रागी एक सुन्दर मेधावी सर्व गुण संपन्न छात्रा थी इसी कारण वह स्कूल, कॉलेज में टॉपर रहती आईं थी। कॉलेज में अन्य गतिविधियों में भी वह बढ़-चढ़कर भाग लेती और कई ईनाम एवं शील्डस उसके कमरे की शोभा बढ़ा रहे थे।वह बहुत ही मिलनसार,सरल स्वभाव की थी एवं अपने साथीयों की मदद करने को तत्पर रहती थी।
उसने एम सी ए कर मम्मी-पापा से नौकरी करने की अनुमति मांगी।वे उसकी शादी करने के लिए तैयारी कर रहे थे, किन्तु उसने यह कहते हुए पापा पहले मुझे अपने पैरों पर खड़ा हो जाने दो शादी करने से इंकार कर दिया।उन लोगों ने भी बेटी की इच्छा का मान रखते हुए उसे नौकरी करने की अनुमति दे दी।
उन्हें उस पर पूर्ण विश्वास था कारण अभी तक उसके द्वारा कोई अनुचित कार्य नहीं किया गया था जो उस पर अविश्वास का कारण बने।वह अभी मात्र इक्कीस बर्ष की
ही तो थी सो सोचा एकाध साल उसे नौकरी कर इच्छानुसार रह लेने दो तब तक लड़का तलाश कर लेंगे।
उसकी नौकरी एक कम्पनी में लग गई और वह दिल्ली चली गई।एक बर्ष तक तो वह आराम से नौकरी कर मस्त थी। किन्तु तभी उनकी कम्पनी में एक नया प्रोजेक्ट मैनेजर आया।वह कहीं दूसरी कम्पनी से जॉब बदल कर आया था। करीब पैंतालीस -छियालीस बर्षीय दीपेश अपने सुदर्शन व्यक्तित्व के कारण उम्र से कम लगता था। स्वभाव से मिलनसार वह जल्दी ही नये वातावरण में घुल-मिल गया।
तभी एक नया प्रोजेक्ट दिया गया उसकी टीम में रागी को भी सममीलित किया गया। साथ साथ काम करते कब वह उसकी ओर आकर्षित हो गई उसे पता ही नहीं चला। कुछ ऐसी ही स्थिति दीपेश की भी थी।अब दोस्ती प्रेमाकर्षण के बंधन में बदल चुकी थी।वे साथ-साथ समय गुजारने लगे, पर सतर्क रहते कि किसी को
पता नहीं चले। दीपेश विवाहित एवं तीन किशोरवय बच्चों का पिता था। उसे अपने परिवार से बेहद लगाव था सो वह पूर्ण सतर्कता बरत रहा था कि उनके संबंध की भनक किसी को न हो जिससे यह बात उसके परिवार तक पहुंचे।
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किन्तु रागी तो अपने को पूर्णतया समर्पित भाव से उसे भावी पति के रूप में ही देखने लगी थी।न जाने कितने सपने संजो लिए। देखते देखते ही दो बर्ष व्यतीत हो गये। रागी पूर्ण रूप से उसके मोहपाश में बंध चुकी थी। तन-मन से पूर्णतः अपने को समर्पित कर दिया।
दीपेश भी उसे भविष्य के मनभावन सपने दिखा कर उसका पूर्णतया शोषण कर रहा था।वह उसकी धृष्टता को समझ नहीं पा रही थी।वह दो नावों की सवारी सफलता पूर्वक कर रहा था, न तो वह अपने परिवार को छोड़ना चाहता था और न रागी को। इस बीच रागी ने कई बार उससे कहा कि अब हम शादी कर लें किन्तु वह यह कहकर कि अभी इस रिश्ते को थोड़ा वक्त दो शादी की बात टाल जाता।इसे रागी का दुर्भाग्य कहें या विधी का लेख कि समय के साथ -साथ वह और अधिक प्रगाढ़ता से दीपेश से जुड़ती जा रही थी। उधर मम्मी-पापा शादी करने पर जोर डाल रहे थे किन्तु वह हर बार कोई बहाना बना टाल देती।
