रिश्तों में दूरियां – मंजू ओमर : Moral Stories in Hindi

कितने अरमानों से नीलिमा बहू को घर लाई थी । कितने अरमान संजोए थे बहू के , बहुत प्यार से रखूंगी , ऐसा कुछ नहीं होने दूंगी जैसा अन्य घरों में सुनाई देता है सास ने  ये कहा तो बहू ने ये जवाब दिया फिर तू-तू मैं-मैं। नहीं नहीं मैं ऐसा कुछ नहीं होने दूंगी।काहे का झगड़ा किस बात का झगड़ा कोई वजह भी तो होनी चाहिए

न झगडे की ।किस बात की कमी है हमारे घर में जैसे चाहे वैसे रहे कोई रोक टोक नहीं ।और कौन है घर में ले देके मैं बेटा रोहन और उसके पापा नीरज बस। अभी तक तो हम तीन थे अब चार हो जाएंगे फिर पांच छै अरे अरे घबराइए मत नन्हे नन्हे बालक गोपाल भी तो होंगे न।बहू के घर में कदम रखते ही नीलिमा  तो जैसे झूम उठी थी ।कितनी तैयारियां कर रखी थी बहू के स्वागत की ।

               कार से उतरते ही नीलिमा ने गर्मजोशी से बहूं का स्वागत किया । बहुत बहुत स्वागत है तुम्हारा इस नए घर में , नया घर तुम्हें मुबारक हो और दुखी बिल्कुल मत होना और कानों में धीरे से कहा एक मां को छोड़कर आई हो न यहां दूसरी मां मिल गई है मुझे अपनी मां ही समझना। कोई कुछ भी कहे या रोहन तुम्हें परेशान करें तो मुझे आकर कहना कान खींचूंगी उसके और नीलिमा खिलखिला कर हंस पड़ी । खुशी तो जैसे छलकी पड़ रही थी नीलिमा की।

                  कुर्सी से सिर टिकाए नीलिमा के आंखों से आंसू बह निकले ।छै साल पहले बेटे की शादी को याद करके नीलिमा एक बार फिर छै साल पहले वाले दिन में चली गई । कितने अरमानों से लाई थी नीतिका को इस घर में बहू बनाकर।जब पहली बार नीतिका को देखने गए थे तो ऐसी बिल्कुल भी नहीं लगी थी

जैसी अब है ।गोरा रंग अच्छी हाइट ,दुबली पतली सी सुंदर सी नाज़ुक सी नितिका उनको एक ही नज़र में पंसद आ गई थी ।और उसका आदर सम्मान देना प्यार से गले लग जाना मन मोह लिया था।रोहन को भी पंसद आ गई थी नितिका। फिर एक छोटा सा कार्यक्रम करके शादी पक्की कर दी थी ।इस छोटे से फंक्शन में बस नीलिमा के तरफ से पांच मेम्बर थे । नीलिमा ने नितिका को गले में सोने की चेन पहना कर जैसे ही नितिका का मुंह मीठा कराया थैंक्यू मम्मा कहकर नितिका ने नीलिमा को गले से लगा लिया। गदगद हो  गई थी

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नीलिमा नितिका को पाकर। तमाम सपने देखने लगी थी कि नितिका को ऐसे रखूंगी वैसे रखूंगी ,सास तो बिल्कुल भी नहीं बनूंगी मां बेटी बनकर रहूंगी । खूब मौज-मस्ती करूंगी। नीलिमा सोचने लगी मेरी सास ने तो मुझे ब बहुत परेशान किया है लेकिन मैं अपनी बहू को बिल्कुल भी परेशान नहीं करूंगी।और कई बार फोन पर बात होती तो नीलिमा नितिका से कह देती कि मेरी सास ने तो मुझे बहुत परेशान किया है लेकिन तुम बिल्कुल मत डरना मैं वैसी सास नहीं बनूंगी और जोर से हंस पड़ती।

