आज ऑफिस से छुट्टी ले ली हूं..एक सप्ताह से कुछ भी अच्छा नहीं लग रहा है खाना देखते हों उबकाई आने लग रही है.. मृणाल को भी नही बताया है…
घर में हीं प्रेगनेंसी टेस्ट कीट से टेस्ट कर के देखती हूं..
ओह पॉजिटिव है.. मतलब मैं फिर से मां बनने वाली हूं… खुशी का एक झोंका आया मातृत्व सुख के अहसास से सरोबार कर गया.. पर दूसरे हीं पल मृणाल का चेहरा सामने आ गया…
सात साल हो गए लिव इन रिलेशनशिप में रहते हुए…
हमदोनों आईटी सेक्टर में अच्छे पोस्ट पर हैं… पुणे में…
मैने घरवालों के खिलाफ जाकर मृणाल के साथ लिव इन रिलेशनशिप में रह रही हूं.. सब ने मुझ से रिश्ता तोड़ लिया है… मध्यम वर्गीय परिवार में शादी के पहले लड़के के साथ रहना अपराध हीं माना जाता है बहुत घृणित अपराध..
मेरी खूबसूरती देख पापा ने मेरा नाम रखा था परी..
जिसे स्कूल में एडमिशन के समय परिधि में तब्दील कर दिया गया..
मृणाल और मैं अहमदाबाद में एक साथ हीं एमबीए कर रहे थे.. हमारी दोस्ती कब प्यार में बदल गई पता हीं नहीं चला.. कितने लड़कों को मृणाल के भाग्य से ईर्ष्या होती थी जब मैं और मृणाल एक साथ गुजरते..
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मेरी खूबसूरती मृणाल को दीवाना बना दिया था..
मेरे होठों के नीचे काला तिल जिसे मृणाल भगवान से मिला नजर ना लगने का उपहार कह कर मुझे छेड़ता रहता…
एमबीए खत्म होने पर फेयरवेल पार्टी हुई जिसमे मैं ऑफ व्हाइट कलर की सिक्वेंस वाली साड़ी के साथ परपल कलर का हेवी ब्लाउज पहना था.. गले में डायमंड का पेंडेंट ..
कितनी उपमाएं कितनी तारीफें कसीदे मेरी खूबसूरती पर सुनने को मिले… मृणाल ने कहा संगमरमर की तराशी हुई मूरत पर किसी ने जैसे हीरे जवाहरात जड़ दिए हो… उफ्फ परी…
और कुछ दिनों बाद हमने हैंडसम पैकेज पर एक हीं कंपनी में नौकरी कर ली.. घर से शादी के दबाव बढ़ रहे थे पर ना मैं ना हीं मृणाल शादी के इच्छुक थे.. हमारा मानना था #हमारा रिश्ता #सिंदूर # और मंगल सूत्र का मोहताज नहीं है..हम दोनो एक दूसरे के सम्मोहन में एकाकार हो गए थे..महानगर की संस्कृति हमारे सर चढ़ कर बोल रही थी.. हमारे लिए #सिंदूर #कोई मायने नहीं रखता था…
मां की जिंदगी मुझे बिल्कुल पसंद नहीं थी.. मांग में दप दप करता गाढ़ी सिंदूर की रेखा बड़ी सी बिंदी जबसे से होश संभाला मां का ये रूप देखा….जो मुझे देहाती लगता….. मैं ऐसे बिल्कुल नही करूंगी.… पापा और बच्चों की सुविधा से अपनी जिंदगी जीते मां को देखा था..रूटीन में बंधकर रहने में मां खुशी मिलती थी ऐसे हीं एक बार का वाकया है
मां को कमल हासन की बहु प्रतीक्षित मूवी एक दूजे के लिए देखनी थी पर पापा की इच्छा थी नदिया के पार देखने की.. मां सहर्ष तैयार हो गई और वापस आने पर इतनी खुश थी की बस पूछो मत.. फिल्म के गाने से लेकर संवाद तक सब की तारीफें और चर्चे कई दिनों तक चलते रहे..मैने तभी सोचा था मुझे ऐसा नहीं करना…
और फिर हम एक साथ सुसज्जित फ्लैट लेकर पुणे में रहने लगे..