इस बार छुट्टीयों में जब वह घर गई तो मम्मी ने चार लड़कों के फोटो उसके हाथ पर रख दिए। इन्हें देख लो साथ में इनके बायोडाटा भी हैं जो तुम्हें पंसद आए उसे बुला लें जिससे आमने-सामने मिल भी लो।
मम्मी इतनी भी क्या जल्दी है अभी कुछ दिन और रूक जाओ।
नहीं अब तुम्हारी शादी की उम्र हो चुकी है ज्यादा उम्र होने पर रिश्ते अच्छे नहीं मिलते और हम भी अब अपनी जिम्मेदारी से मुक्त होना चाहते हैं।
पर मम्मी एक दम इतनी जल्दी क्यों, क्या समस्या है।
अभी सिर्फ देखने को ही कह रही हूं कल ही शादी थोडे ही हो जायगी। दो-तीन महीने तो लग ही जायेंगे। उसे असमंजस में देख मम्मी बोलीं क्या बात है रागी क्या किसी को पसंद करती हो तो स्पष्ट बताओ। यदि उपयुक्त है तो हम उससे ही तुम्हारी शादी कर देंगे।
यह सुन रागी बोली हां मम्मी मैं किसी से प्यार करती हूं और उससे ही शादी करना चाहती हूं।
बताओ कौन है ?क्या करता है? कहां का रहने वाला है।
रागी ने बड़े ही संकोच के साथ बताया वह मेरी ही कम्पनी में प्रोजेक्ट मैनेजर है। किन्तु**
किन्तु क्या आगे बोलो, क्या परेशानी है।
मम्मी वह शादी -शुदा है एवं उसके तीन बच्चे भी हैं।
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क्या सुन कर मम्मी को लगा जैसे वह आसमान से गिरी हों। क्या कह तुमने
शादी -शुदा और तीन बच्चों के बाप से शादी करोगी।जानती भी हो तुम क्या कह रही हो।
हां मम्मी हम तीन साल से साथ हैं और बहुत प्यार करते हैं एक दूसरे से।एक दूसरे से अलग होने की कल्पना भी नहीं कर सकते।तभी पापा भी वहां आ गए और आते -आते उन्होंने भी यह बात सुन ली।वे सिर पकड़ कर बैठ गए। रागी बेटा हमारे विश्वास का तुमने यह सिला दिया। क्या कमी छोड़ी थी हमने तुम्हारी परवरिश में।
तुम में क्या कमी है जो एक विवाहित पुरुष से जो उम्र में तुम से दो गुना से भी बड़ा है शादी करोगी। क्या सुख मिलेगा तुम्हें। समाज में हमारी और तुम्हारी कितनी बेइज्जती होगी।
पर पापा हम प्यार करते हैं।
नहीं वह तुम्हें प्यार नहीं करता केवल धोखा दे कर तुम्हारा उपयोग कर रहा है।
यदि वह सही व्यक्ति होता तो न तो अपने परिवार को धोखा देता तुम जैसी छोटी लड़की को अपने प्रेम जाल में फंसाता बल्कि यदि तुम्हारी तरफ से पहल भी होती तो तुम्हें सही मार्गदर्शन दे समझा सकता था। उसने तुम्हारी नादानी का पूरा फायदा उठाया वह व्यक्ति सही कैसे हो सकता है। क्या इन तीन सालों में उसने अपनी पत्नी को तलाक देने की कोशिश की। क्या उसने तुम से इस बात के लिए वादा किया कि वह शीघ्र ही तलाक लेकर तुम से शादी कर लेगा।वह तुम्हें उलझा कर रखना चाहता है जिससे पत्नी को भी नहीं छोड़ना पड़े और तुम्हें भी अपनी गिरफ्त में रखे। इस रिश्ते का अंजाम बेटा दुखद ही होगा।
मम्मी बोलीं बेटा वह तुम्हारी भावनाओं से खेल रहा है। तुम उसके प्रेमाकर्षण में सुध-बुध खो चुकी हो। अभी तुम्हें सही ग़लत की पहचान नहीं है।वह तुम्हें बजाए एक सुखद भविष्य देने के रसातल के अंधेरे कुएं में ढकेल रहा है जहां सिवा रुसवाई के तुम्हें कुछ नहीं मिलेगा। तुम उसकी पत्नी कभी नहीं बन पाओगी वह तुम्हें रखैल बना कर रखेगा। तुम समाज में मुंह उठाकर चल भी नहीं पाओगी सबसे मुंह छिपाती फिरोगी। तुम न एक सधवा रहोगी न विधवा। तुम विवाहित नारी की तरह अपनी मांग में सिंदूर भी नहीं लगा पाओगी न मातृत्व का सुख तुम्हें मिलेगा।