                 वैसे तो निलिमा बहुत नरम मिजाज और मृदुभाषी थी । हंसमुख सबकी मदद करने वाली ,हर काम में होशियार , पाक-कला में तो पारंगत थी ।सिलाई कढ़ाई बुनाई अपने समय का कोई ऐसा काम नहीं था जो वो नही कर पाती है। मोहल्ले पड़ोस में भी उनकी बहुत अच्छी बनती थी । कभी भी किसी को कोई जरूरत है सबकी मदद करती रहती थी ।हर कोई उनके काम की तारीफ कर जाता था।

                नीलिमा सोचने लगी सभी को तो वो खुश कर जाती है और सभी खुश रहते हैं फिर नितिका को क्यों नहीं खुश रख पाई  क्या कमी रह गई। लेकिन यदि एक रिश्ता निभा रहा है और दूसरा नहीं निभाना चाहता तो कैसे निभेगें रिश्ते।

                शादी होते ही नितिका के व्यवहार में एकाएक से परिवर्तन आ गया । नीलिमा का इकलौता बेटा था रोहन और आर्थिक स्थिति भी मजबूत थी शायद ये सब देखकर नितिका ने अच्छा व्यवहार रखा शादी से पहले कि शादी यहां हो जाए ।

              फिलहाल शादी के दो महीने बाद बरगद अमावस्या की पूजा आई तो नीलिमा ने नितिका को फोन किया कि बेटा शादी के बाद ये पहली पूजा है तुम मेरे पास आ जाओ या मैं तुम्हारे पास आ जाऊं (क्योंकि बेटा दिल्ली में रहता था ) नितिका ने कोई जवाब नहीं दिया और रोहन से कह दिया कि तुम मम्मी को फोन आ दो कि मैं इन सब फालतू के ढोंग को नहीं मानती ।जब रोहन ने मम्मी के पास फोन किया तो नीलिमा ने कहा बेटा ये तो घर परिवार के तीज त्यौहार रस्मों रिवाज है करेगी नहीं तो कैसी जानेगी कि क्या होता है परिवार में ।अब मम्मी वो नहीं आना चाह रही है तो मैं आ जाऊं नीलिमा ने कहा अच्छा बताता हूं कहकर रोहन टाल गया।

                      बात आई गई हो गई। फिर दीवाली आई तो पहली दीवाली थी । नीलिमा ने एक सुंदर सी साड़ी खरीदी और सोने के कानों के इयररिंग्स खरीदी नितिका के लिए।जब दीवाली पर दोनों घर आए तो दीवाली वाले दिन नीलिमा ने वो साड़ी का पैकेट और इयररिंग्स दिया कि वो पहन कर अच्छे से तैयार हो जाओ ज़रा चूड़ियां पहन लेना और मांग में सिंदूर लगा लेना तुम लोग सिंदूर नहीं लगाती बिंदी भी लगा कर अच्छे से तैयार हो जाना । वैसे तो पूजा में शादी वाले कपड़े पहनते हैं लेकिन तुम ये नई साड़ी पहन लो ।

लेकिन जब वो तैयार होकर नीचे आई तो सिंपल सा सूट पहन रखा था और मांग में सिंदूर भी नहीं लगाया । नितिका को देखकर नीलिमा ने टोका अरे बेटा तुमसे कहा था कि पहली दीवाली है अच्छे से तैयार हो जाओ लेकिन तुम तो ये सिंपल सा सूट पहन कर आ गई । तभी नितिका बोल पड़ी क्या मम्मी जी आपके तो चोंचले ही खत्म नहीं होते कभी ये पूजा कभी वो पूजा। मुझे जैसे तैयार होना है वैसे ही तैयार होऊंगी ।और ये भारी भरकम साड़ी मुझसे नहीं पहनी जाती।और ये क्या खरीद ली है साड़ी आपने पहनना मुझे है कि आपको  लेना है

