मीनाक्षी की शादी की तैयारियां चल रही थीं। मीनाक्षी देखने में आकर्षक, गोरा रंग,घुंगराले बाल और सुडौल काया की स्वामिनी थी। पर इसके विपरीत स्वभाव से बेहद तेज़ तर्रार थी। अगर कोई बात उसके मन की होती तो ठीक वरना समझो आसमान सर पे उठा लेती थी। फिर उसको बड़े छोटे का फर्क नही समझ आता था ,हालांकि जैसे ही गुस्सा ठंडा होता और दिमाग शांत होता तो तुरन्त मांफी मांग लेती थी। मीनाक्षी की मां ने सोचा कि दूसरे के घर जाएगी तो ये आदत अपने आप बदल जाएगी।
पर उनकी ये सोच उनकी आशा के विपरीत निकली। शादी के बाद जब मीनाक्षी विदा होकर सुमित के घर आयी तो भी उसकी आदतें बदली नहीं। सुमित एक समझदार, शांत और ज़िम्मेदार लड़का था।उसके घर में उसके पिता कवीश जी और माता विमलाजी और छोटी बहन सोनल थे।बड़ी बहन बीना की शादी हो चुकी थी। सब लोगों में विमलाजी सबसे सीधी सादी थीं।संयुक्त परिवार में सास ससुर के साथ रही सबसे बड़ी बहू थीं तो हमेशा दबी और सहमी रही थीं। कवीश जी अपने माता पिता के प्रति इतने ज़्यादा समर्पित थे
कि उन्होंने पत्नी का दुख सुख कभी समझा ही नहीं। ये भी जानने की कोशिश नही की कि विमलाजी क्या क्या अन्याय सह रही हैं। वो बस सास के तानों उलाहनों के बीच घर की ज़िम्मेदारी को उठाना ही अपनी किस्मत मान चुकी थीं। जब विमलाजी के बच्चे बड़े हुए तो उन्होंने बस यही चाहा कि बेटी को अच्छा ससुराल और पति के साथ प्यार करने वाले सास ससुर मिल जायें और जब बेटे की शादी हो तो बहू को इस घर में खूब प्यार मिले क्योंकि इसी प्यार और अपनेपन के लिए विमलाजी पूरी ज़िंदगी तरसती रहीं।
मीनाक्षी के आते ही विमलाजी ने हृदय के उस खाली पड़े कोने को प्रेम से भरना शुरू कर दिया था जो आंसु बहाते बहाते पत्थर का हो चुका था। रोज़ सुबह का नाश्ता विमलाजी ही बनाती जब सोनल टोकती तो कहतीं,” कि जब तू ससुराल जाएगी तो तुझे भी अच्छा लगेगा अगर तेरी सास तेरे लिए कुछ करेगी,वो बेटी की तरह तो तभी बनेगी न जब मैं उसकी मां बनूँगी,आखिर पहले अस्तित्व में माँ आती है फिर उसके इतना करने के बाद ही औलाद उसका आभार मानती है।
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” सोनल चिड़चिड़ा कर कहती,”इस दुनिया में सब आपकी तरह अच्छे नही होते हैं माँ, जब सामने वाला कदर करे तो उसकी सेवा करो पर भाभी तो कभी आपके लिए कुछ भी करने की नही सोंचती।” मीनाक्षी की आलसी प्रवृत्ति और तुरंत जवाब देने की आदत ने बहुत दिनों तक घर में शांति टिकने नही दी। एक बार विमलाजी की तबियत बहुत खराब हो गयी उनके पूरे शरीर मे दवा से एलर्जी हो गयी डॉक्टर ने गरमी से बचने के लिए कहा
तो मीनाक्षी ने तुरंत ही मायके जाने का प्रोग्राम बना लिया,सुमित के मना करने पर भी वो चली गयी। सोनल ही दोनों टाइम खाना बनाती और उसने सुमित से भी कहा कि,”भैया मम्मी ने कोई कसर नहीं रखी पर भाभी ने ज़रा सा भी नहीं सोचा उनके लिए”।
सुमित भी क्या कहता,बेचारा चुप रह गया।धीरे धीरे परिवार में दरार पड़ने लगी। मीनाक्षी हमेशा अपनी ही मनमानी करती और विमलाजी को दुखी करती।विमला जी की तबीयत दिनों दिन बिगड़ती जा रही थी तो झटपट सोनल की भी शादी तय की गई और जल्दी उसकी विदाई हो गयी। अब विमलाजी अपने बीमार शरीर के साथ अकेली रह गई।