इतनी अधिक उम्र है कि वह अधेड अवस्था में ही तुम्हें छोड़ जाएगा फिर क्या उसके बच्चे तुम्हारा ख्याल रखेंगे।वेऔर समाज तुम्हें हिकारत भरी नजरों से देखेंगे। तुम्हारे पास अपना ग़म गलत करने के लिए किसी का कंधा भी नहीं होगा। तुम दुनियां में नितांत अकेली रह जाओगी। उसकी पत्नी और बच्चे जो पूर्ण रूप से निर्दोष हैं उनकी हाय तुम्हें लगेगी, तुम कभी सुखी नहीं रह पाओगी ।अब तुम सोच लो कि तुम्हें यह जिल्लत भरी जिंदगी
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चाहिए या मान सम्मान के साथ किसी की पत्नी बन कर रहना। स्त्री के चेहरे पर सम्मान का जो दर्प होता है किसी की पत्नी बन कर, उसके नाम का सिन्दूर मांग में सजाकर समाज में सिर उठा कर चलती है और सबसे बडा सुख किसी भी स्त्री के लिए मां बनना ,मातृत्व के सुख का आंनद लेना।साथी हम उम्र ही अच्छा लगता है न कि दोहरी उम्र का उम्र दराज व्यक्ति। तुम में क्या कमी है जो तुम यह कदम उठाने जा रही हो। क्यों अपनी जिंदगी को अंधेरे के साये में भटकाना चाहती हो।हम समझा चुके आगे तुम्हारी इच्छा खुद समझदार हो।
नहीं मम्मी ऐसा कुछ नहीं होगा दीपेश जी मुझसे बहुत प्यार करते हैं।हम एक दूसरे के बिना नहीं रह सकते। उसके ऊपर मम्मी-पापा के समझाने का कोई असर नहीं हुआ क्योंकि उसकी आंखों पर तो दीपेश के प्यार की पट्टी जो बंधीं थी। दो-तीन रहकर वह बापस चली गई।
अब उसने मम्मी-पापा की बातों पर सोचना शुरू किया। क्या मेरी स्थिति मम्मी के कहे अनुसार हो जायेगी। अभी वह विचारों के भंवर में डूब उतरा ही रही थी कि तभी एक दिन बाॅस का निमंत्रण मिला उनके बेटे की शादी थी तो पूरे स्टाफ को सपरिवार बुलाया था।वह भी गई, दीपेश भी अपने परिवार के साथ आया था।
उसकी पत्नी बड़ी ही आकर्षक एवं सादगीपूर्ण थी, कोई आडम्बर नहीं सबसे घुल मिल कर बातें कर रही थी।दो बेटियां करीब चौदह एवं बारह वर्षीय एवं छोटा दस वर्षीय बेटा। बच्चे भी सुन्दर एवं अनुशासित लग रहे थे। मांग में सिंदूर सजाए उसकी पत्नी का चेहरा बिना ज्यादा मेकअप के भी एक सम्मानित पत्नी एवं मां होने के दर्प से दीप-दीप कर रहा था। कितनी संतुष्टि के भाव उसके चेहरे पर थे। बच्चे कैसे मासूम थे। तलाक के बाद उनको कितना आघात पहुंचेगा, कितना मानसिक संताप होगा कि कल्पना मात्र से वह सिहर उठी।
तभी दीपेश वहां आया, उसने इशारे से पत्नी को बुलाया कुछ सलाह मशविरा किया फिर बच्चों को ले वे सब चले गए। एक बार भी दीपेश ने उसकी ओर नहीं देखा।वह दुख से तड़प उठी।ये कैसा प्यार है उसके परिवार के सामने उसकी कोई औकात ही नहीं।अब मम्मी-पापा की बातें उसके जेहन में बार-बार घूमने लगीं ।
जब दीपेश उससे मिलने आया तो उसने उससे प्रश्न किया कि तुम कब तलाक ले रहे हो।अब मैं तुमसे अलग नहीं रह सकती जल्दी शादी कर लें।
