वो नहीं कर पा रही थी।नताशा मानवीय संवेदनाओं से परिपूर्ण रिश्ते निभाना जानती थी वैसे भी उसे अपने ससुराल पक्ष में किसी से कोई शिकायत नहीं थी उन लोगों ने भी उसका हमेशा मान रखा था।ये सोचते-सोचते कब सुबह हो गई पर अब नताशा ने मन ही मन बहुत कुछ निर्णय ले लिया था।

अगले दिन नताशा को सम्मानित किया जाना था उसने अपने सास-ससुर को भी बुलाया था।उनको देखकर संध्या जी का मुंह बन गया पर नताशा ने उनकी तरफ ध्यान ना देकर अपने सास-ससुर का बहुत स्नेह से स्वागत किया। सम्मान लेने के समय भी उसने मंच पर अपने सास-ससुर को संध्या जी से पहले बुलाया,ये बात भी संध्या जी को चुभ गई पर नताशा ने इस पर ज्यादा ध्यान नहीं दिया।

शाम को जब नताशा के सास-ससुर जाने वाले थे तब नताशा ने अपने देवर और छोटी नन्द के लिए बहुत सारा सामान दिया।ये देखकर भी संध्या जी का पारा चढ़ गया नताशा के सास-ससुर उसको ढेरों आर्शीवाद देते हुए खुशी-खुशी विदा लेकर चले गए।संध्या जी की सहेलियाँ भी विदा ले चुकी थी क्योंकि संध्या जी को छोटी बेटी प्रिया से मिलते हुए जाना था इसीलिए उनको देर रात की ट्रेन से निकलना था।

सास- ससुर के जाते ही संध्या जी जो पहले से ही भरी बैठी थी उन्होंने नताशा से कहा कि उसको आज अपनी माँ से पहले सास-ससुर को स्टेज पर बुलाते हुए जरा भी नहीं लगा कि जन्म देने वाली माँ का स्थान हमेशा सबसे ऊपर ही रहेगा और तो और वो अपना सब कुछ ससुराल वालों पर लुटाती रहेगी तो भविष्य के लिए कुछ नहीं बचेगा।माना कि वो बड़ी ऑफिसर बन गई है पर दुनियादारी उसमे रत्ती भर भी नहीं आयी एक उसकी बहन प्रिया है जो मेरे बताये रास्ते पर चलकर अभी से अपना हिस्सा लेकर ससुराल से अलग हो गई है और बिना किसी रोक-टोक के सुखी जिंदगी जी रही है।

नताशा ने पहले तो सुना फिर कहा कि माँ किस स्थान की बात कर रही हैं आप? आप खुद से याद करो कि कब आपने कभी मुझे अपने गले से लगाया। ठीक है माना मेरा रंगरूप आपकी तुलना में कुछ भी नहीं था पर थी तो मैं आपकी ही रचना।अपनी ही रचना से इतना निर्मोही हो जाना। आपको तो मुझे अपने साथ बैठाना या कहीं ले जाना भी पसंद नहीं था।प्रिया के आने के बाद आप प्रिया की माँ तो बनी पर मैं तो आपके लिए हमेशा ही अनचाही रही पर फिर भी मैं आज जिस मुकाम पर हूं उसका श्रेय भी आपको ही दूँगी क्योंकि आपने मुझे अपने आपसे दूर किया तो किताबों ने अपनाया।

रही सास-ससुर को आपसे पहले बुलाने की बात तो उन्होनें मुझे बिना मेरे रंगरूप को देखे ही स्वीकार किया।मेरी जिंदगी मे जिस स्नेह रूपी छांव की कमी थी वो मेरे ससुराल वालों ने पूरी की आपने उस दिन कहा कि आप नहीं किस्मत वाली तो मैं हूँ आपने बिल्कुल सही कहा क्योंकि ऐसा ससुराल जिसको मिलेगा तो वो किस्मत वाली ही होगी आपने अपना हिस्सा लेकर अलग होने की बात भी की तो मेरा मानना है कि हमारे देश में शादी लड़का-लड़की के बीच ही नहीं बल्कि परिवारों के बीच भी होती है जो धन माता पिता ने मेहनत से कमाया है वो सन्तान का हिस्सा कैसे हो सकता है?

सन्तान अगर काबिल है तो अपने लिए खुद कमा सकती है वैसे भी जब प्रिया अपना हिस्सा लेकर अलग हुई थी तब उसके ससुर कई दिन तक हॉस्पिटल में एडमिट रहे थे खुद प्रिया और उसके पति के बीच डिवोॅस होते-होते बचा था।आपकी खुद की भी सोच ऐसी ही रही आपकी ही वज़ह से पापा भी असमय हमारे बीच से चले गए क्योंकि आपके रंग रूप और दौलत के घमंड ने उनको भी अपने परिवार से दूर कर दिया था आज नताशा चुप नहीं रही हालांकि वो ये सब कहकर अपनी माँ का दिल नहीं दुखाना चाहती थी पर अब पानी सर से ऊपर आ चुका था।

नताशा की बातों ने संध्या जी को आईना दिखा दिया था रात को ट्रेन का समय होने पर भी नताशा और संध्या जी के बीच कोई बात नहीं हुई नताशा खुद उन्हें ट्रेन तक छोड़ने गयी। जब वो ट्रेन में बैठने लगी तब भी नताशा ने उन्हें सिर्फ इतना कहा कि माँ मैं आपका दिल नहीं दुखाना चाहती थी पर आज कुछ बातें बोलना जरूरी था हो सके तो अपनी इस अनचाही बेटी को क्षमा कर देना।नताशा के अनचाही कहते ही संध्या जी फुट-फुट कर रोने लगी और उन्होंने कसकर नताशा को गले लगा लिया आज दोनों के दिलों के मैल पूरी तरह धूल गए थे आज एक माँ और बेटी दोनों ही अपने आपको किस्मतवाली मान रही थी 

नोट: आज भी हमारे समाज में बाहरी रंगरूप बहुत महत्व रखता है यहां तक कि कई बार माता-पिता भी इस आधार पर बच्चों पर भेदभाव करने से नहीं चूकतेl यहाँ फिर भी नताशा की इच्छाशक्ति ही थी जो उसने अपने ऊपर होने वाले तानों को ही लक्ष्य प्राप्ति का आधार बनाया क्योंकि तारीफें सिर्फ दिन बनाती हैं,ताने ही हैं जो जिंदगी बनाते हैं।

#किस्मत वाली 

मौलिक और स्वरचित 

डॉ. पारुल अग्रवाल,

नोएडा

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