पिछले अंक ( 01 ) का अन्तिम पैराग्राफ ••••••••••
गिरीश के माता पिता भी जब इच्छा हो कानपुर उन लोगों के पास आ जाया करेंगे और आवश्यकता पड़ने पर सिम्मी और रत्ना भी गिरीश की अनुपस्थिति में भी उन लोगों के पास चले जाया करेंगे। यही सब सोंचकर गिरीश और रत्ना ने एक नई बनी कालोनी में छोटा सा मकान खरीद लिया। हालांकि मकान अभी अधबना ही था लेकिन गिरीश के पापा ने यह कहकर उसे चिन्ता मुक्त कर दिया कि वह और गिरीश की मॉ कानपुर में रहकर पूरा मकान बनवा देंगे। गिरीश और रत्ना के इस निर्णय से वे दोनों वृद्ध बहुत खुश थे। साथ ही हर सप्ताह गिरीश तो आता ही रहेगा तो बाकी व्यवस्था वह देख लेगा।
अब आगे •••••••
गिरीश के माता पिता भी जब इच्छा हो कानपुर उन लोगों के पास आ जाया करेंगे और आवश्यकता पड़ने पर सिम्मी और रत्ना भी गिरीश की अनुपस्थिति में भी उन लोगों के पास चले जाया करेंगे। यही सब सोंचकर गिरीश और रत्ना ने एक नई बनी कालोनी में छोटा सा मकान खरीद लिया। हालांकि मकान अभी अधबना ही था लेकिन गिरीश के पापा ने यह कहकर उसे चिन्ता मुक्त कर दिया कि वह और गिरीश की मॉ कानपुर में रहकर पूरा मकान बनवा देंगे। गिरीश और रत्ना के इस निर्णय से वे दोनों वृद्ध बहुत खुश थे। साथ ही हर सप्ताह गिरीश तो आता ही रहेगा तो बाकी व्यवस्था वह देख लेगा।
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वैसे तो कालोनी में उच्च मध्यम वर्ग के सभी जाति और सम्प्रदाय के लोग परिवार की तरह आपस में बहुत प्रेम से रहते थे और सभी लोग गिरीश की अनुपस्थिति में भी समाधि और रत्ना का हर प्रकार से ख्याल रखते थे लेकिन पड़ोसी होने के कारण गिरीश और रत्ना की मित्रता अनन्त और मौली से इतनी अधिक हो गई कि दोनों परिवार मिलकर जैसे एक हो गये थे।
मेहमान और रिश्तेदार किसी के भी घर में आये लेकिन उन्हें सम्मान देना, उनकी देखभाल करना दोनों परिवारों का कर्तव्य बन जाता। देखने पर यह पता लगा पाना मुश्किल था कि मेहमान और रिश्तेदार हैं किस परिवार के। गिरीश के माता पिता का अनन्त और मौली अपने माता पिता की तरह ही सम्मान करते थे। अनन्त और मौली का तेरह वर्ष का बेटा एकलव्य जिसका घरेलू नाम ओम था समाधि से तीन साल बड़ा था। वे दोनों साथ रहते, खेलते और खाते पीते लेकिन उन दोनों में हर समय महायुद्ध भी छिड़ा रहता था क्योंकि समाधि मौली और अनन्त की भी बहुत दुलारी थी। इसलिये गलती किसी की भी हो डॉट ओम को ही पड़ती थी। इस बात से ओम बहुत चिढता था और इसका बदला वह सिम्मी से मार पीट करके निकालता था और सिम्मी भी कम नहीं थी। वह भी कोई कसर नहीं छोड़ती थी।
गिरीश और रत्ना जब इस कालोनी में रहने आये तो उन दोनों की बेटी सिम्मी ( समाधि ) दस वर्ष की थी। छोटी सी उम्र में ही वह अपने अध्ययन के प्रति बहुत जागरूक थी। बचपन से ही उसका एक ही सपना था – पुलिस सेवा में जाने का। गिरीश की अधिकतर टूर वाली नौकरी होने के कारण वह रत्ना के अधिक निकट थी। बचपन से ही रत्ना उसे राजा, रानी, परियों की कहानी के साथ ही पौराणिक, ऐतिहासिक और धार्मिक कहानियॉ सुनाया करती थी। इसका परिणाम यह हुआ कि उसके भीतर अपने देश और संस्कृति के प्रति प्यार पनपता गया। देश और देशभक्ति का जज्बा उसमें कूट कूटकर भरा था। अपने देश के प्रति प्यार, देश और समाज की सेवा के साथ ईमानदारी, कर्तव्य निष्ठा उसके जीवन और भविष्य के सपनों में सम्मिलित होते जा रहे थे। छोटी सी उम्र से ही उसके मन में भ्रष्टाचारियों और रिश्वतखोरों के प्रति घृणा भरती जा रही थी। उसके मासूम सपनों में पुलिस की खाकी वर्दी में सजी अपनी ही देह समा गयी।