तब वह बोला चिल बेबी चिल। मेरी बात ध्यान से सुनो। मेरे ऊपर पारिवारिक दबाव है मैं तलाक नहीं ले सकता। क्यों न हम जैसा चल रहा है वैसा ही चलने दें।
तो मैं तुम्हारी रखैल बन कर रहूं।
नहीं रागी मेरा ये मतलब नहीं था, तुम तो मेरी जान हो,मेरा प्यार हो। मैं भी कहां तुम्हारे बिना रह सकता हूं, किन्तु परिवार, समाज के आगे मजबूर हूं। मेरी नजर में तो
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तुम मेरी पत्नी ही हो , हां सामाजिक तौर पर तुम्हें नहीं अपना सकता। मेरी मजबूरी को समझो।
रागी यह सुन स्तब्ध थी।वह उसके साथ होकर भी नहीं थी। रह-रहकर मम्मी-पापा के शब्द उसके कानों में गूंज रहे थे रखैल बन कर रहना होगा। उसकी स्थिति त्रिशंकु की तरह होगी न सधवा न विधवा न किसी के नाम का सिन्दूर न किसी की सम्मानित पत्नी।
उसे चुप देख दीपेश ने उसके सामने बाहर चलने का प्रस्ताव रखा। चलो डार्लिंग बाहर चलकर कुछ खाते पीते हैं।मूड को ताजा करते हैं।
हां कह वह चल पड़ी किन्तु सिर दर्द का बाहना जल्दी ही लौट आई।
तुम आराम करो कल मिलते हैं कहकर दीपेश चला गया।
उसके कहे एक -एक शब्द हथोड़े की तरह उसके मस्तिष्क पर चोट कर रहे थे।जो प्यार की पट्टी मम्मी-पापा के समझाने से नहीं हटी वह दीपेश के शब्दों ने एक झटके में हटा दी।
उसने तुरंत एक निर्णय लिया अपनी जिन्दगी अपनी तरह से जीने का सबको अधिकार है सो अब वह अपनी तरह से ही जिएगी। सबसे पहले तो मम्मी को फोन किया मम्मी मैं आपके कहे अनुसार शादी करने को तैयार हूं और शीघ्र ही आपके पास पहुंच रही हूं। दूसरे दिन से लम्बी छुट्टी लेकर अपने घर चली गई।
वहां उसने मम्मी-पापा के बताए लड़कों में से एक का चयन कर लिया। पापा ने तुरंत उन लोगों को आने का निमंत्रण दिया।
परिवार बेटे के साथ आया। रागी उन्हें पंसद आ गई और रागी को आर्यन। तैयारी से आए थे सो रोका उसी दिन कर दिया। फिर सगाई, शादी सबकी तारीख निकाल कर शादी की तैयारियां शुरू हो गईं और दो माह में ही शादी हो गई।
वह अपने को किसी की पत्नी बन बड़ा ही सम्मानित महसूस कर रही थी। आज पति के नाम का सिन्दूर उसकी मांग में आभा बिखेर रहा था। आज उसके मन में यह डर नहीं था कि कोई देख न ले दीपेश के साथ
बडा ही हल्का महसूस कर रही थी। सबकुछ खुला हुआ था कोई छिपाओ दुराव नहीं था।
उधर दीपेश हैरान परेशान था कि रागी यकायक कहां चली गई। ज्यादा किसी से
पुछताछ भी नहीं कर सकता था।बीस दिन हो गए। तभी एक दिन रागी अपनी सीट पर बैठी दिखी। उसके गले में मंगलसूत्र, मांग में सिंदूर, माथे पर बिंदिया वैवाहिक होने के सबूत दे रहे थे।
दीपेश उसे देखता ही रह गया। किन्तु रागी ने उसे नजर भर भी नहीं देखा। दीपेश अपने को ठगा-सा महसूस कर रहा था।
दूसरे दिन से रागी फिर नहीं दिखी।असल में उसने अपनी ससुराल पूना की शाखा में
ट्रान्सफर करवा लिया था।वह तो केवल रिलीव होने आई थी।आज शहर छोड़ पुरानी यादों से पूरी तरह आजाद हो गई थी।
शिव कुमारी शुक्ला
19-10-24
स्व रचित मौलिक एवं अप्रकाशित
साप्ताहिक शब्द*****सिंदूर