” बेटा, कल तेरी बुआ के यहाँ पार्टी में तूं और कविता चले जाना.. मेरे तो घुटनों का दर्द बढ़ गया है…. ।,, रमा जी अपने बेटे से बोली …. उनकी ननद के यहाँ छोटे बेटा बहू की पहली सालगिरह की पार्टी थीं।
” क्या करूँगा वहाँ जाकर माँ.. सब के सामने मेरी गर्दन नीची हो जाती है । ,, खीझते हुए आकाश बोला।
आकाश की बात पर रमा जी ने घूरते हुए आकाश को देखा
” और नहीं तो क्या माँ.. देखो ना बुआ की छोटी बहू भी जाॅब वाली आई है । परिवार में सबकी बहुएं अपने पैरों पर खड़ी हैं.. लेकिन बस आपको हीं घरेलू टाइप की बहू लानी थी.. सिर्फ हाउसवाइफ बनकर रह गई ये ।,,
” चुप कर नालायक.. क्या कमी है कविता में जो उसके चलते तुझे शर्मिंदगी होती है.. ?? यही ना कि वो बाहर जाकर पैसे नहीं कमाती… !! अरे वो पैसे भले ही ना कमाती हो लेकिन तुझे अंदाजा भी है कि वो तेरे कितने पैसे बचाती है ?? ,,
माँ की इस बात पर अब आकाश सवालिया नजरों से रमा जी की ओर देख रहा था…. ” माँ आपको तो कभी उसमें कोई कमी नजर आएगी नहीं.. क्योंकि आपने ही उसे पसंद किया था…. लेकिन जिंदगी तो मुझे बितानी है उसके साथ। ,,
” हाँ.. वो मेरी पसंद है और मुझे नाज है अपनी बहू पर.. एक बात बता वो तुझसे क्या मांगती है?? सारे घर का काम वो खुद संभलती है । सुबह पांच बजे से रात दस बजे तक इस घर की ड्यूटी निभाती है … उसने तो मेड रखने से भी मना कर दिया.. खुद ही सारा काम कर लेती है। तुझे हर चीज समय पर हाथों में मिल जाती है..
इस कहानी को भी पढ़ें:
बच्चों को भी अभी तक खुद ही पढ़ाती है… और तो और तेरी माँ की सेवा भी अपनी माँ समझकर करती है…. । एक बार जरा अपनी बुआ से पूछ कर देख कि उनकी बहुओं का उन्हें कितना सुख मिलता है?? घर के कामों के लिए मेड लगा रखी है लेकिन इस उम्र में भी दोनों वक्त की रोटी खुद ही बनानी पड़ती है ।
छोटे से पोते को भी क्रेच में छोड़ कर जाती है उनकी बहू । छुट्टी वाले हर रविवार को बेटे बहू घूमने जाते हैं या खाना बाहर से आता है । अभी भी सागिरह पर बड़ी पार्टी रखने की ज़िद छोटी बहू की ही थी । कहती है जब इच्छाएं पूरी नहीं करेंगे तो कमाती क्यों हूं ?? वो यदि कमाती हैं तो खुद की मर्जी से मनचाहा खर्च भी करती हैं । और जरा तूं याद कर कब तूं कविता को लेकर कहीं बाहर घूमने गया है या फिर उसके लिए तूने पार्टी दी है!! ,,
मां बोले जा रही थी और आकाश की गर्दन झुकी जा रही थी ।
” साॅरी मां , मैं सिर्फ दूसरे नजरिए से ही देख रहा था। ,,
” साॅरी मुझे नहीं… बोलना है तो अपनी पत्नी को बोल जिसे तूं बाकी सबसे कम आंकता है। ये सिर्फ हाउसवाइफ नहीं है ये तो होममेकर है जो एक मकान को घर बना देती है । ,, दरवाजे पर खड़ी कविता की ओर इशारा करते हुए रमा जी बोलीं ।
“साॅरी कविता , चलो हमारी होममेकर जी शाम को बुआ जी के यहां चलना है । ,,
कविता मुस्कुराते हुए अपनी सास के गले से लग जाती है । ” थैंक्यू मम्मी जी ।,,
” अरे बहू , समय रहते इन मर्दों को अपनी अहमियत का एहसास करवाना जरूरी होता है नहीं तो हमें नीचा दिखाना इनकी आदत बन जाती है । मैंने भी काफी कुछ सहा है लेकिन अब नहीं । घर संभालना कोई बच्चों का खेल नहीं है । ये बात हमेशा याद रखना और याद दिलाती रहना । ,,\
लेखिका : सविता गोयल