इसके विपरीत एकलव्य का शिक्षा के प्रति कोई रुझान नहीं था। उसका पढाई में बहुत कम मन लगता था वह केवल उत्तीर्ण होने के लिये पढता था जिससे वह अगली कक्षा में जा सके। अनन्त और मौली उसे हमेशा समझाते लेकिन वह सुनता ही नहीं था। अनन्त ने सख्ती भी की, पिटाई भी की लेकिन उस पर किसी बात का असर नहीं होता। वह हमेशा बिना मेहनत के बहुत सारा पैसा कमाने के सपने देखता था। उसके ऐसे बेतुके सपनों और अध्ययन के प्रति उदासीनता की आदत से अनन्त और मौली भी चिन्तित रहते थे और उसे प्यार से समझाते रहते कि अभी उसकी उम्र सारी बातें छोड़कर सिर्फ पढाई पर ध्यान देने की है। अभी वह खूब मन लगाकर पढे और अच्छे नम्बरों से परीक्षा पास करे। अच्छी नौकरी करेगा तो पैसा तो अपने आप आ जायेगा लेकिन वह सुनता ही न था।
बड़ी लापरवाही से कह देता -” चिन्ता न करिये पापा, मैं कभी फेल नहीं हुआ इसलिये पास तो हो ही जाऊॅगा। मुझे बड़ा हो जाने दीजिये, फिर एक दिन मेरे पास इतना पैसा होगा कि सब देखते रह जायेंगे।”
” अच्छी तरह पढ़ोगे नहीं तो नौकरी नहीं मिलेगी, फिर क्या करोगे? हम मध्यमवर्गीय लोग तो नौकरी के सहारे ही रहते हैं क्योंकि व्यापार के लिये हमारे पास पैसा नहीं रहता है।”
अनन्त के नाराज होने पर चुपचाप वहॉ से भागकर गिरीश के घर आ जाता। गिरीश उसे बहुत प्यार करते थे। अनन्त जब ओम के लिये चिन्ता करते तो गिरीश उसका ही पक्ष लेता – ” अभी बच्चा है, धीरे धीरे समझ जायेगा।”
” अब इतना बच्चा भी नहीं है। सिम्मी से बड़ा है। देखो, हमारी सिम्मी कितनी समझदार और यह बेवकूफ कुछ भी कहो समझना ही नहीं चाहता।”
” लडकियॉ समझदार और जिम्मेदार जल्दी हो जाती हैं। लड़के शरारती होते हैं। तुम चिन्ता न करो, सब ठीक हो जायेगा।”
मौली को भी ओम की चिन्ता होने लगी थी। जब कभी मौली रत्ना से अपनी चिन्ता व्यक्त करती तब समाधि मौली से कहती – ” आंटी, यह कुछ नहीं करेगा। इसे केवल शेखचिल्ली की तरह सपने देखना आता है क्योंकि उसमें न तो मेहनत लगती है और न पैसे खर्च होते हैं। अरे, बुद्धू, पढाई नहीं करोगे तो क्या बड़े होकर पेड़ से पैसे तोड़कर ले आओगे?”
” तुम चुप रहो। चुहिया हो चुहिया ही रहो। ज्यादा आग लगाने की जरूरत नहीं है। तुम्हारी तरह हर समय किताबों में घुसे रहना मुझे अच्छा नहीं लगता है। मेरी चिन्ता में दुबले होने की जरूरत नहीं है, समझीं ।”
वह आगे बढकर सिम्मी का हाथ मरोड़ने की कोशिश करता लेकिन सिम्मी मौली के पीछे छुप जाती और मौली ओम को रोकते हुये कहती – ” हॉ, सही तो कह रही है। तुम पढते लिखते तो हो नहीं, शेखचिल्ली जैसी बातें बड़ी बड़ी करते हो।”
” मम्मी, आप इस चुहिया का ही हमेशा पक्ष क्यों लेती हैं?”
मौली उसे गले से लगा लेती – ” मेरी सिम्मी है ही इतनी अच्छी। स्कूल में सारे अध्यापक इसकी प्रशंसा करते हैं। मन खुश हो जाता है और तुम्हारे स्कूल जाने पर तो शिकायतें सुन सुनकर ही सिर में दर्द होने लगता है।”
मौली के पीछे छुपे छुपे ही सिम्मी कहती – ” आंटी, यह अभी आपकी और अंकल की बात नहीं सुन रहा है। पढ़ेगा लिखेगा नहीं, तो इसको नौकरी भी नहीं मिलेगी। आपको क्या करना आगे चलकर खुद ही रोयेगा। आप लोग इसको मूॅगफली की रेहड़ी लगवा दीजियेगा। ” गली गली जाकर ” मू़ॅगफली गरम ••••• मू़ॅगफली गरम ••••• की आवाज लगाकर बेंचा करेगा।”
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बीना शुक्ला अवस्थी, कानपुर