बहुत एहतियात बरतने के बाद भी पिछले साल अक्टूबर में कंसीव कर गई.. दो महीने के गर्भ को मृणाल के दबाव या मनुहार से गिरवाना पड़ा..
ओह कितनी पीड़ा आत्मग्लानि हुई.. मैने अपने शरीर के अंश की हत्या की है.. लगा हॉस्पिटल में मैं अपना बहुत कीमती चीज खो के आई हूं… मेरी अंतरात्मा मुझे धिक्कार रही थी..
मृणाल का कहना था अभी तो हमारे मौज मस्ती के दिन हैं कहां इन बखेड़ों में पड़ेंगे…
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पता नही क्यों मुझे कभी कभी मृणाल ऐसा क्यों लगता है कि मेरे शरीर से हीं इसे प्यार है हवस मिटाने के लिए हीं मेरा यूज कर रहा है..
और फिर मृणाल के बाहों में समाते हीं ये ख्याल झटक देती…
और आज फिर उसी मोड़ पर मैं खड़ी हूं मुझे फैसला लेना होगा…
मातृत्व के अहसास को मैं इस बार कुचल नही पाऊंगी.. आज भी सपने में कभी कभी एक अस्पष्ट सा बच्चे का चेहरा दिख जाता है जो मुझसे पूछता है मुझे क्यों मारा मां .. और पसीने से तर बतर मैं उठ के बैठ जाती हूं… फुल एसी में भी इतना पसीना …
और जिसका मुझे अंदेशा था मृणाल ने बच्चे को रखने से साफ इंकार कर दिया.. मृणाल या बच्चा किसी एक को चुनना था..
रात काटना मुश्किल हो रहा है . एक हीं बिस्तर पर पड़े हैं हम दोनों बिलकुल अजनबी की तरह.. शायद महानगर में ऐसा हीं होता हो..
मां जरा सा उदास या चुप होती तो पापा कितने जतन करते उनकी मुस्कान वापस लाने के लिए.. एक बार मैने चुपके से रसोई में मां के बालों में गजरा लगाते पापा को देखा था उफ्फ मां का शर्माना… आज मुझे मां पापा का रिश्ता… #सिंदूर #और शादी की की कीमत और सामाजिक मान्यता, सात फेरों का महत्व सब कुछ चलचित्र की भांति समझ में आ रहा था..
मैं मृणाल से दूर जा रही हूं.. बैंगलोर में कंपनी का ब्रांच है.. अगले महीने से वहीं काम करूंगी… मैं लिफ्ट से नीचे आ गई शायद मृणाल का दिल पसीज जाए मुझे रोक ले.. कैब में सामान रखा चुका है पर…. एयरपोर्ट पर भी उम्मीद से चारो तरफ देखा कहीं मृणाल मुझे वापस लेने आया हो पर नही… ये मेरा भ्रम है..
।veena
नए शहर में नए सिरे से जिंदगी की शुरुआत करूंगी.. अब मैं अकेले कहां हूं मेरा भविष्य मेरा अंश मेरा बच्चा मेरे साथ है… ये जीवन है.. औरत से हीं सृष्टि का अस्तित्व है.. और इस अस्तित्व को बनाए रखने की जिम्मेदारी औरत की हीं है… कितना भी जमाना आगे बढ़ जाए एडवांस हो जाए पर मातृत्व का अलौकिक अहसास सिर्फ एक मां को हीं करने का वरदान मिला है…
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जल्दी हीं वो वक्त आएगा जब अपने जड़ों की ओर अपनी संस्कृति और परम्पराओं की ओर वापसी करनी हीं होगी.. सिंदूर की महत्ता आज मुझे समझ में आ रही है… कल बच्चे के जनम के बाद मुझे कई सवालों से रूबरू होना पड़ेगा… दो कुलों को जोड़ने वाला ये सिंदूर सुरक्षा कवच होता है औरत का.. रिश्तों को नाम पहचान और सामाजिक मान्यता प्रदान करता है…. आज सब समझ में आ रहा है….
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Veena singh..
VM