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तो मुझे पसंद करा कर लें न अपनी पसंद से क्यों ले आई है ।और वैसे भी मैं तो साडी वाडी पहनती नहीं हूं जिंस पहनती हूं।आप इसे वापस कर दें । अरे अब वापस थोड़े ही होगी तो जो आपका मन करे वो करें। नीलिमा नितिका का ये बदला रूप देखकर दंग थी क्या ये वही नितिका है जिसको देखकर मैं मोहित हो गई थी । रोहन भी कहने लगा मम्मी पहनना जब नितिका को है तो अपनी पसंद की क्यों लाना और अब साड़ी वाडी कौन पहनता है । नीलिमा की धीरे धीरे सभी आशाएं टूटती जा रही थी।

                   रोहन की शादी की पहली सालगिरह थी तो नीलिमा और पति नीरज ने रोहन को सरप्राइज देने के चक्कर में अचानक से रोहन के पास पहुंच गए । अचानक से मम्मी पापा को देखकर रोहन और नितिका हतप्रभ हो गए । मम्मी पापा आप लोग अचानक से खबर तो कर देते ,अरे हम लोगों ने सोचा कि सरप्राइज दे तुम लोगों को । लेकिन हम लोग तो एक हफ्ते को बाहर घूमने जा रहे हैं रोहन बोला, अरे बेटा तुम ही बता देते कि हम लोग बाहर जा रहे हैं ,अब क्या करें हम‌लोग तो आ गए कैंसिल करा दो जाना फिर चले जाना

,तभी नितिका जोर से बोली कैंसिल , गलती आप लोग करें और भुगते हम ।हम लोग अपना प्रोग्राम कैंसिल क्यों करें इतनी तमीज तो होनी चाहिए न आपलोगो को कि किसी के घर जाने से पहले उसे खबर करें। किसी का किसी का घर अरे बेटे बहू का घर है क्या ये मेरा घर नहीं है क्या, नहीं मम्मी जी ये घर मेरा है और आपका घर वो है जहां आप रहते हैं। नितिका बोले जा रही थी और रोहन चुपचाप खड़ा था ऐसा लग रहा था कि जैसे उसकी भी यही मर्जी है।

             इतनी देर से अपना अपमान होते देखकर नीरज जी बोल पड़े नीलिमा चलो यहां से , कहां नीलिमा बोली अरे मैं कह रहा हूं न चलो तुम्हें ही बहुत लगी थी कि शादी की पहली सालगिरह पर बहू बेटे को आशीर्वाद दे आए दे चुकी आशीर्वाद अब चलो ।ये लोग तुम्हारे बिना ही खुश हैं जबरदस्ती घुसी हो इनके बीच चलो यहां से।चलों सामान उठाओ और चलो यहां से स्टेशन जो अगली ट्रेन मिलेगी उसी से वापस घर चले जाएंगे। बहुत हुलास पाले थी बहू बेटा को सीने से लगाने को चलो अब।

        अब नीलिमा और नीरज जी आंखों में आंसू भरकर स्टेशन पर बैठे हैं। रिश्तों में दूरियां बढ़ती जा रही थी।बहू तो बहू बेटा भी हाथ से निकल गया है बीबी का गुलाम बना फिर रहा है ।ये भी नहीं हुआ कि नितिका को कुछ बोले पर नहीं चुपचाप खड़ा रहा। कैसे बदल जाते हैं बेटे भी सबकुछ याद करके नीलिमा बहुत दुखी थी। रिश्तों में अब धीरे धीरे इस क़दर दूरियां बढ़ गई है कि नितिका की अब नीलिमा से बातचीत नहीं होती है । हां बेटे कि कभी कभी फोन आ जाता है और कभी कभी घर भी आ जाता है लेकिन नितिका न बात करती है और न घर आती है । कभी कभी रिश्ते इस क़दर खराब हो जाते हैं कि क्या बताएं जबकि वजह कुछ भी नहीं होती है ।

मंजू ओमर

झांसी उत्तर प्रदेश

14 अक्टूबर

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