कवीश जी अपने काम मे व्यस्त रहते और सुमित मीनाक्षी को समझा बुझाकर रास्ते पर लाने के असफल प्रयास करता रहता। विमलाजी कामवाली के न आने पर इतनी बीमारी में पोंछा लगाती तो मीनाक्षी वही पर से चप्पल पहन कर निकल जाती।अगर खाना बना के रखती तो सबसे पहले परोस कर खा लेती। सब अपनी इज़्ज़त बचाने के लिए मीनाक्षी से पर्याप्त दूरी बनाकर रखते।
इसी बीच मीनाक्षी गर्भवती हुई तो खुशी के मारे विमलाजी क्या कुछ नही करती थी बहू के लिए,जो उसका खाने का मन करता वो मंगवाती, जो बनाने को मीनाक्षी कहती वो अपने हाथ से खुद बनाती ।एक बार तो सुमित भी हतप्रभ रह गया जब उसने अपने कमरे का दृश्य देखा।सुमित अंदर आया तो देखा कि मीनाक्षी पैरो के दर्द से बिलख रही है और विमलाजी अपनी बहू के पैर सहला रही हैं। सुमित ने फौरन अपनी मां को हटाया
और मीनाक्षी के पैरों पे दर्द की दवा लगा कर सिकाई की बेल्ट दे दी। जब उसे आराम मिला तो सुमित ने प्यार और तल्खी के साथ उसे स्पष्ट रूप से समझाया कि,”देखो मीनाक्षी,मेरी माँ ने बहुत दुख झेले हैं इस घर में,वो कभी चैन से नही रह पाई, वो बेहद सीधी है,साक्षात देवी है मेरी माँ,अगर तुम उनकी इज़्ज़त नही कर सकती और उन्हें प्यार के दो शब्द नही बोल सकती तो तुम मेरी तरफ से आज़ाद हो।
मैं अपनी बीमार माँ को और मानसिक कष्ट नही दे सकता । इसलिए तुम चाहो तो अपने घर जाकर अपनी माँ से अपनी सेवा कराओ, ये बात मैं इसलिए कह रहा हूं क्योंकि तुमने कभी मेरे परिवार के लिए कुछ नही किया।मैंने बहुत कोशिश की कि तुमको परिवार से जोड़ सकूं पर तुम अपनी ही धुन में लगी रही।”
सुमित ने मीनाक्षी के पिता को बुलाकर सारी बातें बताई तो उन्होंने मीनाक्षी को बहुत फटकारा और कड़ाई से कहा कि अगर यहाँ कायदे से नही रहोगी तो फिर मायके से कोई उम्मीद मत रखना।सुमित और अपने पापा की बातों से मीनाक्षी बहुत शर्मिंदा हुई और सुमित से माफी मांगती हुई बोली,”मुझे मांफ कर दीजिए,मैंने मांजी के साथ वाकई बहुत बुरा बर्ताव किया फिर भी वो मेरे साथ अच्छा ही करती रही।
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दरअसल अपनी सहेलियों से उनके ससुराल की बातें सुनकर मेरे मन मे एक अनकही नफरत बैठ गयी थी और उसके चलते मैं ये भी पहचान नही पाई कि सब सासें बुरी ही नही होती कुछ बहुएं भी मेरी तरह बत्तमीज़ होती है,आप मुझे माफ़ कर के एक मौका और दीजिये।”
सुमित ने मीनाक्षी को चुप कराया और खुद अपनी माँ के पास चला गया। अगले दिन मीनाक्षी का बदला हुआ रूप विमलाजी के जीवन की नई सुबह थी। वो बहू का स्नेह और परवाह पाकर गदगद हो उठीं।
मीनाक्षी का उनके प्रति उठा हर सकारात्मक कदम उनकी सांसो को बढ़ा रहा था पर एक दिन ज़्यादा तबियत बिगड़ने पर सुमित और कवीशजी उनको अस्पताल ले गए,वहाँ पंहुचने से पहले ही उनकी हृदयगति रुक गई थी। क्रूर काल ने विमलाजी को परिवार से छीन लिया। सुमित,सोनल ,बीना का रो रोकर बुरा हाल था। कवीशजी तो एक दम बेसहारा महसूस कर रहे थे। वहीं मीनाक्षी घर के आंगन के कोने में खड़ी सुबक रही थी और सोच रही थी कि अगर उस दिन सुमित ने इतना ज़लील न किया होता तो वो ताउम्र अपने को इस ग्लानि से बाहर न कर पाती और भले ही कुछ दिन सही पर वो अपनी सास की कुछ तो सेवा कर पाई । आज मां से भी बढ़कर सास को खोकर अनाथ महसूस कर रही थी मीनाक्षी, पर अपनी ननदों के पीछे सहारा बन कर खड़ी थी और यही उसका प्रायश्चित होगा।।।।।।।।
#जिस घर में बुज़ुर्ग हंसते मुस्कुराते हुए रहते हैं,उस घर में भगवान का वास होता है
लेखिका : सिन्नी पाण्डेय